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कहीं पाक के गले की हड्डी तो नहीं बन जाएगा मसूद अजहर

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:5 May 2019 3:26 PM GMT

कहीं पाक के गले की हड्डी तो नहीं बन जाएगा मसूद अजहर

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आदित्य नरेन्द्र

चीन द्वारा पिछले दिनों जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश प्रस्ताव पर टेक्निकल होल्ड हटाए जाने के बाद अब उसे (मसूद अजहर को) वैश्विक आतंकी घोषित कर दिया गया है। इससे पहले पिछले दस साल में चीन यह प्रस्ताव चार बार खारिज कर चुका था। इस प्रस्ताव के तहत अब मसूद अजहर न तो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों की यात्रा कर सकेगा और न ही वहां से हथियार खरीद सकेगा। उसकी सभी सम्पत्तियों को भी सील किया जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि मसूद अजहर भारत के खिलाफ आतंकी कार्रवाइयों को अंजाम देने वाले तीन प्रमुख आतंकी सरगनाओं में से एक है जिसे पाक सेना और आईएसआई भारत के खिलाफ इस्तेमाल होने वाले कीमती एसेट के रूप में देखती है। हाफिज सईद और सैयद सलाहुद्दीन से इतर मसूद और उसके संगठन जैश का प्रभाव चीन के सिक्यांग प्रांत के वीगर मुसलमानों पर भी माना जाता है। इसीलिए चीन जैश का इस्तेमाल न सिर्फ अपने मुस्लिम बहुल इलाके में शांति स्थापित करने के लिए कर रहा था बल्कि वह उसका इस्तेमाल सीपीईसी में कार्यरत अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए भी कर रहा था। ऐसे में यह सवाल वाजिब है कि जो चीन पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त माना जाता है, उस चीन द्वारा संयुक्त राष्ट्र में पेश प्रस्ताव पर से टेक्निकल होल्ड हटाए जाने के बाद अब चीन और पाकिस्तान की सरकारों के खिलाफ मसूद का क्या रुख रहेगा। कहीं वह अपना अस्तित्व बचाने के लिए पाक के गले की हड्डी तो नहीं बन जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो पाकिस्तान की स्थिरता पर उसका क्या प्रभाव पड़ेगा। मसूद की पिछली जिन्दगी को देखते हुए फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता कि वह ज्यादा समय तक चुप बैठ सकता है। उसने 1980 के उस दौर में जिस समय पाकिस्तान के इस्लामीकरण को हवा दी जा रही थी, सोवियत सेनाओं के खिलाफ लड़कर अपने आतंकी जीवन की शुरुआत की थी। उस दौरान अफगानिस्तान में सोवियत सेनाओं से मुकाबला करने के लिए छात्रों को मुजाहिद्दीन के रूप में तैयार किया जा रहा था। शुरुआत में मसूद का संबंध हरकत-उल-अंसार से रहा। 1994 में उसे श्रीनगर से अरेस्ट कर लिया और कंधार विमान कांड के बाद छोड़ा गया। इसके बाद मसूद अजहर ने फरवरी 2000 में अपने संगठन जैश-ए-मोहम्मद की नींव रखी जिसका उद्देश्य भारत में आतंकी कार्रवाइयों को अंजाम देना था। हालांकि अमेरिकी पत्रकार डेनियल पर्ल की हत्या और पाक के पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ पर हुए आत्मघाती हमले में भी उसका नाम आया था। इस सिलसिले में उस पर प्रतिबंध भी लगाया गया जो ज्यादा समय तक टिक नहीं सका। जैश की स्थापना के बाद उसने भारत में कई आतंकी हमलों को अंजाम दिया। हाल में ही हुए पुलवामा हमले की जिम्मेदारी भी जैश ने ही ली थी जिसमें 40 जवान मारे गए थे। पाकिस्तान में अब तक मसूद चीन के दोस्त और भारत के दुश्मन की भूमिका में रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भविष्य में उसे चीन और पाकिस्तान दोनों की सरकारों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन मिलता है या नहीं। चूंकि चीन सीपीईसी का काफी काम पूरा कर चुका है तो ऐसे में उसे जैश के बहुत ज्यादा समर्थन की जरूरत भी नहीं है। वहीं पाकिस्तान पर खुद को एफएटीए की ब्लैकलिस्ट में आने से बचाने का दबाव है। इस हालत में वह मसूद के बचाव के लिए कितनी दूर तक जा पाएगा यह लाख टके का सवाल है। यह सच है कि हाफिज सईद पर लगा प्रतिबंध खास प्रभावी नहीं रहा है। उसे अभी तक पाकिस्तान में घूमते और रैलियों को संबोधित करते देखा गया है। लेकिन यह भी सही है कि इस बार सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर के खिलाफ जितनी एकजुटता दिखाई गई वह पहले कभी नहीं दिखाई गई थी। ऐसे माहौल में क्या पाक सेना और आईएसआई भारत के खिलाफ जैश के इस्तेमाल की हिम्मत एक बार फिर जुटा पाएगी। यदि नहीं तो जैश के यह ट्रेंड आतंकी क्या करेंगे। डर है कि यह आतंकी कहीं पाकिस्तान में ही आतंकी कार्रवाइयों में लिप्त न हो जाएं। यदि पाकिस्तान ने जल्द ही अपने यहां पल रहे जैश और उसके जैसे अन्य आतंकी समूहों को लेकर कोई सकारात्मक फैसला नहीं किया तो अल्लाह ही पाकिस्तान का मालिक होगा।

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