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चिल्लर पार्टियों के साथ कांग्रेस का त्रिकोणीय संघर्ष बनाने का पयास

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:17 Jan 2019 3:22 PM GMT
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राजनाथ सिंह `सूर्य'

लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर पदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच सीटों का बंटवारा हो जाने के बाद जहां महाग"बंधन की चर्चा शिथिल पड़ गई हैं वहीं कांग्रेस के लिए चुनाव के पूर्व किसी मोर्चे का ग"न करने के लिए जिस पयास की धूम मचाई जा रही थी उस पर पूर्णविराम लग गया है। भले ही कांग्रेस ने यह घोषणा की हो कि वह उत्तर पदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी लेकिन उसका पयास पदेश की चिल्लर पार्टियों को अपने अम्ब्रेले के नीचे लाने के लिए शुरू हो गया है। उत्तर पदेश की व्यक्ति आधारित यह पार्टियां अब सपा बसपा ग"बंधन के बाद अपने लिए कांग्रेस या भाजपा से उम्मीद लगा रही हैं। लगभग दो दशक बाद सपा और बसपा में चुनावी समझौता हुआ था। सत्ता में रहते हुए 1991 के विधानसभा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त खाने के बाद मुलायम सिंह ने बसपा संस्थापक कांशीराम का हाथ पकड़ा था और पबल जनसमर्थन के बावजूद भाजपा को हराकर सत्ता पर फिर से कब्जा किया था। लेकिन यह बेमेल ग"बंधन पारंभ से ही तनावपूर्ण स्थिति में रहा और दो जून 1995 में मीराबाई गेस्ट हाउस कांड के बाद ध्वस्त हो गया। बसपा पमुख मायावती ने भले ही यह कहा हो कि उन्होंने देश के व्यापक हित के लिए उस कांड को भुला दिया है और अखिलेश कितनी भी विनम्रता के बाद मायावती के सामने पेश होते रहे हैं मायावती हाथ पकड़ने वालों का साथ छोड़ देने में अपनी महारत रखती हैं।

निश्चय ही सपा-बसपा का ग"बंधन उत्तर पदेश में भाजपा के लिए गंभीर चुनौती है। इस चुनौती का सामना करने के लिए भाजपा ने 50 पतिशत मत पाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित कर पत्येक मतदान केंद्र को सुदृढ़ बनाने के लिए योजनाओं की घोषणा की है। भाजपा को अपनी सीट और प्रतिष्ठा दोनों के लिए मिली चुनौती का सामना करना यदि असंभव नहीं तो क"िन अवश्य ही है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है उत्तर पदेश में उसकी स्थिति निरंतर शून्यता की ओर बढ़ती जा रही है। यद्यपि उसने सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है तथापि आकलन करताओं को संदेह है कि 2014 में उसे दो सीट मिली थी उस पर कब्जा बरकरार रह सकेगा। क्योंकि उत्तर पदेश के छोटे दल भाजपा से विमुख हो गए हैं और सपा-बसपा ग"बंधन में उन्हें कोई स्थान नहीं मिल रहा है इसलिए कांग्रेस की ओर उनका रुख करना स्वाभाविक है लेकिन कांग्रेस के चिल्लर ग"बंधन की कोई पभावी स्वरूप उभरकर सामने आयेगा इसकी संभावना कम है और यह माना जा रहा है कि उत्तर पदेश का चुनाव कहीं न कहीं त्रिकोणात्मक होने के बावजूद अधिकांशतः भाजपा और सपा ग"बंधन के बीच होगा और यही कारण है कि आकलनकर्ता पिछले चुनाव में इन दोनों पक्षों की स्थिति के आधार पर आगामी निर्वाचन के लिए समीक्षा पस्तुत कर रहे हैं। यद्यपि उत्तर पदेश के मतदाताओं के रूझान 1967 के निर्वाचन के बाद से वही नहीं रही है जो पिछले चुनाव में थी। हाशिये पर चली गई भाजपा कभी उत्तर पदेश की 73 लोकसभा सीट जीत सकेगी या सवा तीन सौ विधायकों के साथ राज्य की सरकार की बागडोर संभालेगी यह किसी को कल्पना नहीं थी। इसलिए इस बार लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए केवल इसलिए गंभीर चुनौती नहीं है कि केंद्र और राज्य दोनों में उसकी सरकार है बल्कि इसलिए भी कि उत्तर पदेश के मतदाताओं का मिजाज पत्येक चुनाव में बदलता रहता है। इसमें संदेह नहीं है कि केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की योगी सरकार कि ईमानदारी और गरीबोन्मुखी नीतियों और कार्यान्वयन पर कोई उंगली नहीं उ"ा सकता लेकिन जिस जातीय समुच्चय को मंचों से बार-बार नकारा जाता है उसके परिणाम को नजरंदाज नहीं किया जा सकता।

मायावती और अखिलेश यादव के बीच हुआ समझौता महज दो व्यक्तियों के बीच हुआ समझौता या समाजवादी और बहुजन समाजवादी के बीच इसका खुलासा किन सीटों पर कौन पार्टी लड़ रही है इसकी घोषणा होने के बाद हो सकेगा। लेकिन उसका संकेत फिरोजाबाद के सपा विधायक ने यह कहकर दे दिया है कि मायावती तब तक इस ग"बंधन को बनाए रखेंगी जब तक अखिलेश यादव उनके सामने नतमस्तक रहेंगे। इन दोनों ही पार्टियों का कैडर किसी सैद्वांतिक पतिबद्धता से जुड़ा हुआ नहीं है। राजनीति में सफलता की आकांक्षा से पेरित अवसर के उपयोग के लिए दलों का चुनाव करने वाले सबसे ज्यादा इन्हीं दोनों दलों में हैं। पिछल तीन दशक से इन दोनों दलों की मानसिकता वाले लोगों में हर पकार का टकराव होता रहा है और 2016 के चुनाव तक यही स्थिति रही है। पिछले लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में सभी पकार की हैसियत गंवा चुके दोनों दलों के बीच अस्तित्व के लिए किया गया यह समझौता उन्हें सफलता के सोपान पर चढ़ाएगा या फिर ध्वस्त होने की दिशा में आगे बढ़ाएगा यह निर्भर करेगा दोनों पार्टियों के कैडर में समन्वय पर। जैसा सामाजिक परिदृश्य रहा है अब तक दोनों दलों के कैडर में टकराव ही होता रहा है। मीराबाई गेस्ट हाउस कांड अकेली घटना नहीं है। लेकिन इस समझौते से एक बात स्पष्ट होती है कि राजनीति में सफलता के लिए सब कुछ जायज होने का सिद्धांत पूरी तरह अपनी पै" कर चुका है।

राष्ट्रीय दल के रूप में कांग्रेस ने पिछले विधानसभा चुनाव में राजस्थान, मध्यपदेश और छत्तीसगढ़ में सफलता पाप्त करने के बाद उत्तर पदेश में सपा-बसपा के साथ ग"बंधन के लिए इस आधार पर आशा लगाए बै"ाr थी कि बेंगलुरु में कर्नाटक के मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में मंच पर हाथ उ"ाकर जिन दलों के नेताओं ने एक साथ रहने की शपथ खाई थी वे कांग्रेस के समर्थक हो जायेंगे और इसलिए कांग्रेस में राहुल गांधी अगले पधानमंत्री होंगे इस घोषणा के बाद अपना चुनाव अभियान पारंभ किया था लेकिन वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सोनिया गांधी चुनाव समय के अतिरिक्त उत्तर पदेश के किसी भी जनपद में एक बार भी नहीं गए। अस्वस्थता के कारण सोनिया गांधी रायबरेली नहीं आ पाती हैं और राहुल गांधी को अमे"ाr आने की घोषणा के बाद अपना कार्यक्रम रद्द करना पड़ता है। एक वर्ष में जितनी बार वे विदेश यात्रा करते हैं यदि उसका आधा समय भी उत्तर पदेश में देते तो चुनावी सफलता के सन्दर्भ में कांग्रेस चर्चा में बनी रह सकती थी। आज वह चर्चा से बाहर है इतना ही नहीं तो जैसे संकेत मिल रहे हैं उसके कुछ पमुख नेता सपा या बसपा में अपने लिए स्थान खोज रहे हैं। जहां यह स्मरण दिलाना पासंगिक होगा कि पिछले कुछ वर्षों में सपा-सुपीमो रहे मुलायम सिंह यादव ने दो कांग्रेसियों पीएल पुनिया और पमोद तिवारी को राज्यसभा में जाने में मद्द की थी। हादसे के शिकार मुलायम सिंह यादव जिन्हें अब उनके पुत्र अखिलेश यादव पधानमंत्री बनाए जाने की घोषणाओं को भूलकर मायावती को पधानमंत्री बनाने की मुहिम में लग गए हैं उन्हें भाजपा से अधिक सबसे ज्यादा डर अपने चचा शिवपाल सिंह यादव से लग रहा है जो कांग्रेस के लिए चिल्लर पार्टियों को जुटाने की मुहिम में लगे हैं। ग"बंधन की राजनीति में मायाजाल के कांग्रेस के अलावा एक और शिकार होकर हतपभ हैं उनका नाम है चौधरी अजीत सिंह जो अपने पिता की तरह पश्चिमी उत्तर पदेश के किसानों विशेषकर जाटों के नेता के रूप में उभारने के लिए कभी इस साफ कभी उस साख पर बै"कर अपनी साफ पूरी तरह गंवा चुके हैं। उत्तर पदेश की राजनीति में सपा और बसपा के बीच चुनावी तालमेल भावी स्थिति का अंतिम स्वरूप समझने के लिए अभी पर्याप्त नहीं है अभी और परत दर परत प्याज के छिलके के समान रहस्य उभरने को है।

(लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य हैं।)

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