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सबरीमाला : भगवान अयप्पा के नाम पर लैंगिक समानता और आस्था की राजनीति

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:6 Jan 2019 3:36 PM GMT

सबरीमाला : भगवान अयप्पा के नाम पर लैंगिक समानता और आस्था की राजनीति

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आदित्य नरेन्द्र

केरल के सबरीमाला में गुस्साए लोग एक बार फिर उस समय सड़कों पर उतर आए जब उन्हें पता चला कि 44 और 42 साल की दो महिलाओंöबिन्दु और कनक दुर्गा ने सदियों पुरानी परंपरा को धत्ता बताते हुए पुलिस सुरक्षा में मंदिर में प्रवेश कर भगवान अयप्पा के दर्शन किए और उनकी पूजा की। इन महिलाओं के मंदिर में प्रवेश का वीडियो सार्वजनिक होते ही भगवान अयप्पा के भक्तों में अफरातफरी मच गई। मंदिर के पुजारी ने इसके विरोध में मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए जिन्हें बाद में शुद्धिकरण के बाद ही खोला गया। दरअसल स्थानीय लोगों में मान्यता है कि भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी हैं। इसीलिए जिन महिलाओं को पीरिड्स होते हैं उन्हें भगवान अयप्पा के दर्शन करने पर रोक है। वहां पिछले लगभग 800 साल से लोग इस परंपरा का पालन करते चले आ रहे थे लेकिन पिछले साल 28 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए 10 से 50 साल वाली महिलाओं को भी मंदिर में प्रवेश की इजाजत दे दी थी। इससे स्थानीय लोगों में रोष भड़क गया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐसी कई महिलाओं ने कई बार मंदिर तक जाने का प्रयास किया लेकिन लोगों के विरोध के चलते असफल रहीं। इन महिलाओं का तर्प था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार हमें लैंगिक समानता के आधार पर मंदिर में जाकर भगवान अयप्पा के दर्शन का अवसर मिले। उधर दूसरी ओर आस्था के नाम पर इसका विरोध करने वालों का कहना था कि आस्था को चुनौती नहीं दी जा सकती। बस यहीं से यह मामला सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समर्थकों और विरोधियों के बीच बंट गया। केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने कहा कि महिलाएं मंदिर के अंदर इसीलिए जा पाईं क्योंकि उनका विरोध नहीं हुआ था। पुलिस ने उन्हें सुरक्षा प्रदान की थी। चूंकि विजयन केरल के मुख्यमंत्री हैं और लेफ्ट की विचारधारा रखते हैं। ऐसे में लोगों को महसूस हुआ कि उन्हें हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं की परवाह नहीं है और वह बिन्दु और कनक दुर्गा के मंदिर में प्रवेश के बाद अपनी पीठ ठोंकने का प्रयास कर रहे हैं। इसका जवाब देते हुए कई संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए और हड़ताल का आह्वान कर दिया। पूरे देश में एक-दूसरे के धुरविरोधी भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता इसके विरोध में सड़कों पर दिखाई दिए। भाजपा कार्यकर्ता जहां सबरीमाला कर्म समिति के बंद का समर्थन करते हुए दिखाई दिए वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ ने भी काला दिवस मनाने का ऐलान कर दिया। मामले ने उस समय और तूल पकड़ लिया जब बुधवार को सीपीआईएम और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़प में सबरीमाला कर्म समिति के एक कार्यकर्ता की पंडलम में मौत हो गई और 266 लोगों को अरेस्ट कर लिया गया। केरल भाजपा के महासचिव एमटी रमेश ने कहा कि मंदिर की परंपराओं का उल्लंघन करने के लिए मुख्यमंत्री विजयन को भारी कीमत चुकानी होगी। दरअसल केरल की डेमोग्राफी कुछ इस तरह की है कि यहां पर हिन्दू लगभग 54.7 फीसदी, मुस्लिम 26.6 फीसदी और 18.4 फीसदी आबादी के साथ तीन बड़े और प्रभावशाली समूहों के रूप में मौजूद हैं। हिन्दू वोटरों के बीच सीपीआईएम का प्रभाव अच्छा-खासा है। भाजपा आरएसएस के माध्यम से पिछले कई वर्षों से यहां जड़ें जमाने का प्रयास करती रही है लेकिन उसे अभी तक कोई खास सफलता नहीं मिली। केरल की विजयन सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्त्राr और पुरुष की समानता के रूप में देख और दिखा रही है वहीं दूसरी ओर आस्था के नाम पर वहां हिन्दुत्ववादी संगठन भी अपनी जड़ें मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसे में भगवान अयप्पा के नाम पर समानता और आस्था की आड़ लेकर जमकर राजनीति हो रही है। इसकी कल्पना कुछ महीने पहले शायद ही किसी ने की हो। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सीपीआईएम, कांग्रेस और भाजपा तीनों पक्ष अपनी-अपनी राजनीति के हिसाब से भुनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। ऐसे में अभी कुछ समय और यह मुद्दा कमजोर होता दिखाई नहीं देता, बल्कि डर तो इस बात का है कि कहीं इस मुद्दे की देखादेखी कुछ लोग ऐसे ही मुद्दे ढूंढ-ढूंढ कर देश की फिजा खराब करने का प्रयास न करें।

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