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कार्यकर्ताओं का जुनून पार्टी को जिताता है

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:15 Jan 2019 3:29 PM GMT
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श्याम कुमार

कई साल पहले एक बार कल्याण सिंह ने बातचीत में मुझसे कहा था कि किसी भी पार्टी की सफलता उसके कार्यकर्ताओं में अपनी पार्टी के पति लगाव पर निर्भर करती है तथा कार्यकर्ता का पार्टी के पति वह जुनून ही उस पार्टी को चुनाव में विजयी बनाता है। कार्यकर्ताओं को महसूस होना चाहिए कि वह पार्टी में नहीं है, बल्कि पार्टी ही उनके भीतर विद्यमान है। पार्टी उनकी भावनाओं में समाई हुई होनी चाहिए। मैंने कल्याण सिंह से कहा था कि नौकरशाही की आम शिकायत रहती है कि पार्टी के लोग, विशेष रूप से सत्ताधारी दल के लोग, गलत काम कराना चाहते हैं और न करने पर नाराज होते हैं एवं झू"s आरोप लगाते हैं। इस पर कल्याण सिंह ने अपना उदाहरण देते हुए कहा था कि पार्टी नेतृत्व को चाहिए कि यह बात कार्यकर्ताओं को स्पष्ट रूप से जता दे कि गलत काम हरगिज नहीं किए जाएंगे। लेकिन नेतृत्व की यह शत-पतिशत जिम्मेदारी भी है कि वह कार्यकर्ताओं के सही काम निश्चित रूप से कराए। व्यक्ति पार्टी में दो कारणों से शामिल होता है-पहला पार्टी के सिद्धांतों से सहमत होकर तथा दूसरा इस आशा में कि उसके साथ कोई अन्याय होगा तो पार्टी उसकी मदद करेगी। कल्याण सिंह ने बताया कि उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से कह रखा था कि वे गलत काम के लिए उनके पास कभी न आएं और सही काम के लिए जरूर आएं।

कल्याण सिंह ने बताया था कि उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में अफसरों से कह दिया था कि लोगों के गलत काम मत करो, साथ ही आगंतुक को बार-बार दौड़ाने या भ्रम में डाले रहने के बजाय शुरू में ही स्पष्ट रूप से बता दो कि उसका यह काम इन कारणों से हो पाना संभव नहीं है। यह सिद्धांत सिर्प पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए ही नहीं, आम जनता के पति भी लागू होना चाहिए। मुझे याद आया, एक बार एक साधारण व्यक्ति ने कल्याण सिंह से शिकायत की थी कि उसकी जमीन पर एक दबंग ने कब्जा कर लिया है तथा पुलिस सुन नहीं रही है। कल्याण सिंह ने समझ लिया था कि उस व्यक्ति की शिकायत सही है, इसलिए उन्होंने उस जनपद के पुलिस अधीक्षक को फोन कर कहा था कि दो दिन में उस दबंग के विरुद्ध कार्रवाई कर पीड़ित व्यक्ति को उसकी जमीन पर कब्जा दिला दिया जाए। पुलिस अधीक्षक ने कुछ ही घंटे में कल्याण सिंह को फोन कर बताया था कि उनके आदेश का पालन हो गया है। कल्याण सिंह अपने विधायकों एवं सांसदों से भी कहते थे कि वे आम जनता के बीच अधिक से अधिक रहा करें तथा उसकी समस्याओं को न केवल सुनें, बल्कि उन्हें अवश्य हल भी कराएं।

कल्याण सिंह ने कहा था कि उनका यह सिद्धांत पार्टी कार्यकर्ताओं के संबंध में तो है ही, आम जनता को लेकर भी है। जनता की फरियाद जितनी अधिक सुनी जाएगी और उस पर उतनी ही तेजी से कार्रवाई भी होगी तो जनता की निगाह में सरकार की छवि अच्छी निर्मित होगी। कल्याण सिंह का कथन था कि पार्टी कार्यकर्ताओं एवं आम जनता को महसूस होना चाहिए कि यह सरकार उनकी अपनी सरकार है। अन्यथा जनता से दूरी होने पर सरकार की छवि खराब होती है तथा `इनकमबेंसी फैक्टर' वाली स्थिति उत्पन्न हो जाती है। यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि लोकतंत्र में सरकार जनता के कल्याण के लिए होती है। पार्टी के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की दृष्टि में आम जनता का हित सर्वेपरि होना चाहिए। कार्यकर्ता यदि अपना स्वार्थ साधने के लिए गुंडागर्दी करते हैं और जनता को परेशान करते हैं तो उससे पार्टी की छवि पर असर पड़ता है। गुंडागर्दी की छूट किसी को भी नहीं होनी चाहिए तथा ऐसी हरकत करने वाले के विरुद्ध बिना किसी भेदभाव के तुरंत कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। जब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे, एक बार वाराणसी से उन्हें यह शिकायत मिली थी कि एक मुहल्ले के कुछ लोग एक लड़की को खींच ले गए हैं तथा पुलिस उस मुहल्ले में जाने से बच रही है। कल्याण सिंह ने अधिकारियों को आदेश दिया था कि तत्काल क"ाsर कार्रवाई कर लड़की को छुड़ाएं। मुख्यमंत्री का संरक्षण पाकर पुलिस ने हिम्मत की और उस मुहल्ले में घुसकर तुरंत उस लड़की को छुड़ाया व दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की।

आज के परिपेक्ष्य में जब मैं कल्याण सिंह की बातों पर गौर करता हूं तो भारतीय जनता पार्टी एक बड़े पश्नचिन्ह में घिरी दिखाई देती है। कल्पना की जा सकती है कि यदि भाजपा के फलक पर विराट व्यक्तित्व के रूप में नरेंद्र मोदी का अवतरण न हुआ होता तो भाजपा की क्या हालत होती! कुछ लोगों के स्वार्थ ने पार्टी का विनाश कर डाला था। उत्तर पदेश में बार-बार रोड़े अटकाकर कल्याण सिंह को भी चलने नहीं दिया गया था तथा यहां धीरे-धीरे भाजपा चौथे नंबर पर पहुंच गई थी। मोदी की पचंड आंधी के बल पर पदेश में भाजपा पुनः शीर्ष पर पहुंची है, लेकिन भाजपा के तमाम नेताओं को यह भ्रम हो गया है कि उनके बलबूते यहां भाजपा शिखर पर पहुंची है। इसी से पार्टी में आम जनता की तो दूर, उसके आम कार्यकर्ताओं तक की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। यह चर्चा है कि पार्टी में कार्यकर्ताओं को सम्मान मिलना तो दूर, उन्हें उपेक्षा झेलनी पड़ रही है। पायः शिकायत सुनने को मिलती है कि जिन कार्यकर्ताओं ने अपना पूरा जीवन पार्टी की सेवा में लगा दिया, सत्ता मिलने पर पार्टी उनके बजाय तिकड़मबाजों अथवा दूसरे दलों से आने वालों को महत्व देती है। यहां तक कि टिकट मिलने में भी वे लोग ही वरीयता पा जाते हैं।

जब एक पदाधिकारी से मैंने इस शिकायत का उल्लेख किया तो उन्होंने कहा कि इसके व्यावहारिक पक्ष पर ध्यान दिया जाना चाहिए। जिस कार्यकर्ता ने पार्टी की सेवा में जीवन समर्पित कर दिया, आवश्यक नहीं कि वह चुनाव जीतने में सफल हो जाए। आजकल राजनीति का जो स्वरूप हो गया है, उसमें कई बातों का ध्यान रखकर टिकट दिया जाता है तथा मूल कसौटी यह होती है कि वह उम्मीदवार चुनाव जीत ले। मैंने उन पदाधिकारी से कहा कि इस कसौटी के कारण यदि विधायकी या सांसदी का टिकट नहीं दिया जा सके तो भी अन्य तमाम ऐसे उपाय हो सकते हैं, जिनके द्वारा विभिन्न पदों पर आसीन कर उन समर्पित कार्यकर्ताओं को कुछ कर दिखाने का अवसर दिया जाए। उनका ऐसे रूप में उपयोग किया जा सकता है, जिससे समाज में उनकी सम्मानपूर्ण स्थिति बने तथा वे गर्व कर सकें कि उन्होंने पार्टी को अपना जीवन समर्पित किया तो पतिकार में उन्हें सम्मानजनक स्थिति पाप्त हुई है।

इस समय उत्तर पदेश में भारतीय जनता पार्टी की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसके नेता अहंकार में चूर हैं तथा नेताओं के आचरण के परिणामस्वरूप पार्टी आम जनता से दूर होती जा रही है। यह आम चर्चा है कि लोकसभा के चुनाव में मोदी का करिश्मा ही पार्टी को बचा सकता है, अन्यथा यहां पार्टी को कड़ा झटका लगने वाला है। न तो पार्टी कार्यकर्ताओं की और न आम जनता की कहीं कोई सुनवाई हो रही है। पार्टी के पदेश मुख्यालय में नित्य जनता की सुनवाई की व्यवस्था थी, यद्यपि वह निर्जीव थी, अब उसे भी समाप्त कर सुनवाई सप्ताह में मात्र एक दिन कर दी गई है। कल्याण सिंह ने मुझसे बातचीत में यह भी कहा था कि नए चुनाव के लिए टिकट वितरित करते समय उन मंत्रियों, विधायकों व सांसदों के टिकट काट देने चाहिए, जो जनता में लोकपिय नहीं हैं तथा उनकी पराजय निश्चित मानी जा रही हो। देखा गया है कि तीन राज्यों में भाजपा के तमाम मंत्री व विधायक चुनाव हार गए। मैंने कल्याण सिंह से पूछा था कि जिन लोगों के टिकट काटे जाएंगे, वे चुनाव में पार्टी को क्षति पहुंचाएंगे तो उत्तर में उन्होंने कहा था कि वे लोग जितनी क्षति पहुंचाएंगे, वह उस क्षति से कम होगी, जो उनके हारने पर पार्टी को होगी।

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