Home » द्रष्टीकोण » कांग्रेस का पांसा उलटा पड़ गया

कांग्रेस का पांसा उलटा पड़ गया

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:7 May 2019 3:11 PM GMT
Share Post

श्याम कुमार

कहावत है कि गधे को घोड़ा नहीं बनाया जा सकता लेकिन सोनिया गांधी ने सिद्ध कर दिया कि गधे को भले ही घोड़ा न बनाया जा सके, खच्चर तो बनाया ही जा सकता है। सोनिया गांधी की एक बात के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने राहुल गांधी को नेहरू वंश का उत्तराधिकारी बनाने के लिए जितने अथक प्रयास किए, उतना अन्य किसी के लिए हरगिज संभव नहीं हो सकता है। उन्होंने जब राहुल गांधी को आगे बढ़ाया तो अपनी मूर्खतापूर्ण हरकतों से राहुल गांधी पूरे देश में मजाक के पात्र बन गए। वह देशभर में 'पप्पू' के नाम से मशहूर हो गए। राहुल गांधी को विफल होता देख सोनिया गांधी ने उनकी सहायता के लिए जब प्रियंका गांधी को राजनीति के मैदान में उतारा तो उन्हें 'पप्पी' कहा जाने लगा। अपशब्द बोलने में प्रियंका गांधी भी पीछे नहीं है। उन्होंने पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी के लिए कहा था कि वह कमरा बंद कर फोन पर युवतियों से बातें किया करते हैं। राहुल गांधी की बुड़बक मंडली में भी ऐसे-ऐसे 'दिमागदार' शामिल हो गए, जो उन्हें हास्यास्पद हरकतें करने के सुझाव देने लगे। इसी से राहुल गांधी कभी पत्रकार वार्ता में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा किए गए निर्णय की प्रति फाड़ने लगे तो कभी सार्वजनिक सभा में अपने कुरते की फटी जेब दिखाने लगे। नोटबंदी का विरोध करने के लिए वह तीन हजार रुपए निकालने के लिए बैंक की कतार में जाकर खड़े हो गए। लोगों को आश्चर्य हो रहा है कि इतने महीनों बाद भी उनके तीन हजार रुपए अभी तक पूरी तरह खर्च नहीं हुए हैं। राहुल गांधी कभी फैक्टरी में आलू उगाने लगे तो कभी सोना बनाने के फारमूले बताने लगे। राहुल गांधी ने अपनी मूर्खता की उस समय पराकाष्"ा कर दी, जब वह लोकसभा में अचानक जाकर नरेंद्र मोदी के गले पड़ गए और लौटकर आंख मारने का कुकृत्य किया।

लाख मजाकर उड़ाए जाने के बावजूद सोनिया गांधी ने हार नहीं मानी और राहुल गांधी को नेता बनाने पर डटी रहीं। सोनिया गांधी ने एक अन्य हुनर में राहुल को अपने से अधिक पुख्ता बना दिया। भारतीय राजनीति में सोनिया गांधी ने पहली बार गालियों का समावेश किया था। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी को 'गद्दार' कहा तो नरेंद्र मोदी को 'मौत का सौदागर' आदि गालियों की झड़ी लगा दी।

सोनिया गांधी का यह गुण राहुल गांधी ने अच्छी तरह आत्मसात कर लिया। राहुल गांधी एवं उनकी बुड़बक मंडली ने यह रणनीति बनाई कि चूंकि नेहरू वंश में जवाहर लाल नेहरू से लेकर अब तक घोटालों एवं भ्रष्टाचार में आकं" डूबे रहने के लिए बुरी तरह बदनाम है, इसलिए क्यों न मोदी को ही बदनाम कर दिया जाए और शतरंज के पांसे की तरह मोदी पर ही लागू कर दिया जाए। इस रणनीति के अंतर्गत मोदी को भ्रष्ट सिद्ध करने का रास्ता ढूंढा जाने लगा। मुश्किल यह था कि नरेंद्र मोदी का सम्पूर्ण जीवन त्याग एवं तपस्या से परिपूर्ण रहा है। यदि वह भ्रष्टाचार करना चाहते तो देश के सबसे समृद्ध राज्य गुजरात में ही हजारों-लाखों करोड़ की सम्पत्ति जमा कर लेते। लेकिन वह तो गुजरात से विदा होकर जब प्रधानमंत्री पद वरण करने के लिए रवाना हुए तो उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में प्राप्त हुई वेतन की समस्त धनराशि अपने स्टाफ की बच्चियों की पढ़ाई व कल्याण के लिए कोष बनाकर उसमें जमा कर दी थी। जब पप्पू व उसकी मंडली को कोई मामला नहीं मिला तो मोदी को बदनाम करने के लिए राफेल युद्धक विमान सौदे में घोटाला होने की आरोप लगाए जाने की रणनीति बनाई गई। यहां मोदी सरकार से चूक हो गई और उसने शुरू में ही पप्पू की बकवास की पोल खोलने में देर कर दी। नतीजा यह हुआ कि पप्पू अपनी रणनीति के अंतर्गत हर सार्वजनिक सभा एवं पत्रकार वार्ता में रफेल सौदे में भ्रष्टाचार होने की बात कहने लगा। धीरे-धीरे जब उसने देखा कि मोदी सरकार उसके आरोप का कड़ाई से मुकाबला नहीं कर रही है तो पप्पू की हिम्मत और खुल गई। इसी बीच नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपने को चौकीदार कहा तो पप्पू ने उस शब्द को पकड़कर सार्वजनिक सभाओं आदि में 'चौकीदार चोर है' के नारे लगवाने लगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि उनका प्रचार तंत्र पूरी तरह निकम्मा सिद्ध हुआ। उक्त प्रचार तंत्र न तो मोदी सरकार की उपलब्धियों को आम जनता तक सटीक रूप से पहुंचा पाया और न राहुल गांधी द्वारा मोदी को भ्रष्ट कहे जाने की दुष्प्रचार से शुरू से ही काट कर सका। परिणाम यह हुआ कि राहुल गांधी का दुष्प्रचार बढ़ता गया तथा कुछ लोगों की यह धारणा बनने लगी कि शायद दाल में कुछ काला हो सकता है। सत्ता पक्ष में भी जो लोग मोदी व योगी से असंतुष्ट थे, उन्हें भी राहुल गांधी का दुष्प्रचार रास आने लगा। भाजपा को इसका सर्वाधिक नुकसान उत्तर प्रदेश में हुआ। यह धारणा बनने लगी कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी 20-25 सीटों से अधिक नहीं जीत सकेगी। जबकि यह सर्वविदित है कि केंद्र में सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाता है। नरेंद्र मोदी ने स्थिति भांप ली और वह अन्य राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में भाजपा को मजबूत करने में जुट गए, ताकि उत्तर प्रदेश में यदि सीटें कम होती हैं तो उनकी क्षतिपूर्ति वहां से की जा सके। मोदी ने सार्वजनिक सभाओं द्वारा उत्तर प्रदेश में भी अपना क्षतिपूर्ति का अभियान शुरू कर दिया और अपनी सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं की विस्तार में जनता को जानकारी देने लगे। प्रचार तंत्र की विफलता के कारण उत्तर प्रदेश की जनता को मोदी सरकार की योजनाओं एवं कार्यक्रमों की सम्यक जानकारी नहीं प्राप्त हुई थी, किन्तु मोदी के भाषणों से उसे जानकारियां प्राप्त होने लगीं। इसी से अब कहा जाने लगा है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को 40 से 50 के बीच सीटें मिल जाएंगी। लोगों का विश्वास है कि मोदी का अभियान अभी रंग लाएगा और आश्चर्य नहीं कि चुनाव में भाजपा को सत्तर से अधिक सीटें मिलने का चमत्कार हो जाए।

लोकसभा के चुनाव का जो परिदृश्य देखने को मिल रहा है, उससे यह किंचित अनुमान लगाया जा सकता है कि कौरव-पांडव का युद्ध कैसा रहा होगा! इतिहास अपने को दुहराता हुआ प्रतीत हो रह है। 'आधुनिक महाभारत' में एक ओर अतिमहावीर योद्धा अभिमन्यु की तरह नरेंद्र मोदी मोरचे पर डटे हुए हैं तो दूसरी ओर मुकाबले में बड़े-बड़े योद्धाओं के रूप में महाग"बंधन रूपी कौरव सेना मौजूद है। वर्ष 2014 की तरह पूरा चुनावी युद्ध इस बार भी नरेंद्र मोदी के इर्दगिर्द केंद्रित हो गया है। वर्ष 2014 के चुनाव में मोदी के पराक्रम का ही असर था कि पहली बार लोकसभा में भाजपा को न केवल बहुमत, बल्कि विपुल बहुमत प्राप्त हो गया था। उस चुनाव में भाजपा एवं उसके सहयोगी दलों में जो भी लोग चुनाव जीते थे, वे नरेंद्र मोदी की आभा शक्ति के बल पर ही जीते थे। बहुत कुछ उसी प्रकार का परिदृश्य इस बार के लोकसभा चुनाव में बन गया है। देश के कोने-कोने में मोदी ही अलख जगाए हुए दिखाई दे रहे हैं। महाभारत के युद्ध में तो अर्जुन के अलावा उनके भाइयों के रूप में बड़े पराक्रमी योद्धा भी मौजूद थे। किन्तु वर्तमान चुनावी युद्ध में 'पांडव पक्ष' का अर्थ एकमात्र नरेंद्र मोदी हो गया है। उनके नाम की दुंदुभी न केवल पूरे देश में, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में बज रही है। इस समय नरेंद्र मोदी विश्व के सबसे बड़े एवं सर्वाधिक प्रभावशाली नेता बन गए हैं, जिसकी विगत वर्षों में कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। भारत के लिए यह अच्छे दिन सिर्फ नरेंद्र मोदी की वजह से आए हैं तथा आम धारणा यह है कि यदि मोदी 2019 का चुनाव पूर्व बहुमत के रूप में जीत गए तो अगले पांच वर्षें में हमारा देश पुनः सोने की चिड़िया बनने में सफल हो जाएगा।

Share it
Top