Home » द्रष्टीकोण » झप्पी और गुगली के सहारे मानव धर्म पर आक्रमण

झप्पी और गुगली के सहारे मानव धर्म पर आक्रमण

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:11 Dec 2018 3:47 PM GMT
Share Post

डॉ. बलराम मिश्र

आजकल करतारपुर गलियारा बड़ी चर्चा में है। करतारपुर पाकिस्तानी पंजाब प्रांत के जिला नारोवाल, तहसील शकरगढ़ में स्थित है। यहां मानव धर्म के एक प्रतीक सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी महाराज (29 नवम्बर, कुछ विद्वानों के अनुसार 15 अप्रैल, 1469-22 सितम्बर, 1539) ने अपने जीवन के अंतिम करीब 16 वर्ष रावी नदी के तट पर स्थित एक आश्रम में बिताए थे। उस स्थान का नाम उन्होंने ही करतारपुर रखा था। वहीं उन्होंने देह त्याग किया था। उसी स्थान पर पटियाला नरेश सरदार भूपिन्दर सिंह ने एक गुरुद्वारा बनवाया था, जो गुरद्वारा दरबार साहेब के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

भारत के अनेक दुर्गम स्थानों की लगभग 55 हजार किलोमीटर लंबी, तथा श्रीलंका, ब्रह्म देश, रूस, ईरान, अफगानिस्तान, आदि देशों की,यात्रा करने के बाद गुरु नानक देव जी ने कुछ समय के लिए जिला गुरदासपुर (भारतीय पंजाब) में एक स्थान पर डेरा डाला था, जो `डेरा बाबा नानक साहेब' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां से वे, लगभग तीन किलोमीटर दूर स्थित, करतारपुर चले गए थे। गुरुद्वारा दरबार साहेब देश के सर्वोच्च तीर्थस्थलों में से एक है। बंटवारा के बाद करतारपुर साहेब की करीब तीन किलोमीटर की दूरी बहुत ज्यादा हो गई। भारत के तीर्थयात्रियों को पहले लाहोर जाना पड़ता, फिर 120 किलोमीटर दूर जाकर करतारपुर साहेब के दर्शन होते। भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच लंबी वार्ताओं के बाद नवम्बर 2018 में करतारपुर साहेब और डेरा बाबा नानक साहेब के बीच एक गलियारा बनाने का सपना मूर्त रूप लेने लगा। 26 नवम्बर को भारत के उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू ने डेरा बाबा नानक साहेब में, और 28 नवम्बर को करतारपुरसाहेब में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्री इमरान खान ने गलियारे के सिरों पर शिलान्यास किया। कहा जाता है कि गुरु नानक देव जी ने अपनी लंबी यात्राओं एवं अनुभवों के आधार पर अनेक प्रकार के पद्य रचे थे, जिन्हें उन्होंने गद्दी सौंपते समय अपने अभिन्न मित्र एवं सेवक भाई लहणाजी को दे दिए थे। भाई लहणाजी को उन्होंने नया नाम दिया थाः गुरु अंगद देव। गुरु अंगद देव जी ने भी अनेक पद्य रचे और उन्हें गुरु नानक देव जी की रचनाओं के साथ मिलाकर गुरु अमरदास जी को सौंप दिया था। गुरु अमरदास जी ने विरासत में मिली रचनाओं में अपनी वाणियां जोड़कर गुरु विरासत गुरु रामदास जी को सौंपी। गुरु रामदासजी ने अपनी वाणी उस में जोड़कर पूरी विरासत गुरु अर्जुन देव जी को सौंपी। गुरु अर्जुन देव ने उस आध्यात्मिक विरासत में अपनी वाणियां जोड़ दीं।इस प्रकार गुरुओं और शिष्यों या शिष्यों और गुरुओं, की अमृत वाणियों का एक महान अमृत संकलन तैयार था, जो विराजमान था गुरु अर्जुन देव जी की जिव्हा पर। उस अमृत संकलन को और भी अधिक संवर्धित कर दिया था अनेक अनुयायी एवं प्रशंसक भक्तजनों के द्वारा बोली गई रचनाओं ने। पहले पांच और नौवें गुरु तेग बहादुर जी महाराज की वाणियों के अलावा श्री गुरुग्रंथ साहेब में गुरु रविदास, भक्त भीखन और भक्त शेख फरीद (दोनों मुस्लिम संत), सूरदास, त्रिलोचन, नामदेव, धन्ना, पीपा, बेनी, सदना कसाई, सेनजी, सुंदरजी, भाई मर्दाना, राय बलवंड, जैसे मार्गदर्शक संतों की वाणियों का भी समावेश है। इस प्रकार एक महान मौखिक ग्रंथ तैयार हुआ।पंचम गुरु अर्जुन देव जी महाराज ने भाई गुरु दासजी की लेखन-सेवा स्वीकार की और 31 रागों में श्री गुरुग्रंथ साहेब की रचना हो गई, अर्थात मानव जाति को भव-सागर पार कराने वाला एक जहाज, और अजरअमर ज्ञानराशि के रूप में चमत्कृत हुआ श्री गुरुग्रंथ साहेब, जिसे साक्षात सशरीरी सद्गुरु का स्थान दिया गया। 4 अक्तूबर 1708 को दशमगुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने श्री गुरुग्रंथ साहेब को गुरु मानने का आदेश देते हुए बताया था कि परमात्मा का साक्षात्कार करने के उपाय श्री गुरुग्रंथ साहेब में खोजे जा सकते हैं। परमात्मा से साक्षात्कार करने का मंत्र नौवें गुरु श्री तेग बहादुर साहेब ने श्री गुरुग्रंथ साहेब के अंतिम शबद के रूप मे, मुन्दावली के पूर्व, दिया हैö

`रामनाम उर में गह्यो जाके सम नहिं कोय, जे सुमिरत संकट मिटहिं दरस तोहारो होय', अर्थात जो व्यक्ति रामनाम को अपने हृदय में धारण करता है उसके समान कोई नहीं होता। नाम के स्मरण मात्र से ही संकट मिट जाते हैं और परमात्मा के दर्शन हो जाते हैं।

भारतीय समाज को संत-शक्ति का संबल सदैव मिला। मुगल आक्रांता बाबर के जुल्मों का बखान करने वाले शबद `बाबर वाणी' में गुरु नानक देव जी ने परमेश्वर से बाबर की शिकायत कीö

`ऐती मार पई कुर्लाणे,

तै की दर्द न आया,

जो सकता सकते को मारे

ता मन रोस न होई,

सकता शी मारे पै वग्गे

खसमे तै पुरसाई'।

(`साधारण एवं निरीह जनता पर इस कदर मार पड़ रही है,और परमात्मा, तुझे दया नहीं आती? यदि कोई शक्तिशाली दूसरे शक्तिशाली व्यक्ति को मारता तो मन में रोष नहीं आता। किन्तु रोष तब आता है जब तेरे जैसे सर्वशक्तिमान मालिक के सामने ताकतवर भेड़िया निरीहों पर हमला कर रहा है')। उन्होंने बाबर को `जाबर' (जबरदस्ती करने वाला) कहा था।

श्री गुरु नानक देव जी से लेकर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी तक सभी गुरुओं एवं उनके शिष्यों और परिजनों ने धर्म की रक्षा हेतु मुगलों के द्वारा दी गई अविस्मर्णीय और अमानुषिक यातनाएं झेलीं। सर्वधर्म छोड़कर इस्लाम न कबूलने के कारण औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर साहेब की गर्दन काटकर ह्त्या कर दी थी। बलिदान के पूर्व, ठीक उनके सामने, औरंगजेब ने उनके अनुयायी भाई सतीदास को जिंदा जला दिया था, क्योंकि उन्होंने भी सर्वधर्म छोड़कर इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया था। इसी `अपराध' के कारण भाई मतीदास को लकड़ी के दो पटरों के बीच बांधकर सिर के ऊपर से नीचे तक आरा से चीर दिया गया था। गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्र, अजीत सिंह और जुझार सिंह धर्मयुद्ध में शहीद हुए थे और शेष दो छोटे पुत्रों, जोरावर सिंह और फतेह सिंह, को जिंदा ही, बन रही दीवार के बीच खड़ा करके दीवार में ही चिनवा दिया गया था। इसीलिए जुल्म का मुकाबला करने के लिए गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा थाö

`मुखते हरि चित्त ते युद्ध बिचारै'। शास्त्र एवं शस्त्र, तथा धर्म एवं शक्ति, को एक दूसरे का पूरक बताया। पंथ की अनिवार्य परम्परा के अनुसार हर शिष्य, अर्थात सिख, को सदैव विजिगीशु वृत्तिधारी होना चाहिए। इसीलिए केश, कच्छा, कड़ा, कृपाण एवं कंघा, ये पांच चीजें हर हालत में, सदैव, अपने शरीर पर धारण करने का हर सिख को आदेश है। जुल्म का मुकाबला करने के लिए शौर्यभाव जगायाö`सूरा सो पहिचानिए जो लडे दीन के हेत, पुर्जा पुर्जा कट मरे तबहुं न छाड़े खेत'।

आज पूरे विश्व में श्री गुरुग्रंथ साहेब का प्रकाश है। 'एक नूर ते उपजी' पूरी `मानुस की जात', बिना किसी भेदभाव के, संगत और पंगत का प्रसाद पा सकती है। ऐसे आध्यात्मिक श्री गुरुग्रंथ साहेब के सम्पादक गुरु अर्जुन देव जी को जीते जी पुरस्कार क्या मिला था? मानव जाति के कलंक, आक्रांता मुगलवंशी शासक जहांगीर ने उन्हें गरम लाल तवे पर बिठाकर उनके ऊपर गरम रेत डाला था, फिर उन्हें उबलते पानी में आलू की तरह उबाला था। उनके शरीर पर बड़े बड़े फफोले निकल आए थे। उस शासक ने ऐसा क्यों किया था? क्योंकि उन्होंने श्री गुरुग्रंथ साहेब में वर्णित मानव धर्म को त्याग कर इस्लाम स्वीकारने से मना कर दिया था। वे अडिग रहे अपने विश्वास पर, इसलिए बादशाह ने हुकूम दिया कि गुरु अर्जुन देव जी को गाय की खाल में लपेट कर सिलाई कर दी जाए। गुरु अर्जुन देव जी ने कहा कि पहले मुझे रावी नदी में स्नान कर लेने दो, फिर जो चाहो करो। नदी में स्नान करने गए और वापस कभी न आए। ईसाई वर्ष 1606 में उस धर्मरक्षक संत की जीवन लीला समाप्त हो गई। वे अमर हो गए।

सिख गुरुओं या गुरु सिखों ने हिन्दुस्थान की आत्मा की रक्षा एवं पोषण हेतु जो कुबानियां दी थीं उनको भूलने से बड़ा पाप क्या हो सकता है? यह दुर्भाग्य है कि स्वतंत्र भारत की धरती पर आज भी उन नराधम मुगलों को महिमामंडित किया जाता है। उनकी मानवता विरोधी विचारधारा को देश पर पुन थोपने के कुत्सित प्रयास बर्दाश्त किए जा रहे हैं।

यह दयनीय है कि आज सिख अपने ही देश में धूर्त अंग्रेजों की कुचालवश अल्पसंख्यक का दर्जा पा कर खुश हैं। खुद को मुगलों का वंशज मानने वाले लोग छलबल, "झप्पी" और `गुगली' के सहारे उनके मानव धर्म पर आक्रमण कर रहे है। वे करतारपुर साहेब गलियारा के नाम पर हिन्दुस्थान को तोड़ने और आतंकित करने के सपने संजो रहे हैं, और कुछ महत्वाकांक्षी विदूषक सिख राजनेता उनकी गोद में जा बैठने में सुख पाते हैं। यह कथन मूर्खता पूर्ण है कि गुरु नानक देव जी का नाम लेने वाले केवल 12 करोड़ है। आज केवल भारत ही नहीं, पूरी `मानुस जात' में द्वेषभाव है। उसे प्रकाश और नानक नाम जहाज की आवश्यकता है। गुरु नानक देव जी की 550वीं जन्म-जयंती के अवसर पर पूरी मानव जाति को श्रीगुरुग्रंथ साहेब में वर्णित मानव धर्म का प्रकाश देकर ही भारत के अस्तिव का प्रयोजन सिद्ध किया जा सकता है।

Share it
Top