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कांग्रेस के लिए बड़ा नुकसान है टॉम वडक्कन का भाजपा में जान

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:17 March 2019 3:29 PM GMT

कांग्रेस के लिए बड़ा नुकसान है टॉम वडक्कन का भाजपा में जान

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आदित्य नरेन्द्र

देश में जब भी कभी चुनावों की घोषणा होती है तो राजनेताओं के दल बदलने को लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत एक सामान्य सी बात समझी जाती है। लेकिन कभी-कभी इन सामान्य सी घटनाओं में भी व्यापक परिवर्तन के बीज छिपे हुए होते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही लग रहा है। पिछले दिनों भाजपा में शामिल होने वाले बड़े नेताओं की एक लंबी-चौड़ी लिस्ट हमारे सामने है। इसमें महाराष्ट्र से सुजय पाटिल, उड़ीसा से बलभद्र मांझी, जय पांडा, हरियाणा से अरविन्द शर्मा, केरल से टॉम वडक्कन और पश्चिम बंगाल से अनुपम हाजरा, सौमित्र खान और अर्जुन सिंह जैसे बड़े नाम शामिल हैं। गौरतलब है कि यह सभी राज्य राजनीतिक दृष्टि से भाजपा के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। भाजपा पिछले काफी समय से उड़ीसा, पश्चिम बंगाल और केरल में पैठ बनाने का प्रयास करती रही है। उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में तो पार्टी स्पष्ट रूप से आगे बढ़ती हुई दिखाई दे रही है लेकिन केरल के बारे में अभी ऐसा कहना जल्दबाजी होगी। ऐसे में पिछले दो दशकों से कांग्रेस की मीडिया विंग से जुड़े उसके राष्ट्रीय प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता रहे टॉम वडक्कन का भाजपा में जाना कांग्रेस के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं है। उनके पार्टी छोड़ने से कांग्रेस के बड़े नेता हैरान हैं क्योंकि किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी थी। टॉम पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से प्रेरित होकर कांग्रेस में आए थे। सोनिया गांधी से उनकी करीबी जगजाहिर थी। 1990 में जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस के अंदर एक मीडिया समिति का गठन किया था तो अपनी कारपोरेट की नौकरी छोड़कर कांग्रेस में आने वाले टॉम वडक्कन उस समिति का हिस्सा हुआ करते थे। यह अलग बात है कि जैसे-जैसे कांग्रेस में राहुल गांधी और उनके करीबियों की पकड़ मजबूत होती गई टॉम अपने आपको उपेक्षित-सा महसूस करने लगे। इस बात की पुष्टि उनके उस बयान से होती है जो उन्होंने भाजपा में शामिल होने के समय दिया था। इसमें उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में यूज एंड थ्रो कल्चर है और मुझे यह स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि मैंने अपने जीवन के 20 साल कांग्रेस को दिए लेकिन अब पार्टी में वंशवाद हावी होता जा रहा है। टॉम वडक्कन केरल के स्थानीय कांग्रेस नेताओं से भी निराश थे। 2009 में वह त्रिशूर से लोकसभा का टिकट लेना चाहते थे। पार्टी ने उन्हें शॉर्टलिस्ट भी किया लेकिन स्थानीय ईकाई के प्रबल विरोध के चलते उनका टिकट कट गया। उन्हें उम्मीद थी कि शायद 2014 में उन्हें टिकट मिल जाएगा। 2014 में टिकट के लिए प्रभावशाली ईसाई बिशप ने उनका समर्थन भी किया लेकिन उन्हें कांग्रेस की उम्मीदवारी फिर भी नसीब नहीं हुई। अब जब कांग्रेस का नेतृत्व पूरी तरह से राहुल गांधी के पास है तो लगता है कि त्रिशूर से टिकट पाने की उनकी बची-खुची उम्मीद भी खत्म हो गई होगी। ऐसे में जब भाजपा केरल में अपनी पकड़ मजबूत करने का प्रयास कर रही है तो उनके लिए अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने का यह एक बेहतर मौका था। क्योंकि भाजपा के पास केरल में बड़े और अनुभवी राजनेताओं की कमी है। टॉम भाजपा की केरल की रणनीति पर भी फिट बैठते हैं। 2011 की जनगणना के आधार पर राज्य में 54.7 प्रतिशत हिन्दू, 26.6 प्रतिशत मुस्लिम और 18.4 प्रतिशत ईसाई हैं। लेफ्ट पार्टियों का जनाधार हिन्दुओं के बीच अच्छा-खासा है जबकि कांग्रेस की पकड़ भी हिन्दुओं, मुस्लिमों और ईसाइयों के एक हिस्से पर है। वहां भाजपा के लिए जमीन तैयार होने में मुश्किलें आ रही थीं। राष्ट्रवाद जैसा मुद्दा दक्षिण तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देता है। ऐसे में सबरीमाला का मुद्दा भाजपा के सामने एक बड़े मौके की तरह आया। भाजपा ने इसके सहारे हिन्दुओं में अपनी पैठ बढ़ानी शुरू कर दी है। उधर केंद्र सरकार तीन तलाक के मुद्दे पर अध्यादेश लाकर मुस्लिम महिलाओं की सहानुभूति जुटाने का प्रयास कर रही है। लेकिन राज्य के तीसरे बड़े धार्मिक समूह में वह अभी तक प्रभावी रूप से सेंध लगाने में नाकामयाब रही थी। टॉम वडक्कन के भाजपा में शामिल होने से भाजपा को उम्मीद है कि केरल में उसे बड़ा फायदा मिलेगा। टॉम दक्षिण भारत खासकर केरल में कांग्रेस का बड़ा चेहरा रहे हैं। यदि वह भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं तो वहां भाजपा को जितना फायदा होगा कांग्रेस को उतना ही नुकसान होगा।

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