इसे पाक पर लगाम लगाने का अंतिम अवसर समझे मोदी सरकार
आदित्य नरेन्द्र
गत 14 फरवरी को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आत्मघाती हमले के बाद पूरे देश में पाकिस्तान और उसकी सेना व आईएसआई द्वारा समर्थित आतंकी गुटों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की मांग की जाने लगी। इस हमले की जिम्मेदारी जैश द्वारा लिए जाने पर भारत ने उसके विरुद्ध एक बड़ी कार्रवाई को अंजाम देते हुए एलओसी पार कर खैबर पख्तूनख्वाह में जैश के ठिकाने को बर्बाद कर दिया। यह कार्रवाई जैश और पाक सेना के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं थी। यह कोई छिपा हुआ तथ्य नहीं है कि भारत से संबंधित मामलों में अंतिम फैसला पाक सेना का ही होता है। पाक सेना ने अपने देशवासियों को यह कहकर बहका रखा है कि भारत उनके अस्तित्व को खत्म कर देने पर आमादा है और सिर्प पाकिस्तानी सेना ही उसे ऐसा करने से रोक सकती है। ऐसी स्थिति में भारतीय वायुसेना द्वारा पाकिस्तान में घुसकर जैश के अड्डे तबाह कर देने से पाक जनता में बनी पाकिस्तानी सेना की देश को बचाने वाली तस्वीर धुंधली होने का खतरा बढ़ गया था। पाकिस्तानी प्रबुद्ध जनता यह सवाल पूछ सकती थी कि हम अपने टैक्स का जो पैसा पाक सेना पर खर्च कर रहे हैं वह कितना जायज है। वह यह भी पूछ सकते थे कि यदि भारतीय वायुसेना बिना किसी प्रतिरोध के पाकिस्तान में 80 किलोमीटर तक कार्रवाई करके सुरक्षित रूप से वापस लौट जाएगी तो हमें ऐसी सेना की क्या जरूरत है। ऐसे में पाक सेना पर कुछ कर दिखाने का दबाव था। जिसके चलते उसने बुधवार को भारतीय वायुसीमा का उल्लंघन कर कार्रवाई का असफल प्रयास किया। इसी दौरान उनका एक एफ-16 लड़ाकू विमान नष्ट हो गया और हमारे एक जांबाज पायलट अभिनंदन अपने मिग-21 के क्षतिग्रस्त होने पर पैराशूट के जरिये नीचे पीओके में उतरे जहां उन्हें पकड़ लिया गया। फिलहाल उनकी स्वदेश वापसी हो चुकी है। लेकिन पुलवामा हमले के बाद पिछले दो सप्ताह में पाक सरकार और सेना ने जो भारत विरोधी कदम उठाए हैं उससे उसकी मंशा पर सवाल खड़े होते हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान यह तो कहते हैं कि जंग हुई तो वह किसी के काबू में नहीं रहेगी लेकिन वह यह नहीं बताते कि जंग के हालात पैदा करने वाले आतंकी गुटों के खिलाफ वह क्या कार्रवाई करने जा रहे हैं। सबूत मांगने की आड़ में मामले को टाल देने का जो चिरपरिचित तरीका पाकिस्तान अपनाना चाहता है वह अब पुराना पड़ चुका है। उसके इसी रुख को देखते हुए अब भारत में यह मांग जोरशोर से की जा रही है कि जिन आतंकी गुटों को पाकिस्तान भारत के खिलाफ एक एसेट समझता है उसे वह अपने आप कभी खत्म नहीं करेगा और यह आतंकी गुट गाहे-बगाहे भारत को परेशान करते रहेंगे। ऐसे में जरूरी है कि पाक पर पड़ रहे अंतर्राष्ट्रीय दबाव का फायदा उठाकर भारत सरकार इस अवसर को पाक पर लगाम लगाने का अंतिम अवसर समझे और उसी के अनुरूप आर्थिक, राजनयिक और सैनिक कार्रवाई करे। क्योंकि यह जरूरी नहीं कि निकट भविष्य में हमें ऐसा मौका फिर मिले।
दरअसल भारत के मामले में पाकिस्तान में उसकी सेना का असर इतना ज्यादा है कि वह दोनों देशों के बीच किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि को भी कोई महत्व नहीं देता। दोनों देशों द्वारा की गई मोस्ट फेवर्ड नेशन (विशेष तरजीही देश) संधि इसका ज्वलंत उदाहरण है। पाक सेना आर्थिक नुकसान उठाकर भी भारत से दुश्मनी निभाना खत्म नहीं करना चाहती। क्योंकि ऐसा करने से देश में उसकी हैसियत पहले जैसी नहीं रह जाएगी। आज पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति बेहद पतली है। उसका रिजर्व अपने पड़ोसी युद्धग्रस्त देश अफगानिस्तान से भी कम है। उसके पास महज सात-आठ सप्ताह तक ही आयात करने लायक विदेशी मुद्रा है। जिस देश के पास अपने लड़ाकू जहाज उड़ाने के लिए भी तेल की कमी हो वह भारत से सीधे युद्ध की हिम्मत नहीं कर सकता। लेकिन भारत के साथ शांति से रहना भी उसे गवारा नहीं। एक तरफ इमरान खान की शांति की गुहार और दूसरी तरफ एलओसी पर फायरिंग, यह दोनों चीजें साथ-साथ हों तो पड़ोसी देश की नीयत पर सवाल उठना स्वाभाविक ही है। इसी को देखते हुए अब यह मांग जोर पकड़ रही है कि रक्षात्मक नीतियों को तिलांजलि दी जाए। आखिरकार भारत में ही हम अपनी जानमाल का नुकसान क्यों बर्दाश्त करते रहे। इसे अब पाकिस्तान और पीओके की तरफ शिफ्ट करने का समय आ गया है। अभी तक हमारा रक्षा मंत्रालय रक्षा विश्लेषकों की बजाय नेताओं के राजनीतिक दृष्टिकोण को महत्व देता रहा है जिसके चलते कई अवसर हमारे हाथ से निकल चुके हैं। सामरिक दृष्टि से यह एक ऐसी भूल है जिसका परिणाम देश आज तक भुगत रहा है। पाक पर कार्रवाई के दौरान विश्व समुदाय को साथ लेकर चलना एक अच्छी नीति हो सकती है पर अपने दूरगामी राजनीतिक, आर्थिक हितों के चलते विश्व समुदाय के देश अंत तक हमारे साथ खड़े न रहें तो हमें उस स्थिति के लिए भी तैयार रहना होगा। यह ठीक है कि पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान परमाणु हमले का डर हमेशा बना रहेगा लेकिन क्या पाकिस्तान की सरकार और सेना कुछ आतंकियों को बचाने के लिए अपने पूरे देश को दांव पर लगाने की हिमाकत कर सकेगी। शायद नहीं, और यहीं से भारत की जीत का रास्ता निकलता है।