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मुंबई हादसा: समझ से परे है भीड़ का मनोविज्ञान

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:5 Oct 2017 4:21 PM GMT
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डॉ. राजेन्द्र पसाद शर्मा

एक अफवाह कैसे अफरातफरी फैलाकर लोगों का मौत का सबब् बन जाती है इसका जीता जागता उदाहरण है मुंबई रेलवे स्टेशन का हादसा। देश में यह पहला मौका नहीं है जब अफवाह के कारण भगदड़ मची हो और एक के बाद एक लोग भगदड़ के कारण मौत के शिकार होत जा रहे हैं। मुबई के एलफिंस्टन ओवरब्रिज के हादसे ने एक बार फिर हमारे पशासनिक तंत्र की पोल खोल कर रख दी है। इसे दुर्भाग्यजनक ही माना जाएगा कि एक बार फिर पशासन भीड़ के मनोविज्ञान को समझने में नाकाम रहा है। भले ही राजनीतिक दल ऐसी घटनाएं होने के बाद अपने अपने तरीके से आरोप पत्यारोप में उलझ जाते हो पर कारण की तह में जाने की कोई "ाsस कोशिश नहीं होती। इसी घटना पर शिवसेना पुल के पुराना होने और छोटा होने का आरोप लगाकर सरकार को क"घरे में खड़ा करने की कोशिश कर रही है। पर असली कारण देखा जाए तो अफवाह के मनोविज्ञान को समझना ज्यादा जरूरी है। कुछ सालों पहले मुंबई में ही अफवाह के चलते अफरातफरी के कारण मेट्रो के नीचे आकर लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। हालांकि इससे यह साफ हो गया है और स्पष्ट भी है कि देश के किसी भी कोने में भीड़भाड़ वाले स्थान पर छोटी-सी अफवाह की छुर्री छोड़कर कई निर्दोष लोगों को मौत के मुंह में धकेला जा सकता है। देश में किसी न किसी स्थान पर साल में एकाध मौतों का कारण भगदड़ बनती जा रही है। पिछले साल सबरीमाला में भगदड़ के कारण मौत देख चुके हैं हालांकि शबरी माला की यह पहली घटना नहीं थी इससे पहले 14 जनवरी 2011 को सबरीमाला मंदिर में पूजा के दौरान मची भगदड़ में 106 श्रद्धालुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा वहीं करीब 100 लोग घायल हो गए।
सबरीमाला मंदिर में सालाना आयोजन और इस अवसर पर उपस्थित होने वाले संभावित श्रद्धालुओं की जानकारी पशासन के पास पहले से होती है उसके बावजूद इस दौरान इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति क्षम्य नहीं मानी जा सकती। 41 दिवसीय मंडला पूजन के समापन की पूर्व संध्या व रविवार होने के कारण मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ था, ऐसे में पशासन की यह सामान्य समझ होना जरूरी है कि एक छोटी घटना व अफवाह किसी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकती है। हुआ भी यही, भीड़ की खींचतान में बेरिकेट टूट गया और फिर भगदड़ मचने से 40 से अधिक लोग घायल हो गए। आरंभिक सूचना से यह तो संतोष की बात है कि भगदड़ में किसी की मौत तो नहीं हुई, हालांकि कुछ घायलों की हालत गंभीर होने की जानकारी है।
सबरीमाला मंदिर वैसे भी महिलाओं के पवेश के मुद्दे को लेकर पिछले दिनों चर्चा में रहा है और सर्वोच्च न्यायालय की दखल से महिलाओं को पवेश की अनुमति मिल सकी है। वैसे भी हमारा देश धर्मपधान देश है। धार्मिक आस्था हमारे यहां चरम में हैं। तीज-त्यौहारों व मेलों में पूरे उत्साह के साथ भाग लेते हैं। यही नहीं धर्मगुरुओं के समागम तक में अनुयायियों की भीड़ उमड़ पड़ती है। पिछले दिनों वाराणसी में राजघाट पर बाबा जयगुरुदेव के अनुयायियों द्वारा आयोजित समागम व शोभा यात्रा इसका उदाहरण है जब एक छोटी-सी अफवाह के चलते भगदड़ क्या मची की 24 लोगों की जान ले गई। बाबा जयगुरुदेव के इस कार्यक्रम में आयोजकों ने पशासन से 4 से 5 हजार लोगों के एकत्रित होने की अनुमति ली थी जबकि इस समागम में 3 लाख से अधिक लोग जुटे। समागम के दौरान राजघाट पुल पर एक तो समागम में आए पैदल यात्रियों का दबाव दूसरी और रेल की आवाज की गड़गड़ाहट को पुल टूटने की अफवाह के चलते इतना बड़ा हादसा हो गया और पशासन की लाचारी कहो या ओर कुछ की वह मूकदर्शक बनकर रह गया।
अभी पिछले दिनों ही तमिलनाडु सहित दक्षिण के कुछ राज्यों में चक्रवाती तूफान से पशासनिक तैयारियों के चलते जनहानि को कम से कम स्तर पर होने दी गई। वहीं 2013 में एक ओर हम भयावह चक्रवाती तूफान पाइलिन से जनहानि बचाने में कामयाब हो जाते हैं पर धार्मिक स्थ्लों पर आयोजित समारोहों में एक अफवाह से सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है और हम देखते रह जाते हैं। दोनों ही स्थितियां इस मायने में समान है कि हमें पहले से पता है कि क्या होने वाला है। तूफान की भयावहता का पता होने से हमनें पूरी तैयारी की और जनहानि को न्यूनतम स्तर पर लाने में सफल रहे और इसका लोहा सारी दुनिया के लोगों ने माना। दूसरी और मेलों व समागमों व इस तरह के आयोजनों में आने वाले श्रद्धालुओं की संभावित संख्या का पता होने के बाद भी हम समुचित व्यवस्था करने में विफल रह जाते हैं और धार्मिक श्रद्धा लाख पयासों के कारण मौत का सैलाब बन जाती है। ऐसा नहीं है कि धार्मिक अवसरों पर इस तरह की घटना पहली बार हो रही हो। इसे दुर्भाग्य जनक ही माना जाना चाहिए कि अब तक जितनी भी इस तरह की दुर्घटनाएं हुई हैं वह भगदड़ के कारण हुई है। इससे पूर्व एक अक्तूबर, 2006 में दतिया में रतनगढ़ स्थित देवी मंदिर में पुल टूटने की अफवाह ने करीब 109 श्रद्धालुओं की जान ले ली। यह अकेले उदाहरण नहीं हैं।
पिछले सालों का इतिहास इस बात का गवाह है कि एक अफवाह किस तरह से विकराल रुप ले लेती है और परिणामस्वरूप होने वाली भगदड़ लोगों के मौत का कारण बन जाती है। इस तरह की घटनाएं बार-बार होने के बावजूद हम ऐसा पशासनिक तंत्र विकसित नहीं कर पाए, जिससे इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति को रोका जा सके। 2003 में नासिक के कुंभ में भगदड़ मचने से 40 लोगों की जान गई, 2005 में महाराष्ट्र के सतारा के मंधेरी देवी मंदिर में भगदड़ के कारण सैकड़ों लोग मारे गए। 2008 में जोधपुर के चामुंडा मंदिर में भगदड़ मची और 224 लोग दबकर मर गए। इसी तरह से 2008 में हिमाचल पदेश के नैनादेवी मंदिर, 2011 में केरल के सबरीमाला मंदिर, 2011 में ही हरिद्वार में गंगाघाट, 2012 में छ" पूजन के दौरान और 2013 में इलाहाबाद कुंभ के दौरान रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ से बेकसूर श्रद्धालुओं को जान से हाथ धोना पड़ा। तीन अक्तूबर, 14 को पटना के गांधी मैदान में रावण दहन समारोह में 32 मौत, 18 जनवरी 14 को बोहरा समाज धर्मगुरु के यहां भगद़ड़ में 19 लोग, 14 जुलाई 15 को आंध्रपदेश, 10 अगस्त 15 को देवधर मंदिर में पूजा के दौरान भगदड़ और इसी साल 10 अगस्त 16 को कोट्टयम में समारोह के दौरान पटाखा विस्फोट के कारण भगदड़ में 111 की मौत की घटनाएं हो चुकी है। यह घटनाएं कोई पाकृतिक आपदा नहीं है।
यहां सबसे महत्वपूर्ण यह है कि रेलवे स्टेशनों पर माइक से अनाउंसमेंट की सुविधा होती है। अनाउंसर भी होता है। रेलवे पुलिस का लवाजमा भी होता है, ऐसे में यदि लोगों को आश्वस्त करने के लिए तत्काल अनाउंसमेंट किए जाते तो शायद इतनी भगदड़ नहीं मचती। वैसे भी मुंबई के लोग तेज बरसात आते ही दहसत में आ जाते हैं। इस कारण पयास जल्दी से जल्दी घर जाने का होता है। इससे में भीड़ बढ़ना स्वाभाविक है। फिर भीड़ में कब कौन-सी अफवाह फैला दे कहा नही जा सकता। ऐसे में पशासन को मुस्तैद रहना जरूरी हो जाता है। ऐसी स्थितियों में ही डिजास्टर मैनेजमेंट की आवश्यकता होती है। इस तरह की घटनाएं होना दुर्भाग्यजनक ही कही जाएगी। दरअसल ऐसी दुर्घटनाओं से निपटने का तंत्र अभी तक विकसित करने में विफल रहे हैं। दुर्घटनाएं होती है, संवेदनाएं पकट कर दी जाती है, मृतकों के आश्रितों का मुआवजा दे दिया जाता है। जांच बै"ा दी जाती है। दोषियों के खिलाफ कार्यवाही का आश्वासन आ जाता है पर अभी तक इतनी दुर्घटनाओं के बावजूद किसी जांच रिपोर्ट में पाप्त उपायों को गंभीरता से लेते हुए कोई हल नहीं खोजा जा सका है और अफवाह के नाम पर भगदड़ मचने का कारण बताते हुए इतिश्री हो जाती है। सरकार का अपना सूचना तंत्र भी होता है, पर इस सबके बावजूद इस तरह की घटनाएं साल दर साल होती जा रही हैं और इस तरह की घटनाओं और खासतौर से भीड़ के मनोविज्ञान को समझने की भूल हो रही हैं। ऐसे में आपदा पबंधन तकनीक विकसित होनी चाहिए जिससे घटना की संभावना होने मात्र पर ही तत्काल राहत व वैकल्पिक उपाय किए जा सके, अफवाहों पर तत्काल रोक लग सके ताकि जनहानि को रोका जा सके और वैकल्पिक रास्तों को भी चिन्हित करना होगा। जब एक ही परिस्थिति में एक ही तरह की घटना घटित होती है तो उसे रोकने के उपाय कहीं न कही समय रहते खोजे जाने चाहिए।

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