menu-search
Fri Apr 19 2024 17:10:14 GMT+0530 (India Standard Time)
Visitors: 12922
ई-कारों से नहीं थमेगा पॉल्यूशन
Share Post
डॉ. भरत झुनझुनवाला
सरकार ने निर्णय लिया है कि पेट्रोल-डीजल से चलने वाली कारों के स्थान पर बिजली से चलने वाली ई-कारें खरीदी जाएंगी। समयक्रम में इस पॉलिसी को व्यक्तिगत कारों पर भी लागू किया जा सकता है। ई-कारों में बैटरी लगी रहती है जिसे रात में आप अपने घर में चार्ज कर सकते हैं जैसे दिल्ली में ई-रिक्शा को चार्ज किया जा रहा है। एक बार के चार्ज से ई-कारें लगभग 300 किलोमीटर चल सकती हैं जोकि दैनिक शहरी कार्यों के लिए पर्याप्त है। ई-कारों द्वारा वायु प्रदूषण शून्य होता है। आशा है कि ई-कारों के उपयोग से हमारे शहरों में वायु प्रदूषण कम होगा। ऐसा ही विकसित देशों में हुआ है।
1971 में अमेरिका के शहर शिकागो जाने का अवसर मिला था। उस समय वहां कारों के धुएं से सांस लेना दूभर हो रहा था। पुन 1996 में शिकागे जाने का अवसर मिला। पाया कि कारों की संख्या बढ़ गई थी परन्तु हवा साफ हो गई थी। 70 एवं 80 के दशक में कारों में उन्नत तकनीक के इंजन लगाए गए। इनसे कार के एक्सास्ट में नाइट्रोजन, सल्वर तथा अधजले कार्बन की मात्रा कम हो गई थी। अधजला कार्बन ही धुएं के रूप में दिखता है। उन्नत कारों से धुआं निकलता नहीं दिखता था। इसी तकनीकी सुधार को आगे बढ़ाने अमेरिका में ई-कारों का उपयोग बढ़ रहा है। ई-कारों में कार्बन उत्सर्जन शून्य होता है चूंकि इनमें पेट्रोल-डीजल नहीं जलता है। भारत सरकार भी इसी दिशा में बढ़ रही है जिसका स्वागत है।
लेकिन विचारणीय है कि साफ तकनीकों के बढ़ते उपयोग के बावजूद ग्लोबल वार्मिंग क्यों बढ़ती जा रही है। पूरे विश्व में आंधी, तूफान, बाढ़ एवं सूखे का प्रकोप बढ़ रहा है चूंकि धरती का तापमान बढ़ रहा है। पेट्रोल की कारों में उन्नत इंजन लगाने से शिकागो की वायु में सुधार आया है परन्तु कारों की संख्या में वृद्धि होने से कुल कार्बन उत्सर्जन में भारी वृद्धि हुई है जिससे धरती का तापमान बढ़ रहा है। प्रदूषण का निर्यात भी हुआ है। पूर्व में कारों का उत्पादन अमेरिका के डेट्रायट शहर में होता था। डेट्रायट की स्टील फैक्ट्रियों से भारी प्रदूषण होता था। अब कारों का अधिकाधिक उत्पादन चीन तथा भारत में होने लगा है। कार के उत्पादन में फैलने वाला प्रदूषण शिकागो में होने के स्थान पर चेन्नई में हो रहा है। प्रदूषण कम नहीं हुआ है केवल उसका स्थान बदल गया है। इसी प्रकार ई-कारों के उपयोग से प्रदूषण दिल्ली के स्थान पर टिहरी तथा सिंगरौली को स्थानांतरित हो जाएगा। जो प्रदूषण पूर्व में कार के इंजन से हो रहा था, वह अब टिहरी की टर्बाइनों एवं सिंगरौली के बायलरों से होगा। ई-कारों के उपयोग से दिल्ली वाले साफ हवा में जीएंगे जबकि टिहरी और सिंगरौली के बाशिंदे ज्यादा प्रदूषित हवा में सांस लेंगे। धरती के प्रदूषण को इस प्रकार की तकनीकों से समाप्त नहीं किया जा सकता है। नई तकनीकों से जितना प्रदूषण कम होगा उससे ज्यादा खपत में वृद्धि से बढ़ेगा। जैसे मान लीजिए कि पूर्व में एक लाख कारें चलती थीं। इनके द्वारा साफ तकनीकें उपयोग में लाने से नाइट्रोजन एवं सल्फर का उत्सर्जन कम हुआ परन्तु सड़क पर दो लाख कारें चलने लगीं। इससे प्रदूषण की कुल मात्रा में वृद्धि हुई। यही कारण है कि साफ तकनीकों के उपयोग के बावजूद धरती का पर्यावरण बिगड़ रहा है और तापमान बढ़ रहा है।
अमेरिका की तुलना में भारत में जनसंख्या चार गुणा है जबकि जमीन तिहाई है। 1000 लोगों के पीछे भारत में 2.6 वर्ग किलोमीटर भूमि है जबकि अमेरिका में 30.2 वर्ग किलोमीटर। एक व्यक्ति के पीछे अमेरिका में भूमि 11 गुणा से भी ज्यादा है। ऐसे में अमेरिका के लिए व्यक्तिगत कार से आवागमन की व्यवस्था उपयुक्त हो सकती है। अमेरिका में दूध खरीदने के लिए भी गाड़ी से तीन-चार किलोमीटर जाना मामूली बात है। अमेरिका में तेल, कोयला तथा यूरेनियम भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है इसलिए व्यक्तिगत कार को पेट्रोल अथवा बिजली से चलाना उनके लिए उपयुक्त हो सकता है। हमारे लिए व्यक्तिगत कार पर आधारित यातायात व्यवस्था उपयुक्त नहीं है। हमारे पास जमीन नहीं है कि चौड़े हाइवे बनाए जाएं। न ही हमारे पास तेल, कोयला तथा यूरेनियम हैं कि इन कारों को हम चला सकें। इसलिए पेट्रोल से ई-कारों पर जाने के स्थान पर हमें व्यक्तिगत कारों के स्थान पर बस तथा मेट्रो की तरफ बढ़ना चाहिए। ऐसा करने से हम कई समस्याओं से एक साथ छुटकारा पा लेंगे। शहरों में प्रदूषण कम हो जाएगा चूंकि कारें कम चलेंगी। हमारी ऊर्जा सुरक्षा स्थापित होगी चूंकि ईंधन तेल तथा बिजली की खपत कम होगी। हमारी खाद्य सुरक्षा स्थापित होगी चूंकि हाइवे बनाने के लिए कृषि भूमि का अधिग्रहण नहीं करना होगा। इस दृष्टि से सरकार को दिल्ली मेट्रो का किराया बढ़ाने पर पुनर्विचार करना चाहिए। हो सकता है कि दिल्ली मेट्रो को घाटा लग रहा हो परन्तु मेट्रो तथा बस सेवा को सस्ता एवं सुलभ बनाने से व्यक्तिगत कार के उपयोग में कमी आएगी जिससे हमारा पर्यावरण सुधरेगा तथा हमारी ऊर्जा एवं खाद्य सुरक्षा स्थापित होगी।
जैसा ऊपर बताया गया है कि भारत की तुलना में अमेरिका में 11 गुणा जमीन तथा उसी अनुपात में अन्य प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध है। इसलिए हमें चाहकर भी अमेरिका की तर्ज पर खपत को पोषित नहीं कर सकेंगे। हम अपने संसाधनों के अनुरूप `विकसित देश' की परिभाषा बनानी होगी। हमें हर संसाधन की अधिक खपत पर भारी टैक्स लगाना चाहिए और उस टैक्स का उपयोग मेट्रो के किराये को न्यून बनाए रखने के लिए करना चाहिए। जैसे एक बार में पांच लीटर से अधिक पेट्रोल भराने पर दाम दोगुणा कर दिया जाएगा अथवा पानी की खपत अधिक होने पर ऊंचा दाम वसूल किया जाए अथवा 25 यूनिट प्रति व्यक्ति प्रतिमाह से अधिक बिजली की खपत होने पर दाम 10 रुपए प्रति यूनिट कर दिया जाए। 100 यूनिट प्रति व्यक्ति से अधिक खपत होने पर बिजली का दाम 20 रुपए प्रति यूनिट कर दिया जाए। मुंबई के एक उद्यमी के घर में दो प्राणी रहते हैं। इनके घर का मासिक बिजली का बिल 74 लाख रुपए है। दो गरम पानी के स्विमिंग पूल हैं और कई एयरकंडीशन ऑडिटोरियम हैं। ऐसी खपत पर विराम लगाना जरूरी है। आर्थिक नीतियों को इस उद्देश्यों से बनाना होगा कि प्राकृतिक संसाधनों की खपत कम हो और आम जन को सुविधा अधिक मिले। इस दृष्टि से सरकार द्वारा बड़ी कारों के मूल्य में कटौती करना भी उचित नहीं है। पेट्रोल-डीजल पर लागू एक्साइज ड्यूटी में बीते दिनों जो कटौती की गई है वह भी उचित नहीं है। सरकार को पर्यावरण की मूल समस्या पर ध्यान देना चाहिए। व्यक्तिगत खपत जैसे कार में कटौती और साझा खपत जैसे मेट्रो में वृद्धि करनी चाहिए। ई-कारों का उपयोग अच्छा है परन्तु इससे प्रदूषण की मूल समस्या हल नहीं होती है।
© 2017 - 2018 Copyright Veer Arjun. All Rights reserved.
Designed by Hocalwire