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प्रदूषण से निपटने के लिए चाहिए कई स्तरों पर बदलाव
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आदित्य नरेन्द्र
इस वर्ष दीपावली के बाद कुछ लोग यह सोचकर खुश हो सकते हैं कि राजधानी और उसके आसपास के क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर उतना खराब नहीं था जितना पिछले साल था। पिछले साल दीपावली के बाद प्रदूषण का स्तर पिछले तीन दशकों में सर्वाधिक खराब रहा था। हवा बेहद जहरीली हो गई थी और लोगों को सांस लेने में दिक्कतें पेश आने लगी थी। उसके मुकाबले इस साल हवा कुछ कम जहरीली थी।
प्रदूषण का स्तर पिछले साल से कम होने के बावजूद भी यह लोगों के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित करने में सक्षम है। जिन लोगों को श्वसन और हृदय संबंधी समस्याएं हैं उनके लिए यह काफी कष्टदायक दिन हो सकते हैं क्योंकि दीपावली की रात को प्रदूषण का स्तर उसकी सुरक्षित सीमा से कई गुना अधिक हो चुका था।
यदि बिना लाग-लपेट के कहा जाए तो हालात अब बेकाबू होते जा रहे हैं। इसी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों पर बैन लगाने का आदेश दिया था। राजधानी के इस प्रदूषण के लिए नेता, प्रशासन और जनता तीनों ही अपने-अपने स्तर पर जिम्मेदार हैं।
लिहाजा स्थिति को कंट्रोल करने के लिए इन तीनों को ही अपने-अपने स्तर पर अपनी जिम्मेदारियों को समझना होगा तभी स्थिति में बदलाव आ सकता है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह प्रदूषण `साइलेंट किलर' बनकर दिल्ली-एनसीआर के लोगों को अपनी चपेट में लेता रहेगा। इससे केवल लोगों की जान जाने का ही खतरा नहीं होगा बल्कि देश को आर्थिक नुकसान भी उठाना होगा। आंकड़ों के हिसाब से देखें तो देश का हर सौवां नागरिक दिल्ली में रहता है। दिल्ली आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र है।
यदि यहां के लोग प्रदूषण की चपेट में आकर बीमारियों के शिकार होंगे तो वह देश की आर्थिक गतिविधियों में अपना सौ फीसदी योगदान कैसे दे पाएंगे। हालांकि प्रशासनिक स्तर पर सरकार कई कदम उठाकर स्थिति को सुधारने का प्रयास कर रही है। हाफ इमरजैंसी के स्तर तक पहुंच चुके इस प्रदूषण को देखते हुए बदरपुर का थर्मल पॉवर प्लांट अगले साल 15 मार्च तक बंद कर दिया गया है। पर्यावरण प्रदूषण प्रीवेंशन और कंट्रोल अथारिटी के अनुसार 20 जुलाई 2018 को यह प्लांट स्थायी रूप से बंद कर दिया जाएगा।
साफ हवा बाहर निकालने वाली जिग जैग टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं करने वाले ईंट के भट्ठे भी बंद कर दिए जाएंगे। दिल्ली में डीजल के जेनरेटर सेटों का इस्तेमाल करने पर भी रोक लगा दी गई है।
पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन के अनुसार दीपावली के एक दिन बाद दिल्ली की हवा की गुणवत्ता पिछले साल के मुकाबले बेहतर रही है। 2016 की तुलना में खराब और बहुत खराब दिनों की संख्या में खासी कमी आई है। हर व्यक्ति सामान्य रूप से सांसें ले रहा है और किसी को भी सांस लेने में कोई दिक्कत नहीं है। उन्होंने कहा कि मैंने व्यक्तिगत रूप से देशभर के दो-ढाई लाख स्कूल प्राचार्यों को पत्र लिखे। दिल्ली में हजारों बच्चों ने हरित दीपावली के लिए अभियान चलाया। वैज्ञानिकों से भी प्रदूषण-मुक्त पटाखे विकसित करने के लिए कहा गया है।
प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए यह कुछ कदम हो सकते हैं लेकिन प्रदूषण की समस्या बहुत बड़ी है। इसका समाधान लोगों को जागरूक किए बिना करना संभव नहीं है। हमें कई स्तरों पर बदलाव के लिए तैयार रहना होगा। इसके तहत लोगों को साफ पर्याववण को फायदे और प्रदूषण से होने वाले नुकसान की जानकारियां देनी होंगी।
क्योंकि प्रदूषण का शिकार प्रदूषण करने वाला शख्स भी होता है। एक विकासशील देश होने के नाते हमारी कुछ सीमाएं भी हैं। हमारे पास विकसित देशों की तरह प्रदूषण से मुकाबला करने के लिए अच्छी टेक्नोलॉजी नहीं है क्योंकि यह बहुत महंगी है। इसके बावजूद भी कुछ कदम उठाकर शहर के लोगों को बेहतर जिन्दगी दी जा सकती है। बिजली से चलने वाले वाहनों को यदि सही तरीके से लोगों की जरूरत के अनुसार विकसित किया जाए, सार्वजनिक वाहनों को बढ़ावा दिया जाए और साइकिल जैसे वाहनों का उपयोग बढ़ाया जाए तो हम प्रदूषण की समस्या का काफी हद तक मुकाबला कर सकते हैं। इसके अलावा हमें ग्रीन बेल्ट बढ़ाकर पेड़-पौधों की संख्या में भी इजाफा करना होगा। इससे लोगों की सेहत भी दुरुस्त रहेगी और स्वास्थ्य संबंधी सरकारी खर्च में भी कमी आएगी।
याद रहे, एक स्वस्थ व्यक्ति ही देश के विकास में अपना पूरा योगदान दे सकता है। इसके लिए प्रशासन और लोगों को एक साथ सामने आना होगा। यदि छिटपुट तरीके से इस समस्या से निपटने का प्रयास किया गया तो हो सकता है कि आने वाले वर्षों में हमारे पास दुनिया की सबसे बड़ी आबादी के साथ-साथ सबसे बड़ा बीमार समाज भी हो क्योंकि खतरे की घंटी बज चुकी है। यदि प्रदूषण की इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया तो नुकसान तय है।
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