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कश्मीर : जन्नत से जहन्नुम तक
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इन्दर सिंह नामधारी
एक जमाना था जब कश्मीर को जन्नत (स्वर्ग) कहा जाता था तथा कई कवियों ने कश्मीर पर अपने-अपने ढंग से तराने लिखे हैं। आज उसी कश्मीर को यदि जहन्नुम (नरक) कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। भारत के लोग आज भी उन दिनों को याद करते हैं जब देश के भिन्न-भिन्न राज्यों से सैलानी कश्मीर आया करते थे तथा वहां के लोग उनको सिर-आंखों पर बै"ा लिया करते थे। श्रीनगर की डल लेक (झील) के शिकारे (कस्तियां) भुलाए नहीं भूलतीं। वास्तव में कश्मीर को पूरे भारत का पर्यटन केंद्र माना जाता था। पता नहीं उसको किसकी बुरी नजर लग गई और वह आज हिंसा का पर्याय बन गया है। पाकिस्तान निश्चित रूप से इस परिस्थिति से खुश हो रहा होगा क्योंकि उसके मन की मुराद पूरी हो रही है। कश्मीर घाटी के स्थानीय युवक भी आतंकियों के साथ मिल गए हैं और पाकिस्तान लगातार आग में घी डालने का काम कर रहा है। कश्मीर में पहले भी कई बार संकट के बादल छाते रहे हैं लेकिन इस बार स्थिति मानों सभी हदें पार कर गई हैं। यक्ष प्रश्न यह उ"ता है कि कश्मीर में ऐसी हालत आखिर हुई भी तो क्यों?
राजनीतिक विश्लेषकों की मान्यता है कि इस स्थिति का सबसे बड़ा कारण है कश्मीर में भाजपा और पीडीपी की साझी सरकार का ग"न होना। भारत के हिन्दू धर्मावलंबियों में पथा है कि विवाह के पूर्व वे लड़के एवं लड़की के टीपन (जन्मकुंडली) का मिलान किया करते हैं ताकि विवाहित जोड़ी निरापद जीवन बिता सकें। ऐसा लगता है जैसे कश्मीर में भाजपा एवं पीडीपी के ग"बंधन के समय दोनों की जन्म कुंडलियों पर ध्यान ही नहीं दिया गया। भाजपा की जन्मपत्री में स्पष्ट लिखा है कि उसके संस्थापक श्यामा पसाद मुखर्जी ने कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बनाने के लिए श्रीनगर की जेल में मौत को गले लगा लिया था। इसके "ाrक विपरीत पीडीपी की जन्मपत्री में कश्मीर को स्वायतता पदान करने का संकल्प छिपा हुआ है। उपरोक्त दो विरोधाभासी जन्मपत्रियों वाले दलों का ग"बंधन आखिर मंगलकारी होता भी तो कैसे?
पिछले एक वर्ष से कश्मीर चूंकि हिंसा की आग में झुलस रहा है इसलिए पाकिस्तान बड़ी आसानी से अपने आतंकियों को घाटी में भेजकर अपना उल्लू सीधा कर रहा है। लगभग रोज ही भारत के सैनिक एवं आम नागरिक आतंकियों द्वारा मारे जा रहे हैं। राज्य के स्कूल एवं कॉलेज लगभग एक वर्ष से बंद पड़े हैं। 11 जुलाई 2017 के दिन आतंकियों ने गुजरात से अमरनाथ यात्रा पर आए सात तीर्थयात्रियों को मौत के घाट उतार दिया। इन हत्याओं के विरोध में पूरे देश में धरने और पदर्शन किए जा रहे हैं। ऐसे पदर्शनों से देश में सांप्रदायिक तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है क्योंकि पदर्शनों के दौरान काफी भड़काऊ नारे लगाए जाते हैं जिनसे मुस्लिम धर्मावलंबी अपने आपको आहत समझते हैं। ऐसा ही वातावरण देश में उस समय बन गया था जब वर्ष 1984 में दो सिख अंगरक्षकों ने इंदिरा गांधी की जघन्य हत्या कर दी थी। सांप्रदायिक भावना भड़क जाने के कारण उन दिनों पूरे सिख समाज को फब्बतियों को सुनना पड़ता था। आज भारत के देशभक्त मुसलमान भी कुछ उसी तरह की स्थिति को झेल रहे हैं। देश में सांप्रदायिक नफरत इस कदर बढ़ गई है कि हरियाणा के एक कसबे में उन्मादियों का एक हुजूम मस्जिद के भीतर एक मौलाना को थप्पड़ मारता है तथा उसे भारत माता की जय बोलने पर मजबूर करता है। इस तरह की घटनाओं से अल्पसंख्यकों में बिलगाव की भावना जड़ जमाने लगी है। देश में सांप्रदायिक सद्भाव बनाये रखना किसी भी जिम्मेवार सरकार का पहला कर्तव्य होना चाहिए। आज जरूरत इस बात की है कि भारत के सभी राजनीतिक दल अपने-अपने दलीय चश्मों को उतारकर हकीकत के धरातल पर उतरें और भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति को बचाने की यथा संभव कोशिश करें। कश्मीर में व्याप्त तनाव एवं घट रही घटनाओं पर पूरी दुनिया टकटकी लगाए बै"ाr है कि भारत अब इस समस्या का हल कैसे निकालता है?
भारत के सैनिको को कश्मीर घाटी के भटके हुए युवको की पत्थरबाजी का लगातार सामना करना पड़ रहा है जो एक गंभीर समस्या है। लगभग तीन महीने पहले कश्मीर घाटी के फुलगांव इलाके में सेना के एक मेजर लितुल गोगोई ने पत्थरबाजों से अपनी टीम को बचाने के लिए उन्हीं में से एक युवक फारुक अहमद डार को अपनी जीप के बोनट पर बांधकर अपने साथियों की जान बचाई थी।
मेजर गोगोई के इस कदम से कश्मीरी लोग एवं सरकार स्पष्ट रूप से दो भागों में बंट गए हैं। नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर फारुक ने जहां मेजर के इस कदम को मानवाधिकार-हनन का मामला बताया जबकि भाजपाध्यक्ष श्री अमित शाह एवं सेनाध्यक्ष श्री विपिन रावत ने गोगोई के इस कदम को दूरदर्शितापूर्ण एवं देशभक्ति से ओत-पोत बताया है। कश्मीर की पुलिस ने जहां मेजर गोगोई के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया है वहीं केंद्र सरकार गोगोई को सम्मानित कर रही है। पुलिस अभी तहकीकात कर ही रही थी कि कश्मीर के मानवाधिकार आयोग ने फारुक डार को 10 लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश पारित कर दिया है। आयोग के इस निर्णय से खीझ कर केंद्रीय सरकार के एक वरीश्" मंत्री श्री वेंकैया नायडू ने मानवाधिकार आयोग को खरी-खोटी सुनाते हुए उसके आदेश को रद्दी की टोकरी में डाल देने का बयान दिया है। श्री नायडू ने कश्मीर के मानवाधिकार आयोग को भंग करने की मांग भी उ"ा दी है। एक ही सरकार में बै"s दो दलों में ऐसे विरोधाभासी विचारों को रखने वाली सरकार को शायद ही किसी ने देखा हो। जैसे-जैसे समय बीत रहा है कश्मीर में विरोधाभास की लकीरें और चौड़ी होती जा रही हैं। राजनीतिक विश्लेषक भी समझ नहीं पा रहे हैं कि कश्मीर की समस्या आखिर सुलझेगी भी तो कैसे? इस नाजुक दौर में चीन भी परोक्ष रूप से पाकिस्तान के पीछे आ खड़ा हुआ है और उसने भूटान के डोकलाम में सामरिक सड़क बनाने के लिए अपनी सेना भेज दी है। आज के दिन भारत और चीन दोनों देशों की सेनाएं डोकलाम में आमने-सामने खड़ी हैं। यह सुखद संयोग है कि दिनांक 14 जुलाई 2017 को केंद्रीय सरकार ने एक सर्वदलीय बै"क बुलाकर देश के सभी विरोधी दलों को डोकलाम की स्थिति से अवगत करा दिया है। देश में आज सांप्रदायिक आधार पर लोग बुरी तरह बंटते जा रहे हैं तथा मजहबी नफरत की छिटपुट घटनाएं भी घटने लगी हैं।
भाजपा को इस विकट परिस्थिति में ऐतिहासिक भूमिका निभानी होगी। समुद्र मंथन की पौराणिक गाथा इस तथ्य की गवाह है कि जैसी किसी की मानसिकता होती है उसको परिणाम भी वैसा ही मिलता है। देश के महान चिंतक चाणक्य ने निम्नांकित सूत्र लिखकर यह सिद्ध करने की कोशिश की है कि अच्छा-बुरा परिणाम मनुष्य की मानसिकता पर ही निर्भर करता है।
अयुक्तं स्वामिनो युक्तं
युक्तं नीचस्य दूषणम्।
अमृतं राहवे मृत्युर्विषं
शंकरभूषणम्।।
अर्थात बुरी मानसिकता रखने वाले राहु को अमृत पीते हुए सर कटवाना पड़ा जबकि लोकहित की भावना से पेरित भगवान शंकर ने विष पीकर अपने आपको महादेव बना लिया। इस आलोक में अब भाजपा को भी तय करना है कि वह इन घटनाओं से चुनावी लाभ उठाएगी या देश के भविष्य को उज्जवल बनाएगी?
(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)
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