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क्रिश्चियन मिशेल : मोदी सरकार के हाथ लगा तुरुप का इक्का

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:9 Dec 2018 3:59 PM GMT

क्रिश्चियन मिशेल : मोदी सरकार के हाथ लगा तुरुप का इक्का

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आदित्य नरेन्द्र

पिछले कई महीनों से कांग्रेस द्वारा उठाए जा रहे राफेल मुद्दे से परेशान मोदी सरकार के हाथ अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाला मामले में उस समय एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी जब 3600 करोड़ रुपए के वीवीआईपी हेलीकॉप्टर सौदे के कथित बिचौलिये ब्रिटिश नागरिक क्रिश्चियन मिशेल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व में चलाए गए एक ऑपरेशन के बाद भारत ले आया गया। बताया जा रहा है कि क्रिश्चियन मिशेल ही वह अहम कड़ी है जो इस सौदे से जुड़े कई रहस्यों को बेपर्दा कर सकता है। इसीलिए भारतीय एजेंसियां पिछले काफी समय से उसे भारत लाने का प्रयास कर रही थीं। इस पूरे मामले में उसके अहम रोल को देखते हुए भारत सरकार ने 2017 में खाड़ी देशों से उसके प्रत्यर्पण की मांग की थी। ईडी और सीबीआई इस मामले में मिशेल के खिलाफ आपराधिक मामले के तहत जांच कर रहे थे। इसी सन्दर्भ में ईडी ने जून 2016 में मिशेल के खिलाफ चार्जशीट फाइल की थी। इस चार्जशीट के अनुसार अगस्ता वेस्टलैंड से उसने लगभग 225 करोड़ रुपए लिए। इसे कंपनी द्वारा 12 हेलीकॉप्टरों के समझौते को अपने पक्ष में कराने के लिए वास्तविक लेन-देन के नाम पर दी गई रिश्वत बताया गया। जिसके बाद फरवरी 2017 में उसे यूएई में अरेस्ट कर लिया गया था। मिशेल के वकील ने उनका पक्ष रखते हुए कहा था कि सीबीआई उनके क्लाइंट पर दबाव बना रही है। हालांकि सीबीआई ने इन आरोपों से साफ इंकार कर दिया था और मिशेल के खिलाफ प्रत्यर्पण की कार्रवाई में जुट गई थी।

उल्लेखनीय है कि अगस्ता वेस्टलैंड से 12 वीवीआईपी हेलीकॉप्टर खरीदने के सौदे में बड़ी रिश्वत देने की बात सामने आई थी। इस सौदे को एक जनवरी 2014 को रद्द कर दिया गया था। इसके बाद तीन बिचौलिये क्रिश्चियन मिशेल, गुइदो हाश्के और कार्लो गेरेसा जांच एजेंसियों के राडार पर आ गए। कोर्ट से गैर जमानती वारंट जारी होने के बाद दोनों एजेंसियों ने मिशेल के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी कर दिया था जिसका परिणाम मिशेल को अरेस्ट कर भारत लाने के रूप में सामने आया है। इस मामले में सीबीआई को आरोपी की पांच दिन की रिमांड मिली है। पांच दिन बाद ही कुछ कहा जा सकेगा कि ऊंट किस करवट बैठेगा। इस मामले में जो उसकी भूमिका बताई जा रही है अब सीबीआई को उसके पुख्ता प्रमाण जुटाने का मौका मिला है लेकिन सीबीआई इसमें कितना कामयाब हो पाती है इसे लेकर कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी। हालांकि यह अंदाज तो सरसरी तौर पर लगाया ही जा सकता है कि सीबीआई के पास उनके खिलाफ कुछ न कुछ तो होगा ही जिसके चलते उसे मिशेल को सौंपा गया है। वरना एक ब्रिटिश नागरिक को यूएई की अदालत से केस लड़कर लाना आसान काम नहीं है। सीबीआई ने कुछ तो सबूत वहां की अदालत के सामने रखे ही होंगे जिन्हें मान्यता देकर वहां की अदालत मिशेल के प्रत्यर्पण के लिए राजी हो गई। दरअसल मिशेल का महत्व एक सौदे में बिचौलिये से कहीं ज्यादा उनके राजनीतिक सम्पर्कों के चलते भी है जिसके गंभीर राजनीतिक निहतार्थ हैं। उसकी गिरफ्तारी से भाजपा को गांधी परिवार के खिलाफ तीखा हमला करने का एक बेहतरीन मौका मिल गया है। कांग्रेस भी इससे अनजान नहीं है। यही वजह है कि जब भारतीय युवा कांग्रेस के विधि विभाग के प्रभारी एके जोसेफ कोर्ट में मिशेल के वकील के रूप में पेश हुए तो पार्टी ने उन्हें तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया। जबकि जोसेफ का तर्प था कि वह अपनी निजी हैसियत से मिशेल के वकील के रूप में वहां गए थे। इस मामले में पार्टी ने उनके तर्प को तवज्जो नहीं दी जबकि पहले कई ऐसे मामले रहे हैं जिनमें पार्टी ने ऐसे तर्कों को माना है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में मिशेल की भूमिका दो स्तरों पर सामने आने वाली है। एक कानूनी और दूसरी जनमानस के प्रति अवधारणा के रूप में। इसीलिए जहां एक ओर सत्ताधारी दल उन्हें कांग्रेसी नेताओं से जुड़ा हुआ दिखाने का प्रयास कर सकते हैं वहीं दूसरी ओर कांग्रेस मिशेल मामले से दूर रहने का प्रयास करेगी क्योंकि वह जानती है कि यह मामला कानूनी रूप से तो लंबा खिंच सकता है लेकिन आम जनमानस में इसका असर तुरन्त हो सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि यदि लोगों में उसके गांधी परिवार के करीबी होने का कोई संकेत गया तो कांग्रेस को कुछ माह बाद होने वाले आम चुनाव में इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसी के चलते मिशेल की वकालत करने वाले एके जोसेफ को पार्टी से निकाला गया है।

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