जम्मू-कश्मीर : कई मोर्चों पर मुकाबला करना होगा आतंकवाद से
आदित्य नरेन्द्र
पिछले दिनों जब पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान गए थे और वापस आकर यह खबर लाए थे कि पाक सेनाध्यक्ष ने उन्हें करतारपुर बॉर्डर खोलने के बारे में बताया है ताकि सिख श्रद्धालु उस गुरुद्वारे के दर्शन कर सकें जहां गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम कई वर्ष बिताए थे। तब कई लोगों को इस पर मुश्किल से ही यकीन हुआ था क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि हमेशा भारत के खिलाफ रहने वाली पाक सेना ने अचानक यूटर्न कैसे ले लिया है। लेकिन गुरुवार को पुलवामा में हुए आत्मघाती हमले के बाद एक बार फिर यह सच्चाई सामने आ गई है कि भारत को लेकर पाकिस्तानी सेना की नीतियों में कोई बदलाव न आया है और न ही आने की संभावना है। हमले की भीषणता का अंदाज इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इसमें सीआरपीएफ के 42 जवान शहीद हो गए। इस हमले की जिम्मेदारी लेने में जैश ने कोई देर नहीं की जबकि यह कोई छिपा हुआ तथ्य नहीं है कि जैश सरगना पाकिस्तान में ही मौजूद रहकर अपनी आतंकी कार्रवाइयों को अंजाम दे रहा है। इस हमले ने भारतीय राजनेताओं और प्रशासन को यह भी स्पष्ट रूप से बता दिया है कि लीपापोती करने से घाटी में तीन दशक से चल रहा आतंकवाद समाप्त होने वाला नहीं है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए भारत सरकार को कई मोर्चों पर एक साथ मुकाबला करना होगा। यदि हम एक सर्जिकल स्ट्राइक की बात छोड़ दें तो हम पाकिस्तान द्वारा चलाई जा रही प्रॉक्सी वॉर का जवाब डिफेंसिव होकर देते आए हैं। इस नीति में यदि थोड़ा-बहुत बदलाव हुआ भी है तो उससे पाकिस्तान को कोई ज्यादा फर्प नहीं पड़ा। जब तक खुलकर पाक सेना की प्रॉक्सी वॉर का जवाब प्रॉक्सी वॉर से नहीं दिया जाएगा तब तक उन्हें समझ नहीं आएगा कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। हमें उन्हें बताना होगा कि ब्लूचिस्तान उनकी भी कमजोर कड़ी है।
दरअसल कुछ देश पाकिस्तान का महत्व इस तथ्य से आंकते हैं कि वह भारत को कितने जख्म दे सकता है। भारत का बढ़ता कद उनकी भविष्य की योजनाओं से मेल नहीं खाता। ऐसे देशों में चीन भी शामिल है। इसका प्रमाण इसी से मिल जाता है कि जैश द्वारा हमले की जिम्मेदारी लेने के बाद भी उसने संयुक्त राष्ट्र में जैश प्रमुख को आतंकी घोषित करने वाले प्रस्ताव पर वीटो कर दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान से खुश नहीं हैं। हमारे लिए यह बेहतरीन मौका है जब हम पाकिस्तान को काफी हद तक अकेला कर सकते हैं। पुलवामा हमले के बाद विदेश सचिव ने पी-पांच देशों के अलावा अन्य महत्वपूर्ण देशों के राजदूतों से मुलाकात कर इस मामले में पहल की है। भारत द्वारा विशेष तरजीही देश का दर्जा पाकिस्तान से ले लेना इस तथ्य की ओर इंगित करता है कि अब भारत सरकार पाकिस्तान को जैसे को तैसा के रूप में जवाब देने को तैयार है। लेकिन इसके साथ हमें आंतरिक मोर्चे पर कई जरूरी राजनीतिक और प्रशासनिक कदम उठाने होंगे। धारा 370 और 35ए पर भी स्पष्ट नीति होनी चाहिए ताकि भ्रम की कोई गुंजाइश न रहे। आंतरिक मोर्चे पर हुर्रियत के अलगाववादी नेताओं और उनके हमदर्द राजनीतिक नेताओं से निपटना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। उनसे सुविधाएं और सुरक्षा वापस लेने के साथ-साथ उन पर कानून की उचित धाराओं के तहत कार्रवाई करना भी जरूरी है। इससे आतंकियों को बचाने के लिए पत्थरबाजी करने वाले पत्थरबाजों पर भी दवाब बढ़ेगा। कश्मीर में आज भी 90 प्रतिशत लोग भारत सरकार का समर्थन करते हैं यह पंचायत चुनावों से जाहिर हो चुका है। लेकिन वह खुलकर तभी सामने आएंगे जब घाटी में बंदूकों का खौफ कम होगा। हमारे वीर शहीदों का बलिदान बेकार न जाए इसकी जिम्मेदारी पूरे देश की है। इसके लिए जरूरी है कि कश्मीर को लेकर सभी राजनीतिक दलों की एक सर्वमान्य स्पष्ट नीति हो। आतंकवाद से मुकाबले की यही पहली और एकमात्र शर्त है।