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ढाई आखर का जादू केवल पेमिका के लिए सुरक्षित क्यों?

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:16 Feb 2019 3:23 PM GMT
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पेम इजहार के त्यौहार हफ्तेभर चलने वाले वैलेंटाइन पर 2019 में अपने देश में 30 हजार करोड़ रुपए खर्च गए। पांच साल पहले 2014 में, 40 पतिशत की बढ़त के साथ, तब 16 हजार करोड़ खर्चे गए थे। अन्य कई विदेशी पथाओं की तर्ज पर वैलेंटाइन भारतीय बच्चों, युवाओं और उम्रदारों को खूब रास आता है। अमेरिका की नेशनल रिटेल फैडरेशन के अनुसार वहां इस वैलेंटाइन में उपहारों पर 19 अरब डालर खर्च हुए, हीरे-जेवरातों फूलों, कैंडी आदि पर। जश्न के मौके चाहिए सभी को, न हों तो पैदा किए जाते हैं।

पत्येक पाणी में निहित, विभिन्न संवेगों में सबसे जबरदस्त है, ढाई आखर का `प्यार', जो वह सब करवा सकता है जो धन, बाहुबल, राजनीति या अन्य किसी शक्ति के बस की नहीं है। दुनियाभर में अनेक राजमार्गों, पुलों, विशाल बांधों-संयत्रों के निर्माण, संग"नों-फैक्ट्रियों की स्थापना या इनके स्थल के चयन और इनमें फेरबदल, आदि का कारण पेम ही रहा। अथाह सामर्थ्य है पेम की, जो `वे दरवाजे और खिड़कियां खोल देता है,' जैसा अमेरिकी कथालेखिका मिग्नॉन मैकलाफ्लिन ने कहा, `जो पहले थीं ही नहीं'। लिहाजा इस ढाई आखर के जादू को केवल पेमिका के लिए सुरक्षित रखने का अर्थ है इस सशक्त संवेग को संकीर्ण बना कर, इसकी तौहीन करना और इसके बहुआयामी लाभों से वंचित रहना।

मेलजोल के भाव से अभिपेरित, पेम करना एक फितरत है। दिल में प्यार है तो केवल एक शख्स पर ही बरसे, यह मुमकिन नहीं, इसकी फुहार अन्यों पर कैसे नहीं पड़ेगी? जिस दिल में माता, पिता, भाई, बहन, सहकर्मी, पड़ोसी आदि के लिए बेपरवाही, नफरत या हिकारत हो वह दिल पेयसी या पत्नी के प्यार से सराबोर नहीं हो सकता। यानि केवल पत्नी या पेयसी के लिए सुरक्षित प्यार निखालिस ढकोसला है।

पेम को लेकर सर्वाधिक साहित्य लिखा गया, लोकगीत रचे गए, फिल्में बनीं। इसी खातिर लेखकों, कलाकारों ने कालजयी रचनाएं पस्तुत कीं। इसी पर दुनिया में सर्वाधिक फंसाद भी हुए। मन के भावों को अभिव्यक्ति देने में शब्द हमेषा थोड़े पड़ते रहे हैं, नतीजन मुंह से कुछ का कुछ निकल जाता है। एक शायर ने कहा, पेम को शब्दों से न कहो चूंकि मौन ही प्यार की भाषा है। इसी पकरण में वर्ष 1996 में रिलीज होकर खूब सराही गई फिल्म `खामोशी' में लता मंगेशकर की गाई चंद पंक्तियां हैं, `हमने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू... सिर्प अहसास है ये रूह से महसूस करो, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो... एक खामोशी है, सुनती है, कहा कती है। न ये बुझती है न रुकती है, न "हरी है कहीं। नूर की बूंद है, सदियों से बहा करती है।' कदाचित बेतरतीब हरकतों में उलझाने वाले, शब्दों में बखान न किए जा सकने वाले `पेम' के पीछे कुछ परालौकिक, जादुई अवश्य है। तभी स्वीडिश सिनेकर्मी इन्ग्रिड बर्गमैन ने कहा, `चूंकि पेम के इजहार में लफ्ज बेअसर हो जाते हैं, हमें बोलने से रोकने के लिए कुदरत ने मनुष्य के लिए चुंबन का नायाब उपहार ईजाद किया।'

दैहिक नजदीकी की चाहत का नाम नहीं है पेम। अंतोनी सेंट एग्जूपेरी ने पेम की परिभाषा में इसका असल तात्पर्य पा"क पर छोड़ा है, `एक दूसरे की आंखों में ताकते रहना प्यार नहीं है, प्यार नाम है उस उच्च भाव का जब दोनों एक साथ, एक ही दिशा में मुखातिब रहें।'

पेम व्यवहार में `दिशा' की अनदेखी इसकी तौहीन है और इससे जुड़ी तमाम विकृतियों के मूल में है। पेम एक मनोदशा है, स्वयं में मकसद नहीं। इसके चलते दोनों पक्ष सान्निध्य में बेहतर खुशनुमां महसूस करतें हैं, एक दूसरे की कमियां देखने में अक्षम। किंग मार्टिन लूथर ने कहा, शत्रुता समाप्त करने के लिए पेम से कारगर कुछ नहीं है। लाओत्से की राय में प्यार देने वाले में अथाह साहस पैदा हो जाता है तो पाने वाला शक्ति सम्पन्न हो जाता है।

पकृति द्वारा पस्तुत संतानोत्पत्ति के साधन से कहीं बहुत आगे हैं इसके मायने। यह पेरणास्रोत भी हो सकता है किसी मंजिल तक पहुंचने का। लोगों को जोड़े रखने में इसकी टक्कर का कुछ नहीं। सबसे बड़ी बात, जीने के लिए उतना ही आवश्यक जितना ऑक्सीजन। पेम का जितना ज्यादा अभाव रहेगा उतना ही मनुष्य अस्वस्थ, उत्साहहीन बल्कि जोखिम में जिएगा। दिल में पेमभाव हो तो सभी कार्यों में मन लगता है, निराशा-हताशा, डिप्रेशन नहीं आते, हौसले बुलंद रहते हैं। हो भी क्यों न, पेमी जुगल एक ही पुस्तक के दो खंड जो होते हैं, दोनों अर्धवृत्त की मानिंद, अकेले एक के कोई मायने नहीं। विक्टर ह्यूगो ने कहा, जिंदगी का सबसे खुशनुमां लमहा वह है जब कोई विश्वस्त हो जाता है उसे चाहने वाला है। भले ही पेम की शुरुआत बाहरी आकर्षण से हो किंतु समय ढलते एक दूसरे के पति विश्वास बना रहे तो परिपक्व आयु में पेमी सच्चे साथी बतौर रह कर खुशनुमां जिंदगी बिता सकते हैं। भक्त के पेम से अभिभूत होकर ईश्वर भी अपने नियमों में फेरबदल कर डालते हैं, `पेम पबल के पाले पड़ कर पभु ने नियम बदल डाला।'

अपने देश सहित दुनियाभर में जीवन पत्याशा में बढ़त के साथ उम्रदारों के चेहरों पर रौनक लौटी है, वे बालों को डाई करते हैं, उनकी त्वचा कुम्हलाती नहीं है, युवाओं की माफिक मौका लगने पर "gमकते-मटकते भी हैं, यहां तक कुछ अनुचित भी नहीं। सालभर में सबसे ज्यादा उमंगों से मनाए जाने वाले इन दिनों चल रहे वैलेंटाइन सप्ताह में विश्व में करीब एक अरब प्यार इजहार करते कार्डों का आदान-पदान होता है। स्कूली बच्चे जोश में एक दूसरे के कपड़ों पर प्यार चिन्ह की छाप छोड़ देते हैं।

पेम की पचंड, परालौकिक शक्ति ही है जो दिल और दिमाग दोनों पर एकसाथ इस कदर पहार करती है कि बड़े-बड़े तीसमारखां, सूफी-संत तक सुधबुध खोकर अप्रत्याशित आचरण में लिप्त हो जाते हैं जो किसी ने सोचा भी नहीं। कितनी भी चेष्टा करें, पेम अपना रास्ता निकाल लेगा, उस राह चल पड़ेगा, कहते हैं, जहां जाने में भूतपिशाच भी कतराते हैं।

पेमिका से लगाव की ताकत लाजवाब है। बहादुरशाह के दरबार में पधारे एक फकीर ने बादशाह के आतिथ्य से संतुष्ट होकर दुआ दी, `खुदा करे, आप खूब फलो-फूलो और इस माटी से माशूका तरह मोहब्बत करो!' बादशाह ने सवाल किया, `माशूका की तरह क्यों, मां की तरह क्यों नहीं?' फकीर का कहना था, `माशूका के प्यार में आदमी दीवाना हो जाता है, मां के प्यार में नहीं। और आज विदेशी हुकूमत को खदेड़ने के लिए आजादी की मुहिम में लिए इस माटी को सिरफिरों की जरूरत है।'

फकीर के शब्दों से अभिभूत बादशाह ने घोषणा की, कल की नमाज हम आपके साथ अदा करेंगे। यहां संदेश है कि पेम की पचंड शक्ति का पयोग वृहत्तर कार्य सिद्धि के लिए किया जाए।

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