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जैसी बहै बयार पी" पुनि तैसी दीजै
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इन्दर सिंह नामधारी
छह सौ वर्ष पूर्व वाराणसी में जन्में संत कबीर ने आध्यात्म के क्षेत्र में अपने शिष्यों को एक मंत्र सिखाया था कि `बाजीगिरी संसार कबीरा देख ढाल पासा।' इस मंत्र का अभिपाय यह था कि इस मायावी एवं क्षण भंगुर संसार में आकर ऐसी कला दिखाओ कि तुम्हारा मन विषय विकारों से हटकर ईश्वर की ओर चला जाए। मुझे यह देखकर हैरत होती है कि कबीर जी के उपरोक्त मंत्र का उपयोग अब भारत की राजनीति में धड़ल्ले से होने लगा है। बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने वर्ष 2013 में उस समय बाजीगिरी दिखाई जब उन्होंने नरेंद्र मोदी जी के पधानमंत्री बनने के पहले ही भाजपा से नाता तोड़ लिया। पांच वर्षों के बाद उन्होंने पुनः पलटी मारी तथा लालू यादव को लात मारते हुए फिर से भाजपा के साथ गठजोड़ कर लिया।
इस तरह की राजनीतिक बाजीगिरियां भारत में अकसर होती ही रहती हैं लेकिन आश्चर्य तब होता है जब देश के तेजतर्रार पधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी समय-समय पर अपने शब्दों से पलट जाते हैं। उन्होंने अपने चालीस महीनों के कार्यकाल में नोटबंदी एवं जीएसटी के दो बड़े-बड़े निर्णय लेकर पूरे देश में हलचल मचा दी लेकिन उनके उद्देश्यों को लेकर वे अपना नजरिया लगातार बदलते गए।
आठ नवम्बर 2016 की रात्रि में राष्ट्र को संबोधित करते हुए पधानमंत्री जी ने कहा कि रात के 12 बजे से एक हजार और पांच सौ के नोट कागज के टुकड़े बन जाएंगे क्योंकि उनका पचलन सरकार ने बंद कर दिया है। नोटबंदी के उद्देश्यों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस कदम से देश का कालाधन बाहर आएगा तथा जाली नोट एवं आतंकवाद पर भी विराम लगेगा। नोटबंदी के बाद जब बैंकों में भारत के रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए एक हजार और पांच सौ के 90 पतिशत नोट (लगभग 16 लाख करोड़ रुपए) बैंकों में वापस आ गए तो जनता ने पूछना शुरू किया कि तब कालाधन कहां चला गया? आतंकवाद एवं जाली नोटों का पचलन क्यों नहीं रुका? भाजपा के पवक्ताओं ने पलटी मारते हुए मीडिया पर धुआंधार पचार करना शुरू कर दिया कि नोटबंदी के पीछे देश को कैशलेस एवं डिजीटल बनाना ही मुख्य उद्देश्य था। सरकार के इस उत्तर को बाजीगिरी नहीं तो और क्या कहा जाएगा? जीएसटी को लागू करते समय 30 जून एवं एक जुलाई 2017 की आधी रात को उसी तरह चुना गया जैसा समारोह वर्ष 1947 में मिली आजादी के समय किया गया था। इतना ही नहीं उस रात को जीएसटी से भारत की तस्वीर बदलने के नारे भी लगाए गए। जीएसटी की आलोचना करने वाले विरोधियों को पधानमंत्री जी ने लताड़ लगाते हुए कहा कि वे `वर्तमान के लिए देश के भविष्य को बर्बाद नहीं होने देंगे।' उन्होंने यह भी कहा कि आज भले ही उपरोक्त दोनों कार्यक्रम थोड़े कष्टदायक लग रहे हों लेकिन भविष्य में ये दोनों कार्यक्रम देश के लिए वरदान सिद्ध होंगे।
जीएसटी को लागू हुए मात्र तीन ही महीने हुए थे कि देश के कई राज्यों एवं विभिन्न व्यवसायों में लगे कारोबारियों द्वारा विरोध के स्वर निकलने लगे। पधानमंत्री जी का गृह राज्य गुजरात भी जीएसटी के विरोध में आंदोलित हो उ"ा तथा कपड़ा के मुख्य केंद्र सूरत में हफ्तों तक बाजारों की बंदी होती रही क्योंकि भाजपा के पबल समर्थक कपड़े के व्यापारी जीएसटी लागू करने से आक्रोशित थे। शुरू में तो पधानमंत्री जी ने उनके आंदोलन को पूरी तरह नजरंदाज किया लेकिन जब गुजरात विधानसभा के चुनाव सिर पर मंडराने लगे तो पधानमंत्री जी की बोली बदलने लगी। दिल्ली में पधानमंत्री, भाजपाध्यक्ष एवं वित्तमंत्री अरुण जेटली की उच्चस्तरीय बै"क की गई क्योंकि दूसरे ही दिन जीएसटी काउंसिल की बै"क होने वाली थी। जो पधानमंत्री जीएसटी में एक भी संशोधन करने के लिए तैयार नहीं थे उन्हीं के इशारों पर दूसरे ही दिन जीएसटी में 27 संशोधन कर दिए गए। देशभर के सोने के व्यापारी इसलिए आक्रोशित थे क्योंकि जीएसटी में यह पावधान लागू कर दिया गया था कि पच्चास हजार का सोना खरीदने वाले को इनकम टैक्स का पैन कार्ड दिखाना पड़ेगा। इस पावधान से सोने का व्यापार पिछले तीन महीनों से लगभग "प्प हो चुका था। व्यापारी अत्यधिक आक्रोश में थे। सोना खरीदगी के पच्चास हजार की राशि को बढ़ाकर अब नए पावधान में दो लाख रुपए कर दिया गया है। कबाड़ियों पर लगाई गई जीएसटी भी अ"ारह पतिशत से घटाकर पांच पतिशत कर दी गई है। छोटे व्यापारियों को भी जीएसटी में इच्छित राहत देने की व्यवस्था कर दी गई। ये सभी 27 परिवर्तन मतदाताओं को संतुष्ट करने के लिए किए गए हैं। अब देश में पधानमंत्री जी से किसी को यह पूछने की हिम्मत नहीं है कि जीएसटी में इतने सारे परिवर्तन करके उन्होंने देश के भविष्य को क्यों नजरंदाज किया?
`समरथ को नहीं दोष गोसाई' की कहावत को चरितार्थ करते हुए भारत के चुनाव आयोग ने एक अभूतपूर्व करिश्मा कर दिखाया है। यह ज्ञातब्य है कि हिमाचल पदेश एवं गुजरात की विधानसभाओं के चुनाव पिछले बीस सालों से एक ही तारिख को सम्पन्न होते रहे हैं। इस वर्ष भी सबको अनुमान था कि दोनों राज्यों में चुनावों की तिथियां एक ही दिन तय की जाएंगी लेकिन विडंबना देखिए कि चुनाव आयोग ने हिमाचल पदेश के लिए तो नौ नवम्बर 2017 की एक दिवसीय तिथि तो तय कर दिया लेकिन गुजरात के चुनावों पर मौन रहे। चुनाव आयोग की मानसिकता उस समय सामने आ गई जब आयोग ने हिमाचल पदेश में नौ नवम्बर 2017 को होने वाले चुनावों के मतपत्रों की गणना के लिए 18 दिसम्बर 2017 का दिन तय कर दिया। यक्ष पश्न यह उ"ता है कि चुनाव आयोग ने 09 नवम्बर 2017 के चुनावों के परिणाम आखिर 40 दिन बाद घोषित करने की व्यवस्था क्यों की? हकीकत यह है कि पधानमंत्री 16 या 17 अक्तूबर 2017 को गुजरात के मतदाताओं को रिझाने के लिए चुनावी दौरा करने वाले हैं जहां भिन्न-भिन्न योजनाओं की घोषणा की जाएगी। चुनाव आयोग के इस कदम से पधानमंत्री की महिमा तो बढ़ी है लेकिन आयोग का कद काफी बौना हो गया है। एक साधारण व्यक्ति भी आज अंगुली उ"ा रहा है कि पधानमंत्री की सुविधा के लिए चुनाव आयोग ने आखिर घुटने क्यों टेके? सर्वविदित है कि यदि हिमाचल पदेश के साथ ही गुजरात के चुनावों की भी घोषणा कर दी जाती तो उसी दिन से दोनों राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती। चुनाव आयोग के इस कदम से लोक आवाक रह गए हैं तथा विरोधी दल चुनाव आयोग पर अंगुलियां उ"ा रहे हैं। जरूरत थी कि लोकतंत्र को सबल बनाने के लिए भारत के चुनाव आयोग को इतना सजग और निडर होना चाहिए कि राजनीतिज्ञ उससे भयभीत रहें लेकिन देश में तो गंगा अब उलटी बह रही है। लोकतंत्र की सफलता के लिए जरूरत है कि चुनाव आयोग अपनी धमक से राजनीतिक दलों को आदर्श आचार संहिता अपनाने पर मजबूर करे लेकिन यहां तो पधानमंत्री की घोषणाओं के लिए चुनाव आयोग ही सुविधा पदान कर रहा है। काश! भारत का चुनाव आयोग इतना सक्षम होता तो फिर चुनावी धांधलियों पर पूरी तरह विराम लग जाता।
(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)
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