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काश! भारत में रामराज भी आ गया होता

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:21 Oct 2017 3:51 PM GMT
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इन्दर सिंह नामधारी

उत्तर पदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2017 की दीपावली पर त्रेता-युग में वनवास के बाद राम की हुई घर वापसी के दृश्य को अयोध्या में सरयू नदी के किनारे पौने दो लाख दीये जलाकर मूर्त रूप पदान कर दिया है। त्रेतायुग एवं कलयुग के इस दृश्य में अंतर केवल इतना ही था कि आज के राम, सीता एवं लक्ष्मण जहां रामलीला वाले पात्र थे और उन्हें अयोध्या में हेलीकॉप्टर से उतारा गया जबकि त्रेता के राम असली राम थे और वे सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान से अयोध्या पधारे थे। अयोध्या के उपरोक्त समारोह में यूपी के राज्यपाल श्री राम नायक भी मौजूद थे। अयोध्या में इस बार की दीपावली का नजारा देखने लायक था। इस मनमोहक दृश्य को टीवी पर देखकर मैं मंत्र-मुग्ध हो गया तथा मेरे मन में भाव पैदा हुआ कि `काश! हमारे देश में राम के साथ यदि रामराज भी आ गया होता तो कितना अच्छा होता?' इस बिन्दु पर गहन मंथन करने के बाद मेरी इच्छा हुई कि मैं तुलसीकृत रामचरितमानस में वर्णित रामराज की स्थिति की जानकारी लूं ताकि उसकी तुलना आज के भारतीय वातावरण से की जा सके।
जैसे ही मैंने रामचरितमानस के उत्तर कांड में वर्णित रामराज के लक्षणों को पढ़ना शुरू किया तो रामराज की निम्नांकित तीन चौपाइयों को पढ़कर मेरी नजर अकस्मात "हर गईö
बैर न कर काहू सन कोई।
राम पताप विषमता खोई।।
दैहिक दैविक भौतिक तापा।
रामराज नहीं काहुहिं व्यापा।।
सब नर करहि परस्पर पीती।
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।
अर्थात राम के राज में कोई एक दूसरे से बैर नहीं करता था और राम के पताप से असमानता (विषमता) पूरी तरह खत्म हो गई थी। अयोध्या की पजा दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से सर्वथा परे थी और सभी लोग वैदिक-नीति का अनुसरण करते हुए अपने-अपने निर्धारित कर्मों में पेमभाव से निरत रहते थे।
मानस की उपरोक्त चौपाइयों को पढ़कर मैं स्तब्द्ध रह गया क्योंकि भारत में आज की स्थिति से उसकी तुलना करना बड़ा हृदय विदारक लगा। मेरा दिल इसलिए टूट गया क्योंकि त्रेता के रामराज में जहां कोई किसी दूसरे से बैर ही नहीं करता था वहीं आज के भारत में एक जाति दूसरी जाति से टकरा रही है और एक धर्म दूसरे धर्म से उलझा हुआ है। भारत के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कई चैनलों पर अहर्निष हिन्दू एवं मुसलमान एक दूसरे की बखियां उधेड़ते हुए नजर आते हैं। दोनों धर्मों के पवक्तागण एक दूसरे पर तीक्ष्ण व्यंग्य वाणों के पहार करने से बाज नहीं आ रहे। इस जातीय एवं धार्मिक उन्माद ने पूरे देश का वातावरण विषाक्त बना दिया है। कई पांतों में जहां तथाकथित उच्च वर्ण के लोग दलितों को बेरहमी से पीट रहे हैं वहीं दलित भी अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्षरत हैं। गुजरात के दलित युवको ने तो बागी तेवर अपनाते हुए पतिक्रिया में मूछ रखना शुरू कर दिया है क्योंकि उच्च वर्ण के लोग दलितों के द्वारा मूछ रखने को पसंद नहीं करते। इतना ही नहीं त्रेता के राम के राज में जहां अमीरी और गरीबी की खाई (विषमता) खत्म हो गई थी वहीं आज के राज में धनकुबेरों के कुत्ते तो दूध पी रहे हैं लेकिन गरीबों के बच्चों को सूखी रोटी भी नसीब नहीं होती। अभी-अभी झारखंड के सिमडेगा जिला में एक 11 वर्षीय जनजातीय लड़की राशन के अभाव में दम तोड़ चुकी है यद्यपि सरकारी स्तर पर उसकी मौत को मलेरिया होने का रंग दिया जा रहा है। विषमता का आलम तो ऐसा विकराल हो गया है कि देश की एकता ही तार-तार होने के कगार पर है। देश के लाखों किसान कर्ज के भार में दबकर आत्महत्या कर चुके हैं और आत्महत्या का दौर अभी भी बदस्तूर जारी है।
इतना ही नहीं त्रेता के रामराज में जहां जनता दैहिक, दैविक एवं भौतिक संतापों से सर्वथा परे थी वहीं आज के भारत में आम आदमी उपरोक्त तीनों तरह के तापों से बुरी तरह त्रस्त है। यूपी के गोरखपुर में एक मेडिकल कॉलेज में जब सैकड़ों नवजात शिशु ऑक्सीजन के अभाव में दम तोड़ देते हैं तो वहीं गरीबों को ईलाज के लिए आवश्यक दवाइयां भी नसीब नहीं होती। यह आज का भारत ही है जहां एक अभागे पिता को अपनी बेटी के शव को कंधों पर टांगकर श्मशान घाट तक पहुंचाना पड़ता है। 40 पतिशत से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं तथा उन्हें दो शाम का पौष्टिक आहार भी मयस्सर नहीं होता। त्रेता के रामराज में जहां पर लोग परस्पर पेमभाव से रहा करते थे वहीं आज के भारत में सर्वत्र तनाव एवं घृणा का बोलबाला है।
किसी न किसी मुद्दे को लेकर अफवाहों का बाजार गरम रहता है क्योंकि दो दिन पहले जम्मू-कश्मीर में एक तथाकथित चोटी कटवा को बिना सोचे समझे पानी में डूबाकर या आग में जलाकर मारने की कोशिश की गई। जांच के बाद वह व्यक्ति पूर्णतः निर्देष पाया गया। सत्ताधारी दल के लोग तो अपने आपको देशभक्त मानकर दूसरों को देशद्रोही बताने से परहेज नहीं करते। सत्ताधारियों के विचारों से असहमत लोगों को पाकिस्तान जाने की नेक सलाह भी दे दी जाती है। अब तो ताजमहल एवं लाल किला जैसी ऐतिहासिक इमारतों को लेकर भी धर्म के नाम पर अछूत कहा जाने लगा है। ऐसी असहिष्णुता तो पहले कभी देखी ही नहीं गई ।
इस चिंतनीय परिस्थिति में भगवान राम को सीता और लक्ष्मण सहित हेलीकॉप्टर से अयोध्या ले जाने वाले महानुभावों को गंभीर चिंतन करना होगा कि देश में आखिर रामराज कैसे लाया जाए? सर्वविदित है कि भगवान राम ने राजपाट को लात मारकर जंगल में जाना पसंद किया था जबकि वे चारों भाइयों में बड़े थे तथा उनका गद्दी पर सर्वाधिक अधिकार बनता था। चौदह वर्षों तक वन में रहकर उन्होंने अपने त्याग का परिचय दिया था इसलिए वे रावण का संहार करके अयोध्या लौटे तो जनता ने दीये जलाकर उनका अभिनंदन किया था। सत्ता में बै"s आज के लोग क्या राम के आचरण को अपनाकर देश के भाईचारे को अक्षुण्ण रखने का जोखिम उ"ा पाएंगे? सत्ताधारियों द्वारा अयोध्या में राम की घर वापसी के अवसर पर किया गया भव्य आयोजन तभी सार्थक होगा जब आयोजक सत्ता की भूख त्याग कर समाज की समरसता की रक्षा करेंगे। यही कारण था कि मुस्लिम होने के बावजूद अलामा इकबाल जैसे महान कवि ने अपने कलाम में लिखा कि,
है राम के वजूद पै
हिन्दोस्तां को नाज।
अहले-नजर समझते हैं
उसको इमामे-हिन्द।।
इस आलोक में राम जैसी अनू"ाr विभूति को राजनीति की परिधि से सर्वथा बाहर रखा जाना चाहिए।
(लेखक लोकसभा के पूर्व सांसद हैं।)

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