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राहुल की रहस्यमय मुलाकात
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डॉ. दिलीप अग्निहोत्रा
अभी तक राहुल गांधी की विदेश यात्राएं ही रहस्यमय होती थी। फ्रत्येक विषय पर दहाड़ने वाले फ्रवक्ता इस पर बात करने से कतराते थे। ननिहाल विदेश में है। इसलिए भी इसे ज्यादा तूल नहीं दिया जाता। वैसे समाजवादी नेता अखिलेश यादव इस मसले पर ज्यादा सही रहे। उनकी तरफ से पहले ही यह बता दी गई थी कि वह जन्मदिन परिवार सहित लंदन में मनाएंगे। सार्वजनिक जीवन में समाज से बहुत कुछ मिलता है। बहुत कुछ बताना भी पड़ता है। अन्यथा यही समाज अटकलें लगाता है। राहुल की विदेश यात्राओं की तरह चीनी राजदूत से मुलाकात भी रहस्यमय रही। इसमें कांग्रेस के फ्रवक्ता भी जिम्मेदार हैं। उनकी बातों से ऐसा लगा कि कुछ छिपाने का फ्रयास हो रहा है। पहले कहा गया कि ऐसी कोई मुलाकात नहीं हुई। यह भक्त चैनलों की फर्जी खबर है। फिर मान लिया की मुलाकात हुई थी। इसका मतलब था कि कांग्रेस फ्रवक्ता जिनको भक्त चैनल कहते हैं वह सही थे।
यहां चीनी राजदूत से मुलाकात पर आपत्ति नहीं है। राहुल लोकसभा सदस्य हैं। विपक्ष की राष्ट्रीय पार्टी के उपाध्यक्ष है। लेकिन आपत्ति इस बात की है कि इसको देश से छुपाने का फ्रयास किया गया। सच्चाई तब स्वीकार की गई, जब कोई विकल्प ही नहीं बचा। लेकिन जमाने को इस मुलाकात की खबर लग चुकी थी।
बेहतर तो यही होता की राहुल गांधी चीनी राजदूत से मौजूदा माहौल में न मिलते। क्योंकि अभी तक राहुल विदेश नीति पर अपनी गहन रुचि को फ्रमाणित नहीं कर सके हैं। दूसरी बात यह कि मुलाकात करनी ही थी तो डंके की चोट पर होनी चाहिए थी। इस समय राहुल चीनी राजदूत से नजर मिलाकर मिलते। यह कहते की उनका देश, भारत को जो धमकी दे रहा है वह गलत है। इस मसले पर हमारा पूरा देश एकजुट है। इस मुलाकात में न भाजपा होती, न मोदी होते, न पक्ष विपक्ष होता, न राजनीति होती। केवल अपना राष्ट्र होता और विपक्ष के बड़े नेता के रूप में राहुल इसका फ्रतिनिधित्व कर रहे होते। फिर गर्व के साथ इस मुलाकात का ब्यौरा दिया जाता। राहुल देखते की इससे उनका कद बढ़ता। मोदी, भाजपा का विरोध तो चलता रहेगा। लेकिन चीनी राजदूत को दो टूक बताना चाहिए था कि राष्ट्र की रक्षा में हमारे यहां कोई पार्टी लाइन नहीं होती। कम्युनिस्ट पार्टी की हमदर्दी अलग विषय है। लेकिन यहां तो राहुल की मुलाकात को छिपाने का फ्रयास किया गया। इसका मतलब था कि ऐसा कुछ बताने को नहीं था जिससे गौरव बढ़ता।
कई कारणों से इसकी आशंका भी होती है। कांग्रेस के दिग्गज नेता मणिशंकर अय्यर, सलमान खुर्शीद आदि की पाकिस्तान यात्रा को लोग भूले नहीं है। ये वहां यह कहने गए थे की मोदी सरकार के रहते पाकिस्तान से रिश्ते "ाrक नहीं होंगे। आप इन्हें हटवाएं। गोया की कांग्रेस के शासन में पाकिस्तान से रिश्ते बड़े मधुर थे। राहुल गांधी खुद पिछले तीन वर्ष से किस फ्रकार की राजनीति पर अमल कर रहे हैं। राहुल ने चीनी राजदूत से क्या कहा अभी स्पष्ट नहीं। लेकिन उनकी पिछले तीन वर्षों की बातों से अनुमान लगाये तो वही घिसीपिटी चंद बाते ही कौंधती हैं। वह ये की मोदी जी सूट-बूट पहनते है, कुछ उद्योगपतियों का भला करते है, गरीबो, किसानों के विरोधी हैं, उनको कुचल रहे है। हम उनको बचाने पहुंच जाते है, असहिष्णुता बढ़ रही है, दलित व अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं। राहुल की विरोधी राजनीति इन्हीं वाक्यों तक सिमटी है। ऐसे में उन्होंने चीनी राजदूत से क्या कहा होगा, इसे लेकर आशंका होना स्वाभाविक है। मुलाकात को जिस फ्रकार छुपाया गया उससे इस बात को बल मिला है। जबकि इस समय चीन से विरोध व्यक्त करने के अलावा अन्य कोई बात नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन राहुल की राजनीति विश्वास जगाने वाली नहीं होती।
चीन के मामले में सरकार ने जो दृढ़ता दिखाई है, उसका समर्थन राष्ट्रीय भावना से करना चाहिए। चीन की घुड़की को दरकिनार किया गया। भारत के सैनिकों ने चीनी सीमा पर तम्बू गाड़े। अमेरिका व जापान के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास किया गया। अनेक देशों ने भारत के फ्रति समर्थन व्यक्त किया। यह विदेश नीति की सफलता है। चीन व पाकिस्तान से तो पहले भी कभी अच्छे रिश्ते नहीं थे। मोदी ने फ्रयास किए। अपेक्षित सफलता नहीं मिली। लेकिन कांग्रेस ने इन तीन वर्ष में नकारात्मक बिंदु ही देखे। चीन के फ्रति नीति पर भी उनका यही रुख था। कांग्रेस के फ्रवक्ता तंज कसते हैं कि मोदी जी चीनी फ्रधानमंत्री को झूला झूला रहे थे, क्या हुआ। ऐसी टिप्पणी से वह जवाहर लाल नेहरू की चीन नीति पर चर्चा का मौका देते हैं। यदि मोदी झूला झुला रहे थे, तो हिंदी चीनी भाई-भाई पींग चलाने जैसा था। मोदी ने दोस्ती का हांथ बढ़ाया। इसी के साथ रक्षा तैयारियां भी तेज कर दी। अनेक करार हुए। भारत ने हथियार बनाने की दिशा में भी उल्लेखनीय कदम उठाए हैं। चीन इन्हीं बातों से बौखलाया है। वह भारत को सीमा विवाद में उलझाना चाहता है। आर्थिक जगत में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है। उसका सामान घटिया व खतरनाक है। इससे लोग अब दूरी बना रहे हैं। विश्व बाजार में इसकी जगह भारत ले रहा है। ऐसे में चीन अपनी हरकतें तेज कर सकता है। इसके जवाब में सरकार अपना कार्य करे। लेकिन समाज व राजनीतिक पार्टियों की भी जिम्मेदारी है। उन्हें इस विषय पर राष्ट्रीय सहमति की अभिव्यक्ति करनी चाहिए। क्या चीनी राजदूत से मुलाकात में ऐसा कर सके।
(लेखक विद्यांत हिन्दू पीजी कॉलेज में राजनीति के एसोसिएट पोफेसर हैं।)
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