कब खत्म होगा जहरीली शराब का कारोबार?
राजेश माहेश्वरी
उत्तर फ्रदेश और उत्तराखण्ड में जहरीली शराब ने फिर एक बार कहर ढाया है। जहरीली शराब से हुई मौतों के मामले ने राजनीतिक रंग ले लिया है। इस मामले को लेकर अब आरोप फ्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। यूपी में जहरीली शराब से मौतें का इतिहास खंगाले तो इस हमाम में सभी दल और सरकारें नंगी हैं। असल बात यह है कि सूबे में किसी भी दल की सरकार रही हो, जहरीली शराब के कारोबारियों के सामने सारी व्यरवस्थाल फेल दिखाई देती है। उत्तर फ्रदेश में योगी सरकार के आने के चंद महीने बाद सात जुलाई 2017 को आजमगढ़ जिले में 30 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई थी। इस घटना के बाद सीएम आदित्यनाथ योगी ने अवैध शराब के कारोबार की जड़ समाप्त करने का आदेश दिया था। इसी घटना के बाद मई 2018 में कानपुर के अंतर्गत सचेंडी क्षेत्र के धूल गांव में सरकारी "sके से जहरीली शराब का कारोबार का मामला सामने आया था। जहरीली शराब पीने की वजह से चार लोगों की मौत हुई थी।
वर्ष 2003 के सिंतबर महीने में लखनऊ के कैसरबाग इलाके में शराब पीने से 16 लोगों की मौत हुई थी। उस समय मुलायम सिंह यादव सूबे के मुख्यमंत्री थे। मायावती के शासनकाल में, साल 2009 में आजमगढ़ में जहरीली शराब से 23 लोगों की मौत हुई थी। 2011 में वाराणसी में शराब पीने से 12 लोगों की मौत हो गई थी। इसके दो महीने बाद मिर्जापुर में भी जहरीली शराब से छह लोगों की मौत हुई थी।
राजधानी लखनऊ से सटे उन्नाव जिले में अगस्त 2015 में और 11 जनवरी 2015 को लखनऊ और उन्नाव जिले की सीमा से लगे मलिहाबाद के एक गांव में किकेट मैच के दौरान जहरीली शराब पीने से पचास से ज्यादा लोगों की मौतें हो गई थीं और डेढ़ सौ से ज्यादा लोग बीमार हुए थे। इस घटना के बाद ताबड़तोड़ छापेमारी का अभियान भी चलाया गया, तब लग रहा था कि फ्रदेश की अखिलेश सरकार इस अवैध कारोबार को जड़ से समाप्त करके ही चैन लेगी। आरोपित लोगों की गिरफ्तारियां भी हुई, लेकिन मामला "ंडा पड़ते ही शराब की भठ्ठियां फिर से दहकने लगीं। जाहिर है कि इसके पीछे निहित मंशा लोगों का ध्यान मुद्दे से हटाने की थी न कि जहरीली शराब के कारोबार का समूल विनाश करने की। इस घटना से पूर्व अक्तूबर 2013 में आजमगढ़ जिले के मुबारकपुर थाने के केरमा सहित आसपास के गांव में जहरीली शराब पीने से 56 लोगों की मौत हुई थी। मायावती और अखिलश्sा यादव के शासन काल में शराब सिंडिकेट पूरी व्यवस्था पर हावी था।
वर्ष 2008 में कर्नाटक में 180 लोग जहरीली शराब का निवाला बने थे। 2011 में पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना में जहरीली शराब पीने से 173 लोगों की दर्दनाक मौत हो गयी थी। वहीं गुजरात में शराबबंदी के बावजूद अहमदाबाद में 7 जुलाई 2010 को 157 लोग जहरीली शराब की भेंट चढ़ गए थे। वहीं वर्ष 2016 में बिहार में शराबबंदी के बावजूद गोपालगंज में जहरीली शराब पीने से 18 लोगों की मौत हो गयी थी। इन सबके बीच सवाल यह भी है कि जहरीली शराब से होनी वाली मौतों का सिलसिला कब थमेगा? अवैध शराब के सौदागरों पर कार्रवाई कब होगी? सवाल यह भी है कि केन्द्र ओर राज्यों सरकारें दोनों मिलकर इसे रोकने की पहल क्यों नहीं कर रहीं? जबकि 2006 में सुफ्रीम कोर्ट कह चुका है कि केंद्र और राज्य सरकारें संविधान के 47वें अनुच्छेद पर अमल करें यानी शराब की खपत घटाएं। लेकिन सरकारों का रवैया "ाrक इसके उल्ट है। उत्तर फ्रदेश में योगी सरकार ने आबकारी राजस्व से खजाना भरने का पूरा इंतजाम कर रखा है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में 10118 करोड़ रुपये का राजस्व आबकारी विभाग ने कमाया, जबकि 2018-19 में आबकारी राजस्व लक्ष्य 23,000 करोड़ रुपये तय है। वित्तीय वर्ष 2019-20 में यह लक्ष्य करीब 32 हजार करोड़ के आसपास तय होने का अनुमान है। यूपी सरकार ने शराब-बीयर बेचने का समय भी बढ़ाया है। यूपी में अब 12 घंटों तक शराब-बीयर की दुकानें खुलेंगी। पहले ये दुकानें सुबह 10 बजे से रात 11 बजे तक खुलती थी। हाल ही में उत्तर फ्रदेश सरकार ने शराब पर दो फीसदी `गौ कल्याण उपकर' लगाने का फैसला किया है। योगी सरकार से पूर्व में जितनी सरकारें सूबे में रही, उन्होंने आबकारी से कमाई का लक्ष्यक हर साल बढ़ाने का काम किया।
उत्तराखण्ड सरकार ने पिछले भी दिनों नई आबकारी नीति में राजस्व लक्ष्य बढ़ाकर 3180 करोड़ कर दिया है। यह बीते वर्ष से 20 फ्रतिशत अधिक है। मुख्यममंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बै"क में वित्तीय वर्ष 2019-20 की आबकारी नीति को मंजूरी दी गई। इसके तहत इस वर्ष के आबकारी लक्ष्य में 20 फीसद की बढ़ोतरी की गई है। गत वर्ष आबकारी लक्ष्य 2640 करोड़ रुपये था, इस वर्ष इसे 20 फीसद बढ़ाकर 3180 करोड़ रुपये कर दिया गया है। देश के अधिकतर राज्यथ सरकारी खजाना भरने के लिये आबकारी राजस्वर भी निर्भर हैं।
देखा जाए तो देशभर में नशे का काला कारोबार तमाम कानूनों, नियमों और सख्ती के बावजूद थमने का नाम नहीं ले रहा है। मिलावटी या फिर अवैध तरीके से बनाई जा रही शराब कभी भी जानलेवा हो सकती है। जहरीली शराब से मौत की खबरें किसी न किसी राज्य से आती रहती हैं। लेकिन हो-हल्ला तभी मचता है जब मौतों की संख्या को छिपाना मुश्किल होता है।
सच्चाई तो ये है कि शराब पी के बहुत बड़े हिस्से पर अवैध कारोबारियों का ही कब्जा है, जिनकी फ्रत्यक्ष-अफ्रत्यक्ष रूप से राजनीतिज्ञों, नौकरशाहों और अन्य सरकारी बाबुओं से सा"-गां" है। इस काली कमाई में सबका बराबर की हिस्सादारी है। अगर आंकड़ों की मानें तो उत्तर फ्रदेश में जितनी सरकारी शराब की खपत है उससे कई गुना अधिक शराब लोग इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां ये फ्रश्न उ"ना स्वाभाविक है कि बाकी शराब की आपूर्ति कौन कर रहा है और कैसे कर रहा है ? गरीबों को सस्ते में मौत का सामान बेचकर शराब कारोबारी और उस क्षेत्र की पुलिस की जेबें तो मोटी हो रही हैं, लेकिन जहरीली शराब कांड से कई परिवार उजड़ रहे हैं। असल में अवैध शराब के धंधे में कोई रोक न लगने की बड़ी वजह राजनीतिक एवं फ्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी है। यदि पूर्व में घटी घटनाओं से सबक लेकर जहरीली शराब के कारोबारियों पर "ाsस कार्रवाई की गई होती तो आज इन मौतों का टाला जा सकता था।
देशभर में शराब का जो फ्रचलन बढ़ा है, वह एक व्यसन की तरह फैला है और इसलिए नहीं फैला है कि अचानक शराब की मांग बढ़ गई थी, बल्कि उसे सर्व-सुलभ बनाकर दैनिक जरूरत की तरह परोसा गया और उसे एक ऐसे धंधे की तरह विकसित किया गया, जिसमें स्थानीय गांव, मोहल्लों के जनफ्रतिनिधि और दबंग तक शामिल हैं। जहरीली शराब से मौतों के बाद हो रही राजनीति अफसोसनाक है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यशनाथ ने एसआईटी जांच का ऐलान किया है। इस पूरे फ्रकरण में जरूरत इस बात की है कि असली गुनाहगारों की पहचान कर उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाई जाए। जरूरत इस बात की भी है कि शराब माफिया, राजनीति और लाल-फीताशाही के इस ग"जोड़ को हरसंभव तरीके से तोड़ा जाए ? उत्तर फ्रदेश और उत्तराखण्ड में राजनीतिक और फ्रशासनिक शुचिता के लिए इस बारे में सोचना और सख्त कदम उ"ाना निहायत ही जरूरी है।