Home » द्रष्टीकोण » राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है हत्यारों को प्रोत्साहन

राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा है हत्यारों को प्रोत्साहन

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:9 Dec 2018 3:58 PM GMT
Share Post

तनवीर जाफरी

राम राज्य के खोखले दावों के बीच देश में लगभग चारों ओर गुंडाराज का चलन बढ़ता जा रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस समय देश के पधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे नरेंद्र मोदी तथा देश के सबसे बड़े पांत उत्तर पदेश के सत्ता पमुख योगी आदित्यनाथ दोनों ही व्यक्ति स्वयं को फकीर व संत कहलवाने से खूब गद्गद् होते हैं। पायः इन नेताओं से कुछ विशेष पत्रकार इनकी फकीरी व इनके संत स्वभाव के बारे में भी बातें करते देखे जाते हैं। बड़ा अजीब-सा लगता है जब यही स्वयंभू संत सांपदायिक भीड़ द्वारा की जाने वाली किसी हत्या पर खामोश हो जाते हैं। पसिद्ध शायर खुमार बाराबंकवी ने फरमाया है कि अरे ओ जफाओं पे चुप रहने वालो। खामोशी जफाओं की ताईद भी है। गोया यदि जल्म-ओ-सितम, अत्याचार के विरुद्ध आप अपनी आवाज बुलंद नहीं करते तो गोया आप उस अत्याचार व अन्याय का समर्थन कर रहे हैं। हालांकि शायर ने यह विचार आम लोगों के लिए व्यक्त किए हैं जबकि सत्ता के जिम्मेदारों पर तो यह बात और भी जोरदार तरीके से लागू होती है। हत्यारी भीड़ द्वारा लोगों की हत्याओं का सिलसिला अब यहां तक आ पहुंच चुका है कि नरेंद्र मोदी के शासनकाल में चार वर्षों में अब तक लगभग 136 ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिसमें भीड़ द्वारा किसी निहत्थे, बेगुनाह अथवा किसी बुजुर्ग व्यक्ति की हत्या कर दी गई हो। बावजूद इसके कि इस पकार के हमले अधिकांशतः मुस्लिम समाज के लोगों पर किए गए हैं। परंतु हत्यारों की इस भीड़ ने हिंदू समाज के लोगों को भी नहीं बख्शा है।

इसका ताजा-तरीन उदाहरण पिछले दिनों बुलंदशहर में दंगाई भीड़ द्वारा एक दबंग व ईमानदार पुलिस निरीक्षक सुबोध कुमार सिंह की गोली मार कर हत्या किया जाना है। दंगाई सांपदायिक भीड़ के बुलंद हौसलों का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसी भीड़ ने न केवल इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या की बल्कि उनकी जीप को भी आग के हवाले कर दिया। यहां तक कि उस पुलिस चौकी को भी आग लगा दी जहां हिंसक भीड़ पदर्शन कर रही थी। इस घटना से जुड़े कुछ पहलू ऐसे हैं जो हत्यारों के पति सत्ता के रुख का साफ पता देते हैं। जैसे घटना के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के परिजनों से मिलने व उन्हें सांत्वना देने हेतु उनके घर जाने के बजाय शहीद की विधवा व परिवार को लखनऊ बुलाया गया और उनकी सभी मांगों को स्वीकार करने व सांत्वना धनराशि आदि घोषित करने का `पुनीत कार्य' किया गया। घटना के बाद सरकार द्वारा जारी बयान में हत्यारों को पकड़ने या उन्हें सख्त सजा देने जैसा कोई संदेश देने के बजाय कथित गौ हत्या के संबंध में सख्त कार्रवाई करने के आदेश दिए गए। और इस आदेश पर अमल करते हुए पुलिस ने अपने अधिकारी के हत्यारों को तलाशने के बजाय गौहत्या के आरोपियों की धरपकड़ तेज कर दी। यहां तक कि चौकस पुलिस द्वारा गौहत्या के आरोप में 12 वर्ष के दो बच्चों को भी गिरफ्तार कर लिया गया।

इसी तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि इतनी बड़ी घटना के बाद बुलंदशहर के पुलिस अधीक्षक सहित तीन पुलिस अधिकारियों को बुलंदशहर से स्थानांरित कर दिया गया। एसएसपी के स्थानांतरण के बाद बुलंदशहर के भाजपा विधायक देवंद्र लोधी अपने समर्थकों के साथ विजय जुलूस के रूप में शहर में घूमते व जश्न मनाते दिखाई दिए। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह के हत्या के मात्र एक सप्ताह के भीतर ही अपने गले में फूलों व नोटों की माला डाले एक-दूसरे को मिठाइयां खाते-खिलाते स्थानीय भाजपा विधायक देवेंद्र लोधी अपने इस भौंडे पदर्शन से आखिर क्या संदेश देना चाह रहे थे? गौर करने की बात है कि जिस शहर में एक जिम्मेदार वरिष्ठ पुलिस अधिकारी व एक अन्य नवयुवक की हत्या हुई हो वहां का सत्ताधारी दल का विधायक आखिर किस बात का जश्न मनाता फिर रहा है? दूसरी ओर यही विधायक अपने एक टीवी साक्षात्कार में यह कहने का साहस भी नहीं जुटा पाता कि इंस्पेक्टर के हत्यारों को गिरफ्तार कर उन्हें सख्त सजा दी जानी चाहिए जबकि आरोपी हत्यारे का नाम पाथमिकी में दर्ज हो चुका है।

दरअसल सामूहिक रूप से भीड़ द्वारा सुनियोजित तरीके से हत्या किए जाने के चलन को सत्ता द्वारा खुले तौर पर पोत्साहित किया जा रहा है तथा इसे सत्ता का संरक्षण हासिल है। अन्यथा जयंत सिन्हा जैसा केंद्रीय मंत्री जिसने हॉवर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए की शिक्षा ग्रहण की हो उस जैसे शिक्षित व्यक्ति द्वारा झारखंड में हत्यारी भीड़ के उन आठ सरगना हत्यारों का उनके गले में माला डाल स्वागत न किया जाता जिन्होंने भीड़ के साथ शामिल होकर 55 वर्षीय अलीमुद्दीन अंसारी की झारखंड के रामगढ़ कस्बे में हत्या कर दी थी। इसी पकार दादरी में मोहम्मद अखलाक के हत्यारों को केंद्रीय मंत्री द्वारा सम्मानित किया गया तथा इनमें से पंद्रह हत्यारों को एक भाजपा विधायक की सिफारिश पर कथित रूप से संविदा पर नौकरी भी दी गई। इसी पकार राजस्थान के राजसमंद में या रकबर खान अथवा उमर क्वान या पहलू खान आदि जैसे अनेक लोगों के हत्यारों के पक्ष में भीड़ तंत्र का खड़ा हो जाना और हत्यारों को सत्ता के संरक्षण में बेखौफ होकर उनकी मदद करना व उनके समर्थन में नारे लगाना यहां तक कि जरूरत पड़ने पर पशासन व न्यायपालिका से टकराने का भी साहस दिखाना यह सब निश्चित रूप से एक सोची-समझी हुई दूरगामी साजिश का ही नतीजा है।

हत्यारों को महिमामंडित करने का इससे बड़ा दुर्भाग्यशाली पदर्शन आखिर और क्या हो सकता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम कि रामनवमी पर निकाली जाने वाली पावन शोभा यात्रा में जोधपुर में इसी वर्ष एक ऐसी झांकी निकाली गई थी जिस पर एक व्यक्ति को राजसमंद के हत्यारे शंभू रैगर की वेषभूषा में शाही कुर्सी पर बिठाकर उसका महिमामंडन किया जा रहा था। यह झांकी बेरोक-टोक पशासन की नाक के नीचे पूरे शहर में घूमी और जनता द्वारा इसका जय-जयकार किया गया। अब भले ही यह आयोजन किसी विशेष विचारधारा के कुछ लोगों द्वारा क्यों न किया गया हो परंतु आम जनता ने राजस्थान में भीड़तंत्र द्वारा किए जाने वाले इस पकार के घृणित अपराधों को किस रूप में लिया है इसका जवाब निश्चित रूप से राजस्थान की जनता ने अपने मतों के द्वारा स्पष्ट कर दिया है। हत्यारों के महिमामंडन का सबसे भयानक रूप उस समय भी देखने को मिला था जब कठुआ में एक आठ वर्षीय बालिका के बलात्कारियों व हत्यारों के समर्थन में भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं की एक भीड़ सड़कों पर उतर आई। इस भीड़ में भाजपा के मंत्रीगण भी शामिल थे। दरअसल अपराध अथवा अपराधियों को धर्म व संपदाय के चश्मे से देखना सबसे खतरनाक है। परंतु आज धर्म के नाम पर अपराधियों को पोत्साहित किया जा रहा है। बेरोजगार व गुमराह नवयुवक धर्मांधता का शिकार बन सत्ता के चकव्यूह में उलझकर अपना जीवन व भविष्य बरबाद कर रहे हैं। दूसरी ओर देश की राष्ट्रीय एकता अखंडता एवं हमारे सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने की कोशिश में लगे चंद नेता स्वयं को सबसे बड़ा धर्मरक्षक व राष्ट्ररक्षक बता कर गरीब जनता के पैसों पर ऐश करने का षड्यंत्र रच रहे हैं। और इसी खेल की आड़ में देश के चंद गिने-चुने उद्योगपति घरानों की जेबें बेतहाशा भरी जा रही हैं। राष्ट्र व जनता से जुड़े वास्तविक मुद्दे नकारखाने में तूती की आवाज की तरह गायब होते जा रहे हैं। ऐसे में हमें अपनी आंखें खोलने तथा अपने व राष्ट्र के अस्तित्व को सुरक्षित रखने हेतु यथाशीघ्र कदम उठाने की जरूरत है।

Share it
Top