Home » द्रष्टीकोण » यूनिवर्सल इनकम बेसिक स्कीम लागू कीजिए

यूनिवर्सल इनकम बेसिक स्कीम लागू कीजिए

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:22 April 2019 3:20 PM GMT
Share Post

डॉ. भरत झुनझुनवाला

चुनाव के इस मौसम में दोनों प्रमुख पार्टियों भाजपा तथा कांग्रेस के बीच मतदाता को लुभाने की घोषणाएं की जा रही हैं। पहले भाजपा के वित्तमंत्री ने अंतरिम बजट में ऐलान किया कि हर छोटे किसान के खाते में 6,000 रुपए की रकम प्रति वर्ष सीधे डाल दी जाएगी। इसके बाद कांग्रेस ने ऐलान किया कि यदि वह सत्ता में आई तो गरीब व्यक्ति को यानि केवल छोटे किसान को ही नहीं बल्कि देश के हर गरीब नागरिक के खाते में 6,000 रुपया प्रति माह या 72,000 रुपए प्रति वर्ष की रकम सीधे डाली जाएगी जिससे वह आपनी मौलिक जरूरतों को पूरा कर सकें। दोनों पार्टियों को यह समझ आ रहा है कि सरकारी योजनाओं के से गरीब को रहत पहुंचाने की योजनाएं सफल नहीं हुई हैं। इस प्रस्तावित नकद ट्रांसफर योजना का एक सीधा लाभ यह होगा कि गरीबी पूरी तरह दूर हो जाएगी बशर्ते सभी नागरिकों को इन योजनाओं में शामिल किया जाए। ऐसे नकद ट्रांसफर को यूनिवर्सल इनकम बेसिक स्कीम अथवा यूबीआईएस कहा जाता है। जैसे यदि केवल बीपील धारकों को यह रकम दी जाती है तो यह पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि कई अध्ययन बताते हैं कि तमाम गरीबों के पास बीपील कार्ड नहीं हैं। इसलिए यदि यह योजना सभी देशवासियों के उपर लगाई जाती है तो गरीबी निश्चित रूप से दूर हो जाएगी। इस योजना का दूसरा लाभ होगा कि अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था चल निकलेगी। गरीब के पास धन आएगा तो वह उस रकम से कपड़ा और साइकिल खरीदेगा और अर्थव्यवस्था में मांग और निवेश का सुचक्र स्थापित हो जाएगा। यही रकम यदि कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से व्यय की जाती है तो उसके एक हिस्से का रिसाव हो जाता है जैसे सोना खरीदने में वह रकम देश से बहार चली जाती है। सीधे नकद देने में यह रिसाव बंद हो जाएगा और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। तीसरा लाभ होगा कि तमाम कल्याणकारी योजनाओं में व्याप्त नौकरशाही के भ्रष्टाचार से मुक्ति मिल जाएगी। इन सभी लाभों को देखते हुए देशवासियों को सीधे रकम देने की योजना को लागू करना चाहिए। लेकिन सभी को संशय है कि इतनी बड़ी रकम कहां से आएगी? इस संशय को बल इस बात से भी मिलता है कि विश्व में केवल एक देश ने यूबीआईएस को प्रयोग के रूप में लागू किया गया था, फिनलैंड में और फिनलैंड ने इस योजना को केवल दो साल बाद ही त्याग दिया क्योंकि इस योजना को लागू करने का आर्थिक भार बहुत अधिक था। लेकिन मेरे गणित के अनुसार अपने देश में यह भय निर्मूल है मुक्ति हम बहुत बड़ी रकम कल्याणकारी योजनाओं पर व्यय कर रहे हैं। देश की सरकार यदि चाहे तो यूबीआईएस के लिए धन जुटा सकती है। गणित इस प्रकार है।

केंद्र सरकार द्वारा कल्याणकारी योजनाओं पर निम्न प्रकार के खर्च किए जा रहे हैंः खाद्य सब्सिडी पर 140,000 करोड़ रूपए प्रति वर्ष, रोजगार गारंटी एवं दूसरी कल्याणकारी योजनाओं पर 136,000 करोड़ एवं शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर 134,000 करोड़, कुल 410,000 करोड़। इस रकम का मेरे आंकलन में आधा यानि 205,000 करोड़ प्रशासनिक खर्च में जाता है। शेष का आधा यानि 102,000 करोड़ बीपीएल परिवारों को मिलता है और शेष का आधा 102,000 करोड़ एपीएल परिवारों को मिलता है जिसका बीपीएल को नुक्सान होगा। केंद्र सरकार द्वारा ही फर्टिलाइजर एवं पेट्रोलियम पर 100,000 करोड़ रुपए की सब्सिडी हर वर्ष दी जा रही है। इसे समाप्त कर दिया जाए तो मेरे आंकलन में बीपीएल परिवारों को इसका 5 प्रतिशत यानि 5000 करोड़ का नुकसान होगा। फर्टिलाइजर तथा पेट्रोलियम की सब्सिडी में उनका हिस्सा कम होगा क्योंकि इन माल की खपत बीपीएल द्वारा कम की जाती है। शेष 95,000 करोड़ का घाटा एपीएल परिवारों को होगा।

सरकार कुछ रकम अतिरिक्त टैक्स लगाकर अर्जित कर सकती है। अपने देश में पेट्रोल और डीजल की 14,532 करोड़ लीटर की खपत होती है। इस पर 10 रुपए प्रति लीटर का यूबीआईएस सैस लगा दिया जाए तो 140,000 करोड़ रुपए अर्जित हो सकते हैं। इसी प्रकार जीएसटी पर यदि 10 प्रतिशत यूबीआईएस सैस लगा दिया जाए तो 120,000 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष अर्जित हो सकते हैं। इन दोनों मदों पर 260,000 करोड़ रुपए अर्जित किए जा सकते हैं। इसमें बीपीएल पर भार 10 प्रतिशत यानि 26,000 करोड़ रुपए पड़ेगा, जबकि एपीएल पर भार 90 प्रतिशत यानि 234,000 करोड़ पड़ेगा क्योंकि पेट्रोल एवं अन्य वस्तुओं की अधिकाधिक खपत एपीएल परिवारों द्वारा ही की जाती है। केंद्र सरकार द्वारा आयकर पर यदि 10 प्रतिशत का यूबीआईएस सैस लगा दिया जाए तो 100 करोड़ रुपए अर्जित किए जा सकते हैं जिसका पूरा भार एपीएल परिवारों पर पड़ेगा क्योंकि बीपीएल परिवार आयकर नहीं देते हैं।

उपरोक्त गणना के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा 410,000 करोड़ विभिन्न सब्सिडियों को समाप्त करके, 100,000 करोड़ फर्टिलाइजर एवं पेट्रोलियम सब्सिडी समाप्त करके, 260,000 करोड़ रुपए पेट्रोल एवं जीएसटी पर सैस लगाकर और 100,000 करोड़ इनकम टैक्स पर सैस लगाकर अर्जित किए जा सकते हैं। यह कुल मिलाकर 870,000 करोड़ होता है। इस रकम से 135 करोड़ लोगों को 6000 रुपए प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष दिया जा सकता है। यदि पांच लोगों का परिवार माने तो यह रकम 30,000 करोड़ रुपए प्रति परिवार प्रति वर्ष अथवा 2500 रुपए प्रति परिवार प्रति माह बैठती है। इस रकम को देने में सरकार पर कोई अतिरिक्त भार नहीं पड़ेगा।

अब देखें कि बीपीएल परिवार पर इस योजना का क्या प्रभाव पड़ेगा। बीपीएल को कल्याणकारी योजनाओं के निरस्त होने से 102,000 करोड़ की हानि होगी। फर्टिलाइजर एवं पेट्रोलियम सब्सिडी समाप्त करने से 5,000 करोड़ की हानि होगी। पेट्रोल एवं जीएसटी पर यूबीआईएस सैस लगाने से 26,000 करोड़ की हानि होगी। कुल 133,000 करोड़ की हानि होगी। इसके सामने यूबीआईएस से बीपीएल परिवारों को कुल 870,000 करोड़ का एक-तिहाई यानि 287,000 करोड़ रुपए का लाभ होगा। इस प्रकार बीपीएल परिवारों को 154,000 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ होगा। एपीएल के लिए भी यह सौदा लाभ का है। उन्हें विभिन्न सब्सिडियों को समाप्त करने से 102,000 करोड़ रुपए की हानि होगी। फर्टिलाइजर एवं पेट्रोलियम की सब्सिडी को समाप्त करने से 95,000 करोड़ रुपए की हानि होगी। पेट्रोल और उएऊ पर यूबीआईएस सैस से 234,000 करोड़ की हानि होगी और इनकम टैक्स पर सैस लगाने से 100,000 करोड़ की हानि होगी। कुल हानि 531,000 करोड़ होगी। इसके सामने 870,000 करोड़ रुपए की कुल यूबीआईएस राशि में इनका दो तिहाई हिस्सा होगा यानि इन्हें 574,000 करोड़ रुपए मिलेंगे। इस प्रकार इन्हें भी 43,000 करोड़ रुपए का शुद्ध लाभ होगा। अंतिम आंकलन है कि केंद्र सरकार अपने ही बल पर यूबीआईएस को लागू कर सकती है। वित्तमंत्री ने जो छोटे किसान को सीधे रकम देने का वादा किया है, उसका विस्तार करना चाहिए। कांग्रेस को भयग्रस्त होकर यूबीआईएस को केवल गरीबों पर लागू करने के स्थान पर सम्पूर्ण जनता पर लागू करना चाहिए।

Share it
Top