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सरकार प्रचार का तरीका बदले

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:5 March 2019 3:26 PM GMT
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श्याम कुमार

जब सरकारें देश एवं देशवासियों के हित में दिए गए सुझावों पर ध्यान न दें तथा प्रशासन के मूर्खतापूर्ण कृत्यों को ही सही मान लें तो परिणाम वही होता है, जो हमारे यहां देखने को मिल रहा है। केंद्र सरकार के मुखिया के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा राज्य सरकार के मुखिया के रूप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ देश एवं प्रदेश को उन्नति के शिखर पर ले जाने के लिए पूरी तरह समर्पित भाव से जुटे हुए हैं, किन्तु उनके प्रयासों पर जाने-अनजाने पानी फिर रहा है। मैं पिछले महीनों में अपने आलेखों द्वारा इस ओर अनेक बार सरकार का ध्यान आकृष्ट कर चुका हूं, किन्तु मुश्किल यह है कि मुखिया तक अब कोई अच्छी बात पहुंच पाना असंभव हो गया है। केंद्र सरकार तो दूर, उत्तर प्रदेश में भी यही वास्तविकता है। वीर बहादुर सिंह के बाद प्रायः हर मुख्यमंत्री अधिकारियों के घेरे में ऐसा घिरने लगा है कि उन अधिकारियों की इच्छा के बिना मुख्यमंत्री से कोई मिल ही नहीं सकता। मुख्यमंत्री को 'चंदा मामा' बना दिया जाता है, जिन्हें देखा तो जा सकता है, लेकिन उन तक पहुंचा नहीं जा सकता और न उन तक जनहित के सुझाव पहुंचाए जा सकते हैं। इससे नुकसान किसी अन्य का नहीं, बल्कि शासन के मुखिया व सरकार का ही होता है तथा मुखिया के जनकल्याणकारी प्रयासों को असफल कर देने के रूप में होता है। उत्तर प्रदेश में तो यह स्थिति है ही, केंद्र सरकार में भी यही दशा है। इसीलिए भले ही आंकड़े दिए जाएं, परंतु यथार्थ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनगिनत क्रांतिकारी प्रयासों का पूरा लाभ जनता को नहीं मिल पा रहा है।

कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं। मुझे प्रतिदिन गरीब तबके के औसतन एक या दो ऐसे लोग मिलते हैं, जो 'प्रधानमंत्री आवास योजना', 'आयुष्मान योजना' आदि विभिन्न योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से यह पूछते हैं कि उन योजनाओं के सम्बंध में वे कहां जाएं और किससे मिलें? ऐसी पूछताछ करने वाले लोग लखनऊ में तो मिलते ही हैं, अन्य जनपदों में भी मैं जहां जाता हूं, मिला करते हैं। इनमें वे लोग होते हैं, जो वास्तव में बहुत गरीब हैं तथा उनके पास आवास आदि नहीं हैं। मुझे बड़ी संख्या में ऐसे गरीब लोग भी मिलते हैं, जिनके राशनकार्ड नहीं बने हैं तथा यदि बने भी हैं तो भ्रष्टाचार के कारण उन लोगों को समुचित रूप में खाद्यान्न नहीं प्राप्त होता है। मोदी सरकार की 'प्रधानमंत्री आवास योजना', 'आयुष्मान योजना' आदि क्रांतिकारी रूप में आम जनता का कल्याण करने वाली योजनाओं के बारे में मैंने अनेक बार विभिन्न अधिकारियों से पूछा कि उन योजनाओं के लिए इच्छुक लोगों को कहां किस कार्यालय में जाना चाहिए? आश्चर्यजनक रूप से अब तक मुझे कोई भी अधिकारी उक्त जानकारी नहीं दे पाया, क्योंकि स्वयं उसे भी कुछ नहीं पता था। लखनऊ ही नहीं, अन्य नगरों में भी मुझे यही अनुभव हुआ। मुझे जानकारी उपलब्ध कराने के लिए जब मेरे किसी परिचित अधिकारी ने दूसरे किसी अन्य अधिकारी या कर्मचारी से उस बारे में पूछा तो देखा गया कि उन लोगों को भी कोई जानकारी नहीं थी। मुझे आश्चर्य होता है कि जिन लोगों को उन योजनाओं का लाभ मिल रहा होगा, उन्हें कहां से जानकारी प्राप्त हुई होगी!

केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार के प्रचार विभाग बड़े-बड़े अखबारों में विज्ञापन देकर मान लेते हैं कि सरकार की योजनाओं का लाभ आम जनता तक पहुंच गया। उन विज्ञापनों में सिर्फ यह उल्लेख रहता है कि सरकार की अमुक-अमुक जनकल्याणकारी योजनाएं हैं। जबकि मैं अनेक बार अपने आलेखों में लिख चुका हूं तथा प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री तक अपना यह सुझाव बार-बार भेज चुका हूं कि केवल बड़े-बड़े अखबारों में भारी दरों पर विज्ञापन देना सरकारी धन की बरबादी करना है। उन्हें दिए जाने वाले विज्ञापन निरर्थक सिद्ध होते हैं। मैं तमाम बार यह सुझाव दे चुका हूं कि अखबारों में विज्ञापनों में यह विस्तृत जानकारी दी जानी चाहिए कि सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ उ"ाने के इच्छुक लोग कहां, किस दफ्तर में जाकर किससे मिलें और कैसे जरूरी प्रक्रियाओं को पूरा करें? यदि उन योजनाओं से सम्बंधित कोई फॉर्म आदि हो तो विज्ञापनों में उन फॉर्मे का प्रारूप भी प्रकाशित कर जनता को समझाया जाना चाहिए कि लोग प्रक्रियाओं को कैसे पूरा करें तथा किस प्रकार फॉर्म आदि भरे जाएं। विज्ञापन में विस्तार में बड़े सरल ढंग से सारी बातें स्पष्ट की जानी चाहिए, ताकि कम पढ़े-लिखे लोग भी आसानी से सम्पूर्ण बातें समझ सकें। विज्ञापनों में यह भी अवगत कराया जाना चाहिए कि यदि सम्बंधित विभाग में जाने वाले इच्छुक व्यक्ति से वहां कोई व्यक्ति घूस मांगता है तो वह पीड़ित व्यक्ति कहां जाकर किससे शिकायत करे? सम्पूर्ण व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि इच्छुक व्यक्ति को लेषमात्र न तो क"िनाई हो और न इधर-उधर भटकना पड़े। सम्बंधित सरकारी विभाग में तैनात अधिकारियों व कर्मचारियों का स्वभाव अत्यंत मृदु एवं मददगार होना चाहिए। यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी आने वाले इच्छुक व्यक्ति को तंग करता है या बार-बार आने के लिए विवश करता है तो उस अधिकारी व कर्मचारी को कड़ा दण्ड दिया जाना चाहिए।

सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ उ"ाने के इच्छुक लोगों को अखबारों में विज्ञापनों के माध्यम से तो पूरी जानकारी दी ही जानी चाहिए, किन्तु जानकारी देने के लिए अन्य अनेकानेक माध्यम भी अपनाए जाने चाहिए। शहरों के सभी मुहल्लों में तथा गांवों में भी थोड़ी-थोड़ी दूर पर ऐसी प्रचार-फिल्में दिखाई जानी चाहिए, जिनमें वे समस्त जानकारियां विस्तार में बताई जाएं, जिनका ऊपर मैंने उल्लेख किया है। क"पुतली-प्रदर्शन, संगीत-नृत्य के कार्यक्रम, पथ-नाटिकाओं आदि विभिन्न माध्यमों से व्यापक पैमाने पर प्रचार-कार्य होने चाहिए। सरकार की योजनाओं के बारे में विस्तार में राई-रत्ती जानकारी दी जानी चाहिए। बड़े अखबारों के साथ छोटे अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं, स्मारिकाओं आदि में भी प्रचार हेतु विज्ञापन अधिक से अधिक दिए जाने चाहिए। यहां एक घटना याद आ रही है। सुविख्यात आईसीएस अधिकारी डॉ. जनार्दन दत्त शुक्ल उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद के अध्यक्ष थे, जिसके साथ वह 'उत्तर प्रदेश एग्रो' के भी अध्यक्ष थे। वहां वह छोटे अखबारों, पत्रिकाओं एवं स्मारिकाओं में उन्मुक्त रूप से विज्ञापन देने की संस्तुति कर दिया करते थे। उस समय जोशी, जिनका पूरा नाम भूल रहा हूं, 'एग्रो' के प्रबंध निदेशक थे। एक बार जब उन्होंने डॉ. जनार्दन दत्त शुक्ल से उदारतापूर्वक विज्ञापनों की संस्तुति न करने के लिए अनुरोध किया तो डॉ. जनार्दन दत्त शुक्ल ने उन्हें यह समझाया था कि बड़े अखबारों से अधिक इन छोटे अखबारों, पत्रिकाओं, स्मारिकाओं आदि में प्रकाशित विज्ञापनों का प्रभाव होता है। उन्होंने कहा था कि इनमें प्रकाशित विज्ञापन लोग वास्तव में बड़े चाव से पढ़ते हैं, जबकि बड़े अखबारों में प्रकाशित विज्ञापनों पर प्रायः लोग नजर डाले बिना ही पृष्" पलट देते हैं।

सरकारी योजनाओं का प्रचार करने वाले जो बड़ी-बड़ी होर्डिंगें सड़कों पर लगाई जाती हैं, वे आमतौर पर बिलकुल व्यर्थ एवं सरकारी धन की बरबादी सिद्ध होती हैं। शहरों में सड़कों पर खड़े होकर उन होर्डिंगों में दिए गए लम्बे चौड़े विवरणों को पढ़ना किसी के लिए संभव नहीं होता है। हां, गांवों में उनका महत्व हो सकता है। लेकिन वहां होर्डिंगों में भी यह विस्तृत जानकारी दी जानी चाहिए कि इच्छुक लोग योजना का लाभ उ"ाने के लिए कहां और किससे सम्पर्क करें? भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश-मुख्यालय एवं जनपदों के पार्टी-कार्यालयों में भी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं की आम जनता को विस्तार में पूरी जानकारी दिए जाने एवं मदद करने की व्यवस्था होनी चाहिए।

वर्तमान समय में पार्टी के इन कार्यालयों में आम जनता नहीं दिखाई देती, बल्कि ऐसे लोग अधिक दिखाई देते हैं, जो हर सत्ताधारी दल के साथ जुड़ जाया करते हैं। प्रदेश-मुख्यालय में जनता व कार्यकर्ताओं की समस्याओं की नित्य सुनवाई किए जाने की व्यवस्था भी अनुचित रूप से बंद कर दी गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यदि चाहते हैं कि उनकी सरकार की चमत्कारिक जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ गरीबों, किसानों व अन्य जरूरतमंद तबकों तक सही-सही पहुंचे तो उन्हें सरकारी प्रचार के तौर-तरीकों में आमूल परिवर्तन करना होगा, वरना अभी तो उन योजनाओं का लाभ गरीब तबका कैसे उ"ाए, यह बताने वाला ही कोई नहीं है।

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