आर्थिक मंदी : मोदी सरकार के लिए पहली चुनौती
आदित्य नरेन्द्र
अब इसे सिर मुंडाते ही ओले पड़ना' नहीं कहा जाएगा तो क्या कहा जाएगा। एक तरफ पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में दूसरी बार सत्ता में आई सरकार के मंत्रियों के बीच मंत्रालयों का बंटवारा हो रहा था दूसरी ओर वित्तीय वर्ष 2018-19 की अंतिम तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर गिरकर 5.8 फीसदी रहने की खबर आ रही थी। देश के लिए यह कितनी चिंताजनक खबर है इसका अंदाज इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि यह पिछले पांच साल की सबसे कम आर्थिक वृद्धि दर है। इस खराब पदर्शन के चलते भारत आर्थिक वृद्धि दर के मोर्चे पर चीन से पिछड़ गया है। इस खबर ने सरकार का रक्तचाप (बी.पी.) निश्चित रूप से बढ़ा दिया होगा। इसकी मुख्य वजह कृषि और विनिर्माण क्षेत्रों का पदर्शन रहा है। हालांकि आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने इस खबर की गंभीरता को कम करने का पयास करते हुए कहा है कि 6.8 फीसदी वार्षिक वृद्धि दर के लिहाज से भारत अब भी दुनिया में सबसे ऊंची वृद्धि दर हासिल करने वाला देश बना हुआ है। श्री गर्ग के अनुसार चालू वित्त वर्ष की अपैल-जून की पथम तिमाही में भी आर्थिक गतिविधियां धीमी रह सकती है लेकिन उसके बाद इसमें तेजी आएगी। भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसका स्वरूप मिश्रित है। यहां आधे से अधिक लोग कृषि पर निर्भर हैं और कृषि का एक बड़ा हिस्सा मानसून पर। लगभग एक तिहाई श्रमिक सेवा क्षेत्र से आते हैं और देश के उत्पादन में लगभग दो तिहाई का योगदान देते हैं। जहां तक कृषि का सवाल है तो इस वर्ष कमजोर मानसून की भविष्यवाणी पेशानी पर बल डालने वाली है। दरअसल भारत की ताकत उसके आउटसोर्सिंग के लिए एक आकर्षक देश के रूप में है। यहां कम वेतन पर अच्छी खासी अंग्रेजी जानने वाले सुशिक्षित कर्मचारी मिल जाते है लेकिन हालात हमेशा सरकार के अनुकूल हों यह जरूरी तो नहीं। अमेरिका-ईरान और अमेरिका-चीन की तनातनी का असर भारत की आर्थिक सेहत पर पड़ना लाजमी है। एक तरफ जहां यह माना जा रहा है कि अमेरिकी दबाव में ईरान से तेल खरीदना बंद करने से भारत को आर्थिक नुकसान होने की आशंका है वहीं यह भी कहा जा रहा है कि यदि चीन-अमेरिका की तनातनी जारी रही तो अमेरिकी कंपनियों का रूख भारत की ओर मुड़ सकता है। भविष्य में जिसका फायदा भारत को मिलेगा और आर्थिक वृद्धि दर तेज होगी। लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है क्योंकि ट्रंप का नजरिया अपने पूर्ववर्तियों से काफी अलग है। इसलिए भारत को काफी संभलकर चलने की जरूरत है। सरकार को फिलहाल अपने दम पर अर्थव्यवस्था में जान डालने का पयास करना होगा। आर्थिक मंदी का पहला असर यही होता है कि विकास कार्यों या बुनियादी ढांचे के लिए कम धन उपलब्ध होता है। सरकारें अक्सर इससे निपटने के लिए अर्थव्यवस्था में ज्यादा पैसा डालने का पयास करती हैं ताकि मांग बढ़े। यदि मांग ही नहीं होगी या कमजोर होगी तो कंपनियां अपने उत्पाद किसके लिए बनाएगी। इसलिए सरकारों का पहला पयास आर्थिक मंदी से निपटने के एक उपाय के रूप में मांग में वृद्धि करना है। लंबे समय की आर्थिक मंदी अपने साथ बढ़ती हुई बेरोजगारी भी लाती है। ऐसे में देश से गरीबी दूर करने के लिए जरूरी है कि हम अपनी आर्थिक वृद्धि दर को दहाई के अंक पर लाकर स्थिर रखें जोकि फिलहाल बहुत मुश्किल काम है। इस चुनौती से निपटने के लिए कृषि को पाथमिकता देने के साथ-साथ बुनियादी ढांचे की मजबूती भी बहुत जरूरी है। चूंकि सरकार अपने कार्यकाल की पहली पारी में देश की आर्थिक समस्याओं से रुबरु हो चुकी है और उनके समाधान के लिए योजनाएं बनाकर लागू करने का पयास कर रही है ऐसे में उम्मीद है कि मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में आर्थिक मंदी के रूप में आई इस पहली चुनौती से असरदार ढंग से निपटने का पयास करेगी।