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वीआईपी संस्कृति की समाप्ति, बुलेट ट्रेन और बुनियादी सुविधाएं

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:15 Oct 2017 4:14 PM GMT
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तनवीर जाफरी

रेलमंत्री पीयूष गोयल ने पिछले दिनों जहां रेल विभाग से वीआईपी संस्कृति को समाप्त करने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए वहीं गत माह पधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा उनके जापानी समकक्ष ने गुजरात के अहमदाबाद महानगर में संयुक्त रूप से भारत में बुलेट ट्रेन चलाए जाने की एक अत्यंत महत्वपूर्ण व खर्चीली योजना की आधारशिला रखी। पधानमंत्री ने इस अति महत्वपूर्ण परियोजना की इन शब्दों में पशंसा की है कि इसमें सुविधा भी है, सुरक्षा भी, रोजगार भी है और रफ्तार भी। वह इसे लोक हितैषी भी बता रहे हैं और इको फ्रेंडली भी। पधानमंत्री के अनुसार इस परियोजना से तेज पगति के रास्ते खुलेंगे तथा देश को नई रफ्तार मिलेगी। वहीं दूसरी ओर जहां भारत के पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम इस परियोजना को नोटबंदी जैसी असफल तथा अति हानिकारक बता रहे हैं वहीं राज ठाकरे ने यह चेतावनी भी दे दी है कि इस योजना से संबंधित एक ईंट भी वे महाराष्ट्र सीमा के भीतर नहीं रखने देंगे।
बहरहाल पधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना का शिलान्यास तो जरूर किया है परंतु इतनी बड़ी परियोजना का खाका मोदी के सत्ता में आने के मात्र तीन वर्षों के भीतर ही तैयार नहीं हुआ बल्कि इसकी शुरुआत तब हुई थी जब रेलमंत्री के रूप में लालू पसाद यादव 2009 में जनवरी के दूसरे सप्ताह में अपने सात दिवसीय जापान दौरे पर गए हुए थे। उनके साथ रेलवे बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष केसी जेना तथा रेल मंत्रालय के दर्जनों वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम जापान इसीलिए गई थी कि वे लोग वहां चल रही तीव्रगामी रेल पर यात्रा कर उसके तकनीकी पहलुओं को समझ सकें। उसी समय लालू यादव ने जापान व भारत दोनों ही जगह अपनी यह इच्छा व्यक्त की थी कि वे भारत में जापानी तकनीक पर आधारित बुलेट ट्रेन लाना चाहते हैं। लालू यादव के रेलमंत्री रहते सबसे पहले जिस रूट पर इस परियोजना के शुरू होने की संभावना जताई गई तथा जिस रूट पर सर्वेक्षण का काम शुरू हुआ था वह था दिल्ली-चंडीगढ़ के मध्य का देश का सबसे व्यस्त मार्ग। जाहिर है लालू यादव द्वारा शुरू की गई उसी बातचीत को आगे बढ़ाते हुए पधानमंत्री ने बुलेट ट्रेन को जापान से आने का न्यौता तो जरूर दे दिया है। परंतु पस्तावित रूट को बदलकर चंडीगढ़-दिल्ली-चंडीगढ़ के बजाय अहमदाबाद-मुंबई-अहमदाबाद कर दिया गया। हालांकि मोदी के आलोचक उनसे यह जरूर पूछ रहे हैं कि मुंबई-अहमदाबाद के मध्य इतनी खर्चीली परियोजना शुरू करने की जरूरत आखिर क्या थी। अहमदाबाद-मुंबई के मध्य जितने साधन आने-जाने के हैं वही यात्रियों के लिए पर्याप्त हैं। परंतु पधानमंत्री का गृह राज्य होने के कारण ही अहमदाबाद का चुनाव किया गया है।
इस संदर्भ में इस बात का जिक करना भी बहुत जरूरी है कि आज जब देश के विभिन्न राज्यों में यहां तक कि उत्तर पदेश की राजधानी लखनऊ में मैट्रो रेल चलाकर स्थानीय दैनिक यात्रियों को सुविधा देने वाली योजनों शुरू हो चुकी हैं ऐसे में क्या अहमदाबाद में यह परियोजना शुरू नहीं की जा सकती थी। जबकि नरेंद्र मोदी इतने लंबे समय तक राज्य के मुख्यमंत्री बने रहे? बहरहाल बुलेट ट्रेन जैसी अति महत्वपूर्ण योजना का स्वागत किया जाना चाहिए परंतु एक ऐसी परियोजना जिससे केवल अमीर या व्यापारी वर्ग के यात्री लाभ उठा सकेंगे उसको शुरू करने से पहले या उसके साथ-साथ क्या यह जरूरी नहीं कि भारतीय रेल पर यात्रा करने वाले लगभग एक करोड़ साधारण व्यक्ति जिन दैनिक परेशानियों का आए दिन सामना करते हैं उनका भी समाधान किया जाए? कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले ही दिनों जिस समय इस तीव्रगामी रेल परियोजना के शुरू होने की खबरें रोजाना अखबारों की सुर्खियों में थीं उन्हीं दिनों लगभग पतिदिन किसी न किसी रेल के पटरी से उतरने का समाचार सुनाई दे रहा था। हद तो यह है कि एक दिन 24 घंटे के भीतर देश के अलग-अलग हिस्सों से दो ऐसी घटनाएं होने की खबरें मिलीं।
इस पकार के हादसे होने के बाद रेल अधिकारी भविष्य में ऐसे हादसे की पुनरावृति न होने पाए इससे जूझने के बजाय अपना पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित कर देते हैं कि इस हादसे की जिम्मेदारी किसके सिर पर मढ़ दी जाए और किसे बलि का बकरा बनाकर जनता के मध्य पैदा होने वाले गुस्से को ठंडा कर दिया जाए। आज जिस रेल ट्रैक पर देश की अत्यंत महत्वपूर्ण गाड़ियां जैसे स्वर्ण शताब्दी, शताब्दी, सम्पर्प कांति, जनशताब्दी, राजधानी, दुरंतो जैसी तीव्रगामी रेल गाड़ियां दौड़ रही हैं उन रेल ट्रैक का कोई वारिस नहीं हैं। सुनसान व असुरक्षित क्षेत्रों से गुजरने वाले यह ट्रैक अपने आसपास की आबादी वालों के लिए कूड़ा घर बने हुए हैं। कूड़ा-करकट के अतिरिक्त मरे हुए जानवर तक लोग इन्हीं ट्रेक पर फेंक दिया करते हैं। इसका कारण यही है कि जहां लोगों को रेल ट्रैक की रक्षा करने की तौफीक व सलाहियत नहीं है वहीं रेलवे ने भी इसे संभवतः सुरक्षा योग्य न समझ कर इसी पकार लावारिस व खुला छोड़ रखा है। बिना फाटक की कासिंग पर अकसर होने वाले दर्दनाक हादसे इस बात का सबूत हैं।
भारतीय रेल की कंप्यूटरीकृत पूछताछ व समयसारिणी पणाली दुनिया के गिने-चुने देशों में पाई जाने वाली उच्चस्तरीय पणाली है। इस पणाली को पूरी तरह अचूक होना चाहिए। और निश्चित रूप से शुरुआत में यह पणाली भरोसेमंद थी थी। परंतु अब लगता है कि इस पणाली को अपडेट करने वालों ने रेल सिग्नलिंग पणाली से जुड़े लोगों से तालमेल कर इसमें भी गुमराह करने के नए आयाम तलाश कर लिए हैं। यही वजह है कि जहां अधिकांशतः यह कंप्यूटरीकृत पूछताछ पणाली घर बैठे किसी भी व्यक्ति को देश की किसी भी ट्रेन की चलने की सही स्थिति बता देती है वहीं कई बार ऐसा भी देखा गया है कि यह पणाली ट्रेन स्टेशन पर पहुंचने से पहले ही उसे पहुंचा हुआ दिखाने लगती है तो कई बार तो ऐसा भी होता है कि रेल अभी निर्धारित स्टेशन पर पहुंचती भी नहीं पर यह उसे उसी स्टेशन से पस्थान किया हुआ बता देती है। आऊटर पर खड़ी ट्रेन को स्टेशन पर पहुंचा बता देती है तो कई बार पहुंची हुई ट्रेन को बहुत पीछे दिखाने लगती है। जाहिर है यदि किसी यात्री के साथ दो-चार बार ऐसा ही होने लगे तो उसका विश्वास इस उच्चस्तरीय कंप्यूटरीकृत पूछताछ पणाली से उठ जाना स्वाभाविक है।
यदि कुछ पमुख रेलगाड़ियों जिन पर कि धनाढ्य लोग यात्रा करते हैं शायद उन्हें छोड़कर देश की अधिकांश रेलगाड़ियों में वातानुकूलित श्रेणी में मिलने वाले बेड रोल इस्तेमाल किए हुए, मैले-कुचैले तथा फटे-पुराने होते हैं। यह शिकायतें अब तक लाखों बार रेल मंत्रालय के समक्ष रखी जा चुकी हैं। परंतु रेल विभाग या तो इस व्यवस्था से जुड़े ठेकेदारों पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा या फिर मिलीभगत होने के कारण ठेकेदार यात्रियों की इस शिकायत की परवाह नहीं करते। स्टेशन पर गाय, सांड, कुत्ते आदि का बेलगाम घूमना-फिरना तो आम बात है। बिना टिकट रेल यात्रा करना खासतौर पर भगवाधारी बाबा रूपी निठल्ले लोगों का ट्रेन को अपनी पैतृक संपत्ति समझना और रेलवे स्टेशन को अपना घर समझना और अनेक बुरे कामों में उनका संलिप्त रहना यह सब देश के आम नागरिकों को भलीभांति मालूम है। लिहाजा बुलेट ट्रेन के खूबसूरत फसानों और वीआईपी संस्कृति को समाप्त किए जाने जैसी रेलमंत्री की लोक-लुभावन घोषणाओं के बीच सरकार को भारतीय रेल से संबंधित बुनियादी सुविधाओं से मुंह नहीं फेरना चाहिए।

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