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राष्ट्रीय भावना के अनुरूप कदम

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:22 Feb 2019 4:14 PM GMT
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डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

पुलवामा की गिनती कश्मीर घाटी के उन शहरों में है, जहां अलगाववादियों के लिए अपनी गतिविधियां चलाना आसान होता है। उन्हें यहां बेस मिल जाता है। ऐसे में एक बार यह साबित हुआ कि अलगाववाद और आतंकवाद की समस्या कश्मीर घाटी के चार पांच शहरों तक सीमित है। यह पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य की समस्या नहीं है। जम्मू और लद्दाख में अलगाववादियों को पनाह नहीं मिलती है। बिडंबना यह कि जम्मू और लद्दाख की अपेक्षा हमेशा कश्मीर घाटी के जिलों को ज्यादा तरजीह मिलती रही है। इस प्रदेश के राजस्व में जम्मू क्षेत्र का योगदान सर्वाधिक है। लेकिन जब व्यय की बात आती है, तब घाटी को वरीयता मिल जाती है।

इसी प्रकार जम्मू से ज्यादा विधानसभा क्षेत्र कश्मीर घाटी के लिए रखे गए है। इससे राज्य की विधानसभा में घाटी का दबदबा रहता है। ऐसे में समस्या के समाधान हेतु कुछ बड़े कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। इनमें राज्य को तीन हिस्सों में बांटने का निर्णय होना चाहिए। इसके बाद सीमित क्षेत्र में आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करना आसान होगा। जम्मू और लद्दाख को भी न्याय मिल सकेगा। यह सही है कि आतंक और जिहाद वैचारिक समस्या है। लेकिन यह भी सही है कि चीन की सीमा में यह लाचार हो जाती है। चीन के दो मुस्लिम बहुल प्रदेशों में नमाज, रोजा आदि पर प्रतिबंध है। पुलिस का विशेष दस्ता यह देखता है कि सरकार के इन नियमों का कहीं उल्लंघन न हो। पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकियों की हिम्मत नहीं है कि चीन की तरफ आंख उठा कर देख लें। नाइन इलेवन को अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ। वह दिन और आज का दिन पाकिस्तानी आतंकियों ने अमेरिका की तरफ देखने की हिम्मत नहीं दिखाई। ऐसे ही भारत को कठोरता दिखानी होगी। सीमा पार के आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। इसके लिए प्रत्येक संभव कदम उठाने होंगे।

यह सही है कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद सरकार राष्ट्रीय भावना के अनुरूप कदम उठा रही है। प्रधानमंत्री ने सेना को निर्णय करने का अधिकार दिया। सरकार ने कश्मीर के छह अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस लेने का फैसला किया है। इसके अलावा अलगाववादी नेताओं से अन्य सरकारी सुविधाएं भी वापस ली जाएगी। इन अलगाववादी नेताओं में मीरवाइज उमर फारुक, अब्दुल गनी बट, बिलाल लोन, हाशिम कुरैशी और शब्बीर शाह शामिल हैं। सरकार की तरफ से जारी आदेश में कहा गया है, किसी भी अलगाववादी को सुरक्षाबल अब किसी सूरत में सुरक्षा मुहैया नहीं कराएंगे। अगर उन्हें सरकार की तरफ से कोई अन्य सुविधा दी गई है, तो वह भी तत्काल प्रभाव से वापस ले ली जाएगी। अलगाववादियों की सरकारी गाड़ियां भी वापस ले ली जाएंगी। बता दें कि अलगाववादी नेताओं सैयद अली गिलानी और मोहम्मद यासीन मलिक को पहले से ही कोई सुरक्षा नहीं दी गई थी। इनकी सुरक्षा पर करीब ग्यारह करोड़ रुपए सालाना खर्च होता है। पाकिस्तान के खिलाफ आर्थिक मोर्चे पर कड़ी कार्रवाई की है। भारत ने पाकिस्तान से आयात होने वाले सभी सामानों पर सीमा शुल्क यानि कस्टम ड्यूटी तत्काल प्रभाव से बढ़ाकर दो सौ प्रतिशत कर दी है।

पाकिस्तान को दिए गए मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा भी वापस लिया जा चुका है। सरकार की यह भी कठिनाई है कि उसे विपक्ष का जैसा समर्थन मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल रहा है। पुलवामा हमले के बाद राहुल गांधी ने आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई पर सरकार को समर्थन देने का वादा किया था। लेकिन सर्वदलीय बैठक में कांग्रेस सहित कई विपक्षी पार्टियों के स्वर बदल गए। बताया जाता है कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस चुनावी समीकरण को महत्व देने लगे। इनका कहना था कि आतंकियों को मारने की जगह गिरफ्तार किया जाए। क्योंकि ऑपरेशन में बेगुनाह कश्मीरी मारे जा सकते हैं। जबकि भाजपा ने कहा ऐसे में हमारे जवान मारे जा सकते हैं। कांग्रेस के अनुसार आम कश्मीरी को खतरे में डालने की हिमायत नहीं कि जा सकती। अमेरिका सहित अनेक देशों ने इसे मात्र कुछ आतंकियों की गुस्ताखी नहीं माना है। इनके अनुसार पाकिस्तान में सेना और गुप्तचर संस्था आईएसआई के स्तर पर आतंकी संगठनों को संरक्षण और समर्थन मिलता है। पाकिस्तान में बाकायदा उनके प्रशिक्षण शिविर चलते है। जिसमें सेना के लोग उनको हमले की ट्रेनिंग देते है। यह पाकिस्तान का छद्म युद्ध है। इसके पहले अमेरिका, ब्रिटेन, फांस में हुए आतंकी हमलों में पाकिस्तानी संगठनों की भूमिका उजागर हुई थी। अमेरिका ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में हुए आतंकवादी हमले की निंदा की है। विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान जैसे देशों से आतंकवादियों को सुरक्षित पनाह और समर्थन नहीं देने की अपील की है। पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद हमले का गुनाहगार बताया गया है।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि वह किसी भी रूप में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार के साथ काम करने को प्रतिबद्ध है। अमेरिका सहित कई अन्य देश लंबे समय से पाकिस्तान पर आतंकवादी गुटों को सुरक्षित पनाहगाह देने का आरोप लगाते रहे हैं। कुछ महीने पहले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान पर अरबों डॉलर हासिल करने के बाद अमेरिका को धोखा देने का आरोप लगाया था और सुरक्षा सहायता में कटौती की घोषणा की थी।

यह सही है कि अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार पाकिस्तान को चेतावनी दी है, उंसकी सहायता भी कम की गई है। लेकिन हकीकत जानने के बाद जो कठोरता दिखानी चाहिए थी, वह नहीं दिखाई गई। ऐसे में भारत को इजरायल का सहयोग लेना चाहिए। वह इसके लिए तैयार भी है। आतंकवाद को जबाब देने में उसे महारथ हासिल है। सीमावर्ती क्षेत्रों के लिए इजरायल ने विशेष इंतजाम किए है। भारत और इजरायल मिलकर बेहतर कार्य कर सकते है। इसके अलावा पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान, सिंध में अलगाववादियों को समर्थन देकर भी पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सकता है। युद्ध अंतिम विकल्प हो सकता है। युद्ध के बाद ताशकंद और शिमला जैसे समझौते पाकिस्तान का मनोबल ब़ढ़ा है।

(लेखक विद्यांत हिन्दू पीजी कॉलेज में राजनीति के एसोसिएट पोफेसर हैं।)

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