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आइए `सरकार' चुनौतियां कर रहीं इंतजार

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:22 May 2019 5:58 PM GMT
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निश्चित तौर से यह माना जोकि आने वाली सरकार को कई आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। वादे सभी दलों ने किए है इसलिए यह भी माना जोकि उसे अपने वादे 50 पतिशत भी पूरे करने में आधी आ जाएगी। हाल ही में आई एक वैश्विक रिपोर्ट तो इस चमक दमक भरी दुनियां के लिए शर्मसार करने वाली है। इस रिपोर्ट में यह कहा जाना कि चांद पर पहुंचने वाली इस दुनिया ने भले ही लाखों उपलब्धियां दर्ज करा ली हों लेकिन मानवता तार-तार है। रिपोर्ट में कहा गया कि वैश्विक स्तर पर आ" करोड़ लोग भुखमरी का शिकार है। लेकिन एक जून का भोजन मिलने वाला का आकड़ा नहीं आया यह आकड़ा भी चौंकाने वाला होगा। महंगाई और बेरोजगारी के चलते यह आंकड़ा बीस करोड़ से कम नहीं हागा।

आगे आने वाली सरकार खुद यूपीए हो या फिर कोई और लेकिन उसके लिए आर्थिक समस्याएं का ऊंचा पहाड़ सामने है। इसकी वजह वैश्विक वित्तीय संकट है या फिर कुछ और आगामी जून माह में केंद्रीय सत्ता पर आने वाली सरकार के माथे पर भारी वित्तीय चुनौतियां होना तय हैं। विभिन्न वजहों से इसकी जमीन अभी से तैयार हो गई है। जानकारों के मुताबिक आर्थिक तर्कों के कसौटी पर कसते देखा जाए तो वित्तीय संकट के दौर में ऐसा होना स्वाभाविक ही है। अमेरिका, ईरान और चीन के बीच चल रहे वार के चलते चालू वित्त वर्ष आर्थिक संकटों से ग्रस्त रहा है जिसका फ्रभाव चौतरफा पड़ा है लेकिन विश्व अर्थव्यवस्था के भावी अनुमानों पर नजर डालें तो आगामी वित्त वर्ष और भी क"िन परिस्थितियों से भरा होगा। लिहाजा ऐसी असमान्य परिस्थितियों में राजकोषीय घाटे में बढ़ोत्तरी अवश्यंभावी ही है। अगर महंगाई दर के आंकड़ों पर गौर करें तो यह कंट्रोल से बाहर होता जा रहा है। पिछले कुछ महीनों में कई खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगी हैं। अफ्रैल में खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ने से खुदरा महंगाई दर बढ़कर 2.92 प्रतिशत हो गई। जबकि इससे पिछले महीने मार्च में खुदरा महंगाई दर 2.86 प्रतिशत दर्ज की गई थी। इस लिहाज से 0.06 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

हालांकि थोक महंगाई में थोड़ी राहत जरूर मिली है लेकिन इसके बावजूद अगले महीनों में महंगाई के और बढ़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है। वैसे भी देश की ऑटो इंडस्ट्री इन दिनों बुरे दौर से गुजर रही है। पिछले तीन महीनों से ऑटो प्रोडक्शन और सेल्स में जबरदस्त गिरावट आई है। लगभग आठ साल बाद ऑटो इंडस्ट्री की हालत इतनी पतली हुई है। अहम बात यह है कि ऑटो इंडस्ट्री के हर कैटेगरी में बिक्री में कमी आई है। इंडस्ट्री के जानकार कहते हैं कि पिछले 10 साल में हमने ऐसा नहीं देखा कि सभी श्रेणियों में बिक्री में गिरावट दर्ज की गई हो। अगर हालात यही रहे तो नौकरियों पर भी संकट के बादल मंडरा सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो लगभग एक लाख पत्यक्ष और अपत्यक्ष लोग सड़क पर होंगे। भारतीय शेयर बाजार लगातार लाल निशान पर बंद हो रहा है। पिछले सोमवार को लगातार नौवां दिन था जब शेयर बाजार गिरावट के साथ बंद हुआ। करीब आठ साल बाद यह पहली बार है जब बाजार इतना पस्त हुआ है।

इस नौ दिन में सेंसेक्स 2000 अंक तक टूट गया है जबकि निफ्टी भी करीब 700 अंक लुढ़का है। शेयर बाजार के इस बुरे हालात के बीच निवेशक भारतीय बाजार में पैसे लगाने से बच रहे हैं। इस वजह से निवेशकों के 8.56 लाख करोड़ रुपए डूब गए हैं। इसका असर भी रोजगार पर पड़ेगा और हजारों लोग बेरोजगार होंगे। नौकरियों के सृजन के मोर्चे पर भी गति काफी धीमी है। ईपीएफओ के आंकड़ों के मुताबिक अक्तूबर 2018 से अब तक औसत मासिक नौकरी सृजन में 26 प्रतिशत की गिरावट आई है। सीएमआईई के आंकड़ों की बात करें कि 2017-18 में कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन में औसतन 8.4 प्रतिशत की बढ़त हुई है। यह पिछले आठ साल में सबसे कम है। साल 2018-19 में सकल घरेलू उत्पाद में बढ़त सिर्प 6.98 प्रतिशत रहने का अनुमान है। जबकि 2015-16 में यह करीब आठ प्रतिशत रह गया है।

ग्रास वैल्यू एडेड की बात करें तो यह 8.03 प्रतिशत के मुकाबले घटकर 6.79 प्रतिशत रह गया है।औद्योगिक उत्पादन को दर्शाने वाले सूचकांक आईआईपी में दिसंबर 2018 की तिमाही में 3.69 प्रतिशत की बढ़त हुई जोकि पिछले पांच तिमाहियों में सबसे कम है। जनवरी में तो आईआईपी में महज 1.79 प्रतिशत की ही बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। फरवरी में आईआईपी में सिर्प 0.1 प्रतिशत की बढ़त हुई जो पिछले 20 महीने में सबसे कम है। साल 2018-19 में कांरपोरेट जगत की बिक्री और ग्रास फिक्स्ड एसेट भी पांच साल में सबसे धीमी गति से बढ़ी है। इसी तरह औद्योगिक गतिघविधियों का एक सूचकांक बिजली उत्पादन भी होता है। साल 2018-19 में बिजली उत्पादन में सिर्प 3.56 प्रतिशत की बढ़त हुई जो पांच साल में सबसे कम है। सबसे खास चुनौती के तौर हम पेट्रोल को देख सकते है, अमेरिका और ईरान के बीच चल रही खींचातानी के बीच अगर पेट्रोल संकट हुआ तो महंगाई चरम सीमा पर होगी। आमतौर पर अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो पेट्रोल और डीजल महंगा हो जाता है। हालांकि बीते कुछ दिनों से हालात "ाrक उलटा हैं। कच्चे तेल की कीमतों बढ़ोत्तरी के बावजूद पेट्रोल और डीजल सस्ते हो रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि चुनावों को देखते हुए देश में पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ रहे हैं यानि चुनावों के बाद इनकी कीमतों में बड़ा इजाफा हो सकता है। ईंधन की कीमतों के बढ़ने खाद्य वस्तुओं की कीमतें और बढ़ जाएंगी। निर्यात और निजी निवेश की हालत पिछले कई साल से खराब है. वित्त वर्ष 2018-19 में निजी निवेश फ्रस्ताव सिर्प 9.5 लाख करोड़ रुपए के हुए। जोकि पिछले 14 साल (2004-05 के बाद) में सबसे कम है। हालांकि मोदी के नेतृत्व में कोई बड़ा भ्रष्टाचार सामने नहीं आया लेकिन भ्रष्टाचार खत्म गया ऐसा भी नहीं कहा जा सकता। भारत में सबसे विस्तृत रूप से फैली समस्या भ्रष्टाचार है जिससे जल्दी और समझदारी से निपटने की आवश्यकता है। भारत में निरक्षरता का फ्रतिशत चिंताजनक है। भारत में दस में से पांच व्यक्ति निरक्षर हैं। भारत में दुनिया के एक-तिहाई गरीब रहते हैं। भारत में कुल आबादी का 37 पतिशत हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे है। उनके जीवन में खुशहाली लाना नई सरकार के लिए चुनौती से कम नहीं।

कुछ सालों से अस्थिर विकास के कारण कृषि क्षेत्र खेती से आमदनी को लेकर संघर्ष कर रहा है। आधी से अधिक भारतीय आबादी कृषि पर निर्भर है। ऐसे में वर्तमान सरकार को अपने दावे के अनुसार 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। वर्तमान में फ्रदूषण और पर्यावरण संबंधी अन्य चुनौतियां हैं जिसका भारत सामना कर रहा है। भारत के कई शहर पदूषण को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति पा चुके हैं। महिलाओं की सुरक्षा मामले में भारत बहुत पीछे है।

घरेलू हिंसा, बलात्कार के मामले आदि जैसे मुद्दों पर तुरंत कार्रवाई की जानी चाहिए। लाख कोशिशों के बावजूद सुधार नहीं दिख रहा। भारत की शिक्षा फ्रणाली को दोषी "हराया जाता है क्योंकि यह अब भी व्यावहारिक और कौशल आधारित न होकर सैद्धांतिक है। छात्र-छात्रों ज्ञान फ्राप्त करने के लिए नहीं बल्कि अंक फ्राप्त करने के लिए पढ़ाई कर रहे हैं। भारत सरकार का कौशल मिशन कार्यक्रम हकीकत में काला जादू की तरह है। कहीं कुछ परिणाम दिख नहीं रहा। हर स्तर पर गोलमाल चल रहा है। भारत को अपने बुनियादी ढांचे जैसे बेहतर सड़कें, पानी और स्वच्छता आदि सेवाओं पर तेजी से काम करने की आवश्यकता नई सरकार के लिए चुनौती बनकर स्वागत के लिए तैयार है।

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