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कांग्रेस के हित में है वाराणसी से प्रियंका के चुनाव न लड़ने का फैसला

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:28 April 2019 3:17 PM GMT

कांग्रेस के हित में है वाराणसी से प्रियंका के चुनाव न लड़ने का फैसला

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आदित्य नरेन्द्र

पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की राजनीति में उस समय एक बेहद रोचक स्थिति पैदा हो गई जब खुद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव मैदान में उतरने के संकेत दिए। हालांकि अब वहां कांग्रेस की ओर से अजय रॉय को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद इस तरह की अटकलें खारिज हो गई हैं। फिर भी एक सवाल बाकी रह जाता है कि कांग्रेस के रणनीतिकारों को ऐसी स्थिति में फंसने की क्या जरूरत थी। यदि प्रियंका ने यह कह भी दिया था कि यदि पार्टी चाहेगी तो वह मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगीं तो ऐसी स्थिति में कांग्रेस नेतृत्व ने ऊहापोह की स्थिति कई दिनों तक बनाए रखने की बजाय इस पर तुरन्त निर्णय लेकर स्थिति स्पष्ट क्यों नहीं की। ऐसा लगता है कि कांग्रेस इसे प्रियंका की टीआरपी बढ़ाने के एक अवसर के रूप में देख रही थी। अन्यथा वाराणसी की संसदीय सीट के समीकरण कांग्रेस के लिए आसान नहीं हैं। पिछले लोकसभा चुनावों में जहां मोदी ने 5.80 लाख वोट प्राप्त कर आसान जीत दर्ज की थी वहीं कांग्रेस के अजय रॉय मात्र 75 हजार वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे और उनकी जमानत जब्त हो गई थी। इस बार स्थिति और भी खराब है क्योंकि समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के बड़े नेता रहे श्याम लाल यादव की पुत्रवधू शालिनी यादव को वाराणसी से लोकसभा का टिकट देकर मैदान में उतार दिया है। इससे वाराणसी में कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं। ऐसे में एक ऐसी सीट जहां पर जीतने की लेशमात्र भी संभावना न हो, वहां से प्रियंका गांधी जैसी महत्वपूर्ण नेता को कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में पहली बार उतारने का फैसला राजनीतिक हाराकिरी (आत्महत्या) भी हो सकती है। कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश की सीटों पर कांग्रेस को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी है। ऐसे में यदि वह खुद ही वाराणसी में उलझकर रह जाती तो उन्हें बाकी जगह प्रचार करने का सीमित समय ही मिलता। जिसका असर इन चुनावों के साथ-साथ 2022 में होने वाले राज्य के आगामी विधानसभा चुनावों पर भी पड़े बिना नहीं रहता। जहां तक उनके चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचने का सवाल है तो एक लंबे इंतजार के बाद अब जब प्रियंका गांधी खुलकर कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हुई हैं तो ऐसे में भविष्य में उनके पास संसद पहुंचने के लिए विकल्पों की कमी नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अमेठी और वायनाड की दो लोकसभा सीटों से चुनाव मैदान में हैं। यदि वह दोनों सीटों पर जीत हासिल करते हैं तो उन्हें एक सीट छोड़नी होगी। ऐसे में वह सीट बाद में प्रियंका को दी जा सकती है। इसका फायदा यह होगा कि राहुल द्वारा उस सीट को छोड़ने से स्थानीय जनता को अपनी उपेक्षा महसूस नहीं होगी क्योंकि उन्हें लगेगा कि यह सीट गांधी परिवार के पास ही जा रही है। जहां तक रायबरेली का सवाल है तो सोनिया गांधी अभी भी वहां से उम्मीदवार हैं। यदि भविष्य में वह अपने खराब स्वास्थ्य के चलते उस सीट को छोड़ती हैं तो भी वहां सबसे मजबूत दावा प्रियंका का ही बनता है। क्योंकि अभी तक प्रियंका ही उनके चुनाव का संचालन करने के साथ-साथ उनके चुनाव क्षेत्र की भी देखभाल करती रही हैं। जहां तक वायनाड का सवाल है तो वह सीट जीतने के बाद राहुल गांधी उस सीट को छोड़ेंगे, इसकी संभावना कम ही है। क्योंकि वहां से चुनाव लड़ना कांग्रेस की भविष्य की रणनीति का संकेत है। वायनाड केरल का हिस्सा होने के साथ ही कर्नाटक और तमिलनाडु से भी घिरा हुआ है। आज दक्षिण में कांग्रेस कमजोर हालत में है। लेकिन इसी दक्षिण भारत ने आपातकाल के बाद जब देश के अन्य हिस्सों से कांग्रेस का सफाया हो गया था उस समय इंदिरा गांधी को सहारा दिया था। वायनाड के बहाने राहुल गांधी इन्हीं जड़ों को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। ऐसी स्थिति में आने वाले समय में कांग्रेस नेता के रूप में उत्तर भारत खासतौर पर उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रियंका की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण रहने वाली है। राज्य की दोनों प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियां सपा-बसपा जानती हैं कि यदि उत्तर प्रदेश में भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस भी मजबूत हुई तो उनके सामने अस्तित्व का संकट गहरा जाएगा। अपने चुनाव संचालन के कौशल का उपयोग करते हुए यदि प्रियंका कांग्रेस उम्मीदवारों को मजबूती से चुनाव लड़वा पाने में सफल रहीं तो 2022 के विधानसभा चुनावों में किस-किस सीट पर कांग्रेस की क्या स्थिति है यह स्पष्ट हो जाएगी। जिसके बाद कांग्रेस वहां भविष्य की रणनीति को आकार दे सकती है।

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