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गोपालन एवं गोवंश संवर्धन से ही भारत की अस्मिता की रक्षा हो सकती है

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:29 Jan 2019 3:45 PM GMT
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डॉ. बलराम मिश्र

विदेशी आक्रमणों के दूरगामी दुष्परिणामों से अप्रभावित राष्ट्रीय मनीषा यदि गंभीरता एवं ईमानदारी से भारतीय इतिहास का अध्ययन करे तो यह निष्कर्ष निकलना निश्चित है कि भारत के अमिट अस्तित्व के मूल में गोमाता, भगवान श्रीराम, एवं गंगा मैया अनादिकाल से ही सुशोभित रहे हैं। इसीलिए आक्रांताओं एवं उनके वंशजों/समर्थकों ने ऐसा कोई दुष्कर्म नहीं छोड़ा जिससे इन तीनों की छवि यदि नष्ट नहीं तो दूषित अवश्य हो जाय। गोघात, मंदिर तथा मूर्तियों का भंजन, श्रीराम के अस्तित्व पर भी प्रश्न खडा करना, और गंगा को प्रदूषित करने में कोई कसर न छोड़ना, ऐसे दुष्कृत्यों के अनेक उदाहरण रहे। आज हिन्दू समाज ने करवट ली तो राम मंदिर निर्माण और गंगा को निर्मल-अविरल बनाने के प्रयास यद्यपि नव चैतन्यदायक सिद्ध हो रहे हैं, किन्तु गोमाता एवं समस्त गोवंश के महत्व को समझने समझाने एवं मानव मात्र के लिए उनसे मिल सकने वाले दैवी वरदानों का लाभ उठाने के लिए शासन-प्रशासन में जो तत्परता होनी चाहिए वह दिखती नहीं।

गोमाता की महिमा से अपना सम्पूर्ण प्राचीन वांग्मय भरा पड़ा है। वैदिक युग से लेकर आधुनिक युग तक गो महिमा के विस्तृत वर्णन मिलते हैं। गाय न केवल भारत के सांस्कृतिक जीवन के अपितु भारत की अर्थव्यवस्था के केंद्र में भी रही है।आज देश में पचास से भी अधिक गोसेवी संस्थाएं हैं किन्तु गैर दुधारू पशुओं की बढ़ती जा रही संख्या के लिए वे पर्याप्त नहीं हैं।

गोसेवा अपने आप में एक सार्थक जीवन का प्रतीक माना गया। महाभारत के अनुशासनपर्व के अनुसार जो मनुष्य गोसेवा करता है गाय उससे संतुष्ट हो कर उसे अत्यंत दुर्लभ वरदान देती है। महर्षि वशिष्ठ एवं महर्षि व्यास की गोसेवा जगत प्रसिद्ध है। भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम ही गोपाल है। सोलहवीं सदी के मशहूर कवि और कृष्ण भक्त सैयद इब्राहिम, उपाख्य रसखान,की ये पंक्तियां विश्वप्रसिद्ध हैं ः आ हूं सिद्धि नवों निधि कौ सुख नन्द की गाय चराय बिसारौं"। छान्दोग्योपनिषद के अनुसार सत्यकाम को गोसेवा के कारण ही मोक्ष मिला था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार राज्य का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वह गोपालन एवं गोसंरक्षण करे। श्रीगुरुगोबिंद सिंह जी ने `दशमग्रंथ' में गोघात के दुख को जगत से मिटाने की कामना की। संत कबीरदास ने कहा, दिनभर रोजा राख के रात काटते गाय, एक खून एक बंदगी कैसे खुशी खुदाय?

भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के संयुक्त निदेशक

डॉ. आरएसएस चौहान ने अपनी शोध का निष्कर्ष निकाला कि केवल देसी गाय के ही पंचगव्य में औषधीय गुण होते हैं। अमेरिका के डॉ. क्रोफोर्ड हैमिल्टन ने अनुसंधान करके बताया कि गोमूत्र हृदयरोग का सर्वोत्तम निदान है। गोमूत्र कैंसर के इलाज में भी लाभकारी है, इसीलिए अमेरिका ने गोमूत्र का पेटेंट करवा लिया। इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. बीगैंड ने सिद्ध किया की ताज़ा गोबर से तपेदिक व मलेरिया के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।

दिल्ली के श्री गौरीशंकर भारद्वाज के द्वारा लिखी पुस्तक गोरक्षा-राष्ट्र रक्षा, गोसेवा-जनसेवा में गागर में सागर कहावत को सिद्ध करते हुए इस तथ्य का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक पहलुओं का प्रतिपादन किया गया है कि वास्तव में गोरक्षा के बिना राष्ट्ररक्षा असंभव है और गोसेवा के बिना जनसेवा असंभव है। इस पुस्तक का प्रकाशन सुरुचि प्रकाशन दिल्ली ने किया है। जयपुर (राजस्थान) स्थ्ति `गव्य शाला' (www।gaन्ब्asप्aत्a।म्दस्) के संचालक मनीष शर्मा ने अपनी पुस्तक `गव्य शाला ः गावो विश्वस्य मातर' में यह दावा किया है कि एक साधारण देसी गाय, जो प्रतिदिन लगभग तीन लीटर दूध, दस किलो गोबर, तथा दस लीटर मूत्र देती हो, वह अपने पालक को प्रति मास एक लाख रुपए तक की आय दे सकती है। सभी जानते हैं कि गोवंश के गोबर एवं मूत्र से ही अनेक औषधियां, रसोई गैस तथा विद्युत करेंट का उत्पादन होता है जो अच्छी आमदनी ला सकता है। यह भी एक तथ्य है कि आक्रांताओं ने गोमहिमा को कलंकित करने के भरसक प्रयास किए और उन्हीं प्रयासों का परिणाम यह है कि स्वतंत्र भारत के भी शासक/प्रशासक, जाने अनजाने में, गोमाता के द्वारा मिल सकने वाले लाभों का जन हित में यथेष्ट दोहन नहीं कर सके।

ग्रामीण क्षेत्रों में खुले घूम रहे पालतू पशुओं के कारण बहुआयामी आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याएं बनाने के समाचार मिलना सामान्य बात हो गयी है। चारा की कमी के कारण अनेक किसान अपने अनुपयोगी पशु छोड़ देते है और नीलगायों की ही भांति वे भी किसानों के दुश्मन बन जाते है। अपनी भूख मिटाने के लिए वे खेतों की लहलहाती हुई फसल चरने के लिए लालायित और स्वतंत्र होते हैं। सम्पन्न किसान अपने खेतों की रक्षा हेतु खेतों के चारों ओर कंटीले और ब्लेड युक्त तार लगा लेते हैं। क्षुधा शांत करने के लिए पशु उन तारों का खतरा झेलते हुए खेत में घुस जाते है और फलस्वरूप लहूलुहान हो जाते है। उनके इलाज की कोई व्यवस्था होती नहीं। उनके भोजन की कोई व्यवस्था होती नहीं। किसानों को भोजन के लिए अपनी फसल को बचाने की बाध्यता होती है। जो किसान कंटीले तारों से अपनी फसलों की रक्षा करने में असमर्थ होते हैं और खेती के ही सहारे अपनी जीविका चलाते हैं उनके लिए तो ये पशु सबसे बड़े शत्रु होते हैं। शासन-प्रशासन इस समस्या से अनभिज्ञ है, यह कहना ठीक नहीं होगा, क्योंकि यदा कदा ये समाचार छपते रहते हैं कि इस के निराकरण हेतु सरकार शीघ्र ही और गोशालाएं बनवाने वाली है।

देश विदेश में अनुपयोगी पशुओं को पाल कर उनसे उद्योग चलाने के अनेक उदाहरण मिलते है। अपने देश में इस दिशा में व्यापक प्रबंध होने अभी शेष लगते है। हर ब्लॉक में गैर दुधारू पशुओं के लिए आश्रम बनाकर प्रगति लाई जा सकती है। गो रक्षकों की बड़ी बड़ी जोशवाली फौजें हैं जो केवल राजनीति करने में अपना समय और शक्ति खपाते हैं। उन्हें न तो उन पशुओं की भूख प्यास की चिंता होती है, न प्लास्टिक की थैलियां खा कर बीमार होने वाली गायों की। ब्लेड वाले तारों से गायों के शरीर पर बने घावों से उत्पन्न सड़न और पीड़ा की उन्हें चिंता नहीं होती। उन्हें उन पशुओं के लालन पालन की चिंता हेतु पशु मित्र के नाते नियुक्त किया जा सकता है। उन पशुओं के गोबर और मूत्र से ईंधन, बिजली, उर्वरक, दवाइयां आदि बनाने के उद्योग खड़े किए जा सकते है। मरने के बाद उनकी खाल और हड्डी आदि के सदुपयोग से हर ब्लॉक में अनेक उद्योगों का जन्म हो सकता है। बेरोजगारी की समस्या का हल पाने में मदद मिल सकती है। इससे किसान भी खुश रहेंगे और पशु भी। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि मजहबी एवं राजनीतिक कारणों से मोदी युग आते ही गोभक्ति के मिथ्या प्रदर्शन में मानो बाढ़ आ गयी। गोपालक प्राय दूध न देने वाली गायों को बेच देते है, और खरीदारों पर अमानुषिक हमलों के समाचारों ने ने देश विदेश के मीडिया जगत को भारत को बदनाम करने के अवसर दिए। ऐसे अनेक मामले भी प्रकाश में आए जहां फर्जी गोसेवकों ने राजनीतिक कारणों से ऐसे कांडों की रचना की। कुछ पाकिस्तान समर्थकों ने तो अपना हिन्दू नाम रखकर, भगवा वेश पहन कर, हाथ में कलावा पहनकर और माथे पर टीका लगाकर ऐसी घटनाओं का प्रायोजन किया और समाज में अशांति और अव्यवस्था बनाने में अपनी भूमिका निभाई।

गोवंश के पालन-संरक्षण हेतु समाज को आगे आना होगा और इस के लिए सरकारी सहायता मिलनी चाहिए, किन्तु हर काम में अपना निजी फायदा और कट की आशा चाहने के लिए बदनाम सरकारी और राजनीतिक तंत्र से क्या यह आशा की जानी चाहिए? असरकारी गोरक्षक तंत्र, जो प्राय सामाजिक और राजनीतिक विद्वेष बनाने और फैलाने के लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल हो रहे हैं, को प्रशिक्षित और दीक्षित करके, उन्हें आवश्यक संसाधन और कुछ मानदेय दे कर गोवंश पालन एवं संवर्धन के अभियान को अमली जामा दिया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में घाव लिए, भूख-प्यास से पीड़ित पशुओं के हृदय विदारक दृश्य वास्तव में वीभत्स होते है और समाज विरोधियों को इस परिस्थिति का राजनीतिक लाभ लेने की प्रेरणा देते है। परिस्थिति भयंकर है। गोपालन एवं गोवंश संवर्धन से ही भारत की अस्मिता की रक्षा हो सकती है।

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