पाक को लेकर कोई खुशफहमी न पाले भारत
गत दिनों पाकिस्तान के पधानमंत्री इमरान खान की पहल पर सिख समुदाय के लिए धार्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आस्था के केंद्र भारत के पंजाब के गुरुदासपुर जिले में स्थित डेरा बाबा नानक से लेकर पाकिस्तान के नारोवाल स्थित गुरुद्वारा श्री करतारपुर गुरुद्वारा साहिब के बीच बनने जा रहे गलियारे (कॉरिडोर) की नींव दोनों मुल्कों के नेताओं द्वारा दोनों छोरों पर रखी जा चुकी है, जिसके बनकर तैयार होने पर भारत-पाकिस्तन के सिख श्रद्धालु बिना पासपोर्ट और वीजा के एक-दूसरे के मुल्क की सीमाएं लांघ कर मत्था टेकने आ-जा सकें। इसके लिए सिख समुदाय देश के विभाजन के बाद से यह उम्मीद लगाए बै"ा था, अब आकर उसकी यह इच्छा पूरी होने जा रही है। वर्तमान में सिख श्रद्धालु डेरा बाबा नानक से महज कोई साढ़े छह किलो मीटर की दूरी पर पाक स्थित श्री करतारपुर गुरुद्वारा साहिब को दूरबीन से ही देख पाते हैं। पाकिस्तान की इस रुख-रवैये को लेकर जहां केंद्र में सत्तारूढ़ राजग सरकार, भाजपा के नेता, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह तथा दूसरे लोग पाकिस्तान की इस सदाश्यता, मंशा/इरादों तथा नीयत पर शक/संदेह व्यक्त कर रहे हैं, वहीं पंजाब सरकार के मंत्री और पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी नवजोत सिंह सिद्धू अपने क्रिकेटर मित्र पाक पधानमंत्री इमरान खान को यार, दिलदार, फरिश्ता समेत तमाम उपमाएं देते हुए उनकी दरियादिली के कसीदें काढ़ रहे हैं। उन्हीं के तरह ही कुछ दूसरे सिख-गैर सिख भी पाक के इस नए कदम की तारीफ कर रहे हैं, जबकि गलियारे की आधारशिला रखे जाने वाले समारोह में न केवल खालिस्तान समर्थक गोपाल सिंह चावल मौजूद था, बल्कि उससे पाक सेना पमुख जनरल कमर जावेद वाजवा ने हाथ भी मिलाया। चावला पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई तथा लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिज सईद के साथ मिलकर पंजाब को फिर से अशांत करने में जुटा है। वह भारत के खिलाफ बराबर जहर उगता रहता है। वह `खालिस्तान रेफरेंडम 20-20' के जरिये पंजाब और पवासी सिख युवाओं को भारत के खिलाफ भड़कता रहता है। हाल में अमृतसर के अदलीवाल गांव में निरंकारी सत्संग भवन पर आतंकवादियों द्वारा किए बम विस्फोट की साजिश में उसकी हाथ रहा है। उसने नवजोत सिंह सिद्धू के साथ भी फोटो खिंचा कर उसे सोशल मीडिया पर डाल हुआ है। इस मौके पर पधानमंत्री इमरान खान एक ओर तो भारत से पुरानी कड़वी यादें भुलाकर आगे बढ़ने की बातें कर रहे थे, तो दूसरी ओर वह कश्मीर का पुराना राग अलापना नहीं भूले, पर आतंकवाद के मुद्दे पर कुछ नहीं बोले। वैसे भी सत्ता संभालने के बाद पधानमंत्री इमरान खान ने अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया है, जिससे भारत को यह लगे कि वह अपने पूर्ववर्तियों से किसी माने में अलग/जुदा हैं। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवादियों की घुसपै" ही नहीं, सीमा पर अकारण गोलीबारी भी जारी है। क्या उनका अपनी सेना तथा आईएसआई पर कोई नियंत्रण नहीं है? इस गलियारे को खोले जाने की बात भी नवजोत सिंह सिद्धू को पाक सेना पमुख कमर जावेद बाजवा ने उनके अगस्त माह में हुए शपथ समारोह के समय कही थी। इससे लगता है कि गलियारे की पहल में भी सेना का ही हाथ रहा होगा। चुनाव के दौरान भी वह पूर्व पधानमंत्री नवाज शरीफ पर मोदी का यार पाक का गद्दार कहकर आरोप लगाते रहे थे। वैसे अफसोस की बात यह है जो सिख संप्रदाय इस्लामिक कट्टरपंथी शासकों के उत्पीड़न, अत्याचार, अन्याय से हिन्दुओं और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बना था,इसके लिए सिख गुरुओं ने जीवनपर्यंत संघर्ष और जीवन का बलिदान भी किया था। इन्हीं इस्लामिक कट्टरपंथियों के कारण देश का विभाजन हुआ। फिर इन जालिमों की वजह से सिखों तथा हिन्दुओं को पाकिस्तान से न केवल अपना घरबार, धार्मिक तथा तीर्थ स्थल छोड़कर भारत आना पड़ा। उस दौरान उन्हें अपने स्वजनों-परिजनों के पाणों साथ-साथ मां-बहनों की इज्जत भी गंवानी पड़ी थी। इस हकीकत और इतिहास को भुलाकर अब कुछ सिख कई दशक से इस्लामिक कट्टरपंथियों के हाथों में खेलकर हिन्दुओं को ही अपना दुशमन और उन्हें अपना हमदर्द समझने की भूल करते आ रहे हैं। अब फिर कुछ लोग उसी राह पर चलने करो तैयार हैं।
अब जहां तक इन सिखों के करतारपुर गुरुद्वारा साहिब को महत्व कारण सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव का अपने जीवन के अंतिम 17साल से अधिक समय यहीं व्यतीत करना है। इसी स्थान पर उनका देहावसान हुआ था। उन्होंने रावी नदी के तट पर गुरुद्वारा बनाने के साथ लंगर शुरू किया। खेती कराई तथा नगर बसाया था। डेरा बाबा नानक में गुरु नानक जी अंतिम संस्कार किया गया था। इसलिए इन दोनों स्थानों का सिखों के बहुत महत्व है। इस चार लेन तथा सर्विस रोड वाले इस गलियारे का निर्माण भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग पाधिकरण करेगा। इसके एक साल के अंदर बन जाने की उम्मीद है।
क्या वस्तुतः पाकिस्तान के इस गलियारे के माध्यम से दुनिया को संवेदनशील रवैये विशेष रूप से सिख समुदाय को यह दिखाना चाहता है कि उनका बहुत हितैषी है। इधर पाकिस्तान की इस नई पहल को विदेश नीति के जानकर यह अनुमान लगा रहे थे, भारत सरकार भी उसके पति कुछ नरम रवैया अपनाएगी। श्री करतारपुर साहिब में गलियारे की नींव रखते हुए पाक पधानमंत्री इमरान खान ने भारत के साथ गुणात्मक रूप से संबंध सुधारने की बात कहीं, लेकिन इसके विपरीत भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी स्पष्ट कर दिया कि जब तक पाक आतंकवादियों को भारत भेजना बंद नहीं करेगा, तब उससे बातचीत संभव नहीं है। उनका रुख यूं ही नहीं है, पाकिस्तान की सदाश्यता के पीछे उसके असल इरादों से भारत अनजान नहीं है, वह जानता है कि पाकिस्तान गलियारे की आड़ में सिख समुदाय को लुभाने की कोशिश कर रहा है। हो सकता है भविष्य में वह इस गलियार का इस्तेमाल अपने भेदिये भारत भेजने के लिए करे। वैसे पाक का इरादा के-2 रणनीति को फिर से जीवित करना चाहता है जो पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक के `ऑपरेशन टोपाक' का हिस्सा है, क्योंकि पाक शासक सन 1971की जंग में हार के बाद यह अच्छी तरह से जान गए थे कि पाकिस्तान सैन्य युद्ध में भारत को पराजित नहीं कर सकता। इसलिए तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की मुक्तिवाहिनी की तर्ज पर जम्मू-कश्मीर तथा पंजाब में स्थानीय असंतुष्ट नागरिकों को अपने ही मुल्क भारत के खिलाफ लड़ने को तैयार किया जाए। इसमें उन्होंने जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी और पंजाब के खालिस्तानी मानसिकता के लोगों को सम्मिलित किया। इनके माध्यम से वह इन दोनों राज्यों को भारत से अलग करना चाहता है। इसके लिए पाकिस्तान ने दुनियाभर में फैले खालिस्तानी मानसिकता के लोगों को बाकायदा धन, हथियार, पशिक्षण दिया। इसमें पंजाब के अकालियों-कांग्रेसियों के सत्ता संघर्ष ने भी खालिस्तानियों को अपना मकसद पूरा करने में अपत्यक्ष रूप से मदद की। परिणामतः खालिस्तानियों ने हिन्दुओं को बंदूक के जोर पर हिन्दुओं को आतंकित तथा उनकी हत्या कर पंजाब से पलायन करने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद केंद्र सरकार को स्वर्ण मंदिर में अड्डा बनाये खालिस्तानियों के खिलाफ सख्त कदम उ"ाने को विवश होना पड़ा तथा सेना ने `ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार' चलाया। इसमें भारी खूनखराबा के साथ स्वर्ण मंदिर को भी क्षति पहुंची। परिणामतः सिख समुदाय की भावनाएं आहत हुईं। फिर 31 अक्तूबर 1984 को तत्कालीन पधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंग रक्षकों ने हत्या कर दी। इससे आक्रोशित हिन्दुओं ने दिल्ली समेत कई दूसरे शहरों में सिखों के खिलाफ हिंसा की उसमें कई हजार सिखों को मार डाला। अंततः सन 1993 में आकर पंजाब से खालिस्तानियों का पूरी तरह से सफाया हो पाया। इसकी देश को भारी कीमत चुकानी पड़ी। इसी कारण बाद में पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह, जनरल एएस वैद्य समेत कई दूसरों को अपनी जानें गंवानी पड़ीं।
वर्तमान में इस काम के लिए पाकिस्तान ने अपनी गुप्तचर संस्था `आईएसआई' के लेफ्टिनेंट कर्नल शाहिद महमूद मलही को लगाया हुआ है जो अमेरिका, कनाडा, आस्टेलिया, यूरोप के विभिन्न देशों में रह रहे सिखों को भारत के खिलाफ भड़काने में लगा है ताकि वे सिखों के लिए पंजाब और आसपास के क्षेत्र को मिलाकर स्वतंत्र मुल्क `खालिस्तान' स्थापित करने के लिए संघर्षरत हों। पाक ने शाहिद महमूद मलही को खूब सोच-समझ कर इस काम के लिए चुना है,क्यों कि मलही गोत्र के मुसलमान और सिख जाट पाकिस्तान तथा हिन्दुस्तान के पंजाब में बसते हैं जो धनी जमींदार हैं। इसके अलावा इसी गोत्र के सिख दुनिया के कई मुल्क में रह रहे हैं, जो अमीर कारोबारी हैं। 12 अगस्त 2018 को लंदन में खालिस्तान के समर्थन में रैली निकाली थी जिसमें `खालिस्तान रेफरेंडम-2020' का पस्ताव पारित किया था। भारत की खुफिया एजेंसियों को मिली जानकारी के अनुसार पाकिस्तान अपने आतंकवादी जम्मू-कश्मीर के रास्ते पंजाब में भेज कर दहशतगर्दी फैलाने और खालिस्तानियों की मदद करने की साजिश रच रहा है, इसके बारे में सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने भी पंजाब सरकार को आगाह कर दिया था। फिर भी आतंकवादी निरंकारियों के सत्संग में बम फेंक कर अपने इरादों में कामयाब हो गए। अब भी पंजाब में सुप्त पड़े खालिस्तानियों को पाकिस्तान फिर से अपने ही मुल्क के खिलाफ उ" खड़े करने में लगा।
डॉ.बचन सिंह सिकरवार