किसानों के नाम पर विपक्ष का आडंबर
इसमें संदेह नहीं कि देश में किसानों के सामने अनेक समस्याएं है। लागत के अनुरूप कृषि में मुनाफा नहीं है। लेकिन ऐसा भी नहीं कि ये समस्याएं पिछले चार वर्षों में ही पैदा हुई है। किसानों के नाम पर होने वाले प्रदर्शनों में विपक्ष इसी अंदाज में शामिल होता है। वह हाथ बांध कर ऐसा अभिनय करते है जैसे उनके शासन में किसान बहुत खुशहाल थे। जबकि सत्ता में रहते हुए इन्होंने भी कृषि की समस्याओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। अन्यथा समस्या इतनी जटिल नहीं होती। नरेंद्र मोदी सरकार ने किसानों की भलाई के लिए अनेक कदम उठाए है। लेकिन चार वर्ष में दशकों से चली आ रही कठिनाइयों का पूरी तरह निवारण संभव नहीं था। यह आश्चर्यजनक है कि किसानों के नाम पर एक दो दिन धरना प्रदर्शन होता है, फिर वहां विपक्ष के नेता हाथ बांधे पहुंच जाते हैं, सरकार पर हमला बोलते हैं। अपने को किसान नेता के रूप में प्रदर्शित करते है, इसी के साथ धरना प्रदर्शन समाप्त हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे इसी के लिए प्रदर्शन का आयोजन किया गया हो। यह भी रहस्य है कि किसानों को लाने उन्हें कई दिन तक रोकने का का खर्चा कौन वहन करता है।
पिछले कुछ समय से किसान आंदोलन में किसी पटकथा के अनुरूप स्टंट भी होते है। कहीं टैंकरों से लेकर दूध सड़को पर फैलाया जाता है, कहीं आलू सब्जी सड़क पर बिखेरी जाती है। यहां भी कोई तो होता है जो टैंकरों की व्यवस्था करता है। लेकिन ऐसे प्रबंधक यह भूल जाते है कि भारत के कृषक और पशुपालक चाहे जितना परेशान हो, दूध सड़क पर नहीं फेंकेंगे। घर मे कुछ बूंद गिरता है तो माथे पर लगाकर क्षमा मांगते है। कोई अर्द्धनग्न होकर प्रदर्शन करता है, इस बार खोपड़ी, कंकाल लेकर भी लोग प्रदर्शन करने पहुंचे थे। यहां राम मंदिर के विरोध में बैनर लहराए गए, ऐसे प्रबंधकों को क्या पता कि भारतीय किसान श्रीराम का नाम लेकर ही खेत में उतरता है।
जाहिर है कि ये विशुद्ध किसान आंदोलन नहीं है, जिस प्रकार विपक्षी नेता यहां धमकते हैं, वह अपने में बहुत कुछ कह जाता है। जबकि किसानों की परेशानी के लिए ये नेता भी कम गुनाहगार नहीं है। चर्चा तो यह भी है कि इसके पीछे सैकड़ों एनजीओ की भी मिलीभगत होती है। कांग्रेस ने पचास वर्षों में एक बार सत्तर हजार करोड़ रुपया कर्ज क्या माफ कर दिया, उसे लगता है वह किसानों की सबसे बड़ी हमदर्द हो गई। राहुल गांधी को लगता है कि इससे किसानों की सभी समस्याओं का समाधान हो गया था। जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। ऐसा लगता है कि कर्ज माफी के अलावा राहुल के पास कृषि संबंधी कोई योजना नहीं है।
किसानों के नाम पर एक मांग पत्र भी बनाया गया था। इसमें तेईस विषय थे। लेकिन राहुल गांधी सहित अन्य नेताओं के भाषणों में कर्ज माफी तक ही सीमित रहे। किसी में कृषि संबंधी विजन ही नहीं था। जबकि रिपोर्ट यह है कि यूपीए सरकार ने को कर्जमाफी की थी उससे कोई बदलाव नहीं हुआ। किसानों की परेशानी इससे समाप्त नहीं हो सकी। इसके अलावा स्वामीनाथन रिपोर्ट का राग अलापा गया। जबकि कांग्रेस की सरकार इसे आठ वर्ष तक दबाए रही थी। कांग्रेस को तो इसपर सवाल उठाने का अधिकार ही नहीं है। स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नवंबर 2004 को राष्ट्रीय किसान आयोग बनाया गया था। कमेटी ने अक्तूबर 2006 में अपनी रिपोर्ट दे दी थी। 2014 तक कांग्रेस की सरकार रही, आज यही पार्टी पूंछ रही है कि स्वामीनाथन रिपोर्ट का क्या हुआ। इसमें तेज और संयुक्त विकास को लेकर जो सिफारिशें की गईं थी, उस पर तो मोदी सरकार ने अमल किया है। किसानों की रैली में नेताओं में भाषण में कोई गंभीरता नहीं थी। राहुल गांधी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कहा कि जब देश के पन्द्रह सबसे अमीरों के साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए का कर्ज सरकार माफ कर सकती है, तो किसानों का कर्ज क्यों नहीं माफ किया जा सकता। राहुल के पास इस घिसी पिटी बात के अलावा कुछ नहीं है। पूंजीपतियों के कर्ज माफी पर राहुल और अरुण जेटली में से कोई एक झूठ बोल रहा है। जेटली कहते हैं कि किसी उद्योगपति का एक रुपया माफ नहीं किया गया। अरविंद केजरीवाल ने इस मंच से स्वामीनाथन रिपोर्ट का मुद्दा उठाया। यह निशाना कांग्रेस पर ही ज्यादा लगा। यह विपक्ष की कथित एकता थी। कहा गया कि यहां मौजूद राजनीतिक दलों के नेताओं की विचारधारा अलग हो सकती है, लेकिन किसानों और युवाओं के भविष्य पर सभी एकमत हैं। यह भी राजनीतिक पैंतरा मात्र था। जबकि मोदी सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए कई प्रकार की योजनाओं पर कार्य कर रही है। सिंचाई वाले क्षेत्र को बढ़ाया जा रहा है। किसान को उत्पादन लागत से कम से कम डेढ़ गुना मुनाफा का इंतजाम किया गया। यह उपाय दो हजार बाइस तक किसानों की आय दुगुना करने के सरकार के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक होगा। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू की गई। यह कम प्रीमियम पर किसानों के लिए उपलब्ध है। इस योजना से कुछ मामलो में कटाई के बाद के जोखिमों सहित फसल पा के सभी चरणों के लिए बीमा सुरक्षा प्रदान की जाएगी। सरकार तीन लाख रुपए तक के अल्प अवधि फसल ऋण पर तीन प्रतिशत दर से ब्याज रियायत प्रदान करती है। वर्तमान में किसानों को सात प्रतिशत प्रतिवर्ष की ब्याज दर से ऋण उपलब्ध है जिसे तुरन्त भुगतान करने पर चार प्रतिशत तक कम कर दिया जाता है। राष्ट्रीय कृषि विपणन से राष्ट्रीय स्तर पर ई-विपणन मंच की शुरुआत हो सकेगी और ऐसा बुनियादी ढांचा तैयार होगा जिससे देश के करीब छह सौ नियमित बाजारो ई-विपणन की सुविधा दी गई। अब तक तरह राज्यों के करीब पांच सौ बाजारों को ई-एनएएम से जोड़ा गया है। यह नवाचार विपणन प्रािढया बेहतर मूल्य दिलाने, पारदर्शिता लाने और प्रतिस्पर्धा कायम करने में मदद करेगी, जिससे किसानों को अपने उत्पादो के लिए बेहतर पारिश्रमिक मिल सकेगा और एक राष्ट्र एक बाजार की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा। सॉयल हेल्थ कार्स योजना के अंतर्गत किसान अपनी मिट्टी में उपलब्ध बड़े और छोटे पोषक तत्वों का पता लगा सकते हैं। इससे उर्वरकों का उचित प्रयोग करने और मिट्टी की उर्वरता सुधारने में मदद मिलेगी। नीम कोटिंग वाले यूरिया को बढ़ावा दिया गया है ताकि यूरिया के इस्तेमाल को नियंत्रित किया जा सके, फसल के लिए इसकी उपलब्धता बढ़ाई जा सके और उर्वरक की लागत कम की जा सके। घरेलू तौर पर निर्मित और आयातित यूरिया की संपूर्ण मात्रा अब नीम कोटिंग वाली है। जाहिर है कि मोदी सरकार ने कृषि क्षेत्र में सुधार की अनेक कारगर योजनाएं लागू की है।
इनका दूरगामी प्रभाव होगा। आगामी करीब तीन वर्षों में किसानों की आमदनी दो गुनी हो सकेगी। जबकि कृषि की बदहाली के लिए जो सरकारे जिम्मेदार रही है, उसी के नेता किसानों के नाम पर आडंबर कर रहे है।
डॉ. दिलीप अग्निहोत्री
(लेखक विद्यांत हिन्दू पीजी कॉलेज में राजनीति के एसोसिएट पोफेसर हैं।)