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ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध का असर

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:26 April 2019 3:27 PM GMT
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सुशील कुमार सिंह

इतिहास में झांका जाए तो भारत और ईरान का सदियों पुराना नाता परिलक्षित होता है। आधुनिक समय में दोनों देशों के बीच दोस्ती के मुख्य आधार में भारत की ऊर्जा जरूरत को देखा जा सकता है। हालांकि ईरान के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा शिया मुसलमानों का भारत में होना भी एक और आधार है। बीते 23 अप्रैल को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तेल खरीदने पर भारत समेत 8 देशों को दी गई छूट आगे न बढ़ाने का फैसला किया है। गौरतलब है कि अमेरिका ने 180 दिनों की यह छूट भारत समेत चीन, इटली, ग्रीस, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और तुर्की को दी थी जिसकी समय-सीमा आगामी 2 मई को खत्म हो रही है। अमेरिका और ईरान के बीच बरसों से अनबन चल रही है नतीजन अमेरिका परमाणु समझौते से भी बाहर हो गया था। इतना ही नहीं ईरान से तेल खरीदने वाले देशों को भी उसने धमकाया था और नवम्बर में ही यह प्रतिबंध लागू होना था पर भारत जैसे देशों को कुछ समय के लिए छूट बढ़ा दी थी। गौरतलब है विश्व के प्राकृतिक गैस का 10 फीसदी भंडार रखने वाला ईरान ओपेक देशों में दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है जिसके चलते भारत और ईरान के बीच ऊर्जा में सहयोग के व्यापक अवसर देखे जा सकते हैं। अमेरिका की इस पाबंदी का भारत के बाजार पर क्या असर होगा इसे लेकर चिंता बढ़ गई है। भारत में इन दिनों आम चुनाव पूरे उफान पर है और अमेरिका ने इस बीच एक अहम फैसला करते हुए ईरान पर तेल बेचने से पूरी तरह रोक लगा दी। पेट्रोलियम मंत्रालय की तरफ से भी यह इशारा दिख रहा है कि अब इस दिशा में कोई भी कूटनीतिक पहल अगली सरकार के आने के बाद ही संभव है।

पिछले वर्ष की शुरुआत में जब डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर नये सिरे से प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया था तभी से भारत व ईरान के बीच तेल व्यापार को बनाए रखने के लिए वैकल्पिक रास्ते खोजे जा रहे थे। भारत और ईरान के बीच संबंध हर लिहाज से वर्तमान में उचित कहे जाएंगे। अमेरिका ने ईरान को प्रतिबंधित किया है और भारत पर भी ईरान से संबंध न रखने का दबाव पहले भी बनाता रहा है। अमेरिका तो यह भी चाहता है कि भारत रूस से हथियार न खरीदे। भारत, ईरान के अलावा यूएई और सऊदी अरब से भी व्यापक पैमाने पर कच्चे तेल की खरीदारी करता है। ईरान की तुलना में इन देशों की खरीदारी ज्यादा महंगी होती है साथ ही प्रीमियम भी चुकाना होता है जबकि ईरान के साथ हिसाब-किताब अलग है। यहां से तेल सस्ता भी मिलता है साथ ही प्रीमियम भी नहीं देना पड़ता। इसके अलावा पैसा देने का वक्त भी बाकायदा मिलता है। अमेरिका किसी भी सूरत में नहीं चाहता कि ईरान परमाणु शक्ति सम्पन्न बने और मध्य पूर्व एशिया में उसका दबदबा बढ़े। यही कारण है कि वह पूरा जोर लगा रहा है कि बाकी दुनिया से उसका संबंध सामान्य न होने पाए। 1991 में शीत युद्ध खत्म होने के बाद सोवियत संघ का पतन हो गया तो दुनिया ने नई करवट ली। भारत का अमेरिका से संबंध स्थापित हो गए और अमेरिका ने भारत को ईरान के करीब आने से हमेशा रोका। वैसे ईरान को भी यह लगता था कि भारत, इराक के अधिक समीप है। शायद यही वजह है कि भारत की जरूरतों के हिसाब से ईरान से तेल आपूर्ति कभी उत्साहजनक नहीं रही। इसके पीछे एक कारण इस्लामिक क्रांति और इराक-ईरान युद्ध भी माने जाते हैं पर अब ऐसी बात नहीं रही। ईरान से प्रगाढ़ता को लेकर प्रधानमंत्री मोदी 22 मई, 2016 को दो दिवसीय यात्रा को लेकर वहां गए थे जहां कई महत्वपूर्ण समझौते हुए तभी पर चाबहार समझौते पर मुहर लगी थी जो रणनीतिक और कारोबारी दृष्टि से अहम माना गया और पाकिस्तान बाहर।

इजराइल और ईरान की दुश्मनी भी किसी से नहीं छुपी है। गौरतलब है कि ईरान में 1979 की क्रांति के बाद ईरान और इजराइल में दुश्मनी बढ़ी जो कभी कम नहीं हुई। इजराइल और भारत यदि करीब हैं तो ईरान के साथ भी अच्छी दोस्ती है। इतना ही नहीं फिलस्तीन से भी भारत की प्रगाढ़ता देखी जा सकती है। जबकि इजराइल के साथ उसका छत्तीस का आंकड़ा है। फिलहाल अमेरिका के फैसले से कच्चा तेल महंगा होने और इसके कारण देश की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ने की आशंका साफ-साफ दिख रही है। ईरान से तेल नहीं खरीद पाने का असर भारत पर कई तरीके से पड़ेगा। ईरान जैसे विश्वसनीय तेल कारोबारी का जहां उसे खोना पड़ेगा वहीं महंगा क्रूड ऑयल खरीदने से देश के तेल आयात बिल में भी भारी बढ़ोत्तरी हो जाएगी। वित्त वर्ष 2018-19 में भारत ने 125 अरब डॉलर का तेल आयात किया था जो वित्त वर्ष 2017-18 की तुलना में 42 फीसदी अधिक है। हालिया स्थिति को देखते हुए लगता है कि वित्त वर्ष 2019-20 में आयात बिल में व्यापक इजाफा होगा। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि भारत के कुल तेल खपत में घरेलू उत्पादन की हिस्सेदारी घटती जा रही है। गौरतलब है कि 6 साल पहले भारत अपनी आवश्यकता का 74 फीसदी तेल बाहर का आयात करता था जबकि साल 2017-18 के वित्त वर्ष से यह आंकड़ा 83 फीसदी हो गया। एक तो बाहर के देशों पर क्रूड ऑयल को लेकर निर्भरता, दूसरे देश में तेल की बढ़ती खपत से महंगाई बढ़ने के पूरे आसार दिखते हैं।

भले ही अमेरिकी प्रभुत्व के चलते भारत पर ईरान से तेल को लेकर दूरी का दबाव हो पर भारत-ईरान के बीच दोस्ती ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दोनों संदर्भों से ओत-प्रोत है। दोनों देशों के बीच संस्कृति, कला, वास्तुकला व भाषा के क्षेत्र में भी अंतःक्रियाएं होती रहती हैं। भारत में उत्पन्न हुए बौद्ध धर्म ने पूर्वी ईरानी क्षेत्रों को भी प्रभावित किया। आध्यात्मिक अंतःक्रिया के चलते सूफीवाद का उदय भी माना जाता है। विश्व के सात आश्चर्य में शामिल ताजमहल का वर्णन प्रायः भारतीय शरीर में ईरानी आत्मा के प्रवेश के रूप में किया जाता है। स्वतंत्रता के शुरुआती दिनों में दोनों देशों के बीच 15 मार्च, 1950 का एक चिरस्थायी शांति और मैत्री संधि पर हस्ताक्षर भी हुए थे। हालांकि शीत यद्ध के दौरान दोनों के बीच अच्छे संबंध नहीं थे ऐसा ईरान का अमेरिकी गुट में शमिल होने के चलते था जबकि भारत गुटनिरपेक्ष बना रहा जबकि आज हालात उलट दिखाई देते हैं। अब भारत और अमेरिका के बीच संबंध पिछले सात दशकों की तुलना में कहीं अधिक मजबूत हो चले हैं और ईरान अमेरिका को फूटी आंख नहीं भा रहा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मामले में भी भारत-ईरान का आपसी सहयोग बना रहा। वर्ष 2003 में ईरानी राष्ट्रपति खातमी के भारत दौरे के दौरान इस मामले में संयुक्त समझौता भी हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने 2001 में ईरान दौरे के समय आधारभूत संरचनात्मक परियोजना के लिए ईरान को दो सौ मिलियन डॉलर ऋण उपलब्ध कराये जाने की घोषणा भी की थी। सब कुछ "ाrक "ाक चल रहा था पर भारत एवं अमेरिका के बीच नाभिकीय समझौता 2005 ने दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न कर दिया। यदि भारत ईरान और अमेरिका में से किसी एक को चुनता तो यह उसके लिए निहायत क"िन था। हालांकि ईरान के लिए भी यह चुनौती रही है कि वह भारत और पाकिस्तान को लेकर संतुलन कैसे बनाए रखे। वर्षों पूर्व भारत से ईरान का गतिरोध तब हो गया जब उसने कश्मीर में स्वशासन की बात कह दी जो भारत को नागवार गुजरा था। फिलहाल अमेरिका प्रतिबंध से भारत-ईरान संबंधों पर भले ही कूटनीतिक दूरियां न बढ़ें पर कच्चे तेल को लेकर भारत की परेशानियां बढ़ सकती हैं।

(लेखक प्रयास आईएएस स्टडी सर्किल, देहरादून के निदेशक हैं।)

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