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अजीत जोगी का जाति प्रमाणपत्र आखिरकार निरस्त हुआ

👤 admin5 | Updated on:12 July 2017 4:07 PM GMT
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बसंत कुमार

पिछले दो दशकों से छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केंद्रीय मंत्री, पूर्व आईएएस श्री अजीत जोगी का फर्जी अनुसूचित जनजाति (एसटी) प्रमाणपत्र के विषय में और इस संबंध में हो रही कार्यवाही के विषय में यदाकदा समाचार पत्रों के माध्यम से जानकारी प्राप्त होती रहती थी। खबर आई है कि हाई पावर कमेटी की रिपोर्ट आने के पश्चात विलासपुर के जिलाधिकारी ने श्री जोगी का जाति प्रमाणपत्र निरस्त कर दिया। कैसी विडंबना है कि जिस फर्जी जाति प्रमाणपत्र के बल पर श्री अजीत जोगी आईएएस बनने में सफल रहे, आरक्षित लोकसभा सीट से जीतकर केंद्र सरकार में मंत्री बने, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री बने, उसे खारिज करने में प्रशासन को 25 वर्ष से अधिक का समय लग गया। मुंबई हाई कोर्ट ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र के विषय में एक विवादास्पद निर्णय दिया था जिसके अनुसार यदि कोई व्यक्ति फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर सरकारी नौकरी प्राप्त कर लेता है और उसे नौकरी में काफी समय बीत गया है और उसके जाति प्रमाणपत्र के फर्जी होने का पता चलने पर उसे नौकरी से नहीं निकाला जाएगा। मुंबई उच्च न्यायालय के इस विवादास्पद निर्णय की अपील पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि ऐसे मामलों में दोषी व्यक्ति फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर प्राप्त की गई नौकरी में नहीं रह सकेगा। इसी समय भारत सरकार ने फर्जी एससी/एसटी सर्टिफिकेट्स के आधार पर नौकरी प्राप्त करने वालों के खिलाफ एक अभियान चलाएगा।
इस समय प्रश्न यह उठता है कि क्या देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टयां फर्जी एससी/एसटी सर्टिफिकेट्स के दुरुपयोग को रोकने हेतु गंभीर हैं। बल्कि ये दोनों ही राजनीतिक पार्टियां यानि कांग्रेस व भाजपा इस गोरखधंधे को और प्रोत्साहित करती रही हैं जिसके कारण देश का वंचित समाज ठगा हुआ-सा महसूस करता है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की एक सुरक्षित सीट से दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों ने निषादों, मल्लाहों व केवटों का वोट प्राप्त करने के लिए दो निषादों को अपना प्रत्याशी बनाया। ये दोनों ही प्रत्याशी उत्तर प्रदेश के स्थायी निवासी हैं और जुगाड़ से दिल्ली से अनुसूचित जाति के सर्टिफिकेट्स प्राप्त कर लिए। दोनों पार्टियां यह जानती हैं कि निषाद, मल्लाह और केवट उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति में नहीं बल्कि ओबीसी कैटेगरी में आते हैं। अर्थात अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीट पर एक अतिपिछड़े वर्ग से संबंध रखने वाला व्यक्ति उनका प्रतिनिधित्व कर रहा है जो संविधान में दलितों/वंचितों के लिए प्रदत्त सुविधाओं की लूट है। दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों की यह कवायत उस क्षेत्र में निषादों, मल्लाहों का वोट प्राप्त करने के लिए की गई। फिर सरकार का यह कहना कि जाली सर्टिफिकेट्स के खिलाफ अभियान चलेगा, बेमानी लगता है। इन प्रत्याशियों के विषय में एक बात और प्रकाश में आई है कि ये लोग वर्ष 2014 के चुनावों से पूर्व विधानसभा चुनावों में दोनों ही निषाद प्रत्याशी सामान्य सीट से लड़े थे तो उन्होंने खुलेआम यह कहा था कि सपा के शासन में यादवों का काम होता था और बसपा के राज में सिर्प दलितों का काम होता है आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ऐसी मानसिकता वाले लोग अपने फायदे के लिए फर्जी एससी सर्टिफिकेट तो बनवा लेते हैं परन्तु क्या वे दलितों का प्रतिनिधित्व करके उनके साथ न्याय कर सकते हैं।
लगभग दो वर्ष पूर्व दिल्ली में एक बहुत बड़ा घोटाला सामने आया था। दिल्ली उच्च न्यायालय ने सभी प्राइवेट स्कूलों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूए) के बच्चों के लिए 25 प्रतिशत आरक्षित की थी परन्तु दिल्ली के करोड़पतियों जो जीके, न्यू फ्रेंड्स कालोनी, साउथ एक्सटेंशन जैसी पॉश कालोनियों में रहते थे दलालों की मदद से फर्जी प्रमाणपत्र के जरिये ईडब्ल्यूएस सीट्स पर अपने बच्चों का एडमिशन करवा लिया करते थे।
हमारे संविधान निर्माताओं ने दलित व आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों को राष्ट्र की मुख्यधारा में शामिल करने हेतु उनके लिए कुछ सुविधाओं का प्रयोजन किया है परन्तु फर्जी प्रमाणपत्रों के जरिये कुछ सम्पन्न लोग इन सुविधाओं पर गलत तरीके से कब्जा कर लेते हैं। वर्ष 2011 में राज्यसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर यह चर्चा हुई थी कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वालों के लिए सरकार ने विभिन्न सुविधाएं दे रखी हैं परन्तु बीपीएल कार्ड की वास्तविकता यह है कि जो बीपीएल कार्ड के सही हकदार हैं उन्हें तो बीपीएल कार्ड नहीं मिल पाते और ग्राम प्रधानों और संबद्ध अधिकारियों की मिलीभगत से बीपीएल कार्ड उन लोगों के बन जाते हैं जो इसके पात्र नहीं हैं। बीपीएल कार्ड उन लोगों के बन रहे हैं जो तीन-चार एकड़ खेत के मालिक हैं ज़िनके घर में मोटरसाइकिल, फ्रिज जैसी लग्जरी के सामान मिल जाते हैं। कैसी त्रासदी है कि वंचितों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए सरकारी सुविधाएं लूट की भेंट चढ़ती जा रही हैं। एक ओर गरीब सवर्ण इस घुटन में जी रहे हैं कि सारी नौकरियां एससी/एसटी को मिल रही हैं और उनके बच्चों को आरक्षण की वजह से नहीं मिल पा रही हैं जबकि वास्तविकता यह है कि चाहे वह आरक्षित वर्ग का गरीब और वंचित हो या अनारक्षित वर्ग का गरीब व वंचित हो, दोनों ही पिस रहे हैं। क्योंकि सरकारी नौकरियां अब फर्जीवाड़े और ठेकेदारी व्यवस्था की भेंट चढ़ रही है। आजकल सभी सरकारी कार्यालयों में वर्ग सी एवं डी की पोस्टों का काम कांट्रैक्ट सिस्टम की भेंट चढ़ गया है जहां मेरिट का कोई अस्तित्व नहीं रह गया है और सारी रिक्तियां जुगाड़ से भरी जा रही हैं। कांट्रैक्ट सिस्टम की आड़ में भर्ती की सारी शक्तियां कर्मचारी चयन आयोग या अन्य भर्ती बोर्डों से छीनकर कांट्रैर्क्ट्स को दे दी गई हैं। कभी-कभार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आरक्षण को रिव्यू करने की बात उठती है और इसके पक्ष और विपक्ष में अनेक तर्प दिए जाते हैं। जो भी हो इस विषय में ऊहापोह की स्थिति को समाप्त करना होगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि आरक्षण का लाभ उन्हीं को मिले जो आर्थिक रूप से कमजोर और सामाजिक रूप से पिछड़े हैं। उदाहरण के तौर पर राजस्थान में मीणा समुदाय अनुसूचित जनजाति में आते हैं और हिमाचल के कुछ क्षेत्र में कई सवर्ण भी अनुसूचित जनजाति में आते हैं। इन दोनों ही आदिवासी जातियों द्वारा दलितों का शोषण होता है क्योंकि ये जातियां आर्थिक रूप से काफी सम्पन्न व सामाजिक रूप से काफी दबंग हैं। अर्थात जिस ध्येय से संविधान में आरक्षण की व्यवस्था दी गई थी इन दबंग जातियों को दिए जा रहे आरक्षण से संविधान में आरक्षण की व्यवस्था ध्येय व उद्देश्य पूरा नहीं होता। आजकल वैसे कभी पाटीदारों का आंदोलन, कभी गूजरों का आंदोलन और कभी जाटों का आंदोलन देश में अशांति फैलाने का काम कर रहा है। इन आंदोलनों के कारण देश में हजारों करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हो गई है। यदि हम सही मायनों में यह चाहते हैं कि आरक्षण दलित, वंचित और आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के लिए ही रहे तो दबंगों और आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों को आरक्षण के लाभार्थियों की सूची से हटाना होगा, जिससे आरक्षण का लाभ उसके सही हकदारों को मिल सके। यदि सरकार दलितों/ आदिवासियों/ वंचितों को इनका संवैधानिक हक देना चाहती है तो जाति प्रमाणपत्र में हो रहे फर्जीवाड़े को न सिर्प रोकना होगा अपितु ऐसे लोगों के विरुद्ध कड़े कदम उठाने होंगे। इसी प्रकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को दी जाने वाली सुविधाओं पर भी डाका डालने वालों के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही सुनिश्चित करनी होगी। साथ ही साथ वर्ग/जाति विशेष का वोट लेने के लिए संविधान के नियमों का उल्लंघन करने से बचना होगा।
(लेखक एक पहल नामक एनजीओ के राष्ट्रीय महासचिव हैं।)

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