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क्या युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं उत्तर कोरिया-अमेरिका

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:13 Aug 2017 6:35 PM GMT

क्या युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं उत्तर कोरिया-अमेरिका

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आदित्य नरेन्द्र
पिछले सप्ताह उत्तर कोरिया और अमेरिकी नेताओं ने जिस तरह के गर्मागर्म बयान एक दूसरे के खिलाफ दागे हैं उससे ऐसा लगने लगा है कि दोनों परमाणु सम्पन्न देशों के बीच युद्ध के हालात पैदा होते जा रहे हैं। ऐसे में दुनिया के सामने लाख टके का सवाल यह है कि क्या निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच युद्ध संभव है। और यदि दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ तो उसका क्या परिणाम होगा।
आज से दो दशक पहले जब भारत-पाक के बीच क्रिकेट मैच होता था तो पाक एम्पायरों के विवादास्पद फैसलों के बाद भारत में लोग मैच पर टिप्पणी करते हुए कह देते थे कि पाक की ओर से ग्यारह नहीं बल्कि बारह खिलाड़ी खेलते हैं। लगभग ऐसा ही कुछ उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच में भी हो रहा है। अमेरिका जिस चीन को रेफरी की भूमिका के लिए इस्तेमाल करना चाहता था वह कभी पर्दे के पीछे से और कभी खुल्लमखुल्ला उत्तर कोरिया के साथ नजर आता है। ऐसे में उत्तर कोरिया के खिलाफ कार्रवाई को लेकर अमेरिका की दुविधा बढ़ गई है। ताजा विवाद उत्तर कोरिया द्वारा किए गए अंतरमहाद्वीपी बैलिस्टिक मिसाइल के परीक्षण से भड़का है क्योंकि अमेरिका के कई हिस्से इस मिसाइल की मारक जद में आ गए हैं। इसके चलते अमेरिका के लिए इधर कुआं उधर खाई वाले हालात पैदा हो गए हैं। इस परीक्षण के बाद अमेरिका ने उत्तर कोरिया पर आर्थिक प्रतिबंध लागू करने का प्रस्ताव रखा था जिसके जवाब में किम ने गुआम द्वीप पर बने अमेरिकी सैन्य अड्डे को मिसाइल से उड़ाने की धमकी दे दी। इस धमकी का जवाब ट्रंप ने यह कहते हुए दिया कि यदि किम ने गुआम या अमेरिका के किसी अन्य क्षेत्र या अमेरिका के किसी सहयोगी देश के खिलाफ कुछ किया तो उसे वाकई पछताना पड़ेगा। चीन इस मामले में एक कदम आगे और दो कदम पीछे की नीति पर अमल कर रहा है। एक ओर जहां चीनी राष्ट्रपति शी जिनफिंग अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से टेलीफोन पर बातचीत के दौरान कहते हैं कि उत्तर कोरिया को उकसावे की कार्रवाई बंद करनी चाहिए वहीं दूसरी ओर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स अपने सम्पादकीय में अमेरिका को अगाह करता है कि वह उत्तर कोरिया से जंग जीतने का सपना न देखें क्योंकि उसके लिए उत्तर कोरिया से जंग जीतना बेहद मुश्किल होगा। इस पूरे मामले में चीन सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनकर सामने आया है। दरअसल चीन का मानना है कि दुनिया की एकमात्र महाशक्ति बनने के उसके सपने को पूरा करने में पाकिस्तान और उत्तर कोरिया से उसे मदद मिल सकती है। आने वाले वर्षों में एशिया में जहां उसका मुकाबला भारत से होगा वहीं विश्व पटल पर उसके सामने अमेरिका खड़ा है। भारत को घेरने के लिए वह पाकिस्तान को मोहरा बना रहा है और अमेरिका से निपटने के लिए उसने उत्तर कोरिया को आगे कर दिया है। चीन चाहता है कि भारत और अमेरिका उसके दोनों मित्र देशों पाकिस्तान और उत्तर कोरिया से निपटने के लिए उसके सामने गिड़गिड़ाते हुए दिखें। यदि ऐसा हो जाता है तो उसे विश्व की एकमात्र महाशक्ति का तमगा बैठे बिठाए मिल जाएगा। यह कहना गलत नहीं होगा कि उत्तर कोरिया तो एक बहाना है। असली मकसद चीन का अमेरिका पर निशाना है। इसमें उसे उत्तर कोरिया से किए गए समझौते से खासी मदद मिल रही है। इसमें कहा गया है कि यदि उत्तर कोरिया और चीन दोनों में से किसी भी एक देश के ऊपर हमला होता है तो उसे दोनों देशों के ऊपर हमला माना जाएगा। ऐसा होने पर दोनों देश एक दूसरे की मदद करेंगे। यही वह समझौता है जो अमेरिका को अभी तक उत्तर कोरिया के खिलाफ कार्रवाई करने से रोक रहा है। दूसरी तरफ चीन भी नहीं चाहता कि उत्तर कोरिया के दरवाजे पूरी दुनिया के लिए खुलें। वह उत्तर कोरिया की खनिज संपदा और बाजार का इस्तेमाल सिर्फ अपनी इकानॉमी को मजबूत करने के लिए करना चाहता है। ऐसे में उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच युद्ध खुद उसके हित में भी नहीं है। ऐसा होने पर चाहे-अनचाहे उसे भी इस युद्ध का हिस्सा बनना होगा। इससे उसके महाशक्ति बनने के सपने को भी ब्रेक लग सकता है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की बिसात पर चीन, उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच शह-मात का खेल फिलहाल जारी है। जहां तक युद्ध की आशंका का सवाल है तो दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच युद्ध के नतीजे क्या होंगे इसे चीन सहित पूरी दुनिया समझती है। अब देखना यह है कि एक-दूसरे पर राजनीतिक जीत हासिल करने के लिए दोनों पक्ष कहां तक जाते हैं।

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