पाकिस्तान से लड़ाई की उलझनें
इन्दर सिंह नामधारी
पुलवामा में भारतीय सैनिकों के साथ घटी दुखद घटना के बाद पूरा भारत आक्रोश में है। समाज के पत्येक तबके में पतिशोध की ज्वाला भड़क रही है। लोग भारत के सैनिकों की हत्या का बदला लेना चाहते हैं। पधानमंत्री के साथ-साथ विपक्ष भी पाकिस्तान को सबक सिखाने की मांग कर रहा है। पधानमंत्री जी स्वयं बार-बार दोहरा रहे हैं कि जवानों का खून व्यर्थ नहीं जाएगा। इस तरह के उत्तेजित वातावरण में कोई भी शासक किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाएगा कि आखिर पाकिस्तान को सबक सिखाया भी जाए तो कैसे? कई लोग तो पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने के भी खिलाफ हैं। एक जमाना था जब लाल बहादुर शास्त्राr ने वर्ष 1965 में पाकिस्तान को सबक सिखाया था। इसके बाद वर्ष 1971 में तो इन्दिरा गांधी ने भारत के पधानमंत्री के रूप में पाकिस्तान को दो टुकड़ों में विभक्त कर दिया था तथा बंगलादेश के नाम से एक नया देश वजूद में आ गया। लोग भूले नहीं होंगे कि बंगलादेश बनने के बाद पाकिस्तान के नब्बे हजार सैनिक भारत की सेना के नियंत्रण में आ गये थे तथा भारत उन पाक सैनिकों के साथ जैसा भी सलूक चाहता वह कर सकता था लेकिन स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने षिमला समझौता के अंतर्गत उन नब्बे हजार पाक सैनिकों को बाइज्जत पाकिस्तान भेजने का समझौता कर लिया। उपरोक्त घटनाओं से यह स्वयं सिद्ध हो जाता है कि पिछले सत्तर वर्षों में पाकिस्तान ने कई बार मुंह की खाई है लेकिन फिर भी वह अपने रवैये से बाज नहीं आता।
आज के दिन भी अधिकतर देशवासी मांग कर रहे हैं कि पाकिस्तान को सबक सिखाया जाना चाहिए। वर्ष 2019 भारत में संसदीय चुनावों का वर्ष है तथा कुछ ही महीनों में देश में वोट डाले जाने वाले हैं। संभव है कि मतदाताओं को रिझाने के लिए सरकार जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम उ"ा दे जिससे वह आक्रोश में आई भारत की जनता की सहानुभूति बंटोर सके। भाजपा के विभिन्न नेता भी बढ़चढ़ कर बयानबाजी कर रहे हैं तथा ऐसा कुछ कर दिखाने की मांग कर रहे हैं ताकि जनता को मोहित किया जा सके। वर्ष 2016 में उरी में घटी घटना के बाद भाजपा सर्जिकल स्ट्राइक करके पहले ही उसका राजनीतिक लाभ उ"ा चुकी है। मेरी समझ से देश के शीर्षस्थ पर बै"s व्यक्ति को तत्काल आवेश में आकर वर्ष 2016 वाला इतिहास नहीं दोहराना चाहिए क्योंकि अभी पाकिस्तान स्वयं भी लगभग तैयार बै"ा है कि वह भारत के किसी भी कदम का मुंहतोड़ जवाब दे सके। सैनिक कार्रवाई का कोई भी कदम जल्दबाजी में नहीं उ"ाया जाना चाहिए। कूटनीतिक दृष्टि से पाकिस्तान को अलग-थलग करने का अभियान तेज करके उसे एक उग्रवादी देश के रूप में चिन्हित करवाने के पयास होने चाहिए। यह भी पहला अवसर है जब भारत के बदले फ्रांस ने अजहर मसूद को आतंकवादी घोषित करने का पस्ताव सुरक्षा परिषद में लाने का वचन दिया है। यह भी पहली बार है कि चीन ने पुलवामा में हुए हमले में निन्दा करते हुए अपनी सहभागिता दिखाई है। चीन के इस कदम से यह कदापि नहीं समझा जाना चाहिए कि वह पूरी तरह भारत के पक्ष में आ गया है। भारत-पाक संघर्ष के दौरान चीन कभी नहीं चाहेगा कि वह मूकदर्शक बना रहे। चीन के पास ऐसे कई हथकंडे हैं जिनसे वह भारत के किसी भी अभियान में पलीता लगा सकता है। एक सप्ताह पहले ही जब पधानमंत्री ने अरुणाचल पदेश का चुनावी दौरा किया तो चीन ने अपना पुरजोर विरोध पकट किया है। दलाईलामा की अरुणाचल यात्रा पर चीन पहले भी आपत्ति जाहिर करता रहा है। इस आलोक में यदि पाकिस्तान के साथ भारत का संघर्ष होता है तो चीन शैतानी करने से कभी बाज नहीं आएगा तथा वह चाहेगा कि भारत की सेनाओं का ध्यान चीन की ओर हो जाए और पाकिस्तान भारत से अच्छी तरह निपट ले।
इस आलोक में भारत बड़ी नाजुक स्थिति से गुजर रहा है क्योंकि भारत की आंतरिक स्थिति भी आज बहुत "ाrक नहीं है। जिन दिनों वर्ष 1971 में बंगलादेश का निर्माण हुआ था उन दिनों भारत में हिन्दुओं एवं मुसलमानों में कहीं तनाव नहीं दिखा था। इतना ही नहीं वर्ष 1965 के भारत-पाक युद्ध में भी भारत के मुसलमानों में कोई पतिक्रिया नहीं हुई लेकिन आज की स्थिति बदली हुई है। इस तथ्य को स्वीकार करना पड़ेगा कि पिछले पांच वर्षों में भाजपा ने अपने शासनकाल में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाने में बड़ी भूमिका अदा की है। आजकल देश के कई शहरों में नवयुवक तिरंगा-यात्रा के नाम पर मुस्लिम बाहुल्य मुहल्लों में घुस कर आपत्तिजनक नारे लगाते हैं तथा अनेक शहरों में तिरंगा-यात्रा के नाम पर सांप्रदायिक झड़पें भी हो चुकी हैं। देश के अन्य भागों में पढ़ रहे कश्मीरी विद्यार्थियों पर हमले होने के समाचार भी पकाशित हुए हैं जिसके चलते मुस्लिम समाज पसन्न नहीं हैं। तीन तलाक के नाम पर वर्तमान सरकार पहले ही मुसलमानों को नाराज कर चुकी है। सरकार की नीयत पर इसलिए भी शक हो जाता है क्योंकि उसने तीन तलाक पर दोबारा अध्यादेश लाकर यह सिद्ध कर दिया है कि वह किसी भी रूप में उस नियम में संशोधन नहीं करना चाहती है। वर्तमान सरकार के अंतिम राज्यसभा के सत्र में भी तीन तलाक के विधेयक को पस्तुत नहीं किया गया क्योंकि सरकार जानती थी कि वह राज्यसभा से इसे पारित नहीं करवा सकेगी जबकि लोकसभा से यह विधेयक पहले ही पास हो चुका है। इसमें दो राय नहीं कि मुस्लिम समाज वर्तमान शासन में अपने आपको पुंठित पा रहा है इसलिए यदि भारत-पाक संघर्ष होता है तो अतिउत्साहित तथाकथित देशभक्त लोगों के नारें से देश में तनाव पैदा होगा तथा राजनीतिक स्थिति काफी बिगड़ जाएगी। तनावपूर्ण वातावरण में देश के संसदीय चुनाव भी पभावित होंगे क्योंकि सत्ता पक्ष एवं विपक्ष एक दूसरे पर कस कर वार करेंगे। दो दिन पूर्व ही भाजपा के अध्यक्ष श्री अमित शाह ने एक जनसभा में भाषण देते हुए कटाक्ष किया है कि आज का शासन भाजपा का है कांग्रेस का नहीं। कांग्रेस ऐसी पार्टी है जो पाकिस्तान की बोली बोलती है जबकि भाजपा पाकिस्तान को मुंहतोड़ उत्तर देती है। इसके जवाब में कांगेस के पवक्ता रणदीप सूरजेवाला ने अमर उजाला अखबार में छपी फोटो को दिखाते हुए पत्रकारों को बताया कि जिस समय पुलवामा में देश के सैनिक शहीद हो चुके थे उसके तीन घंटा बाद तक पधानमंत्री जी अपनी एक फिल्म के लिए शूटिंग कराते रहे तथा देश में शोक मनाने की घोषणा भी नहीं की। पक्ष-विपक्ष दोनों ओर से अभी और अधिक कशमकश पैदा होगी क्योंकि भाजपा भर्सक पयास करेगी कि नरेंद्र मोदी को सबसे बड़ा देशभक्त बताकर जनता की सहानुभूति बंटोर जबकि विपक्ष नहीं चाहेगा कि वह पुलवामा घटना का एकतरफा लाभ उ"ा सके। इस तनावपूर्ण वातावरण में चुनावों के दौरान किसकी तूणीर से कौन-सा तीर चलेगा यह कह पाना मुश्किल है क्योंकि दोनों पक्ष चाहेंगे कि वे अपनी-अपनी देशभक्ति का पिटारा खोलकर रखें।
(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)