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शीशे के घर में बै"कर दूसरों पर पत्थर फेंकना उचित नहीं

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:16 March 2019 3:57 PM GMT
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इन्दर सिंह नामधारी

स्कूली जीवन में हमलोगों के शिक्षक अकसर उपरोक्त शीर्षक वाली कहावत सुनाया करते थे जिसका अभिप्राय यही हुआ करता था कि किसी व्यक्ति को दूसरे की आलोचना उस हालत में नहीं करनी चाहिए जिस किस्म की हालत से वह स्वयं गुजर रहा हे। आजकल देश के प्रधानमंत्री मान्यवर नरेंद्र मोदी जी कुछ उपरोक्त शीर्षक वाला काम कर कर रहे हैं क्योंकि वे भी शीशे के मकान में बै"कर दूसरों पर पत्थर फेंक रहे हैं। ऐसी हरकत कोई इंसान तब करता है जब या तो उसको सुनने वाले लोग अंधभक्त हों या उनको स्वयं ही इस हकीकत का इल्म न हो कि वे क्या बोल रहे हैं? वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव घोषित हो चुके हैं तथा अन्य पार्टियों के नेताओं की तरह माननीय प्रधानमंत्री भी देश के विभिन्न राज्यों का सघन दौरा कर रहे हैं। मैं उनके भाषणों को बड़ी गंभीरता से सुना करता हूं और जब मुझे लगता है कि वे अप्रसांगिक बोल रहे हैं तो मैं कलम चलाने से नहीं हिचकता। आजकल के अपने भाषणों में प्रधानमंत्री जी विपक्ष के ग"बंधन को महामिलावटी ग"बंधन कहकर उनका उपहास उड़ा रहे हैं जबकि वे स्वयं ही विपक्ष के ग"बंधनों की संख्या से कहीं अधिक दलों के साथ ग"बंधन कर चुके हैं। इस परिस्थिति में यह बात समझ से परे है कि विपक्ष का ग"बंधन महामिलावटी कैसे हो गया और प्रधानमंत्री जी का ग"बंधन स्वाभाविक कैसे हो गया? यदि देश भर के राज्यों में भाजपा द्वारा विभिन्न दलों के साथ किए गए ग"बंधन करने वाले दलों को गिना जाए तो संख्या चालीस से कहीं अधिक होती है जबकि विपक्ष के ग"बंधन में इतने दल शामिल नहीं हैं। विभिन्न राज्यों में विपक्ष ग"बंधन तो कर रहा है लेकिन प्रधानमंत्री जी हैं कि विपक्ष के ग"बंधन को महामिलावटी ग"बंधन कहकर उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। काश! प्रधानमंत्री जी ने अपने ग"बंधन के दलों को ध्यान से झांका होता। भाजपा के ग"बंधन का सबसे बड़ा दल महाराष्ट्र की शिव सेना है जो चुनाव घोषित होने के कुछ ही दिन पूर्व पूर्ण बगावती तेवर में थी।

मुझे उस समय हैरत हुई थी जब शिव सेना के सुप्रीमों उद्धव "ाकरे ने अपने भाषण में राहुल गांधी के भाषण की नकल करते हुए 'चौकीदार चोर है' तक कह डाला था। शिव सेना ने यह भी घोषणा कर रखी थी कि वह आगामी चुनावों को अकेले ही लड़ेगी लेकिन बड़ी मुश्किल से अमित शाह जी ने शिव सेना को फिर से मना लिया और शिव सेना ने भाजपा से पिछली बार से अधिक सीटें लेकर समझौता किया। इतना ही नहीं डीएनए में शक होने का इल्जाम लगाकर जिस नीतीश कुमार जी को वर्ष 2014 के चुनावों में प्रधानमंत्री जी ने कमर से नीचे वार करते हुए चिढ़ाया था उसी नीतीश कुमार से लोकसभा की दो सीटों के बदले बराबर की सीटें देकर उनको मनाने का काम किया। वास्तव में इस तरह के ग"बंधन को ही महामिलावटी ग"बंधन कहा जाना चाहिए।

पूर्वोत्तर भारत में तो भाजपा ने कुछ वैसी पार्टियों से भी समझौता किया है जिनके लोग नाम तक नहीं जानते। यूपी में ओम प्रकाश राजभर की भासपा पार्टी से भाजपा ने ऐसा हास्यास्पद ग"बंधन किया कि भाजपा को रोज ही राजभर की खरी-खोटी सुननी पड़ती है। राजभर ने यूपी सरकार के ग"बंधन में रहते हुए ऐसे-ऐसे बयान दिए जो किसी भी स्वाभिमानी पार्टी को चुभ सकते थे। एक बार तो उन्होंने बड़ी साफगोई के साथ भाजपा की आलोचना करते हुए उनसे नाता तोड़ देने की घोषणा तक कर दी थी।

राजभर भाजपा की राम मंदिर बनाने की नीतियों की भी कटु आलोचना करते रहे लेकिन चुनाव आते ही भाजपा ने उनको मनाकर ही दम लिया तथा येन-केन-प्रकारेण अपने ग"बंधन में शामिल कर लिया। उपेन्द्र कुमार कुशवाहा की पार्टी रालोसपा तो भाजपा का ग"बंधन छोड़कर विपक्ष के ग"बंधन में शामिल हो चुकी है। अपना दल पार्टी की नेता अनु प्रिया पटेल ने भी जब भाजपा को आंखें दिखाईं तो उनके सामने भी भाजपा ने झुककर समझौता कर लिया। लोजपा नेता रामविलास पासवान एवं उनके बेटे चिराग पासवान ने जब राफेल के सौदे पर राहुल गांधी की तरह अंगुली उ"ाने की हरकत कर दी तो भाजपा लोजपा की शर्तों पर ग"बंधन करने के लिए तैयार हो गई तथा राज्यसभा की एक सीट रामविलास पासवान जी के लिए पहले ही सुरक्षित कर दी गई। विभिन्न दलों द्वारा देश के अन्य राज्यों में भाजपा द्वारा किए गए ग"बंधन इतने नाजुक हैं कि वे किसी भी समय टूट सकते हैं लेकिन अपनी इन सभी खामियों को जानते हुए प्रधानमंत्री जी विपक्ष के ग"बंधन को महामिलावटी ग"बंधन कहते हैं तो लोगों को हंसी आ जाती है।

वर्ष 2019 के चुनावों को जीतने के लिए भाजपा ऐड़ी-चोटी का पसीना एक कर रही है तथा विपक्ष के विभिन्न दलों के किसी भी व्यक्ति को वो भाजपा में मिलाने के लिए तैयार है। हंसी तो तब आई जब केरल के एक कांग्रेसी नेता टॉम वडक्कन को भाजपा में शामिल करवा कर पार्टी ने अपनी बड़ी उपलब्धि बताते हुए उन्हें फूल-मालाओं से लाद दिया। वडक्कन को सोनिया गांधी का करीबी कहा जाता था इसलिए उसको तोड़कर भाजपा ने जैसे कोई आश्चर्यजनक काम कर दिया हो। जिस ढंग से भाजपा दूसरे दलों के छोटे-बड़े एवं जाने-अनजाने नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करके देश में अपनी जीत का वातावरण बना रही है उससे यही आभास मिलता है कि वह भीतर से काफी घबराई हुई है। भाजपा के साथ दिक्कत यह है कि आज के दिन उसका कोई भी ऐसा नेता नहीं जो प्रधानमंत्री को कुछ कहने की या सलाह देने की हिम्मत जुटा पाता हो। प्रधानमंत्री जी के भाषणों में कई ऐसे विरोधाशी शब्द भी सुनने को मिलते हैं जो भारत जैसे प्राचीन एवं महान देश के प्रधानमंत्री द्वारा नहीं बोला जाना चाहिए। प्रधानमंत्री जी ने अपने एक भाषण में यहां तक कह दिया कि उनकी फितरत ऐसी है कि वह बर्दाश्त नहीं कर सकते और वे घर में घुसकर मारने से भी बाज नहीं आएंगे। उपरोक्त किस्म के उदाहरण देने के पीछे मेरी मानसिकता यह है कि ऊंचे पदों पर बै"s लोगों की धमकी भरी भाशा भी सारगर्भित होनी चाहिए।

विपक्ष को बार-बार महामिलावटी ग"बंधन कहकर आखिर प्रधानमंत्री जी जनता को क्या संदेश देना चाहते हैं? वर्ष 1980 के बाद की सभी सरकारें लगभग ग"बंधन की सरकारें ही रही हैं तथा अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में भी 23 दल शामिल थे। वाजपेयी जी तो इतने दलों के साथ ग"बंधन करके सरकार चलाते रहे लेकिन दूसरे किसी ग"बंधन की सरकार पर अंगुली तक नहीं उ"ाई। विपक्ष के ग"बंधन के दलों से अधिक दलों के साथ ग"बंधन करके प्रधानमंत्री जी आखिर किस मकसद से विपक्ष के ग"बंधन को महामिलावटी की संज्ञा देते हैं? यही कारण है कि मैंने इस लेख का नाम 'शीशे के घरों में बै"s हुए लोगों को दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए' रखा है।

(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)

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