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धर्मः आतंकियों व दंगाइयों का?
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तनवीर जाफरी
भारत सरकार अपने पिछले तीन वर्ष के शासनकाल की सफलता के चाहे जितने ढोल क्यों न पीटे परंतु यह एक कड़वी सच्चाई है कि देश की आम जनता इन दिनों अपने-आप में जितनी बेचैनी महसूस कर रही है तथा स्वयं को जितना असहाय महसूस कर रही है उतना विचलित समाज पहले कभी नहीं देखा गया। जम्मू-कश्मीर, पश्चिम बंगाल, उत्तर पदेश, झारखंड, बिहार, हरियाणा, राजस्थान तथा पूर्वोत्तर के कई राज्यों से मिलने वाले समाचार अपने-आप में यह जानने के लिए काफी हैं कि देश में इस समय चारों ओर एक धुंआ सा उठ रहा है। देश में कई जगहों से धर्म विशेष के लोगों को निशाना बनाए जाने के समाचार पाप्त हो रहे हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य में पिछले दिनों अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले हिंदू श्रद्धालुओं को निशाना बनाया गया तो पश्चिम बंगाल में भी मुसलमानों की हिंसक भीड़ ने जमकर उपद्रव किया तथा गरीब, बेगुनाह लोगों के अनेक घर व दुकानें पूंक डालीं।
इसी पकार देश के कई स्थानों से दाढक्वी व टोपी जैसी विशेष पहचान रखने वालों को केवल उनकी धार्मिक पहचान के चलते निशाना बनाया गया तो कहीं गौकशी अथवा गौभक्षण के संदेह अथवा आरोप में मुस्लिम समुदाय के लोगों को मारा-पीटा गया। यहां तक कि कई लोगों की हत्याएं भी कर दी गईं। कई स्थानों पर धर्म विशेष की भीड़ द्वारा दूसरे धर्म के लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। गोया देश में कानून व्यवस्था के बजाय जंगल राज जैसी स्थिति बनती दिखाई दे रही है।
उपरोक्त अथवा इन जैसी सभी घटनाओं में हमेशा की तरह वही लोग मारे जा रहे हैं या उन्हीं आम लोगों के घर तबाह हो रहे हैं जिनका देश की मौजूदा गंदी राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। सभी पभावित लोग व उनके परिवार देश के साधारण नागरिक हैं। जबकि इन हत्याओं व ऐसी घटनाओं पर राजनीति करने वाले लोग तथा इन हादसों का राजनैतिक लाभ उठाने वाली शक्तियां पूरी तरह सुरक्षित रहकर अपनी आगे की सियासी चालों की फिक में लगी हुई हैं। ऐसे में सवाल यह है कि देश में चारों ओर फैलती जा रही इस अफरा तपक्करी के लिए क्या किसी धर्म विशेष के लोगों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है? क्या वास्तव में पूरा देश तथा हमारा समग्र समाज इस स्वभाव का है कि वह इतनी आसानी से राजनीतिज्ञों की मंशा के मुताबिक सांपदायिक ध्रुवीकरण का शिकार हो जाए?
क्या आतंकवादियों व दंगाइयों या समाज में सांपदायिकता का जहर घोलने वालों को किसी धर्म विशेष के चश्मे से देखा जाना चाहिए? भारतवर्ष का धर्मनिरपेक्ष समाज यह मानता है कि आतंकवाद सिर्प आतंकवाद होता है और इसका किसी भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं होता। यह बात इस संदर्भ में की जाती है कि चूंकि आतंकवादी कृत्य तथा हिंसक घटनाएं ऐसी चीजें हैं जिनकी इजाजत कोई भी धर्म व उसकी धार्मिक शिक्षों नहीं देतीं। परंतु हमारे देश में आतंकवाद को धर्मविशेष से जोड़कर देखने जैसा पूर्वाग्रह रखने वाले एक विशेष विचारधारा के लोगों द्वारा इस बात के जवाब में यह तर्प दिया जाता है कि बावजूद इसके कि सारे मुसलमान आतंकवादी नहीं होते परंतु सारे आतंकवादी मुसलमान ही क्यों होते हैं?
हालांकि पिछली कई घटनाओं में शामिल गैर मुस्लिम समाज से संबंध रखने वाले आतंकियों के पकड़े जाने के बाद यह साबित हो चुका है कि आतंकवादी, राष्ट्रद्रोही अथवा देश की गुप्त जानकारियों को दुश्मन देशों तक पहुंचाने का काम करने वाले पकड़े गए लोग मुस्लिम समुदाय के लोग नहीं हैं। बंगाल में भी बावजूद इसके कि दो अलग-अलग समुदायों के लोगों के बीच हिंसक घटनाओं के समाचार पाप्त हुए हैं परंतु साथ-साथ यह खबरें भी आ रही हैं कि इस पूरे मामले में राजनैतिक दलों के लोग, बाहरी शक्तियां तथा सांपदायिकता की राजनीति के विशेषज्ञ लोगों का पूरा हाथ है।
पश्चिम बंगाल से ऐसी खबरें भी पाप्त हुई हैं कि इन्हीं हिंसक घटनाओं के बीच कहीं मुसलमानों ने हिंदू परिवार के लोगों की जान बचाई तो कहीं हिंदुओं ने मुसलमानों की। अमरनाथ यात्रा पर हुए आतंकवादी हमले को लेकर भी इस समय सबसे अधिक सुर्खियों में शेख सलीम नाम के उस बस चालक का नाम चर्चा में है जिसके बारे में यह बताया जा रहा है कि यदि उसने तीर्थयात्रियों की बस को तेजी से भगाया न होता तो आतंकवादी और अधिक श्रद्धालुओं की हत्याएं कर सकते थे। खबरों के मुताबिक गुजरात सरकार ने बस ड्राईवर शेख सलीम को इनाम देने की घोषणा की है तथा संभवतः उसे पतिष्ठित वीरता पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा सकता है। यदि आतंकवाद किसी धर्म विशेष से जुड़ा विषय है या धर्म विशेष के लोग ही आतंकवादी होते हैं तो जम्मू-कश्मीर में पुलिस उपाधीक्षक अयूब पंडित की हत्या मुस्लिम बहुसंख्य भीड़ द्वारा क्यों कर दी जाती?
परंतु उपरोक्त तस्वीर का एक दूसरा पहलू यह भी है कि इन सच्चाइयों को जानने के बावजूद अभी भी सांपदायिक ताकतें अपने मिथ्या पचार तथा जहरीली विचारधारा के बल पर देश में सांपदायिक ध्रुवीकरण कराने का कोई अवसर गंवाना नहीं चाहतीं। इन्हीं शक्तियों के पैरोकार ड्राईवर शेख सलीम को तीर्थ यात्रियों को बचाने वाले ड्राईवर के रूप में नहीं बल्कि सात श्रद्धालुओं को आतंकवादियों के हवाले करने वाले एक `मुस्लिम जेहादी ड्राईवर' के रूप में पचारित करने की कोशिश कर रहे हैं। यही शक्तियां पश्चिम बंगाल की सांपदायिक हिंसा में अपनी भूमिका को नकार कर पूरी तरह से ममता बनर्जी को व उनकी कथित मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति को जिम्मेदार ठहरा रही हैं।
यह बात लगभग वैसी ही है जैसे कि गोवा के एक भाजपा मंत्री राज्य में बीफ की बिकी को जायज ठहराते हैं तथा राज्य के सैलानियों को उनकी मर्जी का खान-पान उपलब्ध कराने की गारंटी देते हैं। केरल, मणिपुर व असम जैसे कई राज्यों में स्वयं भाजपा नेता व कार्यकर्ता गौमांस का सेवन करते हैं।
यहां तक कि कई भाजपा कार्यकर्ताओं ने तो गौमांस पर भाजपा की नीति का विरोध करते हुए पार्टी से इस्तीफा तक दे डाला। परंतु जब बात गौ हत्या या गौभक्षण की होती है तो यही शक्तियां इसके लिए सीधे तौर पर केवल मुसलमानों को ही जिम्मेदार ठहरा देती हैं। उस समय यह लोग यह भी भूल जाते हैं कि देश में चल रहे अधिकांश बूचड़खानों के स्वामी गैर मुस्लिम हैं यहां तक कि कई तो भाजपा के ही समर्थक भी हैं। जाहिर है ऐसा सिर्प इसलिए है क्योंकि धर्म विशेष के विरोध पर टिकी इनकी राजनीति इन्हें सत्ता तक पहुंचाने में इनकी पूरी सहायता करती है।
इन सब हालात के बावजूद इस समय देश के समस्त धर्मनिरपेक्ष, शांतिपिय तथा देश को एकता व अखंडता के सूत्र में पिरोये रखने के पक्षधर भारतीय समाज की यह जिम्मेदारी है कि वह राजनैतिक दलों की बदनीयती तथा उनके सत्तालोभी हथकंडों से बचने की कोशिश करे। इस समय देश के लोगों का ध्यान मंहगाई, बेरोजगारी, नोटबंदी की असफलता, असफल विदेश नीति आदि से हटाकर बड़ी ही चतुराई के साथ धर्म-संपदाय तथा जाति आदि के विवाद पर केंद्रित कर दिया गया है। लिहाजा समग्र भारतीय समाज को एक बार फिर पूरी एकता व पूरी शक्ति के साथ आतंकवादियों, दंगाइयों तथा सांपदायिकतावादियों को मुंह तोड़ जवाब देने की जरूरत है।
हमें पत्येक आतंकवादी घटना तथा सांपदायिक दंगों व फसादों के बाद किसी भी धर्म विशेष के विरुद्ध अपने दिलों में नफरत पालने की कोई जरूरत नहीं बल्कि हमें यह समझ लेना चाहिए कि आतंकवाद तथा दंगे-फसाद, सांपदायिकता व वैमनस्य का किसी धर्म या उसकी शिक्षाओं से कोई लेना-देना नहीं होता यह सत्तालोभियों द्वारा रचा गया एक ऐसा चकव्यूह है जिसमें सभी संपदायों के गरीब व बेरोजगार लोगों को अपने जाल में फंसाकर आतंकवाद व सांपदायिकता की फसल को सींचा जाता है।
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