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गडकरी के बयान की गंभीरता को समझे नेता

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:31 Jan 2019 5:50 PM GMT
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तारकेश्वर मिश्र्

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के वादे पूरे नहीं करने पर पिटाई वाले बयान पर सियासत गरमा गई है। कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि गडकरी का बयान भाजपा में फ्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विफलता के फ्रति उ"ती आवाज को दर्शाता है। वहीं भाजपा ने कहा है कि केंद्रीय मंत्री ने विपक्षी दल को बेनकाब किया है। गडकरी ने बीते रविवार को मुंबई में एक समारोह में कहा था कि जो नेता जनता से बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन वादे पूरे नहीं करते तो जनता उन्हें पीटती भी है। उन्होंने यहा भी कहा कि वह काम करते हैं और जनता से किए गए वादे पूरे किए हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का ये बयान चर्चाओं में है कि वादे वही करो जिन्हें पूरा कर सको वरना जनता पीटेगी। श्री गडकरी उन चंद राजनेताओं में से हैं जो काम करने के लिए जाने जाते हैं। महाराष्ट्र के लोक निर्माण मंत्री के तौर पर उनके काम की देश भर में फ्रशंसा हुई थी। नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद उन्हें गंगा सफाई, सड़क, पुल, फ्लाइओवर, हाइवे और बंदरगाह बनाने जैसे काम वाला मंत्रालय दिया गया और पांच साल पूरे होते-होते वे ही ऐसे मंत्री हैं जिनका रिपोर्ट कार्ड उन्हें 90 फीसदी अंक देता है। उनके ताजा बयान को फ्रधानमंत्री पर कटाक्ष के रूप में लिया जा रहा है। राजनीति का विश्लेषण करने वालों के अनुसार श्री गडकरी की नजर चुनाव बाद के सियासी हालात पर है।

चुनाव जीतने के बाद मानव नेता की आत्मा ही बदल जाते हैं आप जिस नेता को जिताने के लिए अपना दिन-रात एक करके उसके फ्रचार-फ्रसार में लगे रहते थे वही नेता आपको घास भी नहीं डालता और अपने वादों को ऐसे भूल जाता है जैसे वादे कभी किए ही नहीं थे आप नेता से मिलने का फ्रयास भी करते हैं लेकिन आपको मिलने नहीं दिया जाता और गलती से आप मिल भी जाते हैं तो आप को फिर से किसी न किसी फ्रकार के झू"s आश्वासन देकर भेज दिया जाता है और यह चीज फिर अगले चुनावों में दोहराई जाती है फिर से आ तो वही नेता या कोई और नेता भी झू"ाr बातें वही झू"s वादे और आम जनता को बेवकूफ बना और हर बार नेता से आस लगा के रखना इस बार तो है न लेकिन कभी आता नहीं है न कभी होता है। हालिया चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में यद्यपि एनडीए सबसे ज्यादा सीटें जीतेगा लेकिन उसे बहुमत नहीं मिलेगा और उस सूरत में श्री मोदी की बजाय श्री गडकरी के नाम पर बाहरी समर्थन बटोरकर सरकार बनाई जा सकेगी। लोकसभा चुनाव के पहले दिए उनके ताजा बयान को उसके वास्तविक परिफ्रेक्ष्य में देखा जाए तो वह एक संदेश है सभी राजनीतिक दलों के लिए जो चुनाव जीतने के लिए ऐसे-ऐसे वादे कर देते हैं जिन्हें पूरा नहीं किया जा सकता और उसकी वजह से जनता के मन में गुस्सा तो बढ़ता ही है उससे भी ज्यादा राजनीति के बारे में अविश्वास का भाव उत्पन्न होता है।

1971 के लोकसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी के भीतर संकट से घिरी इंदिरा जी ने जनता के बीच जा-जाकर कहा कि मैं कहती हूं गरीबी हटाओ और विपक्षी कहते हैं इंदिरा हटाओ। देश की जनता ने उनकी बात पर भरोसा करते हुए उन्हें फ्रचंड बहुमत दे दिया। लेकिन गरीबी हटना तो दूर अब तो गरीबी रेखा से नीचे वाली श्रेणी भी अस्तित्व में आ गई। यही हाल रोजगार का है। केंद्र की सत्ता में आई हर सरकार ने बेरोजगारी मिटाने का वादा तो किया किन्तु उसे पूरा करने में विफल रही। किसानों के साथ किए गए वादे भी हवा-हवाई होकर रह गए। आज देश में जो अविश्वास और चौतरफा असंतोष का वातावरण है उसका सबसे बड़ा कारण चुनावी वादे पूरे न होना ही है। आजकल किसानों के कर्ज माफ किया जाना चुनाव जीतने का नुस्खा बन गया है। लेकिन सत्ता में आने के बाद उसे पूरा करने में तरह-तरह की परेशानियां आती हैं जिससे किसानों में गुस्सा बढ़ता है।

हमारी सरकार और उनके वादे? हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है। यहां सबको अपना स्वतंत्रता का अधिकार फ्राप्त है। यहां सब लोग स्वतंत्र है। पर दुख इस बात का है कि हमारे देश में आज भी आधे से अधिक लोग गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही है। हमारे देश मे साक्षरता भी निम्न है। बेरोजगारी भी बढ़ रही है आज दुनियां के देश विकसित है। और हमारा देश विकाशील ऐसा क्यों? हमारे देश मे फ्रति वर्ष अनेकों किसान आत्महत्या करता है क्यों? इन सबका जबाव किसी के पास नहीं है यहां तक कि जो हमारी सरकार है उनके पास भी नही है हमारे देश में लगभग सवा अरब से भी ज्यादा जनसंख्या है और इतने बड़े लोकतंत्र देश मे हम लोग एक सही लीडर नहीं चुन सकते जो हमारे लिए बड़ी दुख एवं शर्म की बात है। और इसका नतीजा ये होता है कि हमारे देश की डोर गलत सरकार के हाथो मे चली जाती है। और जिसका परिणाम हमे ही भुगतना पड़ता है।

गडकरी जी के जिस बयान पर दो दिनों से बवाल मचा है उसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सत्ता में आने के बाद हर व्यक्ति को न्यूनतम आय देने का वादा करते हुए कह दिया कि उनके खाते में फ्रति माह एक निश्चित राशि जमा कर दी जाएगी। कहा जा रहा है कि मोदी सरकार तीन दिन बाद पेश किए जाने वाले बजट में ऐसा ही फ्रावधान करने वाली है। इसी के साथ किसानों के खाते में भी हर फसल के पहले तय रकम जमा करने का फ्रावधान भी अपेक्षित है। गरीब लोगों को मिलने वाली विभिन्न सब्सिडी के एवज में राशि उनके बैंक खाते में जमा किए जाने की उम्मीद भी जताई जा रही है। यदि वाकई मोदी सरकार ऐसा करती है तब उसके पीछे एकमात्र उद्देश्य लोकसभा चुनाव जीतना होगा। राहुल ने मनरेगा की चर्चा करते हुए कहा कि कांग्रेस ने 100 दिन का रोजगार सुनिश्चित किया था। जैसे-जैसे चुनाव करीब आएंगे वादों की टोकरी और भी भरती जाएगी। फ्रश्न ये है कि उन्हें पूरा करने की गारंटी क्या है?

चुनावी घोषणा पत्र के माध्यम से झू"s वादे करने वाले राजनीतिक दलों के मुखियों उम्मीदवारों के खिलाफ पर्चे दर्ज किए जाने चाहिए। लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। ऐसे नेता लोग जनता से झू"s वादे करके सत्ता का सुख लेते हैं लेकिन किए हुए वादे नहीं निभाते। चुनाव आयोग को ऐसे नेताओं पर चुनाव लड़ने का फ्रतिबंध लगाना चाहिए। चुनाव आयोग के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने भी समय-समय पर चुनाव घोषणा पत्र को हलफनामे के तौर पर लिए जाने की बात कही किन्तु राजनीतिक दल उसके लिए राजी नहीं हैं और आगे भी शायद ही होंगे क्योंकि उनका मकसद येन-केन-फ्रकारेण सत्ता हासिल करना मात्र है। यदि वे ईमानदार होते तो देश में नेताओं और राजनीति के फ्रति इतनी वितृष्णा नहीं होती। उस दृष्टि से श्री गडकरी ने वादे पूरे न होने पर जनता द्वारा पीटे जाने संबंधी जो बात कही उसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि पीटे जाने से आशय केवल सत्ता से हटाना मात्र नहीं बल्कि उसके आगे भी संभव है। समय आ गया है जब चुनावी वादे करने की गारंटी का भी फ्रावधान चुनाव आयोग रखे वरना राजनेताओं की पिटाई को रोकना असंभव हो जाएगा। आखिर सहनशक्ति की भी कोई सीमा होती है। कानून में फ्रावधान है कि किसी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने और धोखा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। हैरानीजनक है कि हर पांच वर्षों के बाद राजनीतिक पार्टियां के नुमाइंदे झू"s चुनावी वादे करते हैं और लोगों से किए वादे नहीं निभाते। उन्होंने वोटरों से अपील की है कि वह ऐसे नेताओं के खिलाफ संघर्ष के लिए मैदान में आएं। गडकरी ने जो कहा कि उसका राजनीतिक निहितार्थ तो लोगों ने निकाल लिया लेकिन उसमें जो व्यवहारिक और सामयिक चेतावनी है उस पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा और यही हमारी देश की सबसे बड़ी विडंबना है।

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