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टाइम के कवर पेज पर मोदी

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:16 May 2019 6:34 PM GMT
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अमेरिका की पतिष्"ित टाइम मैगजीन ने पधानमंत्री मोदी को एक बार फिर कवर पेज पर जगह दी है। इसके पहले वे 2012 और 2015 में इसी मैगजीन के कवर पेज पर छप चुके हैं। इतना ही नहीं टाइम ने 2014, 2015 और 2017 में विश्व के 100 सर्वाधिक पभावशाली लोगों की सूची में मोदी को भी रखा था। इस बार कवर पेज पर छपे मोदी की तस्वीर और उनसे जुड़ी कवर स्टोरी को लेकर टाइम मैगजीन विवादों में घिर गई है। इस मैगजीन में दो लेख हैं जिसके एक लेख में मोदी को भारत को तोड़ने वाला पमुख नेता तो दूसरे में सुधारक के तौर पर पेश किया गया है। सोशल मीडिया पर इस कवर की आलोचना और तारीफ दोनों हो रही है। गौरतलब है कि टाइम के कवर पेज पर हाल ही में मोदी को इंडियाज डिवाइडर इन चीफ के तौर पर पकाशित किया गया। जिसका तात्पर्य है भारत को बांटने वाला पमुख व्यक्ति। अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका टाइम द्वारा लोकसभा चुनाव के बीच पधानमंत्री मोदी को इस रूप में पकाशित करना वाकई कई चुनौतियों और कुछ संदेह को भी पकाशमान कर रहा है। जब यह मामला सामने आया तब दो चरण के चुनाव देश में बाकी थे। हालांकि 7वां और अंतिम चरण का चुनाव ही अब बाकी है जिसका समापन 19 मई को होना है और "ाrक एक दिन बाद मैगजीन छप कर 20 मई को बाजार में आएगी। खास बात यह भी है कि मैगजीन के इसी संस्करण में एक अन्य लेख में इयान ब्रेमर नामक पत्रकार ने मोदी की जमकर तारीफ की है। दूसरी स्टोरी `मोदी इज इंडियाज बेस्ट होप फॉर इकोनोमिक रिफॉर्म' शीर्षक से छपी है। इसमें कहा गया है कि मोदी के नेतृत्व में भारत ने दूसरे देशों से अपने रिश्ते सुधारे हैं इसके अलावा मोदी की घरेलू नीतियों के कारण करोड़ों लोगों की जिन्दगी में सुधार आया है। जीएसटी लागू करने की सराहना भी इसमें की गई है। जटिल टैक्स व्यवस्था को काफी सरल और सहज बनाने का श्रेय भी उन्हें दिया गया।

इंडियाज डिवाइडर इन चीफ लिखने वाला आतिश तासिर पाकिस्तानी मूल ब्रिटिश नागरिक हैं। जिसने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र मोदी सरकार के और 5 साल को झेल सकता है। लेख में मोदी को भारत का पमुख विभाजनकारी बताया जाना किसी भी दृष्टिकोण से उचित करार नहीं दिया जा सकता। भले ही टाइम में मोदी विभाजनकारी कहे गए हों पर यह देश की अखंडता की दृष्टि से दुतकारने वाला लेख कहा जायेगा। दुनिया में कई ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने सीमा के भीतर अपने देश को दूरदर्शी सोच के चलते आगे बढ़ाने का काम किया। जिन पर दुनिया सवाल भी खड़ा करती रही है। चीन के राष्ट्रपति जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप देश के अंदर नीतियों को सख्ती के साथ लागू कर रहे हैं जिसमें देश विशेष की भलाई पहले है। पुतिन पर तो चौथी बार राष्ट्रपति चुने जाने को लेकर लोकतंत्र पर दबंगाई का आरोप भी लगा। ऐसा लगता है कि इन देशों के लोगों ने अपने नेताओं पर इस बात के लिए भरोसा बड़ा किया है कि दुनिया कुछ भी सोचे पर बदले हुए दौर में देश पथम की नीति वाली सरकार की जरूरत है। चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग को तो हमेशा के लिए राष्ट्रपति बना दिया गया। ट्रंप दुनिया के तमाम देशों के साथ दुश्मनी करते हुए चीन को धमका रहे हैं कि वह 2020 में फिर अमेरिका के राष्ट्रपति बनेंगे। मोदी के कामकाज पर सख्त आलोचना एक अलग बात है और विभाजन का आरोप वाकई में भारत के लोकतंत्र पर ही सवाल उ"ा देता है। जिस 90 करोड़ मतदाता ने मोदी को सत्ता दी थी क्या यह सवाल उनकी सोच पर भी नहीं उ" रहा है। भारत का संविधान एक ऐसी संघात्मक व्यवस्था से युक्त है जहां विभाजन की कोई गुंजाइश नहीं है।

सरकारों के निरंकुश होने की भी संभावना यहां नगण्य है। दुनिया जानती है कि अमेरिका सबसे पुराना और भारत सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। 1789 से अब तक अमेरिका के लोकतंत्र में भले ही तमाम पकार की परिपक्वता आई हो परन्तु रंग भेद और नस्ल भेद से आज भी वह मुक्त करार नहीं दिया जा सकता। धर्म और जाति के आधार पर भारत में कई भेद हैं पर लोकतंत्र की गरिमा सभी समझते हैं। संविधान की पस्तावना पंथनिरपेक्षता की बात करता है। इस बात से कोई गुरेज नहीं कर सकता कि बहुधर्मी, बहुजाति और विविधताओं से जकड़ा भारत विभाजन की धारा और विचारधारा से करोड़ों मील दूर खड़ा है।

नेहरू के समाजवाद और भारत की मौजूदा सामाजिक परिस्थिति की तुलना करते हुए आतिश तासिर ने लिखा है कि मोदी ने हिन्दू और मुसलमानों के बीच भाईचारा बढ़ाने के लिए किसी तरह की इच्छा नहीं जताई जबकि नेहरू धर्मनिरपेक्षता का रास्ता अपनाया। मोदी पर भारत के पमुख व्यक्तियों पर राजनीतिक हमले करने की भी बात कही। इसी स्टोरी में भारत में हुए 1984 के सिख दंगे और 2002 में हुए गुजरात के गोधरा कांड का भी जिक्र किया गया है। आगे यह भी आलोचना है कि मोदी द्वारा आर्थिक चमत्कार लाने के वादे फेल हो गए हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि नीतिगत तौर पर कई मामलों में सरकार वादे के अनुपात में सफल नहीं रही है। कालाधन, रोजगार और कर पणाली को लेकर मोदी सरकार आज भी हाशिये पर है पर इसका तात्पर्य यह नहीं कि मोदी की आर्थिक नीतियां चौतरफा फेल हुई हैं। जहां तक सवाल हिन्दू-मुसलमानों के बीच भाईचारे का है। लोकतंत्र में यह कैसे तय हो कि भाईचारा बढ़ा है या घटा है। गैस सिलेंडर से लेकर बिजली, पानी, सड़क, सुरक्षा समेत सभी बुनियादी चीजें सभी के लिए थी। तीन तलाक के मसले पर मुस्लिम महिलाओं का अपार समर्थन मोदी को मिला। हां यह सही है कि मुस्लिम वर्ग को नेतृत्व देने वालों ने मोदी पर दोहरे चरित्र का आरोप लगाते रहे हैं। मोदी दूध के धुले नहीं है पर हिन्दू और मुसलमान के बीच भाईचारे में रुचि नहीं दिखाई यह आरोप सिरे से नकारा जाना चाहिए। जो पधानमंत्री मंच से 130 करोड़ भाइयों एवं बहनों का संबोधन करता हो उसमें भाईचारे का लोप कैसे हो सकता है। सिख दंगे को लेकर कांग्रेस पर यह आरोप आज भी लग रहा है। हालांकि चुनावी मुनाफे को लेकर हर किसी ने समय-समय पर इस मुद्दे को जिन्दा किया वही काम इन दिनों मोदी कर रहे हैं। गोधरा कांड को लेकर भी तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे मोदी को अदालत से क्लीन चिट मिल चुकी है। जाहिर है आरोप गड़े मुर्दे उखाड़ने वाले ही कहे जायेंगे। गौरतलब है मोदी को यूएई, अफगानिस्तान और सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देशों ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया। इसके अलावा कई अन्य देश शांति और सम्मान का सूचक माना आतिश तासिर को यह सब खूबियां दिखाई नहीं देती। इसमें दो ही बात दिखती है एक यह कि दुनिया में बढ़त बना चुके भारत पर पहार का यह एक अच्छा तरीका है। दूसरा जिस टाइम मैगजीन में मोदी को इतना महत्व दिया उसी ने एक लेख डिवाइडर के रूप में और दूसरा रिफॉर्मर के रूप में क्यों छापा। कहीं ऐसा तो नहीं कुछ तथाकथित लोग दुनिया में नए तरीके के संदेह से भरे मोदी दिखाना चाहते हैं।

2014 में मसीहा रहे मोदी 2019 में केवल राजनेता हैं ऐसा भी तगमा टाइम द्वारा दिया गया है। 20 लाख कॉपी बिकने वाली और 1926 से पकाशित होने वाली टाइम मैगजीन सालाना 11 हजार करोड़ से अधिक की कमाई करती है। इस मैगजीन को एक ही व्यक्ति को दो रूप में पेश करने को लेकर जोरदार मंथन करना चाहिए था।

(लेखक प्रयास आईएएस स्टडी सर्पिल, देहरादून के निदेशक हैं।)

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