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उप में केंद्र जैसे मंत्री क्यों नहीं?

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:13 Oct 2017 4:42 PM GMT
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श्याम कुमार

मोदी मंत्रिमंडल में एक से एक योग्य मंत्री शामिल हैं, जिन्हें सचमुच रत्न माना जा सकता है। नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज, पीयूष गोयल, सुरेश पभु, जनरल विजय कुमार सिंह, धर्मेंद्र पधान, मुख्तार अब्बास नकवी आदि ऐसे अनेक नाम हैं।
वित्तमंत्री के रूप में अरुण जेतली पधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ जिस पकार कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं और नए भारत का उनका सपना साकार करने में जुटे हुए हैं, उससे निश्चित रूप से अगले दशक में भारत विश्व की महाशक्तियों में सिरमौर स्थान पाप्त कर लेगा। जहां तक उत्तर पदेश का पश्न है, यह यदि कोई देश होता तो आबादी की दृष्टि से उसका विश्व में पांचवां स्थान होता। आश्चर्य है कि इतने महत्वपूर्ण राज्य के मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा एक भी ऐसा मंत्री नहीं दिखाई दे रहा है, जो अपने विभाग का सचमुच कायाकल्प कर रहा हो। सभी अब तक चली आ रही लकीर पर चलते हुए दिखाई दे रहे हैं। यही कारण है कि पदेश की जनता वह परिवर्तन नहीं महसूस कर पा रही है, जिसकी वह योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने पर आशा कर रही थी। इसका एक सबसे बड़ा उदाहरण पदेश का स्वास्थ्य विभाग है।
केवल लखनऊ ही नहीं, पूरे पदेश के अस्पताल बदइंतजामी एवं संवेदनहीनता से भरे हुए हैं। ऐसा लगता है, अस्पतालों को जिस पकार अबतक स्वच्छंदता मिली हुई थी, वही दुर्दशापूर्ण स्थिति अभी भी चल रही है। स्वयं लखनऊ में सरकार की नाक के नीचे अस्पतालों का जो बुरा हाल है, उसके पमाण नित्यपति अखबारों में मिलते हैं।
गत तीन अक्तूबर को लखनऊ के क्वीनमेरी अस्पताल में एक ऐसी अमानवीय घटना हुई, जिसमें दोषीजनों को सरेआम फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए। लेकिन हमारे यहां सा" वर्षों के कांग्रेसी राज ने देश का जो हर तरह से विनाश किया है, उसमें यह भी शामिल है कि उसने देश को भ्रष्टाचार में आंक" डुबो दिया तथा कार्य-संस्कृति नष्ट कर दी। पायः हर व्यक्ति अपने कर्तव्यों का निर्वाह सही ढंग से नहीं करना चाहता और अवैध कमाई में लगा रहता है। दंड का किसी को कोई भय नहीं है, क्योंकि कोई कितना भी बड़ा अपराध कर ले, उसे दंडित कर पाना आसान नहीं होता है। दो अक्तूबर को बहराइच निवासी राजू की पत्नी सुशीला को गंभीर दशा में क्वीनमेरी अस्पताल में भरती कराया गया था। अगले दिन सुबह (शल्य-क्रिया) आपरेशन द्वारा सुशीला ने बच्चे को जन्म दिया। लेकिन पसव के बाद उसकी हालत बिगड़ने लगी तो डॉक्टर ने राजू को दवा लिखकर दी और तुरंत ले आने को कहा।
राजू को अस्पताल के बाहर फार्मेसी पर वह दवा नहीं मिली तो वह निजी मेडिकल स्टोर पर गया। दवा लेकर वह लौटा तो गार्डों ने पवेशद्वार पर उसे रोक दिया, जबकि उसके पास `गेटपास' था। भीतर अस्पताल की ओर से लगातार राजू के लिए यह उद्घोषणा हो रही थी कि वह दवा लेकर जल्दी आए, क्योंकि मरीज की हालत खराब है। राजू ने गार्डों का ध्यान लगातार हो रही उद्घोषणा की ओर दिलाया तो भी गार्डों ने उसकी नहीं सुनी। राजू ने गार्डों से यह विनती की कि वे नर्स या आया के जरिये दवा ऑपरेशन थियेटर तक भिजवा दें, लेकिन गार्ड नहीं पसीजे और बोले कि यहां सब गंभीर हालत में ही आते हैं, इसलिए जब उसका नम्बर आएगा, तभी उसे भीतर जाने दिया जाएगा। तीन दिनों की छुट्टियों के बाद `ओपीडी' में मरीजों की पहले से लंबी कतार लगी हुई थी। गार्डों से विनती करते-करते डेढ़ घंटे से अधिक समय बीत गया, जिससे स्वयं राजू की हालत इतनी बिगड़ गई कि वह गश खाकर गिर गया। इस पर वहां लोगों ने हंगामा करना शुरू कर दिया, तब राजू को अंदर जाने दिया गया। लेकिन तबतक उसकी पत्नी की मौत हो चुकी थी।
उपर्युक्त दर्दनाक एवं अमानवीय घटना में किसी जिम्मेदार को जेल भेजा गया हो अथवा अन्य किसी पकार से दंडित किया गया हो, ऐसी कोई जानकारी अब तक सामने नहीं आई है। पदेश सरकार के संबंधित मंत्री ने क्षमायाचना करने की औपचारिकता तक नहीं निभाई है। वैसे भी उत्तर पदेश सरकार के अधिकांश मंत्री मोदी के इच्छानुसार पदेश का कायाकल्प करने के बजाय ऐशो-इशरत में डूबे हुए हैं। क्वीनमेरी अस्पताल के पभारी डॉक्टर एसपी जैसवार का बयान पकाशित हुआ है, जिसमें उसने बड़ी बेहयाई से कहा है कि उपर्युक्त मामले में मृतक महिला के परिवारजनों ने कोई शिकायत नहीं की है तथा यदि शिकायत मिलेगी तो कार्रवाई की जाएगी। सबसे पहले तो योगी सरकार को डॉक्टर एसपी जैसवार के विरुद्ध तत्काल कड़ी कार्रवाई कर उसे जेल भेज देना चाहिए। जिन गार्डों आदि ने अमानवीयता दिखाई, उन्हें भी तुरंत जेल भेज देना चाहिए। क्वीनमेरी अस्पताल की घटना पहली घटना नहीं है। चूंकि हमारे यहां दंड का कोई भय नहीं है, इसलिए ऐसी घटनाएं आम बात हैं। गरीबों की जिन्दगी तो वैसे भी हमारे यहां बेहद सस्ती मानी जाती है।
समाचारपत्रों में पकाशित हाल की कुछ घटनाओं के उदाहरण पस्तुत हैं। गत 31 जुलाई, 2017 को डॉक्टर राम मनोहर लोहिया संस्थान में संवेदनहीन डॉक्टरों ने छह घंटे तक इलाज नहीं किया, जिससे बिहार निवासी नूरुल इस्लाम की दर्दनाक मौत हो गई। इतनी अधिक संवेदनहीनता थी कि मरीज को स्ट्रेचर तक नहीं मिला। 10 अगस्त, 2017 को लखनऊ की सदर निवासी 28 वर्षीय श्वेता की डॉक्टर श्यामापसाद मुखर्जी अस्पताल में इलाज में लापरवाही के कारण मौत हो गई। नौ अगस्त, 2017 को क्वीनमेरी अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही के कारण सही समय पर इलाज न मिलने से बिसवां-निवासी गर्भवती रंजीता की मौत हो गई। पांच अगस्त, 2017 को चिकित्सा विश्वविद्यालय (मेडिकल कॉलेज) में स्वाइनफ्लू से पी]िड़त गोसाईगंज निवासी मरीज को आइसोलेशन वार्ड में तुरंत भर्ती करने के बजाय इधर-उधर इतना अधिक दौड़ाया गया कि उसकी मौत हो गई। 12 मार्च, 2017 को बलरामपुर अस्पताल में सड़क हादसे में घायल शिवकुमार को चार घंटे तक इलाज नहीं मिला, जिससे उसकी मृत्यु हो गई। 16 मार्च, 2017 को फैजाबाद के रूदौली निवासी गौसिमा पेट-दर्द से चार घंटे तक इलाज के इंतजार में तड़पती रही और बेहोश हो गई। इस पकार की घटनाओं से अखबार नित्यपति भरे रहते हैं, लेकिन सरकार के संबंधित मंत्री `मूंदउ आंख, कतउ कोउ नाहीं' की कहावत चरितार्थ करते हैं।

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