Home » द्रष्टीकोण » हिन्दू धर्मगुरुओं का शर्मनाक रवैया

हिन्दू धर्मगुरुओं का शर्मनाक रवैया

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:29 Jan 2019 3:46 PM GMT
Share Post

बहुत कम लोगों को स्मरण होगा कि भारत व नेपाल के रिश्तों में दरार क्यों आई थी? पकरण यह था कि पधानमंत्री राजीव गांधी पत्नी सोनिया गांधी के साथ नेपाल-यात्रा पर गए थे। अपने सलाहकारों की सलाह पर वहां वह पशुपतिनाथ मंदिर गए। मंदिर के पुजारियों ने यह कहकर सोनिया गांधी को मंदिर में पवेश देने से मना कर दिया था कि वह इसाई हैं तथा मंदिर में गैर-हिन्दू का पवेश मना है। इस पर राजीव गांधी बहुत नाराज हो गए थे तथा उन्होंने भारत द्वारा नेपाल को दी जा रही आर्थिक सहायतों रोक दी थीं। इससे पहली बार भारत-नेपाल के बीच खटास पैदा हुई, जो नेपाल के पति राजीव सरकार के कड़े रवैये के कारण बढ़ती गई। चीन ने उसका फायदा उ"ाकर नेपाल पर अपना पभाव बढ़ा लिया था। वर्ष 2014 में जब मोदी-सरकार अस्तित्व में आई तो नेपाल के पति भारत ने अपना रवैया बदला तथा नेपाल से संबंध सुधारने के लिए तरह-तरह के पयास शुरू किए। पहले यह माना जाता था कि दोनों देशों में हिंदुत्व का आधार होने के कारण उनके बीच आपस में ऐसे नैसर्गिक संबंध हैं, जो फौलाद की तरह मजबूत हैं। राजीव गांधी की मूर्खता से उस संबंध की दृढ़ता धराशायी हो गई थी।

आजादी के समय भारत को बांटकर पाकिस्तान का निर्माण सिर्प इसलिए हुआ था कि कांग्रेस ने जिन्ना के उस सिद्धांत को स्वीकार कर लिया था कि हिन्दू व मुसलमान दो अलग-अलग कौमें हैं और वे एक साथ नहीं रह सकतीं। उस आधार पर जब पाकिस्तान मुस्लिम देश बना तो भारत अपने आप हिन्दू देश हो गया। लेकिन जवाहरलाल नेहरू को हिन्दू धर्म एवं भारतीय संस्कृति से नफरत थी, इसलिए उन्होंने भारत को `सेकुलर' घोषित कर हिन्दू धर्म के अस्तित्व पर गहरी चोट की थी। पूरा नेहरू वंश घोर हिन्दू-विरोधी था तथा नेहरू के वंशज भी नेहरू के रास्ते पर चले। नेहरू वंश की हिन्दू-विरोधी नीति के परिणामस्वरूप ही नेपाल `हिन्दू' से बदलकर `सेकुलर' देश बन गया।

एक ओर तो नेपाल के पुजारियों का वह हिन्दुत्व-पेम था, दूसरी ओर भारत के पुजारियों का हिन्दुत्व के पति ऐसा रवैया है, जिसे देखकर सिर शर्म से झुक जाता है। टीवी पर दिखाया गया कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने पयागराज में संगम-स्नान किया तथा उन्हें स्नान कराने के लिए नौका पर अखाड़ा परिषद के मुखिया स्वयं मौजूद थे। अखाड़ा परिषद के मुखिया उस समय इतने गद्गद् थे कि जैसे वह कोई अत्यंत महान कृत्य कर रहे हैं। वह भूल गए कि अखिलेश यादव उस समाजवादी पार्टी के मुखिया हैं, जिसकी सरकार ने राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण की मांग को लेकर देश के कोने-कोने से अयोध्या में जुटे असंख्या कारसेवकों पर गोलियां बरसाई थीं, जिसमें सैकड़ों कारसेवक हताहत हुए थे। उस समय समाजवादी पार्टी की हिन्दू-विरोधी सरकार ने पूरे पदेश में हिंदुओं के विरुद्ध जबरदस्त आतंक पैदा कर दिया था। उसी आतंक के कारण इलाहाबाद (अब पयागराज) में उस समय एक युवक एक खंभे पर भगवा ध्वज फहरा रहा था, जिसे पुलिस ने गोली चलाकर मार डाला था। एक शहर में एक ढाबे पर कुछ लोग चाय पी रहे थे, जिनमें से एक का नाम अयोध्या था। उससे उसके साथी ने कहा-`अयोध्या, जल्दी चल, देरी हो रही है।' वहां पर पुलिस मौजूद थी, जिसने समझा कि वे लोग अयोध्या जा रहे हैं। अतः उन्हें पकड़कर हवालात में डाल दिया गया था। योगी सरकार ने इलाहाबाद का नाम पयागराज किया तो कांग्रेस, सपा, बसपा आदि पार्टियों ने उस नाम-परिवर्तन का विरोध किया था। अखाड़ा परिषद के मुखिया को अखिलेश यादव से मांग करनी चाहिए कि वे कारसेवकों पर हुए गोलीकांड की कड़ी निंदा करें तथा राम जन्मभूमि मंदिर के अविलंब निर्माण के पक्ष में स्पष्ट घोषणा करें।

आजादी के बाद नेहरू ने देश में फर्जी सेकुलरवाद का ऐसा जाल बिछाया कि देश में मुस्लिम-तुष्टिकरण की जबरदस्त होड़ मच गई तथा `हिन्दू', `हिंदुत्व', `भगवा' आदि शब्द सांप्रदायिकता कहे जाने लगे थे। यहां तक कि अपने को हिन्दू कहने में लोगों को संकोच होने लगा था। विगत एक हजार वर्षें में मुस्लिम हमलावरों के तथा आजादी के बाद फर्जी सेकुलरवाद के नाम पर होने वाले अत्याचार सहते-सहते हिन्दू कौम मुर्दा हो गई थी तथा उसने मान लिया था कि उसकी किस्मत में हमेशा गुलामी ही है। लेकिन जब हिन्दू कुछ जागा तथा उतने से ही हिन्दुत्व के नाम पर पचंड बहुमत द्वारा मोदी सरकार अस्तित्व में आ गई तो अन्य पार्टियों की आंखें खुलीं तथा उनके नेताओं में अपने का हिन्दू पदर्शित करने की होड़ लग गई। वे इसके लिए तरह-तरह के ढोंग करने लगे।

इस ढोंग का सबसे बड़ा अभियान पप्पू ने शुरू किया। पिछले चुनावों में उसने मंदिरों में जाना शुरू कर दिया। जो व्यक्ति दिल्ली में कभी मंदिर नहीं गया था, वह चुनाव वाले राज्यों में सूंघ-सूंघकर एवं ढूंढ-ढूंढकर मंदिरों में दर्शन करने जाने लगा। कोट पर जनेऊ पहनकर सबको बताने लगा कि वह जनेऊधारी ब्राह्मण है। उसने नया `दत्तात्रेय' गोत्र पैदा कर लिया और अपने को उस गोत्र का बताने लगा। उसने छिपा लिया कि वह इसाई परिवार का है तथा उसके परिवार के इसाई नाम एवं इटली की नागरिकता भी है। सर्वाधिक शर्मनाक बात यह हुई कि जिस सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का पधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने जबरदस्त विरोध किया था तथा उपपधानमंत्री लौहपुरुष सरदार पटेल ने नेहरू के उस कड़े विरोध के बावजूद भारतीय अस्मिता के पतीक सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया, वहां पप्पू के जाने पर पुजारियों ने उसे मंदिर में पविष्ट होने से रोकने के बजाय बड़े गद्गद् भाव से उससे पूजा कराई। पुजारियों ने पप्पू के आगे यह शर्त रखने का भी कष्ट नहीं किया कि वह अपने पूर्वज जवाहरलाल नेहरू के हिन्दू-विरोधी दुष्कृत्य की निंदा करते हुए माफी मांगे। बताया जा रहा है कि अब पप्पू व पियंका संगम-स्नान करने पयागराज जाने वाले हैं। तय बात है कि वहां के पुजारी फिर भावविभोर होकर उन दोनों की `सेवा' में जुटेंगे। लोगों का कहना है कि पप्पू अपने खानदानी आचरण के विपरीत जब मंदिर जा रहा है तो इसका अभिपाय यही है कि वह उस आचरण के लिए क्षमा मांग रहा है। उदारता का यही रोग हिन्दू समाज का शत्रु है। क्या यह सच्चाई नहीं है कि पप्पू का हिन्दुत्व-पेम सिर्प ढोंग एवं चुनावी हथकंडा है। जिन लोगों का रक्त-वर्ग (ब्लडग्रुप) हिन्दू-विरोध वाला है, वे सत्ता में आने पर पुनः हिन्दू धर्म का विनाश करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। उस समय `भेड़िए' नकली आवरण उतारकर अपना असली रूप दिखाएंगे। कुछ लोगों का यह भी कथन है कि धर्मगुरुओं के लिए सब भक्त बराबर हैं तथा वे दक्षिणा के लाभ से अपने को क्यों वंचित करें! यही रवैया हिन्दुओं का विनाश करता रहा है। क्या वे पुजारी अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण का पक्ष लेते आ रहे एवं उसका विरोध करने वाले, दोनों लोगों को एक समान पलड़े पर रखेंगे? तब तो उन सभी धर्मगुरुओं को मंदिर-निर्माण की मांग से अपने को पूरी तरह अलग कर लेना चाहिए। रामजन्मभूमि मंदिर का निर्माण हो अथवा न हो, उन्हें उससे कोई सरोकार नहीं रखना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उन्हें चाहिए कि सभी राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं से यह साफ-साफ व पूरी कड़ाई से कह दें कि वे लोग स्पष्ट रूप से घोषणा करें कि वे अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के अविलंब निर्माण के पक्ष में हैं तथा न्यायालय की आड़ में मंदिर-निर्माण में जो विलंब हो रहा है, उसका वे कड़ा विरोध व निंदा करते हैं।

Share it
Top