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पूरा सच नहीं बोलता पाक

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:13 Dec 2018 3:33 PM GMT
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सुशील कुमार सिंह

पाकिस्तान के पधानमंत्री इमरान खान ने एक बार फिर दोहराया है कि वे भारत के साथ शांति बहाल करना चाहते है और पधानमंत्री मोदी से बात करने के लिए तैयार भी है। साथ ही यह भी कहा कि कश्मीर मसले का फौजी हल मुमकिन नहीं है पर कुछ असंभव भी नहीं है। सफाई देते हुए इमरान ने आतंकी दाऊद और हाफिज सईद को विरासत में मिला बताया और जिसके लिए वे जिम्मेदार भी नहीं हैं। गौरतलब है कि बीते 28 नवम्बर को पाकिस्तान में स्थित करतारपुर में गुरुद्वारा दरबार साहिब को भारत के गुरदासपुर जिले में स्थित डेरा बाबा नानक गुरुद्वारा से जोड़ने वाली बहुपतीक्षित गलियारे की आधारशिला रखी। उक्त बातें पाकिस्तानी पधानमंत्री ने इसी दौरान कही। सिख तीर्थयात्रियों के लिए करतारपुर साहिब गुरुद्वारा जाने के लिए करतारपुर कॉरिडोर को खोलने को लेकर पाकिस्तान का यह कदम बहुत अच्छा माना जा सकता है पर सावधानियों को दरकिनार नहीं किया जा सकता। हालांकि इसे खोलने की मांग तीन दशक पुरानी है। भारत ने 1988 में इसे लेकर पहली बार पस्ताव रखा था जिस पर बीते 22 नवम्बर को पधानमंत्री की अगुवाई में कैबिनेट की बै"क हुई जहां करतारपुर कॉरिडोर के निर्माण को मंजूरी दी गई। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू व पंजाब के मुख्यमंत्री ने संयुक्त रूप से इसकी आधारशिला रखी थी। कार्यक्रम में भारत के केंद्रीय मंत्री हरसिमरन कौर और पंजाब राज्य के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू मौजूद थे। वैसे जब भी पाकिस्तान के किसी कार्यक्रम में सिद्धू की मौजूदगी होती है तो विवाद उनके साथ चल पड़ता है। इमरान के शपथ समारोह में अकेले भारतीय रहे सिद्धू उस समय तब विवाद में आ गए जब वहां के सेना पमुख बाजवा से गले मिलने के चित्र सामने आए और अब आतंकी के साथ फोटो खिंचवाने का उन पर आरोप है।

करतारपुर कॉरिडोर की आधारशिला रखने के इस ऐतिहासिक क्षण पर भारत को अमन-शांति का पा" पढ़ाने वाले इमरान ने कश्मीर का पा भी छेड़ा जो यह दर्शाता है कि वे या तो आधा सच बोलते हैं या फिर पूरा सच बोल ही नहीं सकते। इस कॉरिडोर के पीछे उनकी स्पष्ट मंशा को भी समझा जाना जरूरी है। गौरतलब है कि इमरान की पहल पर शांति पक्रिया यदि भारत स्थापित करना भी चाहे तो आतंकी और वहां की सेना भारत के लिए मुसीबत बन सकती है क्योंकि ऐसा दशकों से देखा जा रहा है कि जब-जब ऐसा हुआ भारत के भीतर आतंकी हमले हुए हैं। खास यह भी है कि पाकिस्तान और भारत के बीच मधुर संबंध हों यह वहां की आईएसआई, सेना और आतंकी संग"न कतई नहीं चाहते और इमरान इस बात से शायद ही अनभिज्ञ हों। जबकि उनकी सरकार को पूर्व तानाशाह मुर्शरफ, पाकिस्तानी सेना और कुछ हद तक आतंकियों का भी समर्थन है। पधानमंत्री मोदी ने करतारपुर कॉरिडोर की तुलना बर्लिन की दीवार के टूटने से की। पाकिस्तान ने कॉरिडोर किस आधार पर खोला है इस बात की भी बारीकी से पड़ताल जरूरी है। संकेत यह है कि गलियारा बनाने का इरादा पाकिस्तानी सरकार का नहीं बल्कि सेना पमुख जनरल बाजवा ने दिया था। कार्यक्रम में पाकिस्तानी सेना पमुख की उपस्थिति इस बात को और पुख्ता करती है। कॉरिडोर खोलने के पीछे जो इरादा जताया जा रहा है उसके पीछे सब कुछ नेक है ऐसा नहीं है। गौरतलब है ऑपरेशन ऑल आउट के तहत कश्मीर घाटी में सैकड़ों की तादाद में आतंकी मौत के घाट उतारे जा चुके हैं। सेना की चौकसी और जम्मू-कश्मीर पुलिस की सक्रियता ने पाक पायोजित आतंकियों को अब कोई अवसर नहीं दे रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि सिखों के पति सहानुभूति की आड़ में खालिस्तान के पक्षधर को उकसाकर पंजाब में अशांति का माहौल पैदा करने का इरादा पाकिस्तान का हो। कॉरिडोर खुलने से खालिस्तान समर्थक समूहों के अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सिख समुदाय का भरोसा पाकिस्तान जीत सकता है। इसी के माध्यम से भारतीय सिख युवाओं का भी भरोसा जीतने का काम पाक कर सकता है और समय और परिस्थिति को देख कर उन्हें उकसाकर भारत विरोधी गतिविधियों में पयोग कर सकता है। गुरुद्वारे के बहाने ऐसे युवाओं को उन्हें खालिस्तान का पा" पढ़ाना आसान हो जाएगा जो पंजाब और भारत दोनों के लिए एक नई चुनौती हो सकता है। गौरतलब है कि कुछ समय पहले जब भारतीय तीर्थयात्री पाकिस्तान के गुरुद्वारे में गए थे तब इस्लामाबाद स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास के सदस्यों को गुरुद्वारे में पवेश करने से रोका गया था और रोकने का यह काम सुरक्षाकर्मियों का नहीं बल्कि खालिस्तान समर्थक गोपाल सिंह चावला और उनके सहयोगियों का था।

समझने वाली बात यह भी है कि अस्सी और नब्बे के दशक में खालिस्तानी आतंकियों के खात्मे के बाद पंजाब भारी विकास की ओर जा चुका है। ऐसा भी नहीं है कि पंजाब में खालिस्तान समर्थक बिल्कुल नहीं है बस इशारे की आवश्यकता है। कनाडा के पधानमंत्री का जब भारत में दौरा हुआ था तब उन्हें शायद इसलिए अधिक तवज्जो नहीं दिया गया क्योंकि उन्होंने कनाडा में खालिस्तान समर्थकों के सुर में कुछ सुर मिला दिया था। दो टूक यह है कि कॉरिडोर स्वागत योग्य है पर इसकी आड़ में खालिस्तानी आंदोलन को पुनर्जीवित करने वालों को यदि मौका मिलता है तो समस्या बड़ी हो जाएगी। अमेरिका के खालिस्तान समर्थक जिसे आंदोलन सिख फॉर जस्टिस के नाम से जाना जाता है उन्होंने एक सर्पुलर जारी किया है जिसमें स्पष्ट है कि गुरु नानक देव जी के 550वीं जयंती के उपलक्ष्य में पाकिस्तान में करतारपुर साहिब सम्मेलन का 2019 में आयोजन किया जाएगा। इसी सम्मेलन में इसकी भी योजना है कि मतदाता पंजीकरण भी किया जाएगा साथ ही जनमत संग्रह पर भी जानकारी उपलब्ध करायी जाएगी। उक्त से स्पष्ट है कि कॉरिडोर के पीछे सब कुछ सकारात्मक नहीं है बल्कि कश्मीर से घटते आतंक को देखते हुए पाकिस्तान पंजाब में आतंक को पुनर्जीवित करने के लिए कहीं बेताब न हो इसे लेकर चिंता बढ़ जाती है। करतारपुर साहिब सबसे पवित्र स्थलों में से एक है इसे पहला गुरुद्वारा भी माना जाता है। गुरु नानक ने जीवन के आखिरी 18 साल यहीं बिताए थे और 1539 में यही आखिरी सांस ली थी। भारत की सीमा से 3 किमी भीतर रावी नदी के किनारे बसे इस गुरुद्वारे के भारत के सिख श्रृद्धालु दूरबीन से दर्शन करते हैं। जब यह कॉरिडोर संचालित हो जाएगा तब श्रद्धालुओं की आवाजाही सुगम होगी और इसके लिए वीजा की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। खास यह भी है कि इस कॉरिडोर के लिए भारत सरकार फंड देगी। इमरान खान ने करतारपुर कॉरिडोर की आधारशिला रखते हुए पूरी दुनिया के सामने स्वयं को युद्ध विरोधी नेता के रूप में पेश करने की कोशिश किया और कहा कि दोनों देशों के पास एटमी हथियार हैं इसलिए युद्ध की बात करना बेवकूफी है और दोस्ती एक मात्र विकल्प है। आदर्श से भरी पाकिस्तान की ये बातें किसी के मन को छू सकती हैं पर इतिहास खंगाल के देखा जाए तो अविश्वास गहरा जाता है।

1972 के शिमला समझौते को आज भी पाकिस्तान रौंदने से बाज नहीं आता। 19 फरवरी 1999 को तत्कालीन पधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय दिल्ली से लाहौर तक बस चली थी। दोनों देशों के बीच ट्रेन भी चली पर संबंध न सड़क पर दौड़ पाए और न ही पटरी पर। तानाशाह परवेज मुशर्रफ के समय तो आगरा शिखर वार्ता खराब संबंधों को और पुख्ता करता है। सार्प में शामिल जमा 8 देशों में पाकिस्तान ऐसा है जिससे भारत की दुश्मनी है। प"ानकोट हमले के बाद साल 2016 का इस्लामाबाद सार्प बै"क इसकी भेंट चढ़ चुका है और 2020 में इस्लामाबाद में होने वाली सार्प बै"क को लेकर पाकिस्तान के उस इरादे को भी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने खारिज कर दिया जिसमें वह मोदी को आमंत्रित कर रहा है। स्वयं पधानमंत्री मोदी अपने समकक्ष नवाज शरीफ के साथ शपथ ग्रहण समारोह से लेकर 2 साल तक संबंधों के लिए पयासरत रहे पर नतीजे ढाक के तीन पात ही रहे।

(लेखक प्रयास आईएएस स्टडी सर्पिल, देहरादून के निदेशक हैं।)

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