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गुजरात का सबक

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:31 Dec 2017 2:11 PM GMT
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रविकांत त्रिपाठी

वैसे तो हर चुनाव कुछ न कुछ संदेश जरूर देता है लेकिन गुजरात चुनाव का संदेश कुछ खास है क्योंकि दोनों पतिद्वंद्वी पार्टियों भाजपा और कांग्रेस को सरकार बनाने का पूरा भरोसा था। भाजपा को इसलिए कि भाजपा लगातार 22 वर्षों से सत्ता में है वो भी अपने किए गए विकास के कार्य और बेहतर शासन के भरोसे जबकि कांग्रेस को लग रहा था कि कोई भाजपा विरोधी लहर है जो उसे सत्ता दिला देगी पर शायद ये उसकी गलतफहमी थी और कुछ सम्मानजनक हार से ही संतोष करना पड़ा और सत्ता अंततः फिर एक बार भाजपा को मिली। लेकिन इस चुनाव का संदेश अन्य चुनावों की अपेक्षा शायद कुछ बड़ा था क्योंकि भाजपा के लिए सब कुछ बेहतर होते हुए भी सीटें कम हुईं जबकि कांग्रेस के लिए कुछ न होते हुए भी उसकी सीटें बढ़ीं।
लोकतंत्र में सीटों का कम या ज्यादा होना एक स्वाभाविक परिणाम है लेकिन लगातार छ"ाR बार सरकार बनाना एक अमिट छाप वाली लकीर खींचना है जो लोकतांत्रित व्यवस्था में बहुत ही कम देखने को मिलता है। अगर ऐसा बार बार होता है तो उस सरकार के बेहतर कामकाज का जनता द्वारा पमाण है जो किसी यशस्वी वरदान से कम नहीं है। भाजपा को अपने इस पदर्शन पर रोक होना चाहिए लेकिन इस चिंतन के साथ कि सब कुछ "ाrक होने के बावजूद विधानसभा में सीटें कम क्यों हुई? जबकि इस सरकार ने बुनियादी विषयों के साथ साथ हर क्षेत्र में समान अधिकार के साथ काम किया था।
हां इतना जरूर था कि मोदी जी के पधानमंत्री बनने के बाद गुजरात की जनता को उनकी कमी लगातार महसूस हुई हालांकि ये गुजरातियों के लिए गर्व की बात थी कि उनका अपना नेता देश के पधानमंत्री की कुर्सी पर आसीन है।
लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न ये खड़ा होता है कि कांग्रेस के मन में सत्ता परिवर्तन के बारे में विचार आया कैसे? मैं ये नहीं कहता कि कांग्रेस को सत्ता का स्वप्न देखने का अधिकार नहीं है आखिर वो कांग्रेस पार्टी ही है जिसने लम्बे समय तक गुजरात और देश पर शासन किया है और आज कल वो राजनैतिक पराभव के दौर से गुजर रही है और इसके पीछे की वजह देश से छुपा भी नहीं है। कांग्रेस को शायद ये लग रहा था कि षड्यंत्र और भ्रम फैलाकर वो गुजरात की सत्ता हासिल कर सकती है और उसने मोदी के गुजरात से हटने के बाद से ही अपनी सारी ताकत इसे यथार्थ बनाने के लिए झोंक दिया।
विभाजन की राजनीति को साकार करने के लिए सबसे पहले कांग्रेस ने उन तीन युवाओं की खोज की और उन्हें असंतुष्ट जनता के पतिरूप स्वरूप पचारित किया उन युवाओं का संबंध भी पाटीदार दलित और पिछड़ा वर्ग से था जिन्हें भारतीय राजनीति में सर्वाधिक शोषित माना जाता है जबकि गुजरात का पाटीदार समाज सर्वाधिक सम्पन्न और शिक्षित समुदाय है इस समुदाय ने सरकारों से कभी अनुकंपा की मांग भी नहीं की फिर भी कांग्रेस ने इस समुदाय को असंतुष्ट कह कर पचारित किया और आरक्षण का आकांक्षी तथा जरूरतमंद दिखाने की कोशिश की। कुछ छिटपुट घटनाओं को थी कांग्रेस ने बड़ा रूप देने की कोशिश की लेकिन वो इस कार्य में ज्यादा सफल नहीं हो पाई।
कांग्रेस ने अगला मोहरा सौराष्ट्र के उन कपास और मूंगफली किसानों को बनाया जो अपनी फसल का संतोषजनक मूल्य न मिलने के कारण शायद कुछ खिन्न थे उनके इस खिन्नता को कांगेस ने बड़े रूप में उभारने की कोशिश की। इस देश में किसान पाकृतिक हालातों से सर्वाधिक पताड़ित होता आया है कभी अतिवृष्टि और कभी अनावृष्टि और कभी ओलावृष्टि हर समय किसान इनसे दो चार होता रहा है इसका तात्पर्य ये कत्तई नहीं है कि गुजरात का किसान कोई बड़े आंदोलन के मूड में है। कांग्रेस को लगा कि वो ऐसा करके एक बहुत बड़ा जनांदोलन भाजपा के खिलाफ खड़ा कर लेगी लेकिन ऐसा हो न सका। फिर बार बार किसानों के मन मस्तिश्क में असंतुष्टी का छद्म भाव भर कर उसे मिथ्या भ्रम के रूप में पचारित करना कांग्रेस की बद नीयत के अलावा और कुछ नहीं हो सकता। हां ये बात सही है कि कृषि मजदूरों का पलायन या अनुपलब्धता और किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य न मिल पाना एक समस्या है लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों ने समय समय पर अनेक तरह के उपाय किए हैं और आगे भी किसानों के साथ बेहतर होने की ही उम्मीद है लेकिन इसके लिए किसानों को बर्गलाना या भ्रमित करना अनुचित है। ये बात सही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा को उम्मीद से कम सीटें मिली हैं लेकिन ये भी सही है कि गुजरात के अधिसंख्य किसान कांग्रेस के बहकावे में नहीं आए और वस्तुस्थिति को जल्दी ही भांप लिए क्योंकि कांग्रेस के पास किसानों और कृषि व्यवस्था के बारे में कोई "ाsस रणनीति नहीं थी। किसानों का असंतुष्ट होना ये स्पष्ट करता है कि आज भी कृषि और किसान को बेहतर मुकाम हांसिल नहीं हो पाया है कृषि के लिए अनेक बेहतर काम होने के बावजूद अभी भी काफी कुछ करने की जरूरत है और भाजपा की सरकारें इसके लिए पतिबद्ध दिखती हैं।
विगत कुछ वर्षों में लगातार पराजय कांग्रेस की नियति बन चुका है फिर भी कांग्रेस उससे किसी तरह का सबक सीखने को तैयार नहीं है। इंदिरा गांधी के जमाने तक कांग्रेस को मजबूत विपक्ष नहीं मिल पाया था लिहाजा कांग्रेस को सत्ता पाने के लिए ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा किंतु उनकी मृत्यु के बाद राजनैतिक समीकरण तेजी से बदले और आज स्थिति ये है कि कांग्रेस सत्ता से बेदखल होकर हाशिये पर खड़ी है और विपक्ष में बै"ने वाली भाजपा पूरे बहुमत से केंद्र और देश के 19 राज्यों में सत्ता में है। हर चुनाव कांग्रेस के लिए मूक दर्शक की भांति बनता जा रहा है कांग्रेस की इस दुर्दशा का कारण तुष्टिकरण तथा वोटबैंक की राजनीति और उसकी राजनीतिक नीयत है। गुजरात चुनाव में भी कांग्रेस ने कुछ ऐसा ही किया और धार्मिक उदारवाद के साथ साथ विभेद पैदा करने वाली राजनीति को अपनाया तथा एक भ्रम पैदा करने वाला वातावरण बनाने की कोशिश की। लेकिन ये हथकंडा भी उसके काम न आया।
ये सुखद है कि बदलते समय के साथ देश की जनता राजनैतिक रूप से परिपक्व हो रही है उसे अपने वोट और उसकी कीमत का पता चल गया है मजबूत लोकतंत्र के लिए ये पवृत्ति अनिवार्य है ऐसे में किसी भी राजनैतिक दल के लिए इसपकार शार्ट कट से सत्ता हासिल करना जैसा कांग्रेस या अन्य राजनैतिक दल करते आए हैं शायद अब असंभव नहीं तो क"िन अवष्य है गुजरात चुनाव से ये स्पष्ट हो गया। सत्ता विरोधी रूझान की बात अलग है जहां जनता सत्तारूढ़ पार्टी की छोटी-छोटी कमियों को खोज कर सामने लाने का पयास करती है और यही काम विपक्ष की पार्टियां भी करती हैं परंतु जब सत्ताधारी पार्टी के कुछ "ाsस कार्य धरातल पर दिख रहे हो तो विपक्ष का ये पयास भी बेदम साबित होता है।
गुजरात चुनाव से ये स्पष्ट हुआ है कि अब स्वस्थ राजनीति का आरंभ हो चुका है जिसकी दिशा विकास हो और ये जनता की इच्छा है। जिस तरह से विकास परक राजनीति का माखौल गुजरात चुनाव में उड़ाया गया वो हास्यास्पद था और इस मजाक ने भी राजनीति को दिशा दिखाया। अब सोचना उन लागों को है जो हाशिये पर हैं और जिन्होंने सत्ता को अपनी दासी समझा था। गुजरात की जनता ने भाजपा को पुनः और हिमाचल में कांग्रेस को हटाकर भाजपा को सत्ता दी ये सत्ताधरी पार्टी के युग की पामाणिकता है ये भी स्पष्ट हुआ कि ऐसे परिणाम मेहनत के बलबूते आते हैं अनायास नहीं।
भाजपा ने अपनी पासंगिकता को लगातार पमाणित किया है जबकि कांग्रेस को अपने अस्तित्व को पमाणित करने की जरूरत है गुजरात चुनाव में उसकी सीटें जरूर बढ़ी हैं लेकिन हिमाचल ने उसे सत्ता से बाहर किया है ऐसे में कांग्रेस द्वारा भाजपा पर उंगली उ"ाने से पहले ये जरूरी है कि वो खुद का आत्ममंथन करे। कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष अपनी पार्टी को कौन-सी घुट्टी देंगे इसका इंतजार रहेगा। नया वर्ष एक बड़ी राजनैतिक चुनौती पेश करने वाला है जिसे स्वीकार करने के लिए भाजपा तैयार बै"ाr है कांग्रेस को अभी तय करना है ऐसे में कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष गुजरात की सम्मानजनक हार पर इतराएंगे, टॉस करेंगे या फैसला ये वक्त ही बताएगा।

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