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भाजपा की प्रचंड लहर से सबक सीखे विपक्ष

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:26 May 2019 3:09 PM GMT

भाजपा की प्रचंड लहर से सबक सीखे विपक्ष

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आदित्य नरेन्द्र

2019 के लोकसभा चुनाव विपक्ष के लिए एक बुरे ख्वाब की तरह सामने आए हैं। सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा है जो इन चुनावों के बाद दिल्ली के तख्त पर कब्जा करने का सपना संजोए बैठी थी। जिस धमक के साथ भाजपा और राजग ने अपने प्रदर्शन में सुधार करते हुए सत्ता में वापसी की है उसके लिए भाजपा नेता बधाई के पात्र हैं लेकिन जो परिणाम सामने आए हैं उसकी कल्पना न तो विपक्षी नेताओं ने की थी और न ही राजनीतिक पंडितों ने। नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने जिस तरह विपक्षी धुरंधरों को मात दी उससे स्पष्ट है कि विपक्ष जनमत का मूड भांपने में असफल रहा। जीएसटी, नोटबंदी और बेरोजगारी जैसे गंभीर सवालों से घिरे होने के बावजूद भी मतदान के दौरान भाजपा के समर्थन में जो प्रचंड लहर दिखाई दी उससे विपक्ष को सबक सीखने की जरूरत है। इसमें कोई शक नहीं कि मोदी-शाह की जोड़ी न सिर्फ वर्तमान समय की बल्कि भारतीय राजनीति के पिछले कई दशकों की सबसे करामाती जोड़ी है जिसने पिछले पांच साल में ही भाजपा को उन क्षेत्रों में भी पहुंचा दिया जहां पांच साल पहले भाजपा का कोई नामलेवा भी नहीं था। इसके बरक्स यदि कांग्रेस को देखा जाए तो लगता है कि पांच दशक से ज्यादा हिन्दुस्तान पर राज करने वाली यह पार्टी अपनी जड़ों से ही उखड़ती जा रही है। सिर्फ कांग्रेस ही क्यों अधिकांश क्षेत्रीय दलों जैसे सपा, बसपा, राजद, टीडीपी, जेडीएस, एनसीपी, पीडीपी और टीएमसी जैसे दलों का भी यही हाल है। दरअसल इसके मूल में राजनीतिक दलों की ज्वलंत मुद्दों के प्रति अज्ञानता है। वह भारतीय समाज की वर्तमान आकांक्षाओं और उसकी जरूरतों को समझ पाने में नाकाम रहे हैं। यदि ऐसा न होता तो न तो हमें उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा का बेमेल गठबंधन दिखाई देता और न ही बिहार में एमवाई समीकरण को पुन जीवित करने का प्रयास किया जाता। ऐसा नहीं है कि भाजपा ने जातिगत समीकरण बनाने का प्रयास नहीं किया। बेशक उसने ऐसा कई जगह पर किया लेकिन उसने इसका दायरा इतना विस्तृत कर दिया कि पहले हिन्दुत्व और फिर राष्ट्रवाद उसकी रणनीति के दो प्रमुख मुद्दे हो गए। जाति, धर्म, वर्ग और रणनीति के दो प्रमुख मुद्दे हो गए। जाति, धर्म, वर्ग और लिंग से ऊपर उठकर प्रधानमंत्री मोदी ने जो कार्यक्रम चलाए उससे मोदी के प्रति उन लोगों में भी विश्वास जागा तो कभी मोदी या भाजपा के समर्थक नहीं रहे थे। महिलाओं को शौचालय और रसोई गैस देने की योजना तथा मन की बात जैसे कार्यक्रमों के जरिये परीक्षा देने जा रहे युवाओं को एक अभिभावक की तरह समझाई गई उनकी बातों ने उन्हें महिलाओं एवं युवाओं के दो बड़े वर्गों से काफी हद तक भावनात्मक रूप से ऐसे जोड़ दिया जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। अनुमान है कि भाजपा का जो वोट प्रतिशत बढ़ा है उसमें इन दोनों वर्गों की प्रमुख भूमिका है। दूसरी ओर विपक्ष का चुनाव अभियान पूरी तरह नकारात्मक रहा। वन रैंक वन पेंशन से लेकर उज्जवला योजना तक अनेक योजनाओं का लाभ करोड़ों परिवारों को मिला लेकिन विपक्ष ने सारा समय उसमें छिद्र ढूंढने में ही लगा दिया। वह महसूस नहीं कर पाया कि वन रैंक वन पेंशन के तहत जो 35 हजार करोड़ की राशि आवंटित की गई थी वह लाभार्थियों के पास पहुंची है जबकि कांग्रेस से उन्हें कुछ खास नहीं मिला था। पिछले दो दशकों में भारत का आर्थिक चेहरा बिल्कुल बदल चुका है। वंचित तबके को भी लगता है कि वह लोग भी दूसरों की तरह बहुत कुछ प्राप्त कर सकते हैं। उन्हें मुफ्त की सहायता बांटने वाले नेताओं की बजाय ऐसे नेता की जरूरत है जो उनका सशक्तिकरण करे। चुनाव परिणाम बताते हैं कि जैसे लीडर की उन्हें जरूरत थी मोदी के रूप में उन्हें शायद वैसा लीडर मिल गया है। यदि मोदी के प्रधानमंत्री के रूप में उनके पहले पांच साल के कामकाज का आंकलन किया जाए तो लगेगा कि विपक्ष के लिए 2024 की लड़ाई बेहद कठिन होने वाली है बशर्ते मोदी की प्रमुख फ्लैगशिप योजनाएं 2022-23 तक पूरी हो जाएं। आने वाले समय में विपक्ष मोदी से तभी मुकाबला करने में सक्षम साबित होगा जब वह मोदी को साख, काम और सोच के मोर्चे पर टक्कर देने में समर्थ हो नहीं तो जो चुनाव परिणाम 2019 में आए हैं कमोबेश वैसे ही चुनाव परिणाम 2024 में भी आएं तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए।

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