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सवालों के बावजूद एक साथ तीन तलाक को 'लॉक' किया
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आदित्य नरेन्द्र
जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार ने एक ही बार में तीन तलाक को अवैध घोषित करने को लेकर मुस्लिम मfिहलाओं से वादा किया था उसे निभाते हुए सरकार लोकसभा में इसी सप्ताह एक विधेयक लेकर आई और तमाम किन्तु-परन्तु के बावजूद मुस्लिम मfिहला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017 को पास कराने में कामयाब रही। अब यह विधेयक राज्यसभा में जाएगा। वहां से पास होने के बाद राष्ट्रपति इस पर हस्ताक्षर करेंगे। इस प्रक्रिया के बाद इस मामले को लेकर सड़क से अदालत तक संघर्ष कर रही मुस्लिम मfिहलाओं का लगभग पांच दशक पुराना सपना एक हद तक साकार होगा। हालांकि उनका कहना है कि हलाला और बहुविवाह को लेकर उनका संघर्ष आगे भी जारी रहेगा।
इस तरह हम इस विधेयक को एक शुरुआती लेकिन महत्वपूर्ण कदम करार दे सकते हैं। अभी तक राजनेता इस मामले में कोई कदम उठाना बर्र के छत्ते में हाथ डालने जैसा समझते रहे हैं। अधिकांश राजनीतिक दलों का प्रयास मुस्लिम समाज की इस कुरीति को दूर करने की बजाय उनका वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करने पर ज्यादा जोर होता था। इसीलिए अपनी नाराजगी दिखाते हुए एआईएमआईएम और बीजू जनता दल ने वोटिंग के समय सदन से वाक आउट तक कर डाला। सदन के बाहर आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को शिकायत थी कि सरकार ने इस संबंध में उनसे कोई राय मश्विरा नहीं किया। हालांकि विपक्ष के एक बड़े हिस्से ने देश की आठ करोड़ मुस्लिम मfिहलाओं को नाराज करना गंवारा नहीं समझा। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो उसके नेताओं ने विधेयक पेश होने से पहले देर रात को इसके समर्थन का फैसला किया जिसके चलते सदन में सुबह उसका रुख कुछ नरम था लेकिन बाद में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजने की मांग कर डाली। जैसे-जैसे बहस आगे बढ़ी वैसे-वैसे कांग्रेस पर आरोप लगने शुरू हुए कि कांग्रेस को इंदिरा जी और राजीव गांधी के समय में इस समस्या से निपटने का मौका मिला था लेकिन उसने मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते इसे गंवा दिया। बहस के दौरान जल्द ही कांग्रेस को यह अहसास हो गया कि यदि वह इस विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजने के लिए अड़ी तो इससे यही संदेश जाएगा कि वह पहले की तरह ही इस बार भी इस मामले को टालना चाहती है। 30 साल पहले इच्छा शक्ति की कमी के चलते कांग्रेस इसका श्रेय लेने से चूक गई थी। इस बार भी यदि कांग्रेस इस विधेयक के खिलाफ कड़ा रुख अपनाती या इसे टालने का प्रयास करती तो मुस्लिम मfिहलाओं के एक वर्ग में उसकी छवि खलनायक जैसी हो सकती थी। लिहाजा उसने एक बार फिर अपने रुख में परिवर्तन किया और विधेयक पास होने दिया ताकि इसका पूरा श्रेय भाजपा को न मिले। कुछ श्रेय उसके हिस्से में भी आए।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त को दिए गए अपने एक फैसले में तलाक-ए-बिद्दत को पूरी तरह असंवैधानिक बताते हुए संसद से कहा था कि वह इस संबंध में कानून बनाने पर विचार करें। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक साथ तीन तलाक गैरकानूनी हो गया था लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं आया और उसके बाद से विधेयक पेश होने के दिन तक 100 से भी ज्यादा एक साथ तीन तलाक के मामले सामने आ चुके हैं। अब सरकार के पास विधेयक लाकर कानून बनाने का ही रास्ता बचा था। शादी-ब्याह से संबंधित मामलों में हिंदू और ईसाई परंपराओं में पहले ही बदलाव किया जा चुका है। यह मामला लैंगिंक समानता से भी जुड़ा हुआ है। इसका फायदा मुस्लिम मfिहलाओं को इस रूप में मिलेगा कि वह अब भय और असुरक्षा के वातावरण में नहीं जिएंगी। चर्चा के दौरान इस विधेयक को लेकर कुछ सांसदों ने दो समस्याओं की ओर इशारा किया है। पहली समस्या यह है कि इसका दुरुपयोग मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ हो सकता है। इसका जवाब है कि ऐसी ही आशंका जब दहेज और घरेलू हिंसा कानून बने थे तब भी सामने आई थी लेकिन महिलाओं को इसका काफी लाभ मिला है। दूसरी समस्या इस विधेयक में तीन साल की सजा पर आपत्ति उठाई जा रही है। कहा जा रहा है कि यदि दोषी पति जेल में है तो पीड़ित महिला को गुजारा भत्ता कौन देगा। उम्मीद है कि राज्यसभा में बहस के दौरान इस पर कुछ स्पष्टता आएगी। वैसे भी यदि कोई समस्या आती है तो कानून में संशोधन का रास्ता हमेशा ही खुला है। फिलहाल तो मामला एक साथ तीन तलाक का है। सरकार एक रास्ते पर आगे बढ़ी है। इससे पीड़ित महिलाओं में तो खुशी है ही साथ ही उम्मीद है कि उनके पारिवारिक सदस्य जैसे पिता-पुत्र और भाई भी इस कानून से संतुष्ट होंगे। आज तक जिस भाजपा और आरएसएस को मुस्लिम विरोधी और मनुवादी समझा जाता था उसके राष्ट्रवाद को भी इससे एक नई पहचान मिली है क्योंकि इन्हीं की सरकार के नेतृत्व में यह क्रांतिकारी कदम उठाया गया है। इसीलिए इसका महत्व और भी ज्यादा हो जाता है।
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