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प्रियंका फैक्टर से बदल गया समीकरण

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:24 Jan 2019 3:23 PM GMT
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सैयद कासिम

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी भाजपाई एनडीए सरकार जिन मुद्दों वादों के साथ आई थी उसकी धमक 2 साल तक रही दो साल तक नरेंद्र दामोदर दस मोदी बदलते भारत की तस्वीर के रूप में देखे जाते रहे। चुनाव दर चुनाव राज्यों में भाजपा का परचम लहराता रहा और देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अपने सबसे खराब दौर से गुजरती रही। मोदी जिस राज्य में भी गए डबल इंजन की जनता से मांग करते रहे और जनता नरेंद्र मोदी को हर राज्य का दूसरा इंजन देती चली गई। डबल इंजन की सरकारें भी केंद्र की तरह केवल जुमला सरकार बनती गई और धीरे-धीरे जनता नोटबंदी, जीएसटी, महंगाई, बेरोजगारी की तरफ देखने लगी बस इसी समय का कांग्रेस को इंतेजार था ऐन गुजरात चुनाव से पहले राहुल गांधी (जिनको भाजपा ने अपने आईटी सेल और मीडिया के सहारे नकारात्मक प्रचार से पप्पू बना दिया था) को कांग्रेस पार्टी ने अध्यक्ष घोषित कर दिया गुजरात के नतीजे चौंकाने वाले थे जहां भाजपा अपनी सरकार तो बचा ले गई मगर कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी के धुआंधार प्रचार से कई दशक के बाद भाजपा को बराबर की टक्कर देते हुए राहुल गांधी को महत्व देने के लिए मजबूर कर दिया।

फिर आया कर्नाटक चुनाव जहां भाजपा बहुमत ना पा सकी जिसके नतीजे में कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाकर राहुल गांधी ने एक बार फिर से अमित शाह पर बाजी मार ली और मीडिया का एक वर्ग राहुल गांधी में एक राजनेता देखने लगा। फिर आया राफेल और राफेल को मुद्दा बनाकर राहुल गांधी ने मोदी को संसद से सड़क तक घेर लिया साथ ही किसान को कर्जमाफी का बड़ा तोहफा देने के वादे के साथ हिंदी भाषी राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश में भाजपा की चूलें हिला दी। मोदी शाह की जोड़ी अभी किसान राफेल की काट ढूंढने के प्रयास ही कर रही थी कि उस उत्तरप्रदेश में सपा बसपा गठबंधन हो गया जहां से होकर केंद्र सरकार बनाने का रास्ता जाता है, अखिलेश माया ने अपने गठबंधन से कांग्रेस को बाहर रखा जो कि शायद राहुल गांधी की भी मंशा थी। गठबंधन की काट भाजपा तलाश ही रही थी कि अचानक इंदिरा गांधी की छवि वाली प्रियंका को बाकायदा कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी बनाकर राहुल गांधी ने ट्रम्प कार्ड चल दिया।

मोदी शाह की सबसे बड़ी उपलब्धि मीडिया मैनेजमेंट था जिसको प्रियंका गांधी की एंट्री से पलीता लग गया अभी तक जैसा राहुल गांधी और उनके सलाहकार चाहते थे ठीक वैसा ही होता जा रहा है। भाजपा की परेशानी ये है कि वह मोदी की नाकामी का ठीकरा अपने सांसदों के सिर फोड़ कर बड़ी संख्या में सांसदों के टिकट काटना चाहती है मगर प्रियंका राहुल की जोड़ी वाली मजबूत कांग्रेस अब उन सांसदों का ठिकाना हो सकता है जिनको भाजपा टिकट नही देना चाहती, ऐसे में भाजपा के लिए एक साथ कई मोर्चे खुल गए है। यदि सपा बसपा गठबंधन को हराना है तो बड़ी संख्या में ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट देने होगा ऐसा करने से सवर्ण और वर्तमान संसद बगावत करके कांग्रेस में जा सकते हैं, यदि ओबीसी टिकट नही दिया जाता तो गठबंधन 60 सीट से ऊपर जीत सकता है और मोदी के दुबारा प्रधानमंत्री बनने का सपना सपना ही राह जाएगा।

प्रियंका राहुल की जोड़ी की मजबूती से भाजपा कमजोर होगी ऐसा प्रदेश के जातीय समीकरण से समझ जा सकता है, सपा बसपा रालोद के साथ आने के बाद यादव, जाटव, जाट, मुस्लिम मतदाता गठबंधन के साथ स्पष्ट रूप से जाते दिखाई दे रहे हैं जो उत्तरप्रदेश के कुल मतदाता का लगभग 40 प्रतिशत होता है, अन्य ओबीसी वर्ग स्वर्ण आरक्षण से नाराज है और मोदी सरकार की किसान विरोधी नीति से खुश नही है। भाजपा के एक वरिष्ठ ओबीसी समाज के पदाधिकारी ने आज दूरभाष पर मुझसे खुद कहा कि हम अपने समाज का वोट दिलाने में सफल नही हो पाएंगे क्योंकि समाज अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है, उस नेता ने ये भी कहा कि हम पूर्वांचल में खाता खोलने में भी शायद ही सफल हों। दिल्ली में बैठकर मीडिया कुछ भी कयास लगाए मगर प्रियंका के राजनीति में कदम रखने से भाजपा की रही सही उम्मीद भी खत्म होती दिखाई दे रही है जैसा दिखाई दे रहा है अगर सब कुछ वैसा ही रह तो भाजपा के लिए सत्ता की डगर बहुत कठिन है।

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