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बर्बादी के आसार नजर आते हैं

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:8 Dec 2018 3:37 PM GMT
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इन्दर सिंह नामधारी

चुनाव किसी भी लोकतांत्रिक देश की विशिष्टता का मापदंड होता है क्योंकि चुनावों के दौरान ही सत्ता में जाने वाले लोग एवं अन्य दल अपनी-अपनी नीतियों का विवरण जनता के सामने पस्तुत करते हैं। 71 वर्षों की आजादी के बाद भी हमारे देश की जनता का एक बहुत बड़ा भाग जीवन की सामान्य जरूरतों से भी वंचित है। हमारे देश के पत्येक नागरिक को अपने मनोनुकूल मत देने का अधिकार पाप्त है तथा चुनावों में कूदे दलों को चाहिए कि वे सत्ता मिलने पर अपनी नीतियों को कार्यान्वित कर उनकी समस्याओं को हल करें। इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इतना परिपक्व होने के बावजूद भारत का लोकतंत्र चुनावों के दरम्यान अब बुरी तरह लड़खड़ाने लगा है। अभी-अभी देश के पांच राज्यों क्रमशः मध्यपदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, एवं मिजोरम में विधानसभाओं के चुनाव सम्पन्न हुए हैं जिनका परिणाम 11 दिसम्बर 2018 को सामने आएगा। दिनांक आठ दिसम्बर 2018 को उपरोक्त राज्यों के एग्जिट पोल सामने आए हैं जिनसे ऐसा आभास होता है कि कांग्रेस अपनी वर्तमान स्थिति में सुधार लाने वाली है जबकि भाजपा को झटका लगने की संभावना है। चुनाव परिणामों का ऊंट जिस करवट भी बै"s देश के कर्णधारों को काफी गंभीरता से सोचना पड़ेगा कि देश के लोकतंत्र में आई विकृतियों को कैसे दूर किया जाए? धनबल, भुजबल एवं धर्म-जाति का बोलबाला तो चुनावों में पहले से ही मौजूद था लेकिन उपरोक्त पांच राज्यों के चुनावों में विभिन्न दलों के द्वारा ऐसे-ऐसे बयान और शब्दलबाण छोड़े गए हैं जिन्हें भारत के परिपक्व लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं माना जा सकता। सत्ता में बै"ाr भाजपा ने जिस तरह यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को उपरोक्त पांचों पांतों में स्टार पचारक के रूप में पेश किया है उससे सिद्ध हो जाता है कि भाजपा धार्मिक उन्माद के अपने ब्रह्मास्त्र को वर्ष 2019 के संसदीय चुनावों में खुलकर इस्तेमाल करने वाली है। यह पहला मौका है जब राम भक्त हनुमान की जाति का भी चुनावों में पयोग किया गया है। योगी जी ने राजस्थान में भाषण देते हुए हनुमान जी को जिस तरह दलित और पीड़ित बताया है उसको सुनकर हनुमान भक्तों को काफी गहरा अघात पहुंचा है। लोगों के दुख एवं दर्द का हरण करने वाले हनुमान जी आखिर स्वयं पीड़ित कैसे हो गए? योगी जी धार्मिक उन्माद पैदा करने के लिए ऐसे-ऐसे शब्दों का पयोग कर रहे हैं जो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश के लिए सर्वथा अशोभनीय है। हिन्दुओं का धुवीकरण करने के इरादे से योगी जी ने राजस्थान में हो रहे चुनावों को बजरंगबली एवं अली के बीच का मुकाबला बताकर सबको हैरान कर दिया है। भारत के चुनाव आयोग ने भले ही इन शब्दों पर कोई ध्यान न दिया हो लेकिन यह मामला सीधे-सीधे दो धर्मों के धर्मगुरुओं की लड़ाई की दुहाई देकर वोट बटोरने का एक निम्नस्तरीय उदाहरण है। भाजपा एवं कांग्रेस दोनों पमुख दलों के नेता एक दुसरे पर इतने तीव्र पहार कर रहे हैं जिनसे इस लोकतांत्रिक देश में परहेज किया जाना चाहिए था।

एक तरफ राहुल गांधी जहां आम सभाओं में राफेल लड़ाकू विमानों की खरीदगी को लेकर पधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी पर अनिल अंबानी को तीस हजार करोड़ रुपए की कमाई करवाने का सीधा आरोप लगा रहे हैं तो वहीं पधानमंत्री भी कई वर्ष पूर्व हुए वीवीआईपी हेलीकॉप्टरों की खरीदगी में श्रीमती सोनिया गांधी की संलिप्तता को उजागर करने के लिए उपरोक्त हेलीकॉप्टरों के सौदे में दलाली पाने वाले क्रिश्चियन मिशेल का पत्यर्पण करके भारत ले आये हैं। सीबीआई के पटियाला कोर्ट ने मिशेल को पांच दिनों के लिए सीबीआई की कस्टडी में पूछताछ के लिए भेज दिया है। पता नहीं पांच दिनों में केंद्र सरकार मिशेल के मुंह से कौन-कौन से बयान दिलवाने की कोशिश करेगी? वास्तविकता यह है कि दोनों ही दलों के द्वारा एक दूसरे पर कमर से नीचे वार किए जा रहे हैं जिसके चलते देश का चुनावी माहौल काफी विषाक्त हो चुका है। देश में धार्मिक उन्माद पैदा होने का खतरा अत्यधिक बढ़ चुका है। उत्तर पदेश के बुलंद षहर की घटना यह बताने के लिए पर्याप्त है कि किस तरह सांप्रदायिक धुवीकरण के लिए निम्नस्तर के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं? तथाकथित गौ रक्षकों द्वारा अंधाधुंध पत्तरबाजी एवं गोली मारकर एक पुलिस इंस्पेक्टर को मौत के घाट उतार देना आखिर किस दिशा की ओर इशारा करता है? गौ रक्षकों का आरोप है कि कुछ उन्मादी लोगों ने गौमांस के टुकड़े खेतों में फेंक दिए थे जिसके चलते लोगों में उबाल आ गया जिसके परिणाम स्वरूप पुलिस इंस्पेक्टर के अतिरिक्त एक अन्य युवक को भी मौत का सामना करना पड़ा है। ऐसे चुनावों को क्या एक मंजे हुए लोकतांत्रिक देश के लिए उचित माना जा सकता है?

लोकतंत्र में चुनाव एक ऐसा अवसर होता है जब जनता अपनी समस्याओं से चुनाव लड़ रहे नेताओं को अवगत कराती है और संबंधित दल जनता को उन समस्याओं के हल के निदान निकालने का आश्वासन देते हैं। भारत के युवकों में बेरोजगारी एक ऐसी समस्या बनकर सामने आई है जिसका निदान खोजना किसी भी सरकार का पहला दायित्व होना चाहिए। भारत के किसान आज भी पतिदिन आत्महत्या करने पर मजबूर हो रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद तीन लाख से अधिक किसानों ने कर्ज से तंग आकर आत्महत्याएं कर ली हैं तथा किसानों के आत्महत्या करने के मामले आज भी पतिदिन सामने आ रहे हैं। इस दुखद पहलु के निदान के लिए चुनावों के दौरान जनता को आश्वासन दिए जाने चाहिए थे लेकिन ऐसी-ऐसी गंभीर समस्याओं को छोड़कर धर्म एवं जाति के सतही एवं फूहड़ बिन्दुओं पर जनता को ध्रुवीकृत किया जा रहा है। राजनीतिक पतिद्वंद्विता दुश्मनी में बदलती जा रही है तथा दोनों पमुख दल अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग अलाप रहे हैं। एक तरफ पधानमंत्री श्री मोदी देश को आजाद कराने वाले गांधी-नेहरू एवं सरदार पटेल जैसे नेताओं को देश की दशा न सुधार पाने के लिए जिम्मेवार "हरा रहे हैं तो वहीं कांग्रेस पधानमंत्री को हिटलर जैसा तानाशाह बताकर उनकी कटु आलोचना कर रही है। लग ऐसा ही रहा है कि यह लड़ाई चुनावों की नहीं अपितु एक दूसरे को नीचा दिखाने का साधन बन गई है। देश का मीडिया भी निष्पक्ष भूमिका नहीं निभा पा रहा है जिसके चलते हकीकत जनता के सामने नहीं आ पा रही है। देश के जिम्मेवार एवं देश पेमी लोगों को चाहिए कि वे दलगत भावनाओं से ऊपर उ"कर विवेकशील लोगों का एक ऐसे समूह को पैदा करे जो देश की चुनावी विकृतियों को दूर करने के लिए जाति-पाति एवं धर्म की संकीर्णता से ऊपर उ"कर चुनावी पक्रिया को शुद्ध करने का पयत्न करें। भारत के लोगों को भूलना नहीं चाहिए कि हमारा देश एक ऐसे नाजुक दौर से गुजर रहा है जब उसके पड़ोसी देश भी भारत को शक की निगाह से देख रहे हैं।

(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)

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