Home » द्रष्टीकोण » जींद उड़ाएगा राहुल गांधी की नींद

जींद उड़ाएगा राहुल गांधी की नींद

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:3 Feb 2019 4:08 PM GMT
Share Post

हरियाणा की जींद विधानसभा सीट पर पहली बार `कमल' खिला है। किसी जमाने में कांग्रेस की गढ़ माने जाने वाली जींद सीट पर भाजपा की जीत कांग्रेस की `नींद' उड़ाने वाली खबर है। हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों में कमल को उखाड़ने के बाद हरियाणा की एकमात्र सीट पर हार कांग्रेस के उत्साह को रिवर्स गियर में ले जाएगी। लोकसभा चुनाव के बाद अक्तूबर में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में हिन्दी पट्टी की एक सीट पर कांग्रेस की हार और भाजपा की जीत बड़े सियासी उल्टफेर का संकेत मानी जा सकती है। कांग्रेस प्रत्याशी सुरजेवाला केवल हारे ही नहीं, बल्कि वो तीसरे स्थान पर भी रहे। किसी जमाने में जींद जिला हरियाणा की राजनीति और सीएम दोनों को तय करता था। ऐसे में जींद में कांग्रेस का तीसरे स्थान पर रहना, केवल हरियाणा के वोटरों की `मूड' की ओर इशारा ही नहीं करता, बल्कि आप इसे भविष्य का संकेत भी समझ सकते हैं।

जींद सीट की अहमियत इस बात से भी समझी जा सकती है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी किचेन कैबिनेट के सदस्य रणदीप सिंह सुरजेवाला को चुनावी अखाड़े में उतारा था। जींद में सुरजेवाला को मैदान में उतारकर राहुल गांधी हरियाणा की जाट बेल्ट के रुख और सियासी तापमान को मापना चाह रहे थे। कांग्रेस थिंक टैंक इसे आगामी आम और विधानसभा चुनाव का `लिटमेस टेस्ट' भी मान रहा था। ऐसे में कांग्रेस के दिग्गज नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता का तीसरे स्थान पर रहना, कांग्रेस की नींद उड़ाने से कम नहीं हैं। इस चुनाव में कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंकने का काम किया था। बावजूद इसके नवगठित जननायक जनता पार्टी (जजपा) का दूसरे स्थान पर रहना, यह साबित करता है कि हरियाणा की `जाटबेल्ट' में कांग्रेस की पोजीशन ठीक नहीं है। और कमल खिलने के लिए जाट लैंड का सियासी तापमान बिल्कुल अनुकूल है।

चौटाला परिवार के सदस्य दिग्विजय चौटाला नई नवेली जननायक जनता पार्टी के बैनर तले पहली बार चुनाव मैदान में उतरे थे। कांग्रेस के बड़े नेता सुरजेवाला का तीसरे स्थान पर रहना सारी कहानी खुद-ब-खुद बयां करता है। कांग्रेस ने कैथल से विधायक रणदीप सिंह सुरजेवाला को जींद में प्रत्याशी बनाकर मुकाबला त्रिकोणीय करने की कोशिश की थी। सुरजेवाला राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर अपने राजनीतिक विरोधियों पर जितने ज्यादा तीखे और हमलावर साबित होते हैं, उतने जौहर वो जींद के मैदान में नहीं दिखा पाए। रणदीप का बचपन और शिक्षा-दीक्षा जींद जिले के नरवाना में ही हुई है। ऐसे में सुरजेवाला को अपने ही घर में बुरी हार का मुंह देखना पड़ा है।

अक्तूबर 2014 में हरियाणा विधानसभा चुनाव में जींद सीट इंडियन नेशनल लोकदल के खाते में गई थी। इनेलो विधायक हरिचंद मिड्ढा के निधन के बाद इस सीट पर उपचुनाव हुआ है। हरिचंद के पुत्र कृष्ण मिड्ढा को भाजपा ने टिकट दिया था। मिड्ढा ने यह चुनाव जीतकर जींद सीट पर पहली बार कमल खिलाने का काम किया है। हरियाणा के चुनावी इतिहास में जींद विधानसभा सीट पर एक दर्जन बार चुनाव हुए हैं। जिनमें पांच बार कांग्रेस, चार बार लोकदल-इनेलो ने जीत का परचम लहराया। एक-एक बार हरियाणा विकास पार्टी, एनसीओ और निर्दलीय विधायक ने जीत हासिल की है। कांग्रेस नेता मांगेराम गुप्ता ने सर्वाधिक चार बार यहां से जीत का स्वाद चखा है। 2009 के विधानसभ चुनाव में इनेलो नेता हरिचंद मिड्ढा ने मांगे राम गुप्ता को पटखनी दी थी। 2014 में मिड्ढा ने इनेलो से भाजपा में आए सुरेंद्र बरवाला को 2257 वोट के अंतर से हराया था।

वोट बैंक और जाति-पाति की राजनीति के लिहाज से भी जींद का समीकरण हरियाणा की राजनीति को समझने की समझ पैदा करता है। जींद में तकरीबन 48 हजार जाट वोटर हैं। ब्राह्मण, पंजाबी और वैश्य वोटरों की संख्या 14 से 15 हजार के बीच है। 1972 में कांग्रेस के चौधरी दल सिंह विधायक के बाद 2014 में जाट नेता हरिचंद मिड्ढा ही ऐसे जाट नेता थे जो यहां से जीत पाए थे। 1972 के बाद जितने भी विधायक बने, उनमें से अधिकतर वैश्य और पंजाबी समुदाय के थे। इस बार हालात बदले हुए थे। मुकाबला सीधे तौर पर तीन जाट नेताओं के बीच था। ऐसे में भाजपा का यहां से जीतना हरियाणा की सियासी हवा और रुख की ओर गंभीर इशारा करता है।

2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की लहर पर सवार होकर भाजपा ने हरियाणा वासियों का दिल जीत लिया था। हजकां से गठबंधन करने वाली भाजपा की झोली में सात सीटें आई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पूरा जोर लगाकर बस अपने बेटे दीपेंद्र को ही जिता पाए थे। इन चुनावों में पहली बार भाजपा को सर्वाधिक करीब 34 फीसदी की वोट शेयरिंग मिली थी। वर्ष 1999 के आम चुनाव में पार्टी ने इनेलो से गठबंधन करके 29.21 फीसदी वोट हासिल करते हुए सभी 10 सीटों पर विजय हासिल की थी। उस समय नरेंद्र मोदी हरियाणा के प्रभारी हुआ करते थे।

पिछले चार साल में हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस की पकड़ कमजोर हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा हों या कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर, कु. शैलेजा, रणदीप सिंह सुरजेवाला, किरण चैधरी और कुलदीप बिश्नोई, सभी अपने-अपने ढंग से हरियाणा में पार्टी गतिविधियों का झंडा थामने के लिए अंदर ही अंदर एक-दूसरे की काट से लेकर दिल्ली दरबार में अपना पक्ष मजबूत करने का कोई मौका गंवाते नहीं हैं। सबसे अधिक तनातनी और खींचतान हुड्डा और तंवर के बीच है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर के बीच शीतयुद्ध छिड़ा हुआ है। हुड्डा खेमा अशोक तंवर को अध्यक्ष पद से हटवाने के लिए दिन-रात एक किए हुए है। हरियाणा कांग्रेस के अधिकतर विधायक पार्टी हाई कमान पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को पार्टी अध्यक्ष बनाने का लगातार दबाव बना रहे हैं। मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर ने भी प्रदेश में अपनी सक्रियता बढ़ाई हुई है।

रणदीप सिंह सुरजेवाला व कुमारी सैलजा कांग्रेस हाई कमान के सबसे अधिक नजदीक माना जाता है। ऐसे में कांग्रेस नेताओं के बीच हरियाणा के संगठन को अपने ढंग से चलाने का अधिकार हासिल करने की होड़ मची नजर आती है। हरियाणा के कांग्रेसी नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला जहां लगातार दिल्ली दरबार की राजनीति कर रहे हैं वहीं किरण चौधरी आजकल अपना पारंपरिक भिवानी क्षेत्र छोड़कर उत्तरी हरियाणा में सक्रिय हैं। इन सबके बीच कुलदीप बिश्नोई व कैप्टन अजय सिंह यादव भी लगातार कांग्रेस हाई कमान के संपर्प में हैं। हिंदी पट्टी की तीन राज्यों खासकर राजस्थान में कांग्रेस की वापसी के साथ ही हुड्डा और तंवर खेमा एक-दूसरे के विरुद्ध और ज्यादा हमलावर हो गया है। हड्डा समर्थक विधायक लंबे समय से पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह फी-हैंड दिए जाने की मांग कर रहे हैं। जींद की हार के पीछे हरियाणा में कांग्रेस लीडरशिप की आपसी खींचतान, वर्चस्व की लड़ाई का भी बड़ा हाथ है।

वर्तमान हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल आगामी अक्तूबर को पूरा हो जाएगा। ऐसे में लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रेलम-पेल शुरू हो जाएगी। 2014 के विधानसभा चुनाव में सूबे की कुल 90 में से 47 सीटें भाजपा ने जीती थी। उसका वोट शेयरिंग 33.24 फीसदी रहा था। इनेलो और कांग्रेस को क्रमश 19 और 15 सीटें हासिल हुई थीं। इनेलो का वोट प्रतिशत 24.11 और कांग्रेस को 20.58 फीसदी रहा था। अब हालात बदले हुए हैं। इनेलो दो फाड़ हो चुकी है। प्रदेश कांग्रेस में आपसी खींचतान और गुटबाजी चरम पर है। आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा से नाराज बताए जा रहे जाट समुदाय की नाराजगी भी जींद जीत के साथ खत्म होती लग रही है। तीन राज्यों की कांग्रेस की जीत के ऊपर जींद की सीट की हार कहीं मायनों में भारी और कांग्रेस की नींद उड़ा देने वाली है। जींद में सुरजेवाला जैसे बड़े नेता को मैदान में उतारकर राहुल ने जो `राजनीतिक परीक्षण' किया था, वो बुरी तरह फ्लाप साबित हुआ है। फिलवक्त तीन राज्यों में हार की चोट खाई भाजपा के लिए जींद की जीत किसी `मरहम' से कम नहीं है। वहीं इस हार के बाद कई साइड इफेक्ट भी आने वाले दिनों में देखने को मिलेंगे। इनेलो-बसपा का गठबंधन टूटेगा और कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष भी बदला जा सकता है। कांग्रेस को हरियाणा में अपना परचम लहराने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी होगी।

डॉ. आशीष वशिष्ठ

Share it
Top