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आदर्श आचार संहिता की अनदेखी किसी के भी हित में नहीं

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:14 April 2019 5:27 PM GMT
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चुनाव आयोग ने देश में जैसे ही 2019 के आम चुनाव की घोषणा की, वैसे ही राजनीति की बिसात पर शह और मात का खेल शुरू हो गया। यह कोई नई बात नहीं है। ऐसा पहले भी होता रहा है लेकिन इस बार माहौल में तल्खी कुछ ज्यादा ही है। पक्ष-विपक्ष दोनों अपनी जीत के लिए हर संभव उपाय अपनाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी कोशिश में मर्यादाएं टूट रही हैं या फिर जानबूझ कर तोड़ी जा रही हैं। इसका परिणाम यह हो रहा है कि कोई न कोई पक्ष रोज किसी न किसी के खिलाफ शिकायत करने के लिए चुनाव आयोग के दरवाजे खटखटाता हुआ दिखाई दे रहा। निष्पक्ष चुनावों के लिए हम सभी को आदर्श चुनाव संहिता के उल्लंघन के इन मामलों को गंभीरता से लेना होगा। क्योंकि यह न केवल स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के खिलाफ हैं बल्कि स्वस्थ लोकतंत्र के भी खिलाफ हैं। दरअसल आदर्श चुनाव संहिता राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों के लिए बनाई गई एक नियमावली है जिसका पालन अनिवार्य है। इसके द्वारा चुनाव लड़ने वाले दलों एवं उम्मीदवारों को बताया गया है कि साफ-सुथरे और पक्षपात रहित चुनावों के लिए उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। लेकिन हैरानी की बात यह है कि चुनाव जीतने के लिए इसे जाने-अनजाने नजरंदाज किया जा रहा है। पिछले कई दिनों से आयोग को मिल रही शिकायतें इसका ज्वलंत प्रमाण हैं। विपक्ष ने जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बायोपिक को रोकने, नमो टीवी पर बैन और पीएम मोदी द्वारा बालाकोट हमले का जिक्र करने वाली उनकी अपील पर उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की वहीं सत्तापक्ष के नेताओं ने भी चुनाव आयोग पहुंचकर राहुल गांधी द्वारा पीएम मोदी को लेकर अभद्र भाषा के इस्तेमाल की शिकायत की। पहले चरण के चुनाव प्रचार के दौरान ही बसपा प्रमुख मायावती ने पश्चिम उत्तर प्रदेश की एक रैली में मुस्लिमों से एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ मतदान करने की अपील कर डाली। धार्मिक आधार पर की गई यह अपील बर्र के छत्ते में हाथ डालने के समान थी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसका जवाब देने में जरा भी देर नहीं लगाई और कह दिया कि अगर उनके साथ अली हैं तो हमारे साथ बजरंग बली हैं। अब बारी समाजवादी पार्टी के रामपुर से उम्मीदवार आजम खान की थी। उन्होंने बजरंग बली का नारा गढ़ दिया। इसी बीच कला से सुल्तानपुर से भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी का वह वीडियो भी वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने क्षेत्र के मुस्लिमों से कहा है कि यदि वह उन्हें वोट नहीं देंगे तो वह उनसे किसी काम की उम्मीद न रखें। आदर्श चुनाव संहिता के उल्लंघन के ऐसे मामले बड़ी संख्या में हैं। जहां तक सोशल मीडिया का सवाल है तो उस पर भी अभी तक कोई सार्थक रोक नहीं लगाई जा सकती है। जिस तेजी से सोशल मीडिया ने आम लोगों तक अपनी पहुंच बनाई है उसी तेजी से आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का खतरा भी बढ़ रहा है। देश में लगभग 90 करोड़ मतदाता हैं। इनके बीच चुनाव आयोग की विश्वसनीयता असंदिग्ध है। पिछले एक दशक से उसने मतदाताओं को शिक्षित करने का प्रयास भी किया है। इस सबके बावजूद अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। क्योंकि जब राजनीतिक दलों के लिए साम, दाम, दंड, भेद का इस्तेमाल कर चुनाव जीतना ही एकमात्र मकसद रह गया हो तो चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा होने के बाद से अब तक जो अनुमानित 2426.48 करोड़ रुपए की अवैध शराब, सोना, नशीली दवाएं व संदिग्ध नकदी पकड़ी गई है उसे देखकर कोई हैरानी नहीं होती। यह बरामदगी बताती है कि चुनाव जीतने के लिए चुनाव आयोग के निर्देशों को कितने बड़े पैमाने पर अनदेखा किया जा रहा है। यह किसी के भी हित में नहीं है। चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के साथ-साथ देश की जनता को भी इस पर विचार करने की जरूरत है। चुनाव आयोग जितना मजबूत और सक्रिय होगा लोगों को उनकी मनपसंद सरकार मिलने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी। चुनाव आयोग का उद्देश्य भी यही है कि लोगों को लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई उनकी मनपसंद सरकार मिले। यह आदर्श आचार संहिता के ईमानदारीपूर्वक पालन से ही संभव है।

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