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अभी और बढ़ सकती हैं लालू यादव की मुश्किलें
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आदित्य नरेन्द्र
राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव एक बार फिर गहरे संकट में फंस गए हैं। उन्हें विशेष सीबीआई अदालत ने देवघर कोषागार से 89.27 लाख रुपए गबन के आरोप में जहां साढ़े तीन वर्ष कैद और पांच लाख रुपए जुर्माने की सजा दी वहीं उन्हें भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2), 13(1)सी एवं डी के आधार पर दोषी ठहराते हुए भी अलग से साढ़े तीन वर्ष की कैद और पांच लाख रुपए जुर्माने की सजा सुना दी है। यह दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी। जुर्माना अदा न करने पर छह माह की जेल और काटनी होगी। दोनों सजाएं एक साथ चलेंगी। इस तरह लालू को साढ़े तीन साल और 10 लाख रुपए जुर्माने की सजा हुई है। लालू, उनके परिवार और पार्टी पर यह फैसला एक गाज की तरह गिरा है। जेडीयू और भाजपा द्वारा लालू परिवार के सदस्यों तेजस्वी और तेजप्रताप को सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद यह उनके सामने दूसरा बड़ा संकट है। उनकी सजा पर राजनीति गरम हो चुकी है। भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने जहां कानून को सभी के लिए बराबर बताया है वहीं जेडीयू के केसी त्यागी ने इसे एक ऐतिहासिक निर्णय करार दिया। बिहार के कांग्रेस प्रभारी काकब कादरी ने न्याय प्रक्रिया का सम्मान करने की बात कहते हुए गठबंधन जारी रखने की बात दोहराई है। इन प्रतिक्रियाओं से यह तो आभास हो ही जाता है कि मामला बेहद गंभीर है। दरअसल आने वाले कुछ महीने लालू परिवार और राजद के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। लालू के खिलाफ रांची में डोरंडा कोषागार से जुड़ा 184 करोड़ रुपए की फर्जी निकासी, दुमका कोषागार से 3.97 करोड़ और चाइबासा कोषागार से 36 करोड़ रुपए की अवैध निकासी का मामला अंतिम दौर में है। यदि यह मामले भी लालू के खिलाफ जाते हैं तो राजद का संभलना मुश्किल होगा। इसकी परीक्षा अगले महीने बिहार में होने वाले अररिया लोकसभा सीट पर उपचुनाव के साथ ही शुरू हो जाएगी। यह सीट आरजेडी के प्रभुत्व की मानी जाती है। लालू को सजा मिलने और आरजेडी के बिहार की सत्ता से हटने के बाद इस सीट को बनाए रखना उसके लिए एक चुनौती है। यदि आरजेडी यह सीट हार जाती है तो पार्टी में भगदड़ की आशंका बढ़ सकती है। एक सवाल लालू की अनुपस्थिति में पार्टी नेतृत्व का भी है। लालू तेजस्वी को इसके लिए तैयार कर रहे थे लेकिन इस सवाल का जवाब किसी के भी पास नहीं है कि क्या तेजस्वी लालू जैसा कद और सम्मान हासिल कर पाएंगे या क्या वह जेडीयू और भाजपा के राजनीतिक धुरंधरों से मुकाबला करने में सक्षम हैं इसका जवाब तलाशना भी अभी आसान काम नहीं है। एक और सवाल पारिवारिक विरासत का भी है। कहीं लालू की अनुपस्थिति में उनकी राजनीतिक विरासत को लेकर आपस में कोई कलह तो नहीं होगी। यह भी बड़ा सवाल होगा जिसका जवाब आने वाला समय ही दे सकता है। फिलहाल तो तेजस्वी ने पार्टी में सामूहिक नेतृत्व की बात कही है। परिवार आधारित पार्टियों के लिए सामूहिक नेतृत्व एक नई अवधारणा है लेकिन इसमें पार्टी के हाइजैक होने का खतरा भी छिपा है। उल्लेखनीय है कि भ्रष्टाचार के आरोप सिर्फ लालू पर ही नहीं हैं बल्कि उनके कई पारिवारिक सदस्य भी इसके लपेटे में आए हुए हैं। आने वाले कल को कोई और खुलासा हो जाए और इस लिस्ट में उनके किसी और पारिवारिक सदस्य का नाम जुड़ जाए यह कोई नहीं जानता। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के इस दौर में यह एक आम चलन है। शायद इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए तेजस्वी ने इसे कानूनी लड़ाई बताते हुए कहा है कि निचली अदालत का जो फैसला आया है हम उसका सम्मान करते हैं। हमें न्यायपालिका में पूरा भरोसा है। हम फैसले का अध्ययन करेंगे और देखेंगे कि जमानत के लिए क्या कानूनी विकल्प बनता है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार पर लालू के खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाते हुए कहा कि मकर संक्रांति के बाद वह जनता के बीच जाकर सारी बातों को रखेंगे। लेकिन इसके लिए वह विपक्ष को दोषी कैसे ठहराएंगे क्योंकि मामला चलाने की अनुमति देने वाले पूर्व राज्यपाल एआर किदवई कांग्रेसी थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा को लालू ने ही पीएम बनवाया था और सीबीआई के तत्कालीन संयुक्त निदेशक यूएन विश्वास इस समय टीएमसी के नेता हैं। और तो और जब लालू जेल गए तब उनकी पत्नी राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री थीं। तब उन्हें किसने फंसा दिया इसका जवाब देना उनके लिए आसान नहीं होगा। स्पष्ट है कि अब आगे तेजस्वी और राजद की राह आसान नहीं है। लालू समर्थकों की निगाह ले-देकर हाई कोर्ट से जमानत मिलने की उम्मीद पर टिकी हुई है। लेकिन यदि उन्हें हाई कोर्ट से जमानत न मिली तो क्या होगा इसे लेकर कयास लगने शुरू हो गए हैं। अभी तक सिर्फ कांग्रेस ही लालू और राजद के साथ खड़ी दिखाई दे रही है। यदि भविष्य में कांग्रेस ने भी जनमत के दबाव या फिर किसी और कारण के चलते अपना रुख बदल लिया तो लालू और राजद की वापसी की राह और भी मुश्किल हो जाएगी।
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