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गुलामी की मानसिकता तथा भारत की कानून व्यवस्था

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:17 Jan 2018 3:01 PM GMT
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कर्नल शिवदान सिंह

(सेवानिवृत्त)
15 अगस्त 2017 के अवसर पर पधानमंत्री नरेन्द मोदी ने लाल किले के पाचीर से झंडा फहराने के बाद अपने भाषण में देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा था कि अब देश में सब चलता है की संस्कृति के स्थान पर सब बदल सकता है वाली संस्कृति को अपनाना चाहिए, परन्तु देश की कुछ घटनाओं एवं खुलासों से पधानमंत्री की कल्पना साकार होती नजर नहीं आ रही है। 20 साल पहले दिल्ली के उपहार सिनेमा में हुए भीषण अग्निकांड के बाद भी बहुत से इसी पकार के भीषण अग्निकांड हुए जिनमें मानवीय चूक तथा सुरक्षा मानकों की अनदेखी के कारण हजारों लोगों की जानें गयी और इसका सटीक उदाहरण है अभी मुम्बई के एक होटल में हुआ अग्निकांड जिसमें 14 लोग दम घुटने से मर गए तथा 50 लोग घायल हो गए। 6 साल पहले आशाराम के घिनौने यौन शोषण के बाद राम रहीम, वीरेन्द देव दीक्षित तथा अभी-अभी लखनऊ के मुस्लिम मदरसे में उसी पकार नाबालिग लड़कियों तथा महिलाओं को बन्दी बनाकर उनका लम्बे समय तक यौन शोषण होता रहा। अग्निकांडों में सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन करवाने तथा अवैध धन्धों पर नियंत्रण वाले विभागों की मिली भगत तथा भ्रष्टाचार के कारण नए-नए अग्निकांड़ों में देशवासी जाने गवां रहे हैं तथा आशाराम, वीरेन्द देव तथा लखनऊ के मदरसे जैसे यौन शोषण के अपराध सम्बंधित जिलों की पुलिस स्थानीय खुफिया तंग तथा जिला पशासन के सब चलता है वाले रवैए से हुए। पाकृतिक कानून के अनुसार अपराध करने वाला जितना दोषी होता है उतना ही वह भी दोषी है जिसका कर्तव्य इनको रोकना है। यहां पर यह विचारणीय है कि पहली बार एक पकार के अपराध के बाद माना जा सकता है कि संबन्धित विभागों को अपराधियों की कार्य पणाली तथा मंशा के बारे में पता नहीं था परन्तु यहां तो एक ही पकार के अपराध एक ही शैली में बार-बार हो रहे हैं। जिससे देश की पतिष्"ा अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर घूमल हो रही है जैसा कि राम रहीम के अपराधों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सोशल मीडिया पर खूब दिखाया गया तथा अब वीरेन्द देव के बारे में हो रहा है। हमारे देश तथा अमेरिका तथा अन्य विकसित पश्चिमी देशों में इतना अन्तर है कि वहाँ पर अपराध होने की पूरी शंकाओं तथा ताने बाने को पहले ही ध्वस्त कर दिया जाता है तथा हमारे देश में अपराध-घटित होने का इंतजार किया जाता है। उसके बाद रश्मी तौर पर सम्बन्धित क्षेत्र का जन पतिनिधि इस अपराध तथा बड़ी घटना को पदेश की विधानसभा तथा लोकसभा में उ"ाता है विपक्ष शोर-शराबा करके वाहवाही बटोरता है तथा सत्ताधारी दल इस सबको चुपचाप देखकर गुबार को "ंडा होने देता है। जबकि होना चाहिए कि देश को सुगमता से चलाने वाली इन संस्थाओं को पहली घटना पर ही ऐसा कानून बनाना चाहिए जिससे इनकी पूनरावृति पभावशाली तरीके से रोकी जा सके। परन्तु आज तक ऐसा हुआ नहीं। इसी पकार की घटनाओं के बाद पुलिस ज्यादातर सम्बन्धित उपकमों तथा उद्योगें के मालिकों के विरूद्ध भारतीय दंड सहिंता की धारा 304-ए के तहत मुकदमा दर्ज कर लेती है तथा मुकदमा 10-15 साल तक चलते है जनता पकरण को भूल चुकी होती है तब जाकर बहुत मुश्किल से 2 या 3 साल की सजा से सैकड़ों लोगों को रफा दफा कर दिया जाता है। जैसा कि उपहार सिनेमा केस में हुआ था राम रहीम को सजा मिलने में पूरे 12 साल लगे। अब आशाराम के अपराधिक मुकदमे 6 साल बीतने के बाद भी पारम्भिक स्तरों पर ही अदालतों में लम्बित है पीड़ितों की तरफ से पैरवी करने वाला सरकारी अभियोजन पक्ष जान-बूझकर इनको लटका कर साक्ष्यों के नष्ट होने की पतिक्षा कर रहा है और इसके उदाहरण है आशाराम के विरूद्ध गवाही देने वाले गवाहें की एक-एक कर हत्या।
हमारे देश की कानून तथा न्याय व्यवस्था की इस स्थिति के कई कारण है। इनमें सर्वपथम है गुलामी की मानसिकता। भारत तथा अन्य पिछड़े तथा विकासशील कहाने वाले देश लम्बे समय तक विदेशी सन्ताओं के गुलाम रहे इस कारण इनकी मानसिकता दासें जैसी हो गयी। दासों की तुलना पशुओं से की जाती है क्योंकि पशु भी विवेकहीन होने के कारण केवल स्वयं के बारे में ही सोचता है तथा दास भी दासता के पभाव के कारण केवल स्वयं के बारे में ही सोचता है। जबकि विवेकशील मानव मानवता की रक्षा तथा समाज की सुरक्षा के बारे में सर्वपथम सोचता है। इसी पशु एवं दासता की पवृति के कारण ही भ्रष्टाचार हमारे देश में चरम पर है। क्योकि भ्रष्टाचारी केवल स्वयं के बारे में पशु की तरह सोचता है तथा पशु की तरह ड़र की भाषा समझकर अनैतिक तथा समाज विरोधी कार्य होने देता है। मुम्बई कमला मिल कम्पाउड में मुम्बई महानगर पालिका के होटल में आग लगने वाली घटना के बाद 340 गैर कानूनी इमारतें, उपामों तथा होटलों को तोड़कर हटा दिया है। यह सब यहां पर पिछले लम्बे समय से था परन्तु भ्रष्टाचार तथा राजनैतिक दबाव के कारण सम्बन्धित विभागों ने इनके विरूद्ध कोई कार्यवाही न करके होटल में आग वाली घटना में अपत्यक्ष रूप से सहयोग अपराध में सहभागी है। इसके बाद देश में कानून व्यवस्था की इस स्थिति में महिलाओं के पति अपराध आते है। देश का बहुसंख्यक समाज स्त्राr को एवं शक्ति के रूप में पूजन का दिखावा करता है परन्तु असलियत में पुत्री को दहेज इत्यादि के कारण बोझ भी यही समाज समझता है इसलिए इस समाज के गरीब तथा पिछड़े वर्ग के लोग अपनी बच्चियों को शिक्षा तथा देखभाल के लिए आशाराम, वीरेन्द दीक्षित, राम रहीम तथा लखनऊ के मुस्लिम मदरसे जैसे पाखंड़ियों के बहकावे में आकर अपनी बच्चियों को उनके हवाले कर देते है। ये पाखंडी धर्म की मनचाही तथा कुंसित इरादों के अनुसार व्याख्या करके इन नाबालिग तथा बालिक बालिकाओं का यौन शोषण स्वयं तथा औरतों से कराते है। जैसे वीरेन्द देव तथा राम रहीम बालिकाओं की गोपी बुलाकर स्वयं को भगवान कृष्ण के रूप में दिखाते थे। पभावित परिवारों तथा बालिकाओं की सोच बदलने के लिए धर्म ग्रन्थों में वर्णित पसंगों के बिना संदर्भ के उनकी व्याख्या इस पकार के पाखंड़ों करते थे जैसे वीरेन्द देव तथा राम रहीम 16000 स्त्रियों को अपनी पत्नी बनाने के सपने देख रहे थे। इनके पाखंड तथा राजसी रहन सहन के कारण इनका आसपास के क्षेत्रों की गरीब तथा अशिक्षित जनता पर पकड़ बन जाती है जिसके कारण इनके वोट बैंक के लिए राजनैतिक संरक्षण इनको पाप्त होना शुरू हो जाता है जिसकी आढ़ में इनका कुकृत्य बिना रोकटोक फलते फूलते रहते है। जैसा कि राम रहीम, आशाराम तथा वीरेन्द देव के बारे में सुनने में आ रहा है। इसी राजनैतिक संरक्षण के कारण ही आशाराम, वीरेन्द देव तथा राम रहीम हजारो करोड़ की सम्पत्तियों के मालिक बन गए तथा इनके आश्रम देश के ज्यादातर हिस्सों में पाए जा रहे हैं। यहां पर यह विचारणीय है कि इन तीनों के आश्रमों में छोटी बच्चियों का यौन शोषण तथा जबरदस्ती इनको बंधक बनाकर लम्बे समय तक रखा गया परन्तु इसकी भनक वहाँ की स्थानीय पुलिस, जिला पशासन, सरकार की गुप्तचर संस्थाओं तथा महिला संग"नों को क्यों नहीं लगी। जबकि इन सबको इस पकार के स्थानों की पूरी जानकारी हर समय होनी चाहिए। 25 अगस्त 2017 से दो दिन पहले से ही राम रहीम के सर्मथक पंचकूला में एकत्रित होने लगे तथा दंगो तथा फसाद की पूरी आशंका थी फिर भी हरियाणा पशासन तथा पुलिस इसको मूकदर्शक बनकर देखती रही जिसके कारण मुम्बई की तरह ही यहां पर 30 लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी तथा सैकड़ों घायल हो गए। अन्त में इन सबके काले कारनामों का खुलासा पीड़ितों के अदालत तथा मीडिया जाने से हुआ जबकि इनके विरूद्ध स्वतः ही अनैतिक कृत्य तथा मानव अधिकारों के हनन की कार्यवाही कानून व्यवस्था लागू करने वाली पुलिस तथा जिला पशासन को करनी चाहिए थी। इस पकार अपत्यक्ष रूप से सम्बन्धित स्थानों की पुलिस तथा जिला पशासन भी इनके अपराधों में उतने ही दोषी है जितने अपराध करने वाले ये ढोंगी बाबा है।
भारत तथा पाकिस्तान दोनों ने आजादी के समय अंग्रेजों द्वारा लागू 1861 के पुलिस एक्ट तथा न्याय संहिताओं को अपना लिया था जो एक गुलाम देश के अनुरूप बनाए गए थे। इसी कारण बड़े-बड़े अनैतिक कार्यों, दंगो, मानव अधिकारों के उल्लघन तथा यौन शोषण के मामलों में शासक वर्ग तथा पुलिस को दोषी तथा जिम्मेदार बनाने का कोई पावधान नहीं है। क्योंकि उस समय शासक अंग्रेज होते थे तथा उनकी ईमानदारी तथा वफादारी पर कोई शक नहीं करता था। परन्तु अब दासता की मानसिकता के कारण जैसा ऊपर वर्णित किया गया है वैसा नहीं है। जैसा कि अक्सर मीडिया में आ रहा है भारतीय नौकरशाही के बहुत से अधिकारियों के विरूद्ध भ्रष्टाचार तथा आय से अधिक सम्पत्तियों के मामले आ रहे हैं इसलिए भ्रष्टाचार के कारण नौकरशाह देश में अनैतिक तथा गैर कानूनी कार्यों पर रोक नहीं लगा रहे है। इसी कारण से पुलिस तथा अन्य संस्थाएं भी इसमें उसी पकार सहयोग कर रहे हैं। स्थिति को और भी वोट बैंक की राजनीति बना रही है। इसलिए इन हालातों को यदि सुधारना है तो सर्वपथम शुरूआत कानून तथा न्याय की पणाली को गुलामी से बदलकर स्वाधीन मानसिकता के अनुरूप बनाना होगा। इसके लिए हर व्यक्ति तथा सरकारी कर्मी को उसके कर्तव्यों के पति जबाव देह बनाना होगा तथा इसमें कोताही के कारण यदि कोई गैर कानूनी कार्य या अपराध पाया जाता है तो उसके लिए सम्बन्धित अधिकारी के विरूद्ध कड़ी सजा का पावधान होना चाहिए तथा जांच के नाम पर इनके अपराधें को रफा दफा करने की पवृत्ति को रोकने के लिय जांचों को अदालतों की निगरानी में निश्चित समय में पूरा करने का पावधान होना चाहिए। यदि पधानमंत्री के सब चलता है के स्थान पर बदल सकता के सपने को साकार करना है तो इसके लिए समय से उ"ती पुलिस तथा न्याय व्यवस्था में सुधार की मांग के अनुसार 1861 के पुलिस एक्ट को बदलकर पुलिस के स्वरूप देश की पुलिस के अनुरूप बनाना होगा। अंग्रेजों के कानून में नौकरशाही एवं शासक वर्ग को कानून से ऊपर मानकर उनकी कहीं पर जिम्मेदारी निर्धारित नहीं है उसको भी बदलकर उनको व्यवस्था पर शासन करने के साथ-साथ इसमें हुई अव्यवस्था के लिए जिम्मेदार भी "हराया जाना चाहिए। यदि ऐसा हो जाए तो मुम्बई की कमला मिल, आशाराम, वीरेन्द देव जैसे अपराधों पर स्वतः लगाम लग जाएगी।

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